रशिया के साथ ईंधन कारोबार पर अमरीका की भारत को नई चेतावनी

वॉशिंग्टन – भारत अमरीका का अहम रणनीतिक भागीदार देश है। भारत के सहयोग को अमरीका विशेष अहमियत दे रही है और अमरीका आगे भी इसे जारी रखेगी। लेकिन, अमरीका को रशिया पर हर मुमकिन दबाव बढ़ाना है। इन कोशिशों का साथ करना है या नहीं, इसका निर्णय हर देश ने करना है, ऐसी चेतावनी अमरिकी रक्षा मुख्यालय पेंटॅगॉन ने भारत को दी है। भारत रशिया से बड़ी मात्रा में ईंधन खरीद रहा है, ऐसी खबरें प्राप्त हो रही हैं। इस पृष्ठभूमि पर अमरीका अपनी नाराज़गी पेंटॅगॉन के माध्यम से फिर से दर्ज़ करती दिखाई दे रही है।

यूक्रेन युद्ध शुरू होने से पहले भारत अपने मात्र २ प्रतिशत ज़रूरी ईंधन की खरीद रशिया से कर रहा था। लेकिन, यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद रशिया ने भारत को रिहायती दर से ईंधन प्रदान करने का प्रस्ताव दिया। यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में ईंधन की कीमतों का बड़ा उछाल आया। इस वजह से अपने ८५% ईंधन की ज़रूरत आयात से पूरी करनेवाले भारत ने रशिया से प्राप्त रिहायती दर से ईंधन खरीदने का प्रस्ताव स्वीकार किया। रशिया के साथ जारी भारत के इस कारोबार पर अमरीका और कुछ यूरोपिय देशों ने असंतोष व्यक्त किया था। लेकिन, भारत ने इसकी परवाह नहीं की।

भारत का रशिया के साथ जारी ईंधन कारोबार किसी भी प्रतिबंध का उल्लंघन नहीं करेगा। यूरोपिय देश और अमरीका अभी भी रशिया से ईंधन खरीद रहे हैं, इस बात पर भारत के विदेशमंत्री ने समय-समय पर ध्यान आकर्षित किया। यूक्रेन पर हमला करनेवाली रशिया से ईंधन खरीदकर भारत यूक्रेन पर हमला करने के लिए रशिया को पैसे दे रहा है, ऐसी आलोचना यूरोपिय देशों से हुई थी। रशिया से ईंधन की खरीद करना यानी यूक्रेन युद्ध के लिए पैसों की आपूर्ति करना होगा, तो फिर रशिया से सबसे अधिक मात्रा में ईंधन खरीद रहे यूरोपिय देश ही रशिया को सबसे ज्यादा मात्रा में पैसे प्रदान कर रहे हैं, ऐसी फटकार भारतीय विदेशमंत्री ने लगायी थी। इसके बाद कुछ समय के लिए भारत पर यह आरोप लगाना बंद हुआ था।

लेकिन, अमरीका के पेंटॅगॉन ने फिर से भारत और रशिया के सहयोग का मुद्दा उठाकर इस पर नाराज़गी जतायी है। भारत ने रशिया से भारी मात्रा में ईंधन खरीद शुरू की है, यही इसका कारण बना है। फ़रवरी तक रशिया से हर दिन ३० हज़ार बैरल्स ईंधन खरीद रहे भारत ने अब यह मात्रा बढ़ाकर रशिया से हर दिन १० लाख बैरल्स ईंधन खरीदना शुरू किया है, ऐसा दावा अमरीका के वॉल स्ट्रीट जर्नल नामक अखबार ने किया।

भारत ने तकरीबन २५ गुना अधिक मात्रा में रशियन ईंधन खरीदने की बात कहकर इसके लिए वर्णित अखबार ने जून में भारत और रशिया के ईंधन कारोबार के दाखिले दिए। रशिया अंतरराष्ट्रीय बाज़ार की तुलना में ईंधन खरीदने के लिए भारत को ३० से ४० डॉलर्स की रिहायत दे रही है, ऐसी जानकारी इस अखबार ने प्रदान की। इसका मतलब कच्चे तेल की कीमत प्रति बैरल १२५ डॉलर होने की स्थिति में भारत की राष्ट्रीय कंपनियाँ ९० से ९५ डॉलर्स प्रतिबैरल दर से रशियन कच्चे तेल की खरीद कर रही थी, ऐसी आलोचना ‘द वॉल स्ट्रीट जर्नल’ ने की। अब कच्चे तेल की कीमत कम हुई है, फिर भी रशिया से भारत को प्राप्त हो रही ईंधन खरीद की सहुलियत कायम होने का बयान इस अखबार ने किया है।

भारत और रशिया के इस सहयोग की गूंज अमरीका में सुनाई दी है। इसी वजह से इसका संज्ञान लेने के लिए बायडेन प्रशासन मज़बूर हुआ है। पेंटॅगॉन ने भारत-रशिया के सहयोग पर नाराज़गी व्यक्त करना इसी का हिस्सा बनता है। लेकिन, भारत से भी अधिक मात्रा में रशिया से ईंधन खरीद रहे चीन के विरोध में अमरीका ने अभी तक कोई भी पुख्ता कार्रवाई नहीं की है। यूरोपिय देश और जापान अभी भी रशिया से ईंधन खरीद रहे हैं और इस पर भी अमरीका ने मौन धारण किया हुआ है।

इसी वजह से रशिया का सहयोग कम करने के लिए अमरीका का दबाव को भारत पूरी तरह से अनदेखा करता दिख रहा है। रशिया से मित्रता का सहयोग करने के लिए भारत अमरीका की रणनीतिक भागीदारी दांव पर लगाएगा क्या, ऐसा सवाल बायडेन प्रशासन अलग अलग तरीके से भारत से कर रहा है। लेकिन, भारत के रशिया के साथ और अमरीका के साथ सहयोग स्वतंत्र हैं और इनका एक-दूसरे से संबंध नहीं जोड़ा जा सकता, ऐसी भारत की भूमिका है। अमरीका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के समावेश वाले क्वाड़ का हिस्सा बनते समय भारत ने रशिया का दबाव भी इसी तरह से ठुकराया था।

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