अस्थिसंस्था भाग – २३

अब हम हाथ की अस्थियों से संबंधित अध्ययन के अंतिम पडाव पर आ गए है। हमें कलाई और पंजे के बारे में जानकारी प्राप्त करती हैं। अस्थिसंस्था की दृष्टि से

१)कारपल – कलाई की हड्डी

२)मेटॅकारपल – पंजा / हथेली की अस्थि

३)फेलेनजेस – ऊंगलियों की हड्डियां

अब हम उपरोक्त सभी भागों के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे।

Wrist and hand claw- अस्थिसंस्था
Wrist and hand claw

१)कारपल : कलई की अस्थि

अपनी कलाई में छोटी-छोटी आठ हड्डियां होती हैं। प्रत्येक कतार में चार हड्डियों के हिसाब से दो कतारों में यें हड्डियां रहती हैं। अंगूठें से लेकर छनगुनियां तक जाने पर इन हड्डियों की कतारों की जानकारी, इस प्रकार होती है। हाथ की तरफ की पहली कतार में स्काफाईड, ल्युनेट, ट्रिकेट्राल, व पिसिफार्म तथा पंजे के पास की दूसरी कतार में यहीं क्रम इस प्रकार होता है। ट्रॅापिज़इम, ट्रॅपेझाइड, कॅपिटेट और हॅमेट। इस तरह यह आठ हड्डियां होती हैं। आज इन हड्डियों के बारे में लिखते समय मेडिकल कालेज में पढ़ते समय की एक मजेदार घटना याद आ गयी। इन आठ हड्डियों के क्रम के अनुसार नाम याद रखने के लिये हमारे शिक्षक हमें एक वाक्य याद रखने के लिये कहा करते थे। क्रमानुसार इन आठों हड्डियों के नामों के प्रथम अक्षर को लेकर शब्द बनाकर, यह वाक्य बनाया गया था । वो था she looks too pretty try to catch her। अपनी पढ़ाई को भी किस तरह एन्जॉय कर सकते हैं, यहीं हमारे शिक्षक बताया करते थे।

इन आठ हड्डियों में से पिसिफार्म को छोड़कर अन्य सभी हड्डियां अपनी बगल की हड्डियों से जुड़ी होती हैं। परंतु पिसिफार्म हड्डी ट्रायकेट्राल की हथेली की सामने की ओर जोड़ी जाती हैं। हाथ के पास की कतार की तीन हड्डियां एक साथ कमानी जैसा आकार बनाती हैं। इसका रेडिअस व नीचे के रेडिअस-अन्लर सांधे के साथ जोड़ बनता है। इन हड्डियों की कमानी के गहरे अथवा अंतर्वक्र भाग से दूसरी कतार की हड्डियां मजबूती से जुड़ती हैं। यद्यापि यह जोड़ मजबूत होता है फिर  भी इसकी गति पर इसका कोई परिणाम नहीं होता। इन सबकी एकत्र रचना पंजे के पीछे की तरफ बाह्यगोलाकार होती है तथा सामने की ओर इसमें खांचा बनता है जिसे पल्मरग्रूव्ह कहते हैं। इन हड्डियों में सबसे बड़ी हड्डी कॅपिटेट तथा सबसे छोटी हड्डी पिसिफार्म होती हैं।

ओसिफिकेशन :

बच्चे के जन्म के बाद ही इसका ओसिफिकेशन सभी के ओसिफिकेशन केन्द्र अलग-अलग होते हैं। कॅपिटेर में सबसे पहले ओसिफिकेशन होता है। साधारणत: इसका क्रम इस प्रकार होता है – कॅपिटेट पहले महीने, हॅमेट तीसरे महीने, ट्रिक्रेट्राल तीसरे वर्ष, ल्युनेट चौथे वर्ष, स्काफाईड, ट्रॅपिझियम व ट्रॅपझॉइड लड़कियों में चौथे व लड़कों में पाँचवे वर्ष और पिसिफार्म लड़कियों में नौवे वर्ष व लड़को में बारहवें वर्ष।

इन हड्डियों में अस्थिभंग की सबसे ज्यादा संभावना स्काफाईड में होती हैं। ल्युनेट जल्दी से निकल जाती हैं। ल्युनेट के निकलने से भी स्काफाईड का अस्थिभंग हो जाता है।

