इन्दोर भाग २

Indore2

शहर चाहे कोई भी हो, लेकिन वह शहर के रूप में एक रात में ही मशहूर नहीं हो जाता। किसी छोटे स्थान, बस्ती या गाँव का शहर में रूपांतरण होते समय उसे विकास के कई पड़ावों से गुजरना पड़ता है। इन पड़ावों को पार करते समय कभी कभी कुछ पुरानी वास्तुएँ भूतकाल में विलीन हो जाती हैं, कुछ बीत चुके इतिहास के गवाह के रूप में मूक खड़ी रहती हैं, तो कुछ आज भी सुस्थिति में होने के कारण उपयोग में लायी जाती हैं।हमारे भारत के अधिकांश शहरों में पुराने क़िलों या राजमहलों का निर्माण किया गया था। आप यह जानते ही होंगे कि मुंबई में भी माहिम और शीव (सायन) में क़िले हैं। जिन शहरों को राजधानी का दर्जा प्राप्त हुआ था, वहाँ पर तो राजमहल अवश्य होते ही हैं। जिन शहरों को राजधानी का दर्जा भले ही मिला न हो, लेकिन यदि वे शहर अन्य किसी दृष्टि से महत्त्वपूर्ण थें, तो पुराने जमाने में उन शहरों में भी राजमहलों का निर्माण किया जाता था। इन्दोर में भी इसी तरह वहाँ के शासकों ने राजमहलों का निर्माण किया था।

राव नन्दलाल चौधरी नामक जिस ज़मीनदार ने इन्दोर की स्थापना की ऐसा माना जाता हैं, उन्होंने इन्दोर में ‘श्री संस्थान बड़ा रावल’ नाम के एक राजमहल का निर्माण किया। अर्थात् उस समय इन जमीनदारों के पास राजा के समान अधिकार थें।

इन्दोर पर जब होळकर राजवंश की सत्ता स्थापित हुई, तब उन्होंने यहाँ राजमहल का निर्माण किया। इस राजमहल का निर्माण लगभग २०० वर्ष पूर्व किया गया। इसके निर्माण में मराठा,  फ्रेंच एवं मुग़ल स्थापत्यशैली की छाप दिखाई देती है। इस राजमहल की इमारत सात मंजिला है, उनमें से नीचली मंजिल, पहली मंजिल एवं दुसरी मंजिल इनका निर्माण पत्थरों से किया गया है, बाकी की मंजिलों का निर्माण लकड़ी से किया गया है। इस प्रकार से इस राजमहल का निर्माण पत्थरों और लकड़ियों द्वारा विशेष रचना के साथ किया गया है। लेकिन इस राजमहल के निर्माण में लकड़ी का इस्तेमाल किया हुआ होने के कारण इसे हमेशा ही आग लगने का खतरा बरक़रार रहा है। आज तक तकरीबन तीन बार इस राजमहल को आग लग चुकी है। इसवी. १९८४  में तीसरी बार इस राजमहल को आग लगी थी और इस कारण इस राजमहल का केवल दर्शनी हिस्सा ही बाकी बचा था। होळकरों के वंशजों ने आज इस राजमहल को उसकी पुरानी शैली में फिरसे बनवाने के प्रयास किये हैं। यह काम हालही में किया गया।

ऊपर उल्लेखित इस राजमहल के साथ ही होळकरों द्वारा ‘लाल बाग पॅलेस’ नामक एक और राजमहल का निर्माण किया गया। यह पॅलेस होळकरों का वैभव और उनकी अभिरूचि इनका गवाह है।

इस पॅलेस का निर्माणकार्य इसवी १८८६  में शुरू हुआ और इसवी. १९२१  में इसका निर्माणकार्य पूरा हुआ। आज भी होळकरों के वंशजों का यह निवासस्थान हैं।

