श्रीनगर भाग-१

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पहाड़ों की बरफ़ीली चोटियाँ जहाँ काफ़ी दूर से भी आसानी से दिखायी देती हैं, हमेशा की तरह ही झेलम अपनी ऱफ्तार से और अपनी ही धुन में जहाँ बहती रहती है। उस जगह का नाम है, श्रीनगर। वैसे देखा जाये तो कई सदियों से झेलम बह रही है। श्रीनगर उसके दोनो किनारों पर बस गया और विकसित होता रहा।

‘श्रीनगर’ यह शहर जम्मू-कश्मीर की राजधानी है। हिमालय की पहा़डियों मे बसा एक खूबसूरत शहर, श्रीनगर! ‘कश्मीर’ और ‘प्राकृतिक सुंदरता’ ये दो शब्द मानो साथ साथ ही चलते हैं। इसीलिए कश्मीर का नाम लेते ही याद आते हैं, उँचे उँचे बरफ़ीलें पहाड़, मीलों तक फैले हुए हरे-भरे घास के मैदान, उछलती हुई नदियाँ, कई छोटी-बड़ी झीलें और इन्हीं के साथ बड़े बड़े पेड़ और अनगिनत किस्म के फूल। मानो विधाता ने इस भूमि को बनाते समय सारी खूबसूरती को यहीं पर बिखेर दिया हो।

पुराने जमाने की कई हिन्दी फिल्मों में यानि कि १९६०-१९७० इस दशक की कई हिन्दी फिल्मों में कश्मीर की इस खूबसूरती को हम परदे पर देख चुक होते थे।

झेलम के दोनों किनारों पर बसा ‘श्रीनगर’ यह एक बहुत प्राचीन शहर है। श्रीनगर यह शब्द ‘श्री’ और ‘नगर’ इन दो शब्दों से बना हुआ है, ऐसा कहा जाता है। ‘श्री’ का अर्थ हे समृद्धता और ऐश्‍वर्य। ऐसी इस ‘श्री’ की नगरी यानि कि समृद्धता और ऐश्‍वर्य की नगरी है, श्रीनगर। इस शहर की समृद्धता और ऐश्‍वर्य केवल उसकी कुदरती सुन्दरता से जुड़ा हुआ नहीं है, बल्कि कई पहलुओं से यह शहर समृद्धता और ऐश्‍वर्यसंपन्न है और उसकी यह समृद्धता और ऐश्‍वर्य उसके नाम में प्रतिबिंबित है।

हमारे भारत के कश्मीर इस राज्य के प्रति सभी भारतीयों के मन में प्रेम और आत्मीयता की भावना रहती है और साथ ही इस कश्मीर को देखने की उत्सुकता भी। चलिए, फिर श्रीनगर के इस सफ़र में पहले कश्मीर के बारे में थोड़ीबहुत जानकारी हासिल करते हैं।

‘धरती का नंदनवन’ या ‘धरती का स्वर्ग’ इस नाम से जिसे संबोधित किया जाता है, ऐसी है यह कश्मीर की भूमि। झेलम, चिनाब, सिंधु आदि नदियों की घाटियों से बना यह प्रदेश। कश्मीर का भौगोलिक दृष्टि से तीन विभागों में विभाजन किया जाता है – जम्मू शहर और उसके आसपास का इलाक़ा समतल प्रदेश है। उससे आगे बड़े बड़े पहाड़ों से घिरी, ऊँचाई पर बसीं, कई नदियों की घाटियाँ हैं और लेह जैसे काफ़ी ऊँचें बरफ़ीलें पहाड़ों पर बसे शहर हैं।

प्राचीन समय से कश्मीर यह कला, संस्कृति और विद्या का क्षेत्र माना जाता था। प्राचीन समय में कश्मीर विद्यादान का एक महत्त्वपूर्ण केंद्र माना जाता था।

महाभारत, नीलमतपुराण, राजतरंगिणी जैसे प्राचीन ग्रंथों में ‘कश्मीर’ का उल्लेख पाया जाता है। महाभारत में इस प्रदेश को ‘कश्मीरमंडल’ के नाम से संबोधित किया गया है।

