अस्थिसंस्था भाग -६

1 Untitledजन्म के बाद के समय में रीढ़ की हड्डी की  कशेरुकाओं में लगातार बदलाव होता रहता है। यह बदलाव बढ़ी हुयी उम्र में भी शुरु ही रहता है। पीठ के इस स्तंभ में कुल ३३ कशेरुकायें होती हैं। इनका मुख्य कार्य शरीर को स्थिरता देना है तथा मज्जारज्जुओं का संरक्षण करना  है। पुरुषों में इनकी कुल लम्बाई ७० सेमी तथा महिलाओं में ६० सेमी होती है। शरीर की पूरी लम्बाई अथवा ऊँचाई में इनका सहभाग इस प्रकार होता है – गर्दन की कशेरुकायें –  ८%, छाती / पीठ की कशेरुकायें  २०%, कमर की  कशेरुकायें १२ % व सॅक्रोकॉसिजियल कशेरुकायें  ८%। कशेरुकाओं की कुल संख्य कभी-कभी  ३२ तो  कभी-कभी ३५ भी होती है।

गुरुत्व बल रेखा और पीठ की कशेरुकाएँ- समतोल व  सरल पतले, सीधे खड़े शरीर की एक गुरुत्व बल रेखा (Line of Gravity) होती है। हमारे शरीर की यह रेखा बाह्य कर्ण से शुरू होती है। गर्दन की पहली कशेरुका से होकर नीचे जाती है। यानी के दूसरी कशेरुका के सामने से वे छाती की बारहवी कशेरुका की बॉड़ी के बीच से जाती हुयी यह रेखा कमर के पाँचवे कशेरुका की बॉड़ी के पीछे से होती हुयी सॅक्र्म को सामने समाप्ति होती है। पीठ की कशेरुकाओं का झुकाव अथवा मुड़ना सर्वसामान्य अवस्था में हमारी पीठ की कशेरुकाओं का झुकाव बायी ओर नहीं होता। सामने अथवा पीछे की ओर झुकाव होता है। बायें हाथ से लिखनेवाले व्यक्ति में बायीं ओर तथा दाहिने हाथ से लिखनेवाले व्यक्ति में दांयी ओर झुकाव होता है। मानवों की उत्क्रांति अवस्था में दो पैरों से चलना सुलभ होने के लिये ये झुकाव बनते गये। माँ के गर्भ में बच्चा किस प्रकार लेटा होता है, यह हमने पिछले लेखों में देखा है। बच्चे का  सिर आगे की ओर झुका हुआ व छाँती की ओर मुड़ा हुआ होता है। दोनों पैर, घुटने व कमर में लपेटे हुये तथा पीठ का  झुकाव पीछे  से बाहर की ओर व छाती पेट अंदर की ओर दबा हुआ होता है। इसे गर्भ की फ्लेक्शन पोझिसन कहते हैं।

यह होती है गर्भ के बालक की नैसर्गिक अवस्था। इसी लिये इससे सधर्म्य होनेवाले छाती व पेल्विक कशेरुकाओं का  झुकाव भी नैसर्गिक है। ऐसा शुरुआत से होता ही है। गर्दन व कमर की कशेरुकाओं का  झुकाव, बाद में अर्थात शरीर की हलचल शुरु होने के बाद गर्भावस्था में तथा अगली जिन्दगी में तैयार होता है।

