उदयपुर भाग- ३

राजमहल का स्थान शहर के बीचों बीच होता है, ऐसा साधारण रूप से हम सोचते हैं। लेकिन उदयपुर की झील में बनाये गये महल को देखकर हम अचंबित हो जाते हैं और यह झील में बना राजमहल ही उदयपुर की ख़ासियत है। झील के बीचों बीच महल बनाना यह कितनी अनोखी कल्पना है ना! ज़मीन पर महल का निर्माण करना तो आसान है; लेकिन जल में स्थित किसी भूभाग पर महल बनाना यह कितना मुश्किल काम है! अत एव झील में राजमहल का निर्माण करनेवाले उदयपुर के राजाओं की कल्पना को हमें दाद देनी चाहिए।

राजमहलअब झील में बनाये गये महलों की बात चली ही है तो हम ‘लेक पॅलेस’ से ही शुरुआत करते हैं।

पिचोला लेक में स्थित दो बड़े भूभागों पर दो राजमहलों का निर्माण किया गया है। इनमें से एक है, ‘लेक पॅलेस’, जिसे ‘जगनिवास’ या ‘जगत्-निवास’ भी कहा जाता है। महाराणा जगतसिंहजी (द्वितीय) ने १८वीं सदी में इसका निर्माण किया। स़फेद संगेमर्मर से बनाया गया यह पॅलेस बेहद ख़ूबसूरत है। ऐसा लगता है कि जैसे नीले पानी में एक स़फेद कमल ही खिला है। दोपहर के समय इस पिचोला लेक के किनारे पर खड़े रहकर कहीं से भी इस पॅलेस को देखिए, यह आपका मन मोह लेता है और रात के समय इस पॅलेस को रोशन करनेवाले लाखों दीप पिचोला लेक के पानी में मानो जैसे दिवाली मनाते हैं।

राजमहलराजस्थान यह वैसे देखा जाये तो रेगीस्तानी इलाक़ा है और इसीलिए वहाँ के किसी भी शहर या गाँव का तापमान कुछ ज्यादा ही रहता है, विशेष रूप से दोपहर में। इस तेज़ गर्मी से छुटकारा पाने के लिए इस लेक पॅलेस का निर्माण किया गया। जिस समय बिजली – इलेक्ट्रिसिटी की खोज नहीं की गयी थी, उस समय मानव को कुदरती ‘कूलर्स ’ पर ही निर्भर रहना पड़ता था। इसी युक्ति से उदयपुर के महाराजाओं ने जल का समुचित उपयोग करके झील में पॅलेस बनाने की संकल्पना को साकार किया। उदयपुर के शासक सूर्योपासक थे और इसीलिए सूर्य का दर्शन करने के उद्देश्य से इस राजमहल को पूर्वाभिमुख बनाया गया है।

इस संपूर्ण लेक पॅलेस में महाराजा जगतसिंहजी के शासनकाल में कई महल बनाये गये। बड़ा महल, खुश महल, फूल महल, धोला महल आदि कई महल इस एक ही राजमहल में बनाये गये। जिस कार्य के लिए उनका उपयोग किया जानेवाला था, उस ज़रूरत के अनुसार उनकी रचना की गयी। मग़र पूरे महल के निर्माण में संगेमर्मर का ही उपयोग किया गया है। राजमहल में दिखायी देते हैं – संगेमर्मर के स्तंभ, विशाल अटारियाँ, उपवन और इन सब की ख़ूबसूरती बढ़ानेवालें फौआरें और यहाँ के स़फेद संगेमर्मर की शोभा बढ़ाते हैं, यहाँ की खिड़कियों के रंगबिरंगी शीशें।

