जीभ – रचना एवं कार्य

पंचज्ञानेद्रियों के बारे में जानकारी प्राप्त करते हुये हम आगे बढ़ रहे हैं | इसी के अंतर्गत अब हम जीभ के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे |

tongue1गधा क्या जाने गुड़ का स्वाद ? बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद ? इत्यादि अनेक मुहावरों से हम अवगत हैं | यह स्वाद रसना (जीभ) का क्या संबंध है, इसकी जानकारी आज हम हासिल करनेवाले हैं | स्वाद-रसना-टेस्ट एक संवेदना अथवा अनुभूति है | यह अनुभूति हर किसी को स्वंय लेनी होती है | किसी भी चीज का स्वाद कैसा कैसा है, इसका मैं चाहे जितना यथार्थ वर्णन करुँ फिर भी सामने वाले व्यक्ति के लिये वो अधूरा ही है | जब उस चीज का स्वाद वो व्यक्ति स्वयं चखेगा, स्वंय अनुभूति करेगा, तभी उसे उसके स्वाद का पूर्ण ज्ञान होगा | आम के स्वाद का मैं चाहे जितना बखान करूँ तो भी दूसरा व्यक्ति जब तक स्वंय आम नहीं खाता तब तक उसे आम का असली स्वाद पता नहीं चलता | इस स्वाद के बारे में जानकारी लेना ही जिसके कारण हमें स्वाद का पता चलता है उस जीभ की जानकारी लेना है | जीभ के तीन प्रमुख कार्य हैं :

१) प्रत्येक पदार्थ का स्वाद पहचानना
२) बोलना
३) निगलना

इनमें से स्वाद पहचानने का कार्य जीभ ज्ञानेन्द्रिय बनकर करती है | अब इसकी विस्तृत जानकारी लेते हैं |

जीभ पूर्ण रूप से स्नायुओं से बनी होती है | इसमें कहीं पर भी अस्थी (हड्डी) नहीं होती | जीभ में दो प्रकार के स्नायु होते हैं | पूरी तरह जीभ तक ही सीमित रहनेवाले और जीभ से अगल बगल के अवयवों तक जानेवाले | इन स्नायुओं की पतली झिल्ली होती है | जीभ के कुल चार भाग  माने जाते हैं- सामने का सिरा, बीच का चौड़ा हिस्सा और अंत में गले के पास जीभ की जड़ | बीच के भाग के दो उपविभाग ऊपर का चौडा भाग व नीचे का भाग | इन सभी के ऊपर की झिल्ली गुलाबी रंग की और हमेशा गीली रहती है | यह झिल्ली नीचे के स्नायुओं पर पूरी तरह फैली होती है | हमारी जीभ के ऊपरी हिस्से पर अन्ग्रेजी के ‘व्ही’ अक्षर के आकार का एक खांचा होता है | यह खांचा जीभ के इस भाग को दो उपविभागों में विभाजित करता है | ‘व्ही’ का सामने का भाग मुँह की खाली जगह में होता है और ‘व्ही’ का पिछला भाग गले की खाली जगह में होता है | ‘व्ही’ के सामनेवाले भाग पर सामने से पीछे की ओर अनेक छोटे छोटे उभार हमें दिखायी देते हैं | इन्हें पॅपिलाय कहते हैं | जीभ का जो भाग गले की खाली जगह में होता है, उस भाग में ये पॅपिलाय  होती है |

 tongue_taste budहमारी जीभ पर कुछ चार प्रकार की पॅपिलाय होती हैं | उनके नाम हैं –
१) फिलीफार्म   २) फंगीफार्म ३) फोलियेन    ४) व्हलेट

यह पॅपिलाय जीभ के ऊपर पापुद्रा के ही उभार होती है | इनमें ही हमें स्वाद की अनुभूति देनेवाली पेशियां अथवा टेस्ट बड्स होती हैं |

फिलीफार्म पॅपिलाय को छोडकर अन्य तीनों पॅपिलाय में ये टेस्टबड्स होती हैं |

१) फिलीफार्म पॅपिलाय – ‘व्ही’ के सामने के भाग पर जीभ के पूरे हिस्से पर बिल्कुल छोटे आकार के उभार होते हैं |  इनका काम होता है जीभ व अन्नकणों में घर्षण बढाना जिसके फलस्वरुप अन्नकण मुँह में ठीक से घूम सकते हैं |
२) फंगीफार्म – फिलीफार्म की अपेक्षा आकार में थोडे बडे उभार होते हैं | इनका रंग गहरा लाल होता है | इनमें अनेकों टेस्टबड्स होती हैं |
३) फोलिएट – जीभ के दोनों सिरों पर ये उभार होते हैं | इनका रंग लाल होता हैं और अकार पान की तरह होता है | इसमें भी अनेकों टेस्टबड्स होती हैं |
४) व्हॅलेट – सभी उभारों में बड़े ‘व्ही’ के खांचे के सामने उसके समांतर होते हैं | इस पर भी अनेकों टेस्टबड्स होती हैं |

(क्रमशः)

Leave a Reply

Your email address will not be published.