लेह-लद्दाख़ भाग-१

भारत की उत्तरी सीमा पर स्थित नगाधिराज हिमालय। हिमालय का नाम लेते ही आँखों के सामने आ जाते हैं बर्फाछादित शिखर और बहती हुई नदियाँ तथा इन्हीं नदियों के कारण विपुल मात्रा में पाये जानेवाले पेड़-पौधे। इस बर्फाछादित हिमालय की पार्श्‍वभूमि पर और इस हिमालय की गोद में भी कईं गाँव और शहर बसे हुए हैं। हर एक जगह पर दिखाई देनेवाला हिमालय और वहाँ का प्राकृतिक सौन्दर्य अनूठा ही होता है। जम्मू-कश्मीर से जैसे जैसे हम पूर्वी दिशा में जाते हैं, उसी के साथ हमें प्रकृति का एक अलग ही आविष्कार दिखाई देता है। जिस हिमालय के साथ हरियाली देखने की मानों आँखों को आदत सी पड़ जाती है, वही हिमालय हमें यहाँ पर कुछ अलग ही ऩजारा दिखाता है। प्रकृति का यह एक अलग ही आविष्कार दिखाता है – लद्दाख़।

जम्मू-कश्मीर से पूर्वी दिशा में हिमालय की पार्श्वभूमि पर बसा हुआ ‘लद्दाख़ प्रान्त’ और इस प्रान्त का सबसे बड़ा शहर है, ‘लेह’।

यहाँ हिमालय है, अर्थात् साथ ही उसके बर्फाछादित शिखर भी है, बहनेवाली नदियाँ हैं, लेकिन पानी के होते हुए भी यहाँ पर बहुत ही कम मात्रा में पेड़-पौधे दिखाई देते हैं। नदियों और झीलों के आसपास कुछ दूरी तक हराभरा निसर्ग दिखाई तो देता है, लेकिन वहाँ से आगे मीलों तक फैली छोटी-बड़ी चट्टानों के पहाड़ दिखाई देते हैं। विशेष बात यह है कि इन पहाड़ों परLadakh01- लेह-लद्दाख़ घास का एक तिनका तक नहीं उगता और इन पहाड़ों पर ही नहीं, बल्कि उसके आसपास की जमीन पर भी घास का नामोंनिशान तक नहीं दिखाई देता और यहाँ के हिमालय के शिखर हमेशा बर्फ से आच्छादित रहते हैं। देखिए, क्या चमत्कार है प्रकृति का!

जो हरियाली हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में स्थित हिमालय का साथ देती है, उसी हिमालय का साथ इस लद्दाख़ में मानों एक रूखा-सूखा रेगिस्तान ही दे रहा हो, जैसा कोई एक शीत-मरुस्थल।

तो ऐसा यह लेह-लद्दाख़ का प्रदेश। पुराने जमाने में लेह यह लद्दाख़ प्रान्त की राजधानी का शहर था। आगे चलकर लद्दाख़ प्रान्त को जम्मू-कश्मीर राज्य में समाविष्ट किया गया और लेह यह लद्दाख़ प्रान्त का एक महत्त्वपूर्ण शहर बन गया।

लेह शहर की जानकारी प्राप्त करते समय हम लद्दाख़ के बारे में भी जानेंगे, क्योंकि लेह-लद्दाख़ एक-दूसरे के साथ जुड़े हुए हैं।