बच्चे के जन्म के समय बालक की स्नायुसंस्था व चेतासंस्था पूरी तरह विकसित नहीं हुयी होती है। इसीलिये उस बालक को कोई भी हलचल करना संभव नहीं होता। जैसे जैसे ये दोनों संस्थायें विकसित होती हैं वैसे-वैसे एक-एक बात बच्चा आत्मसात करते जाता है।  तुरंत जन्में बच्चे की कशेरुकाओं में प्राथमिक अथवा नैसर्गिक दो झुकाव होते हैं। परन्तु शेष दो झुकाव पूरी तरह विकसित नहीं हुये होते हैं। इस अवस्था  में बच्चा  अपना सिर उठाकर नहीं रख सकता। ३ से ४ महीनों के बाद बच्चा अपना सिर उठाकर सीधा रख सकता है। इसके लिये आवश्यक स्नायु व स्नायुओं के  चेतातंतु इस समय में विकसित होते है। गर्दन व सिर की इस हलचल में कशेरुकाओं पर उनके कार्य होते है। फलस्वरूप गर्दन की कशेरुकाओं में झुकाव विकसित होता है। बच्चा जैसे-जैसे बैठना, खड़े होना, चलना सिखता है वैसे वैसे कमर की कशेरुकाओं में झुकाव विकसित होता है। जब हम  स्थिर अवस्था में खड़े होते हैं, तब तथा चलते समय हमारे शरीर के कमर का ऊपरी हिस्सा, गुरुत्व बल केन्द्र बिंदू (Centre of Gravity) दोनों पैरों पर बराबर-बराबर बटी हुयी होती है। यह समतोल कमर की कशेरुकाओं के झुकाव के कारण संभव होता है। यदि यह केन्द्रबिंदु परों के सामने अथवा पीछे की ओर खिसकजाये तो हमारा संतुलन बिगड़ जाता है। कमर का झुकाव पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में ज्यादा होता है।

व्हर्टिकल बॉडी : गर्दन की दूसरी कशेरुका से लेकर कमर की तीसरी कशेरुका तक जैसे जैसे नीचे की ओर जाते हैं वैस वैसे कशेरुकाओं की मोटाई बढ़ती जाती है। इसका कारण है उनपर पडनेवाला शरीर का भार अथवा वजन। इसके आगे कशेरुकाओं की मोटाई कम होती जाती है।

जन्म के समय पीठ की कशेरुकाओं की लम्बाई कम होती है। आगे चलकर शरीर की वृद्धि के अनुसार इसकी लम्बाई बढ़ती जाती है। इस वृद्धि पर  व्यक्ति के लिंग, शरीर के सम्प्रेरक, जनुकीय कारण जैवयांत्रिकी परिस्थिति (biomechanics)इत्यादि बातों का परिणाम होता है। जैसे जैसे उम्र्र बढ़ती है, युवावस्था में शरीर की वृद्धि गति एकदम बढ़ जाती है। इस वृद्धि का वेग लड़कियों में उम्र के नौवें से तेरहवें वर्ष तक ज्यादा होता है तथा लड़कों में तेरह से पंद्रह वर्ष की उम्र से साधारण तथा वीसवें वर्ष तक शरीर की वृद्धि पूरी हो जाती है। लड़कियों में यह वृद्धि उम्र के 18 वें बर्ष में पूरी हो जाती है।

बढ़ती उम्र के साथ-साथ कशेरुकाओं की ऊंचाई कम होती जाती है। तथा ढ़लती उम्र में ये कमज़ोर हो जाती हैं। बढ़ती उम्र में शरीर बोझल व ज्यादा वज़नदार हो जाने पर कमर की कशेरुकाओं का झुकाव कम हो जाता है।

हम सभी ने पीठ से कुबड़े व्यक्तियों को देखा है। ये कुल दो तरीकों से बनते हैं। पहला यह कि यदि छाती के कशेरुकाओं का सदैव की अपेक्षा ज्यादा मात्रा में पीठ की ओर झुकने से पीठ पर कुबड़ दिखायी देता है। कशेरुकाओं में दाहिनी या बांयी ओर आये झुकाव को Scoliotic झुकाव अथवा Scoliosis कहते हैं। यह झुकाव कभी-कभी जन्मजात होता है तो कभी-कभी बाद में हो जाता है। उदा- पोलिओ जैसी बीमारियों कें कारण कुछ व्यक्तियों में दोनों प्रकार के झुकाव हो सकते हैं।

अब तक  हमने अपनी पीठ के कणियों के बारे में सविस्तर जानकारी प्राप्त की। अब हम आगे  छाती  के पिंजरे के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगें।

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