०२. ईश्‍वर का ‘बुलावा’

गत कुछ सालों से इस्रायल का नाम आन्तर्राष्ट्रीय मंच पर कई कारणों से चर्चा में है। इस्रायल की नीतियाँ, उनके अनुसार इस्रायल द्वारा किये जानेवाले क्रियाकलाप इनकी कई बार आलोचना की जाती है। लेकिन इस्रायल की नीति को दरअसल ‘एककलमी’ (सिंगल-पॉईंट) ही कहा जा सकता है। ‘हमारे आद्य पूर्वज अब्राहम को ईश्‍वर ने अभिवचन देकर बहाल की हुई, हमारे हक़ की भूमि हमें चाहिए। उसके अलावा हमें कुछ नहीं चाहिए’ यही है उनका ध्येय और उसके अनुसार ही लगातार अमल में लायीं जानेवालीं नीतियाँ! लेकिन इस ध्येय तक पहुँचने के लिए एक-दो नहीं, बल्कि पूरे लगभग चार हज़ार साल उन्होंने खर्च किये हैं।

चार हज़ार साल….?

हाँ। इस्रायली लोगों का यानी ज्यूधर्मियों का यह सर्वमान्य इतिहास शुरू होता है लगभग चार हज़ार साल पहले; जिनमें से पहले दो हज़ार सालों में घटित लक्षणीय घटनाओं का उल्लेख ईसाईधर्मियों के सर्वोच्च पवित्र धर्मग्रंथ ‘बायबल’ (‘ओल्ड टेस्टामेंट’) में भी पाया जाता है।

हिब्रू भाषा में शिलालेख
हिब्रू भाषा में शिलालेख

चार हज़ार साल यह कोई छोटा कालखंड नहीं है, इतनी सदियों की कालावधि में हालातों में ज़मीन-आसमान के बदलाव आ सकते हैं….वैसे वे आये भी; लेकिन बदला नहीं, वह इस्रायली लोगों का अपनी भूमि से रहनेवाला उत्तरदायित्व, उनका ध्येय और अपने इस एकमात्र ध्येय तक पहुँचने की उनकी मनस्विता! इतने बड़े, हज़ारों वर्षों के कालखंड में किसी जगह की भाषा में भी ज़मीन-आसमान का बदलाव आ जाता है। लेकिन यहाँ पर अचरज की बात यह है कि ज्यूधर्मियों की मातृभाषा ‘हिब्रू’ में कुछ ख़ास फ़र्क़ नहीं पड़ा है। यानी इस्रायल में किये गये उत्खनन में पाये गये तीन-चार हज़ार साल पहले के शिलालेख, ताम्रपट आदि में जो ‘हिब्रू’ भाषा हम देख सकते हैं, वही ‘हिब्रू’ भाषा आज भी इस्रायल में प्रचलित है….दरअसल, उन्होंने अपने ध्येय जितना ही अपनी भाषा को भी जी-जान से जतन किया है!

ऐसे इस इस्रायल देश को और इन मनस्वी इस्रायली लोगों को समझ लेने से पहले उनके इतिहास पर थोड़ासा ग़ौर करना ज़रूरी है।

इस इतिहास की शुरुआत होती है, ज्यूवंशियों के आद्यपूर्वज ‘अब्राहम’ से…. इसका कालखंड तक़रीबन ईसापूर्व २०वीं से १८वीं सदी के बीच का माना जाता है। यहाँ पर उल्लेखनीय बाब यह है कि ज्यूधर्मीय जिसे अपना आद्य पूर्वज मानते हैं, वह यह अब्राहम, पॅलेस्टाईन की भूमि में उदयित हुए अन्य दो ‘एक-ईश्‍वर’वादी धर्मों को अर्थात् इस्लाम एवं ख्रिश्‍चन इन दो धर्मों को भी बतौर ‘प्रेषित’ मान्य है और वंदनीय भी है। इसी कारण कई विश्‍लेषक इन तीनों धर्मों को ‘अब्राहमिक रिलिजन्स’ संबोधित करते हैं।

