अस्थिसंस्था भाग – २६

अब हम कमर की अस्थियाँ तथा पेलविस अथवा पेल्विक गर्डल की जानकारी प्राप्त करने वाले हैं। कमर की हड्डी को इनॉमिनेट अस्थि कहते हैं। कमर के दोनो ओर एक-एक इनॉमिनेट अस्थि होती हैं। इसका मध्यभाग थोड़ा संकरा होता है तथा ऊपरी व निचला भाग ज्यादा चौड़ा होता है।

asthisanstha26- इनॉमिनेट अस्थि

इसके बाहरी ओर कप के आकार का गहरा खढ्ढ़ा होता है। इसे अ‍ॅसिटाब्युलम कहते हैं। जाँघ की हड्डी के सिरे से मिलकर इसका इसका कमर का सांधा बनता है। सामने की ओर बीच में दोनों तरफ की इनॉमिनेट हड्डियां एकत्र आती हैं व पेलविल गर्डल तैयार होता है। पीछे की ओर प्रत्येक इनॉमिनेट अस्थि सॅकरल कशेरुका से जोड़ी जाती हैं। प्रत्येक इनॉमिनेट अस्थी को तीन भागों में बांटा गया हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं – इलियम, प्युबिस, इस्चियम।

इलियम :-
इनॉमिनेट का ऊपरी भाग इस इलियम का बना होता है। यह भाग ऊपर की तरफ चौड़ा और नीचे की तरफ पतला होता है।  जहाँ पर कमर समाप्त होती है वहाँ पर इन हड्डियों का ऊपरी किनारा हमारे हाथों को सहजता से लगता है। कमर के दोनों ओर की दोनों हड्डियाँ पर हाथ से टटोल सकते हैं। इस किनारे से अगर हाथ को सामने की ओर ले जायें तो  जहाँ पर यह समाप्त होता हैं वहाँ पर एक उभार सा हाथ में लगता है। यह आँख से दिखायी भी देता है। इसे इस आयलियम का अँटिरिअर सुपिरिअर स्पाईन कहते हैं। हाथ में लगने वाले ऊपरी किनारे को क्रेस्ट कहते हैं। कमर के सांधे में जो ग़ढ़्ढ़ा होता हैं, जिस में जाँघ की हड्डी व सिरा बैठता है, उसे अ‍ॅसिटाब्युलम कहते हैं। इस अ‍ॅसिटाब्युलम का ऊपरी २/५ भाग इलियम का होता है। इसकी ऊपरी क्रेस्ट सामने की स्पाईन से शुरू होती है व पीछे की ओर सॅक़रल मणके तक पहुँचती हैं। इसका ऊपरी भाग इतना चौड़ा होता है।

प्युबिस :-
यह इनॉमिनेट हड्डी का सामने वाला निचला भाग है। पेलविस के सामने के मध्य भाग में दोनों बाजू की इनॉमिनेट हड्डियाँ एक-दूसरे से जुड़ी है। यहाँ पर जो सांधा बनता है उसे प्युबिक सिमफाइसिस कहते है। प्युबिक क्योंकि दोनों बाजू के प्युबिक भागों का यह जोड़ है। यह सिमफाइसीयल  जोड़ है जो फाइब्रोकार्टिलेज का बना हुआ है। प्युबिक भाग के तीन उपविभाग हैं।

१) बॉडी अथवा मुख्य भाग :
जो पीछे से चपटा होता है। इसे तीन बाजू होते हैं – सामने की, पीछे की व शरीर के मध्यभाग के पास की। दोनों बाजूओं की प्युबिक बॉडी इस मध्यभाग से मिलकर प्युबिक सिमफाइसिस बनती हैं।

२) ऊपर की छड़ी अथवा सुपिरिअर रेमस :
यह त्रिकोणीय होती हैं । इसका एक भाग अ‍ॅसिटाब्युलम की ओर जाता है।