रेडिओ-कारपल अथवा कलाई का सांधा :-

यह सायनोवियल जोड़ है। आकार में लंबवर्तुलाकार इस जोड़ में हि अक्षीय गति होती हैं।

रेडिअस की कलाई की ओर का भाग- उसपर त्रिकोणी आर्टिक्युलर चकती तथा पहली कतार की स्काफाईड, ल्युनेट व ट्रिकेट्राल के बीच में जोड़ बनता है। रेडिअस का आर्टिक्युलर भाग अंतर्वक्र होता है। कारपल हड्डियां तथा उनकी इंटरॉडीअस लिंगामेन्टस् का बहिर्वक्र भाग एक-दूसरे से जुडता है। इस जोड़ पर भी फ्रायब्रस कॅपसूल का आवरण होता है। कॅपसूल के अंदर साइनोवियल परदा होता है। विभिन्न प्रकार के पाँच लिंगामेटस् कॅपसूल को सशक्त करते हैं। ये लिंगामेंटस् हैं –

१)पामर रेडिओकारपल लिंगामेंट :- रेडिअस के निचले सिरे से प्रथम तीन कारपल अस्थियों तक ये जुड़े होते हैं।

२)पामर अल्नोकारपल लिंगामेंट :- अल्ना का स्टायलॉईड उभार से लेकर पहली कतार की कारपल अस्थि तक फैले होते हैं।

अगले तीन लिंगामेंट के नाम हैं – डॉरसल रेडिओ कारपल, अल्नर कोलॅटरल कारपल व रेडियल कोलॅटरल कारपल लिंगामेंट। उपरोक्त वर्णन कलाई के एक भाग का है। इस सांधे का अगला भाग है प्रत्येक कारपल अस्थियों के जोड़। इस में तीन प्रकार के जोड़ होते हैं –

१)पहली कतार की कारपल हड्डियों के जोड़

२)दूसरी कतार की कारपल हड्डियों के जोड़

३)दोनों कतारों का जोड़

उपरोक्त सभी जोड़ सायनोवियल प्रकार के हैं। कारपल अस्थियों को एक साथ बाँधकर रखने का काम अनेकों छोटे-छोटे लिंगामेंट करते हैं। कलाई की क्रियायें एवं गतियाँ :-

उपरोक्त सभी जोड़ों की क्रियाओं का अध्ययन हम एक साथ कर रहे हैं क्योंकि इन सभी क्रियाओं में उपरोक्त सभी जोड़ों का सहभाग होता है और क्रियाओं को क्रियान्वित करने वाले स्नायू भी वहीं होते हैं।

मुख्यत: पाँच प्रकार की गतियां होती हैं। फ्लेक्शन – कलाई को जोड़ना, एक्स्टेंशन – कलाई को सीधा करना, दोनों गतियां – ८५°  अंश में होती हैं। अ‍ॅडक्शन इसे अल्नर डेविएशन भी कहते हैं। इसमें सांधा अल्नर अस्थि की ओर ४५°  अंश पर घूमता है। अ‍ॅडक्शन-रेडियल डेविएशन अथवा सांधे का १५° अंश पर रेड्इास की ओर मुडना। पाँचवी गति है सरकमडक्शन।

कलाई में सांधा मोड़ने की क्रिया ज्यादातर रेडिओकारपल जोड़ में होती हैं तथा सांधा को सीधा करने की क्रिया कारपल अस्थि की दो कतारों के बीच होती हैं।

कलाई पर हाथ बाह्रर की अपेक्षा अंदर ज्यादा मुड़ता है। ये दोनों क्रियायें कुछ विशिष्ट कार्यों के लिये काफी उपयुक्त साबित होते हैं। सादा उदाहरण देखते हैं। यदि हथौड़े से कीला ठोकना हो या सुई से सीला हो। ऐसे समय पर अपना हाथ भला किस स्थिती में होता हैं। कोहनी के नीचे का हाथ प्रोनेशन और सुपायनेशन की बीच की स्थिति में रहता हैं, कलाई के पास पंज़ा थोड़ा सीधा किया हुआ होता है और फिर  क्रमानुसार अ‍ॅडक्शन, अ‍ॅबडक्शन की गति कलाई से करके हम कीला ठोकते हैं अथवा टांके डालते हैं। यह है इन दो गतियों का महत्त्व।

गिरते समय हाथों के पंजे पर शरीर का वजन झेलने पर स्काफाईड का अस्थिभंग होता हैं, यह हमने पहले ही देखा है। इसके अलावा प्राय: कलाई के पास के भाग का अस्थिभंग होता है। इसे कोलेअस अस्थिभंग कहते हैं।

(क्रमश:)

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