इसवी १८७५ में इन्दोर में एक मन्दिर का निर्माण किया गया। आप कहेंगे इसमें क्या ख़ास है? ख़ास बात है वहाँ की गणेशजी की मूर्ति। वह ‘बड़ा गणपति’ (बड़े गणेशजी) इस नाम से जानी जाती है। नाम के अनुसार ही वह मूर्ति आकार में बहुत बड़ी है। इस गणेशमूर्ति की उँचाई गणेशजी के मुकुट से लेकर उनके पैरों तक, २५  फ़ीट  है। इस मूर्ति की दूसरी विशेषता यह है कि उसके निर्माण में मिट्टी, चुना आदि के साथ अन्य विभिन्न पदार्थों का इस्तेमाल किया गया है।

इसी इन्दोर शहर में जैनधर्मियों द्वारा भगवान महावीरजी के एक मन्दिर का निर्माण किया गया है, जो पूरी तरह शीशे से बना है। इस मन्दिर का छत, दीवारें, खंभें, दरवाजें, इतना ही नहीं, बल्कि यहाँ की ज़मीन भी शीशे से बनी है। साथ ही मन्दिर के भीतरी चित्र भी रंगीन शीशे से तैयार किये गये हैं।

होळकर राजवंश के शासक और उनके परिवार के सदस्यों की याद में जिन वास्तुओं का निर्माण किया गया है, वह वास्तुप्रकार ‘छत्री’ इस नाम से जाना जाता है।

होळकरों के जमाने में इन्दोर एक व्यापारी केन्द्र के रूप में विख्यात हुआ और आज भी इस शहर की यह ख्याति क़ायम है।

मध्यप्रदेश की चन्देरी और महेश्‍वरी साड़ियाँ मशहूर हैं। साड़ियों के चन्देरी और महेश्‍वरी ये नाम उन-उन गावों से उन्हें प्राप्त हुए हैं।

ऐसा माना जाता है कि महेश्‍वरी साडी सबसे पहले अहिल्याबाई होळकरजी ने बनवायी। जिन बुनकरों ने यह साडी तैयार की, उन्होंने इस साडी के निर्माण में महेश्‍वर क़िले की रचना में विद्यमान भूमितीय आकृतियों का उपयोग किया। इसी कारण आज भी महेश्‍वरी साड़ी पर इसी प्रकार की भूमितीय आकृतियाँ विद्यमान रहती हैं। इन्दोर यह एक व्यापारी शहर होने के कारण इन ऊपर उल्लेखित दो प्रकार के वस्त्रों का आश्रयस्थान है ही।

बांधणी, बाटीक, हॅन्ड ब्लॉक प्रिन्टींग इनके साथ साथ इन्दोर वहाँ के जरीकाम के लिए भी मशहूर है। साथ ही यह चर्मोद्योग का भी विशेष स्थान है। लेदर (चमड़े) से तैय्यार किये जानेवाले यहाँ के खिलोने विशेष प्रसिद्ध है।

किसी भी शहर का विस्तार, उसकी ख्याति में वहाँ की शिक्षासंस्थाओं का उल्लेखनीय योगदान रहता है। शहर के विकास साथ वहाँ की शिक्षासंस्थाएँ भी आकार धारण करने लगती हैं और शहर के साथ इनका भी विकास होता है।

आज इन्दोर यह मध्यप्रदेश का एक महत्त्वपूर्ण शिक्षाकेन्द्र है।

इसवी १९६४ में ‘इन्दोर युनिव्हर्सिटी’ की स्थापना की गयी। इसवी १९८८ में इस युनिव्हर्सिटी का नाम बदलकर ‘देवी अहिल्या विश्वविद्यालय (युनिव्हर्सिटी)’ किया गया। इस युनिव्हर्सिटी में १५३  कॉलेजेस् का समावेश होता है।