३) नीचे की ह़ड्डी अथवा इन्फीरियर  रेमस:
नीचे व बाहर की ओर मुड़कर यह इश्‍चियल की हड्डी से जाकर मिलती हैं। इस भाग में हड्डी में ऑबच्युरेटर फोरॅमेन नामक जो गोलाकार छेद होता है उसका निचला किनारा इन दो हड्डियों (प्युबिस व इस्चियम) से बनता है।
प्युबिक सिमफाइसिस के ठीक पीछे अपना मूत्राशय होता है।

इस्चियम :
यह इनॉमिनेट हड्डी का निचला व पिछला भाग है। इसका मुख्य भाग व प्युबिस की ओर जाने वाली हड्डी (रेमस्) ऐसे इसके दो भाग है। इसका रेमस व प्युबिस के नीचे की रेमस मिलकर ऑबच्युरेटर फोरॅमेन पूरी होती है। अ‍ॅसिटाब्युलम का  निचले भाग का एक पंचमांश भाग इस्चियम के कारण बनता है। इसके मुख्य भाग में पीछे की ओर एक उभार होता है। इसे इश्‍चियल ट्युबरॉसिटी कहते हैं। कमर के नीचे जब पैर सीधे होते है तो यह उभार स्नायुओं के अंदर दबा होता है। कमर के पास पैरो को मोड़ने पर यह हाथ में लगता है।

अ‍ॅसिटाब्युलम :
इनॉमिनेट अस्थि के बाहर की बाजू पर मध्य भाग में यह अर्ध गोलाकार गढ्ढ़ा होता है। इसका मुँह सामने व थोड़ा नीचे मुड़ा हुआ होता है। इसके निचले भाग को छोड़कर शेष भाग पर बाहर से एक अबड़खाबड़ किनारा होता है। इसका आर्टिक्युलर सरफ़ेस  चंदकोरी आकार का होता है। यह ऊपरी भाग में ज्यादा मो़ड़ा होता है क्योंकि यहाँ पर ही शरीर का वजन फीमर  में अर्थात जाँघ की हड्डी तक पहुँचाया जाता है।

ऑबच्युरेटर फोरॅमेन :

अ‍ॅसिटाब्युलम के नीचे व थोड़ा सामने और इस्चियम तथा प्युबिस के बीच में यह छेद होता है। पेलविस व जाँघ के बीच यह संपर्क बिंदु है। इस पर ऑबच्युरेटर परदा होता है। पुरुषों में यह आकार में ब़ड़ा व लंबवर्तुलाकार होता है और स्त्रियों में थोड़ा छोटा व त्रिकोणी होता है।इनॉमिनेट का जितना मोटा भाग होता है वो ट्रॅबॅक्युलर होता है। शेष भाग कॉम्पॅक्ट अस्थि का होता है। इसके लॅमेलर स्तर व ट्रॅबॅक्युली की रचना, वजन को वहन करने के अनुकूल होती है।

ओसिफिकेशन :
तीन प्राथमिक ओसिफिकेशन केन्द्र होते हैं।  गर्भावस्था के नौववें सप्ताह में आयलियम में केन्द्र दिखाये देने लगते हैं।  इस्चियम की बॉडी में नववे महीने में तथा प्युबिस के ऊपरी रेमस में पाँचवे महीने केन्द्र दिखायी देने लगते हैं। साधारणत: उम्र के आठवे-नववे वर्ष में प्युबिस इश्‍चियम एकरूप हो जाती है। उम्र के अठराहवे से बीसवें वर्ष तक सभी भागों का ओसिफिकेशन पूरा हो जाता है। अ‍ॅसिटाब्युलम का ओसिफिकेशन अलग होता है।

उम्र के आठवे साल में इस में तीन केन्द्र दिखायी पड़ने लगते हैं।  इनका ओसिफिकेशन बीसवें वर्ष में पूरा होता है। इस दौरान अ‍ॅसिटाब्युलम की वृद्धि परिघ की दिशा में होती है, जिसके कारण इसकी  गहराई बढ़ जाती है।

इस तरह कमर की हड्डियों के बारे में जानकारी पूरी हो गयी। अब इसके आगे इन दोनों हड्डियों के मिलने से जो पेलविस का पिंजरा बनता है, उसके बारे में हम जानकारी हासिल करेंगे।

(क्रमश:)

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