अस्थिसंस्था भाग – २२

हाथों की दो हड्डियों को बीच का जोड़ मानवों के लिये काफी   महत्त्वपूर्ण है। इसकी सहायता से बाहरी हड्डी (रेडिअस) अंदर की हड्डी (अल्ना) पर घूमती है। साधारण भाषा में – हाथ की हथेलियां, जो शरीर के सामने होती हैं, वे मुड़कर शरीर के पीछे की ओर हो जाती हैं। इसे प्रोनेशन ऑफ हैड़ कहते हैं। इसके विपरीत की क्रिया को सुपिनेशन कहते हैं। इस क्रिया के महत्त्व को बताने के लिये एक ही उदाहरण काफी   हैं। यदि उपरोक्त वर्णित गतियाँ हाथ में न हों तो आज मैं जो लिख रहा हूँ, उसमें से एक अक्षर भी मैं नहीं लिख सकता था।

Asthisansthaरेडिअस और अल्ना इन दो अस्थियों के बीच तीन जोड़ होते हैं। ऊपरी व निचले सिरों के पास के जोड़, सायनोवियल जोड़ होते हैं। तथा बीच का जोड़ नॉन-सायनोवियल इंटरासिस प्रकार का होता हैं। अब हम इन तीनों जोड़ों के बारे में जानकारी प्राप्त करेंग़े।

१)ऊपरी रेडिओ-अल्ना सांधा :

यह सांधा एक अक्षीय कीले के प्रकार का होता है। रेडिअस के सिरे की संपूर्ण परिधि व अल्ना के ऊपर का रेडियल नॉच तथा अ‍ॅन्युलर लिंगामेन्ट से यह जोड़ बना हुआ है।

अ‍ॅन्युलर लिंगामेन्ट :

यह सशक्त लिंगामेन्ट, रेडिअस का जो गोलाकार सिरा होता है उसकी परिघि पर आवरण ड़ालता है व अल्ना के रेडिअल नॉच में रेडिअस के सिरे को मजबूती से पकड़ कर रखता है। इस सांधे का जो गोल होता हि उसका ४/५ गोल भाग इससे बनता है। सामने की ओर रेडिअ‍ॅल नॉच के सामने के सिरे से यह जुड़ा होता है। पीछे की ओर यह थोड़ा चौड़ा होता है व नॉच की पिछली सतह व ऊपर टॅ्रक्लिअर नॉच के सिरे तक बांधा जाता है। परन्तु पीछे की ओर यह कॅपसूल के बाहर अलग होता है। नीचे की ओर यह सायनोवियल मेंब्रेन के बाहर जाकर रेडिअस की गर्दन से जुड जाती है। इसकी बाहरी बाजू रेडिअल कोलॅटाल लिंगामेन्ट से जुड़ती है। अंदर की ओर जहाँ पर इसका रेडिअस के सिरे से संबंध आता है वहाँ पर हाइलाइन कुर्चा का पतला स्तर होता है। इसके नीचे के भाग में सायनोवियल मेंब्रेन का स्तर होता है।

२)मध्यीय रेडिओ – अल्ना सांधा :

यह जोड़ सिन्डेसमॉसिस प्रकार का होता है। इस में दो चीजों से ही दो हड्डियाँ जोड़ी जाती हैं। वे निम्नलिखित हैं –

१)ऑवलिक कॉर्ड – यह एक पतली डोर जैसा भाग हैं जो अल्ना अस्थि के उभार से निकलकर रेडिअस के ट्युबरासिटी के नीचे रेडिअस से जुड़ता है। इन दो हड्डियों की गति में इसका निश्‍चित स्थान क्या है, यह पूरीतरह पता नहीं हैं।

२)इंट्राशियस परदा – इसके नाम की तरह यह रेडिअस और अल्ना के बीच में कोलॅजेन का परदा होता है। यह काफी   चौड़ा होता है। इसके तंतु ऊपर से नीचे व अंदर की तरफ  मुड़े होते हैं। संपूर्ण प्रोनेशन और संपूर्ण सुपायनेशन इन दोनों स्थितियों में यह परदा फैला  हुआ होता है। तथा इन दोनों के बीच की स्थिति में यह तना हुआ होता हैं।