कश्मीर की उत्पत्ति के बारे में नीलमत पुराण में एक किंवदंती प्रचलित है। कश्मीर के इस प्रदेश का जल के साथ अटूट रिश्ता जोड़ा गया है। उस किंवदंती के अनुसार, पुराने जमाने में यहाँ पर एक बहुत बड़ा सरोवर था। उसमें एक राक्षस उसके साथियों के साथ रहता था और वहाँ रहनेवाले लोगों को बहुत तकलीफ़ देता था। इन लोगों के दुखों का निवारण करने के लिए कश्यप ऋषि ने पहाड़ी की एक क़तार को फोड़कर उस सरोवर के सारे जल को मुक्त कर दिया। इस वजह से उस पानी में रहनेवाले राक्षस का पूरा बल नष्ट होकर उसका विनाश हुआ। फिर इस सरोवर के स्थान पर निर्माण हुई भूमि पर लोग बसने लगे।

‘क:’ का अर्थ है, जल। जल से निर्माण हुई यह भूमि फिर कश्मीर इस नाम से जानने जाने लगी।

नीलमतपुराण की यह किंवदंती कश्मीर प्रदेश की उत्पत्ति का वर्णन करती है। साथ ही इसी कश्मीर के साथ एक महत्त्वपूर्ण नाम जुड़ा हुआ है; ‘कल्हण’ नामक इतिहासकार का।

इस ‘कल्हण’ ने ‘राजतरंगिणी’ नामक संस्कृत ग्रंथ की रचना की और अपने इस ग्रंथ में उसने कश्मीर के इतिहास का वर्णन किया। इसी कारण कल्हण का नाम कश्मीर के साथ अनन्यतापूर्वक जुड़ा हुआ है।

कश्मीर में जन्मे इन कल्हण का मूल नाम ‘कल्याण’ था, ऐसा कहा जाता है और इस कल्याण नाम का अपभ्रंश होकर ‘कल्हण’ नाम बन गया। इनके पिता कश्मीर के राजा के मंत्री थे, ऐसा कहा जाता है। कश्मीर का इतिहास लिखने के लिए कल्हण ने कश्मीर की भूमि, वहाँ की कई वास्तुओं तथा बातों का अध्ययन किया। इस इतिहास-वर्णन में ९ वीं सदीं तक का कश्मीर का इतिहास और तकरीबन १२ वीं सदी तक का कश्मीर का इतिहास ऐसे दो प्रमुख विभाग हैं। कश्मीर की खूबसूरती के साथ साथ ही कल्हण कश्मीर के राजकीय इतिहास तथा सांस्कृतिक धरोहर का भी वर्णन करते हैं। इसी कारण कल्हण द्वारा विरचित ‘राजतरंगिणी’ मे ‘प्रवरपुर’ नामक नगर का उल्लेख प्राप्त होता है। यह प्रवरपुर यानि कि आज का श्रीनगर है, ऐसा माना जाता है।

कल्हण के बाद कई इतिहासकारों ने कश्मीर का अगला इतिहास लिखा और साधरणत: १६ वीं सदी तक का यह इतिहास उपलब्ध है। इसके आगे का कश्मीर का इतिहास कश्मीर पर राज करनेवाले परकीय शासकों के वर्णनों में से प्राप्त होता है।

कश्मीर के इतिहास की शुरुआत उस पर शासन करनेवाले गोनर्दीय वंश के शासन काल से होती है। इस गोनर्दीय वंश के गोनर्द नामक राजा का समय महाभारत काल माना जाता है। इससे यह साबित होता है कि महाभारत काल में भी कश्मीर का अस्तित्व था।

कुछ लोगों की राय में ‘कश’ या ‘खश’ नामक जनजाति के लोग इस प्रदेश में रहते थे और उन्हीं के कारण आगे चलकर इस प्रदेश को ‘कश्मीर’ यह नाम प्राप्त हुआ।

कश्मीर में ‘नाग’ वंशीयों का वास्तव्य था, ऐसा भी कहा जाता है। गोनर्दीय वंश के बाद कश्मीर पर कार्कोट, उत्पल, लोहर जैसे कई वंश के शासकों ने शासन किया, ऐसा इतिहास से ज्ञात होता है।