अंग्रे़जोके जमाने में ‘डली कॉलेज’ नाम के एक स्कूल की इन्दोर में एक अंग्रे़ज व्यक्ति द्वारा स्थापना की गयी। इसवी १८७० में सर हेन्री डली नामक अंग्रे़ज व्यक्ति ने इस स्कूल की स्थापना की। यह व्यक्ति इन्दोर में मध्य भारत के अंग्रे़ज गव्हर्नर जनरल के प्रतिनिधि के रूप में निवास करता था। भारत के राजकुमारों को शिक्षा प्रदान करने के उद्देश से इस स्कूल की शुरुआत की गयी। शुरुआती दौर में यह स्कूल ‘इन्दोर रेसिडन्सी स्कूल’ के नाम से जाना जाता था। आगे चलकर इसे व्हॉइसरॉय द्वारा इन्दोर रेसिडेन्सी कॉलेज का दर्जा दिया गया और अन्तत: इसवी १८८२  में इसे ‘डली कॉलेज’ यह नाम दिया गया। लेकिन इस स्कूल के संस्थापक सर हेन्री डली तो इससे पहले ही इंग्लैंड लौट गये थे।

इस स्कूल में राजकुमारों को शिक्षा प्रदान की जाती थी। उसके अनुसार ही इस स्कूल की रचना की गयी थी। लेकिन इस स्कूल में इसवी १९५६  तक छात्राओं को प्रवेश नहीं दिया जाता था। इसवी १९५६  से यहाँ पर छात्राओं को प्रवेश देना आरम्भ हुआ और इसवी १९९७ से छात्राएँ भी यहाँ के बोर्डिंग स्कूल में रहकर शिक्षा प्राप्त करने लगी।

पुराने समय में इन्दोर वस्त्र उद्योग के लिए मशहूर था। यहाँ पर कपडे बनानेवाली मिलें थीं। लेकिन बदलते हुए आधुनिक काल में इन कपड़ा-मिलों का नामोंनिशान तक नहीं रहा।

आज के बदलते हुए समय के साथ इस शहर के उद्योग-जगत् में भी बदलाव आ रहा है। ‘आय टी इंडस्ट्रिज’ यह आज के आधुनिक जमाने का महामंत्र है। आधुनिक युग के इस मंत्र को इस शहर ने व्यवस्थित रूप से अपनाया है। यहाँ पर सॉफ्टवेअर इंडस्ट्रिज तेज़ी से बढ़ रही है और इस कारण अर्थकारण की दृष्टि से भी यह शहर एक महत्त्वपूर्ण शहर के रूप में विकसित हो रहा है।

भारत के कई ख्यातनाम एवं मशहूर व्यक्तियों के नाम इस शहर के साथ जुड़े हुए हैं और उनका उल्लेख न किया जाय तो इन्दोर का यहा वर्णन अधूरा ही होगा।

भारत के रक्षा-क्षेत्र के तीन महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्वों का इस शहर के साथ संबंध था। फील्ड  मार्शल करीअप्पा ने डली कॉलेज से शिक्षा प्राप्त की थी। वहीं फील्ड मार्शल सॅम बहादूर माणेकशॉ और जनरल के. सुंदरजी इनका इन्दोर के पास के महू में स्थित सैनिकी शिक्षा संस्थाओं के साथ संबंध था।

सुरों की देन जिन्हें प्राप्त हैं, ऐसी लता मंगेशकरजी का जन्म इसी शहर में हुआ था।

साथ ही एन. एस. बेंद्रे, डि. जे. जोशी, साळगावकर आदि कलाकारों एवं शिल्पकारों ने इसी शहर में शिक्षा प्राप्त की थी।

इंद्रपूर से इन्दोर तक के इस सफर में इस शहर ने होळकर और अंग्रेजों की भी हु़कूमत देखी है और आज भी इस शहर ने होळकर शासकों की यादों को जतन किया है, लेकिन उसी के साथ आधुनिक जगत् का हाथ भी दृढ़तापूर्वक पकड़ रखा है।

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