निचला  रेडिओ-अल्नर सांधा :
यह भी कील का जोड़ होता है। इस की गति एक ही अक्ष पर होती है। अल्ना का गोलाकार सिरा व रेडिअस के ऊपर का अल्नर नॉच के बीच यह जोड़ बनता है इसे फाइब्रश कॅपसुल का आवरण होता है। इस में फाइब्रोकार्टिलेज की चकती होती है। रेडिओ-अल्नर सांधे की गतियाँ – इस में मुख्यत: दो प्रकार की गतियाँ होती हैं। प्रोनेशन व सुपायनेशन।

प्रोनेशन में रेडिअस अस्थि अल्नर अस्थि के सामने उसके अंदर की ओर मुड़ती हैं। रेडिअस के साथ-साथ पूरा हाथ भी घूमता है। पूर्ण प्रोनेशन में रेडिअस कोहनी के पास बाहर की ओर होती हैं। परन्तु कलाई के पास अल्ना के अंदर की ओर इसका सिरा आता है। इस गति में इंटराशियस परदा सिकुडता है।

प्रोनेशन की क्रिया में कम शक्ति लगती है क्योंकि गुरुत्वीय बल इस क्रिया (गति) में मदद करता है। सुपायनेशन की क्रिया मात्र गुरुत्वीय बल की विरुद्ध दिशा में होती है। अत: इस क्रिया में ज्यादा शक्ति लगती है। इस गति में मददगार स्नायु भी सशक्त होते हैं।

दाहिने हाथ से काम करने वाला मनुष्य समझो शीशी के ढ़क्कन को कसकर बंद कर रहा है (चूड़ीवाला ढ़क्कन) अथवा स्क्रू ड्रायव्हर की सहायता से स्क्रू कस रहा है। ऐसा करते समय उसके हाथ के अगले हिस्से की गति कैसी होती हैं, इसकी कल्पना करके देखो, तो बात समझ में आ जायेगी।

इस क्रिया में दंड़, कंधे की सरल रेषा में नीचे शरीर की ओर होता है। कोहनी पर हाथ आधा मुड़ा हुआ होता है। और यदि ज्यादा ही ताकत लगानी हो तो कोहनी को कमर पर मजबूती से दबाकर रखा जाता है। हाथ के अगले हिस्से की गति पूर्ण सुपायनेशन की होती है। जिसके कारण वो स्क्रू अथवा ढ़क्कन कस जाता है।

इन दोनों गतियों में हाथ लगभग १४०० से  १५००  अंश तक घूमता है। कोहनी पर हाथ को सीधा रखकर इस क्रिया को करने पर हम हाथ को पूरा ३६०० अंश घुमा सकते हैं। परन्तु इसके लिये ह्युमरस और स्कॅप्युला की मदद लेनी पड़ती हैं। ह्युमरस अंदर से बाहर की ओर घूमती है और स्कॅप्युला बाहर एवं आगे की ओर सरकती है।

कोहनी का जोड़ प्राय: पीछे की ओर निकल जाता है। अस्थिभंग की सर्वसाधारण जगह है कोरोनॉइड व ह्युमरस की दोनों एपिकोंडाइल्स। तरुणावस्था में ऊँचाई से गिरते समय यदि शरीर का बजन दोनों हाथों पर झेल लिया जाए तो (हाथ पूरा लम्बा व सुपाइन स्थिति में) सिर्फ  रेडिअस का सिरा निकल जाता है। छोटी उम्र में रेडिअस का सिरा छोटा होने के कारण वो प्राय: जोड़ में ही नीचे खिसक जाता है। कोहनी के जोड़ में जंतुओं का प्रार्दुभाव होने पर अंदर के सायनोवियल परदे पर सूजन आ जाती हैं। अगले लेख में हम कलाई और पंजा इनकी रचना देखेंगे।

(क्रमश:)

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