‘नोहा’ की नौका
‘नोहा’ की नौका

ऐसा यह अब्राहम, यह ‘नोहा’ का वंशज माना जाता है। ‘प्रलय में से बचा नोहा और उसकी नौका’ यह संकल्पना तो दुनिया के लगभग सभी प्रमुख समाजों में विभिन्न नामों से, लेकिन साधारणतः समान विवरण से प्रचलित है।

सर्वसाधारण रूप में नोहा की कथा की निम्नलिखित आशय की संकल्पना ज्यू धर्मियों में प्रचलित है – ‘दुनिया में पाप बेशुमार बढ़ गया इसलिए भगवान ने दुनिया को प्रलय में डूबोने का तय किया। लेकिन इस प्रलय में केवल पापी लोग ही मरनेवाले थे। लेकिन नोहा यह बहुत ही पुण्यवान्, सत्शील एवं नीतिधर्म से चलनेवाला था। इसलिए भगवान ने उसे बचाने का निर्णय लिया। उसे एक सुसज्जित नौका बनाकर दी और उसमें उसे, उसके परिजनों को एवं पवित्र इन्सानों को जाने की अनुज्ञा दी। उनके साथ प्रातिनिधिक रूप में कुछ पंछी-प्राणि भी होनेवाले थे। बाकी सृष्टि का विनाश होने के बाद इन्हीं में से नयी सृष्टि का निर्माण होनेवाला था। सैंकड़ों दिनों तक भगवान ने गिरायी मुसलाधार बारिश से आये प्रलय में सारी सृष्टि डूबकर उसका विनाश हुआ, लेकिन नोहा की नौका बच गयी। इस प्रकार इन पवित्र इन्सानों द्वारा नयी सृष्टि का निर्माण हुआ, प्राणि-पंछी भी उसी तरह निर्माण हुए।’
तो ऐसे इस नोहा के वंश में अब्राहम का जन्म हुआ, ऐसा बताया जाता है।
अब्राहम के बारे में होनेवाली मुख्य कथा यह थोड़ेबहुत फ़र्क़ से ज्यू, ख्रिश्‍चन एवं इस्लाम इन तीनों धर्मों के धर्मग्रंथों में वर्णित की गयी है। मुस्लिम एवं ज्यू मान्यता के अनुसार, इस अब्राहम के बड़े बेटे इश्मेल (इस्माईल) से अरब वंश की शुरुआत हुई ऐसा बताया जाता है। लेकिन ज्यूधर्मियों के इतिहास में अब्राहम, उसका बेटा आयझॅक (इसाक) तथा अब्राहम का पोता जेकब (इस्रायल) ये केंद्रस्थान में हैं।
ज्यूधर्मियों के हिब्रू बायबल में (तथा ख्रिस्तीधर्मियों के ‘ओल्ड टेस्टामेंट’ में) प्रचलीत कथा के अनुसार –

अब्राहम यह प्राचीन मेसोपोटेमिया संस्कृति में स्थित सुमेरियन नगरी ऊर के चरवाहों का मुखिया था। यह ऊर यानी हाल के दक्षिण इराक में से पर्शियन खाड़ी में जा मिलनेवाली युफ़्रॅटिस नदी के मुखप्रदेश पर बसा हुआ नगररूपी राज्य था और उसमें एक ‘झिगुरात’ भी था, ऐसा उत्खनन में पाया गया है। तो ऐसे इस अब्राहम को ईश्‍वर का दृष्टान्त हुआ, जिसके द्वारा ईश्‍वर ने उसे – उसका घर छोड़कर, ऊर नगरी छोड़कर कॅनान प्रान्त में आने के लिए कहा।

ऊर में उत्खनन में पाया गया झिगुरात
ऊर में उत्खनन में पाया गया झिगुरात
तेराह
तेराह