यह लेक पॅलेस दिखता ही इतना सुन्दर है कि दूर से इसे देखनेवाला भी इससे मोहित होकर इसकी ओर खींचा चला आता है। आज़ाद भारत में रियासतदारों की रियासतें तो ख़ालिसा हो गयी, लेकिन कुछ राजवंशों को उनके पुरखों के महल विरासत में मिले थे। आगे चलकर उनमें से ही कुछ महलों का रूपान्तरण ‘हेरिटेज होटलों’ में किया गया। इस वजह से पर्यटक आज उन्हें भीतर से भी देख सकते हैं। राजा-महाराजाओं का ज़माना तो अब नहीं रहा, लेकिन वे जहाँ रहते थे उन महलों की सुन्दरता और विशालता को आज हम देख सकते हैं। हेरिटेज होटल के रूप में परिवर्तित हो चुके ये राजमहल आज भी सुस्थिति में हैं। आज पिचोला लेक में स्थित स़फेद संगेमर्मर का यह लेक पॅलेस भी ऐसे ही एक हेरिटेज होटल में रूपान्तरित हो चुका है।

पिचोला लेक के अन्य भूभाग पर स्थित है – ‘जगमंदिर पॅलेस’। दर असल इसका निर्माणकार्य पहले शुरू हुआ। १७वीं सदी में महाराणा अमरसिंहजी के शासनकाल में इसका निर्माणकार्य शुरू हुआ और महाराणा करणसिंहजी के शासनकाल में पूरा हुआ। बाद में महाराणा जगतसिंहजी (प्रथम) ने इसी में कुछ और महलों का निर्माण किया और फिर जाकर बना आज का यह राजमहल।

उदयपुर के राजमहलों की ख़ासियत यही है कि यहाँ के एक राजमहल में हाऊसिंग कॉम्प्लेक्स की तरह विभिन्न महलों का समावेश होता है। अलग अलग उपयोग के लिए इनका निर्माण किया जाता था। उसके उप्योग के अथवा उसकी किसी ख़ासियत के अनुसार फिर उसे नाम दिया जाता था।

यह तीन मंज़िला राजमहल पीले रंग के बालुकाश्म पत्थरों तथा संगेमर्मर से बनाया गया है। इस महल में गुल महल, बड़ा पत्थर महल, कुँ वरपाड़ा का महल आदि कई महल हैं। संगेमर्मर में तराशे गये ८ विशाल हाथी यह यहाँ की ख़ासियत है। इस राजमहल के तथा इसके इतिहास के बारे में जिनके मन में जिज्ञासा है, उन्हें यहाँ के म्युज़ियम अवश्य जाना चाहिए।

पिचोला लेक के इन दो राजमहलों तक बोट से ही जाना पड़ता है।

इन दो बड़े राजमहलों की सैर करने के बाद उनकी अपेक्षा थोड़े से छोटे रहनेवाले ऐसे एक महल को देखते हैं।

‘मान्सून पॅलेस’ अथवा ‘सज्जनगढ़ पॅलेस’ इस नाम से जाना जानेवाला यह महल थोड़ी सी ऊँचाईवाले स्थान पर बना है। इर्दगिर्द का जंगल और उस जंगल के जानवर ही हैं, इसके साथी। १९वीं सदी के उत्तरार्ध में सज्जनसिंहजी नाम के महाराणा ने इसका निर्माण किया, इसलिए इसे सज्जनगढ़ कहा जाता है। राजस्थान  के रेगीस्तान में पानी की क़िल्लत रहना तो स्वाभाविक ही है और ऐसे में अच्छी ख़ासी बरसात होना यह बात यहाँ पर किसी पर्व से कम नहीं है। बरसात के मौसम में इस राजमहल से दिखायी देनेवाले बारिश के नज़ारे को देखते देखते देखनेवाला सुध-बुध खो बैठता है और इसीलिए इसे ‘मान्सून पॅलेस’ कहा जाता है। बेतहाशा गर्मी से छुटकारा पाने के लिए लेक पॅलेस; और बारिश का अनोखा नज़ारा देखने के लिए मान्सून पॅलेस! दो ऋतुओं के दो विभिन्न रूपों का लु़फ़्त उठाने के लिए दो अलग अलग महल!