इसी दौरान सम्राट अशोक ने कश्मीर में एक नगर स्थापित किया था, ऐसा भी कहा जाता है। उस नगर का नाम था ‘पंद्रेठण’, जो आज ‘श्रीनगर’ से कुछ ही दूरी पर स्थित है। साधारणत: छठी सदी में कश्मीर के राजा प्रवरसेन (दूसरे) ने ‘प्रवरपुर’ नामक नगर बसाया था। कहा जाता है कि प्रवरसेन ने जब इस नगर को बसाया, तब से पंद्रेठण की आबादी घटती गयी। यह प्रवरपुर ही आगे चलकर ‘श्रीनगर’ इस नाम से जाना जाने लगा। अत एव प्रवरसेन राजा को ‘श्रीनगर’ शहर का संस्थापक माना जाता है।

अशोक की तरह विक्रमादित्य ने भी कुछ अवधि तक यहाँ पर शासन किया था, ऐसा भी माना जाता है। प्रवरसेन के पश्‍चात् श्रीनगर के इतिहास में हूण शासकों का उल्लेख मिलता है। उनके बाद मुग़लों की यहाँ पर हुकूमत थी। १९ वीं सदी के प्रारंभ में ही पंजाब प्रांत के ‘राजा रणजितसिंहजी’ ने कश्मीर के बहुत बड़े हिस्से पर तथा श्रीनगर पर भी अपनी सत्ता स्थापित कर दी। तब तक अँग्रेज़ भी भारत में प्रवेश कर चुके थे। भारत के हर एक राज्य को निगल लेने वाले अँग्रेज़ों की नज़र से भला कश्मीर और श्रीनगर कैसे छूट जाता! १९ वीं सदी के मध्य में ही यहाँ पर अँग्रेज़ों ने अपनी सत्ता स्थापित कर दी।

अँग्रेज़ों ने भारत के हर एक प्रदेश पर अपना शासन स्थापित कर कई रियासतों के राजाओं को स़िर्ङ्ग ‘नामधारी राजा’ बनाकर रखा था। दर असल अँग्रेज़ों की मरज़ी के अनुसार ही राजा उस रियासत का हर एक काम करते थे, वे अपनी मरज़ी के मालिक नहीं थे। श्रीनगर को भी ऐसे ही हालातों का सामना करना पड़ा और अँग्रेज़ों ने वहाँ पर एक नामधारी राजा को नियुक्त कर दिया। श्रीनगर भी ‘प्रिन्सली स्टेट’ अथवा ‘रियासत’ बन गया।

२० वीं सदी में भारत आज़ाद हो गया, सार्वभौम भारतीय संघराज्य की स्थापना हुई और कश्मीरसहित श्रीनगर भी भारत का एक अविभाज्य अंग बन गया। लेकिन भारतीय संघराज्य का एक हिस्सा बनने तक का यह सफ़र आसान नहीं था। राजकीय पार्श्‍वभूमि की कई संघर्षमय घटनाओं से वह भरा हुआ था।

दर असल कश्मीर और श्रीनगर में लगभग साल भर मौसम ठंडा ही रहता है। यहाँ की ठंड भी कड़ाके की रहती है और गरमियों का मौसम सुहावना! सर्दियों में बरफ़ की सफ़ेद चादर लपेटकर श्रीनगर सो जाता है और गरमियों में शहर में से बहनेवाली झेलम फुर्ती से अपनी ही धुन में बहती रहती है।

श्रीनगर का गरमियों का मौसम भी अनोखा है और जाड़े का मौसम भी निराला ही है। इनके साथ साथ और दो ऋतुओं का ज़िक्र करना भी ज़रूरी है। बसंत के मौसम में यहाँ की हर कली खिल उठती है और पवन के झोंकों के साथ फूलों की खुशबू से वायुमंडल महक उठता है। पेड़पौधें मानों गहरी नींद में से जागकर, बरफ़ की सफ़ेद चादर को हटाकर एक अलग ही अंदाज़ में झूम उठते हैं। जाड़े से पहले भी यहाँ पर आप कुदरत का एक लुभावना रूप देख सकते हैं। पतझड़ के पहले यहाँ के कई पेड़ों के पत्तें अपने हरे रंग को त्यागकर लाल, चॉकलेटी इत्यादि रंगविभ्रम दिखाते हैं। इसलिए श्रीनगर यह केवल देखने का नहीं, बल्कि महसूस करने का शहर है।

अब तक हमने कश्मीर और श्रीनगर के इतिहास के पहलुओं को संक्षेप में देखा। इस नंदनवन के रंग-गन्ध की सुन्दरता का लु़फ़्त उठाने के लिए हम इस खूबसूरत सफ़र को जारी रखेंगे।

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