उस ज़माने में दरअसल, ‘ईश्‍वर मूलतः एक ही है’ यह विचार पीछे छूट गया था और ‘अनेक-दैवत-पूजन’ उस प्रदेश में सर्वत्र प्रचलित था। अर्थात् विभिन्न समाज अपनी अपनी संकल्पना के अनुसार ईश्‍वर की कल्पना करके उस उस देवता का पूजन करते थे। इस कारण देवताओं के रूप, गुण, मूर्तियाँ समाज-समाज के अनुसार अनगिनत थीं। दरअसल अब्राहम के पिता ‘तेराह’ ये भी ऐसे देवताओं की मूर्तियाँ बनाने का ही व्यवसाय करते थे। लेकिन बचपन से ही चिंतनशील रहनेवाले अब्राहम की – ‘इन सबसे परे कोई तो ऐसी शक्ति है, जो पूरे विश्‍व का नियंत्रण करती है’ ऐसी पक्की धारणा बन गयी थी। इतनी दृढ़ कि उसने इसके लिए समाज का, इतना ही नहीं बल्कि वहाँ के राजा का भी क्रोध झेला था। राजा ने तो अब्राहम को सज़ा के तौर पर धधकती भट्टी में फ़ेंक देने की और वहाँ से ईश्‍वर ने उसे बचाया होने की कथा भी बतायी जाती है।

आसपास में ऐसे प्रतिकूल घटक होने के बावजूद भी अब्राहम ने, ‘इस दृष्टान्त में दिखायी दिया ईश्‍वर, यही वह इन सबसे परे होनेवाला सचमुच का एक ईश्‍वर है’ इस बात का यक़ीन किया और अपने पिता तेराह, पत्नी सारा (मूल नाम ‘साराई’) एवं अन्य परिजनों के साथ उसने ऊर में से कॅनान के लिए प्रस्थान किया। अब्राहम की – ‘ईश्‍वर मूलतः एक ही है, जो इस विश्‍व का निर्माणकर्ता है’ इस विचारधारा को हालाँकि अधिकांश समाज से विरोध हो रहा था, मग़र फिर भी उसकी विचारधारा धीरे धीरे मान्य होनेवाले लोग भी उसके ईर्दगिर्द इकट्ठा होने लगे थे। ऐसे उसके समर्थक भी उसके साथ निकल पड़े।

अब्राहम ऊर से कॅनान के लिए निकल पड़े
अब्राहम ऊर से कॅनान के लिए निकल पड़े

कॅनान पहुँचने पर ईश्‍वर ने पुनः उसे दृष्टान्त देकर – ‘ईश्‍वर मूलतः एक ही है’ इस संकल्पना पर विश्‍वास रखनेवालों का समूह बनाने का आदेश दिया। साथ ही, युफ़्रॅटिस नदी एवं इजिप्त नदी इनके बीच होनेवाली यह कॅनान की भूमि (हाल का इस्रायल और उसके आसपास का कुछ प्रदेश) उन्हें बहाल करने का अभिवचन दिया और उसके वंशजों द्वारा एक समर्थ राष्ट्र का निर्माण होगा, ऐसा आशीर्वाद दिया।

उस समय तक अब्राहम ने उम्र के पचहत्तर साल पार किये थे और उसकी पत्नी सारा यह भी कोई जवान नहीं थी। उनके अब तक कोई बालबच्चे नहीं थे। फिर अब इस उम्र में यह कैसे संभव होगा, यह सवाल हालाँकि शुरू में दोनों के मन में उठा, मग़र फिर भी – ‘भगवान कुछ भी कर सकते हैं और उनके लिए कुछ भी असंभव नहीं है’ इसपर अब्राहम का अड़िग विश्‍वास था, उसने अपनी पत्नी को भी समझाया।

उसके बाद ईश्‍वर के आदेशानुसार अब्राहम, सारा अपने अन्य परिजनों एवं समर्थकों के साथ कॅनान प्रांत में स्थलांतरित हुए और वहाँ पर उन्होंने अपना नया जीवन शुरू किया। (क्रमश:)

– शुलमिथ पेणकर-निगरेकर

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