इतने सारे महलों से तो हमारा परिचय हो गया; लेकिन अब भी प्रमुख राजमहल को हमने कहाँ देखा है! प्रमुख राजमहल को देखने के लिए हमें फिर एक बार पिचोला लेक के पास लौटना पड़ेगा।

‘सिटी पॅलेस’ अथवा प्रमुख राजमहल पिचोला लेक के पूर्वी तट पर स्थित है। यह राजमहल भी पूर्ववर्णित राजमहल की तरह महलों का एक हाऊसिंग कॉम्प्लेक्स ही है। हालाँकि इस महल से पिचोला झील दिखायी देती है, लेकिन यह राजमहल बना है ज़मीन पर ही।

उदयपुर की स्थापना करनेवाले महाराणा उदयसिंहजी ने इसका निर्माण करना शुरू किया और उनके बाद के राजगद्दी सँभालनेवाले शासकों ने आगे चलकर उसमें कुछ और वास्तुओं का निर्माण किया और इसी प्रक्रिया द्वारा आज का यह राजमहल बना है। कई वास्तुशैलियों का मिश्रण है, ग्रॅनाइट और संगेमर्मर के पत्थरों से बना यह महल।

इस राजमहल में कई प्रवेशद्वारों में से प्रवेश किया जा सकता है और इन प्रवेशद्वारों को ‘पोल’ कहा जाता है। बड़ा पोल, हाथी पोल और त्रिपोली पोल इनमें से आप इस महल में प्रवेश कर सकते हैं। बड़ा पोल और त्रिपोली पोल इनके बीच में ८ संगेमर्मर से बने तुला स्तम्भ अथवा तोरन (बंदनवार) दिखायी देते हैं। इन तुलास्तम्भों का इस्तेमाल राजाओं की तुला करने के लिए किया जाता था। स्वर्ण और चांदी इनके द्वारा राजा की तुला करके फिर उनका दान किया जाता था।

इस सिटी पॅलेस में विभिन्न राजाओं के शासनकाल में कुछ अन्य रचनाओं का निर्माण होता रहा और इसीलिए उस उस समय की रचनाशैली का भी उन रचनाओं पर प्रभाव पड़ना स्वाभाविक ही है।

शिल्पकला के साथ साथ यहाँ के महलों की दीवारों पर चित्र बनाये गये हैं और साथ ही कागज़, कपड़ा आदि पर भी चित्र बनाये गये हैं। विभिन्न प्रकार के आइनें, रंगबिरंगी शीशों से बनी कलाकृतियाँ और डच तथा चीनी टाइल्स इन्हें भी हम इस महल में देख सकते हैं। इस राजमहल के निर्माण में हालाँकि संगेमर्मर और ग्रॅनाइट का इस्तेमाल किया गया है, मग़र साथ ही विभिन्न प्रकार के शीशों का भी बड़े पैमाने पर उपयोग किया गया है और इस बात को हम इस महल की ख़ासियत भी कह सकते हैं। इन रंगबिरंगे शीशों का इस राजमहल में किया गया बेहतरीन आविष्कार है, ‘मोर चौक’।

इस राजमहल को देखते देखते हम अचानक एक चौक में दाखिल हो जाते हैं। इस चौक में सूरज की रोशनी अधिक से अधिक ङ्गैलती रहे, ऐसी व्यवस्था की गयी है और सामनेवाला नज़ारा तो ऐसा है कि सुन्दरताप्रेमी उसे देखते देखते अपने आपको भूल जाए। रंगबिरंगी शीशों के टुकड़ों से दीवार पर मोर साकार किये गये हैं। ये मोर गर्मी, बारिश और सर्दी इन तीन ऋतुओं को दर्शाते हैं। ‘बेमिसाल’ इस एक ल़फ़्ज में ही इस मोर चौक की ख़ूबसूरती को किया जा सकता है। राजमहल की सैर करते करते यकायक ख़ूबसूरती का बेहतरीन आविष्कार यदि सामने आ जाये तो देखनेवाले के होश उड़ जाना तो स्वाभाविक ही है। हमभी यहाँ पर इसी बात को महसूस करते हैं।

लेकिन यह मत सोच लीजिए कि मोर चौक देख लिया तो सिटी पॅलेस की सैर पूरी हो गयी! अभी अभी तो हमने सिटी पॅलेस में कदम रखा है।

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