यहाँ के निसर्ग के बारे में तो हम पहले ही देख चुके हैं। नदियों के आसपास हरियाली और बाकी सब रूखी-सूखी जमीन। लेह-लद्दाख़ में बारिश बहुत ही कम होती है। यहाँ पर सालभर में लगभग औसतन ९० मि.मि. इतनी कम मात्रा में वर्षा होती है और यहाँ पेड़ बहुत ही कम हैं। इसी कारण इस प्रदेश में जानेवाले लोगों को शुरुआती दौर में इस वातावरण के साथ मेल बन जाने तक तकलीफ होने की सम्भावना रहती है, लेकिन कुछ समय बाद जब शरीर का उस हवा के साथ मेल बन जाता है, उसके बाद चिन्ता की कोई बात नहीं रहती। इस प्रदेश का हवामान विषम है। सर्दियों में कड़ी ठण्ड़ और बर्फके कारण लेह और साथ ही लद्दाख़ के कईं स्थानों पर तापमान शून्य से बहुत नीचे चला जाता है, वहीं गर्मियों में तापमान में अच्छी-खासी बढ़ोतरी हो जाती है।

इस प्रदेश के बारे में पढ़ने के बाद शायद आप सोचने लगे होंगे कि यह प्रदेश बहुत ही दुर्गम है, लेकिन इतनी ऊँचाई पर और ऐसे अलग वातावरण में वहाँ के स्थानीय लोग तो रहते ही हैं और साथ ही हमारी देश की रक्षा के लिए हमारे जवान भी यहाँ पर तैयार होते हैं।

लेह शहर में जाने के लिए दो मार्ग उपलब्ध हैं। एक है रास्ता और दूसरा है हवाई मार्ग। लेह शहर में स्थित हवाई अड्ड़े पर हवाई जहा़ज से पहुँचा जा सकता है। जब हवाई जहा़ज और रास्ता ये दो मार्ग उपलब्ध नहीं थें, तब इस प्रदेश में श्रीनगर से आने के लिए और यहाँ से श्रीनगर तक जाने के लिए कईं दिनों का समय लग जाता था। लेकिन लेह-मनाली हायवे और श्रीनगर-लेह इन बनाए गए रास्तों के कारण यहाँ पहुँचना आसान हो गया, लेकिन ये रास्ते बहुत ऊँचाई पर स्थित होने के कारण वे सालभर उपयोग में नहीं लाये जा सकते। कभी बर्फ के कारण, कभी लँडस्लाईड के कारण तो कभी खराब मौसम के कारण इन रास्तों को कभी भी बन्द किया जाता है। फिर ऐसे समय में लेह पहुँचना बहुत कठिन हो जाता है। इनमें से लेह-मनाली हायवे द्वारा दो दिन में मनाली से लेह पहुँचा जा सकता है, लेकिन उसके लिए प्रकृति का साथ अत्यावश्यक होता है। लेह शहर श्रीनगर से ४३४ कि.मी. की दूरी पर और मनाली से ४७४ कि.मी. की दूरी पर स्थित है। (मनाली यह हिमाचल प्रदेश में स्थित एक निसर्गरम्य स्थान है और श्रीनगर यह जम्मू-कश्मीर की राजधानी है।)

लद्दाख़ प्रान्त का अस्तित्व बहुत प्राचीन काल से था, यह बात कईं स्थानों पर प्राप्त हुए शिलालेखों द्वारा सिद्ध होती है। लगभग १ ली सदी में लद्दाख़ यह कुशाण साम्राज्य का हिस्सा था। चिनी यात्री फाहियानने अपने प्रवासवर्णन में लद्दाख़ का उल्लेख किया है।

कल्हण नामक विद्वान द्वारा लिखे गये राजतरंगिणी नामक ग्रन्थ से यह जानकारी मिलती है कि कश्मीर के राजा ललितादित्य ने लद्दाख़ और तिब्बत पर आक्रमण कर, उन्हें अपने राज के साथ जोड़ दिया था। यह इसवी १२ वी सदी का समय था।

लद्दाख़ में सबसे पहले बसनेवाले लोग मोन वंश के थे और ये उत्तरी दिशा से लद्दाख़ में पहुँचे, तो बाल्टिस्तान से दर्दवंश के लोग वहाँ पर बसने के लिए आए और दसवी सदी में मंगोल लोग लद्दाख़ आए, इस प्रकार का वर्णन प्राप्त होता है। इनमें से मोन और दर्द वंश के लोगों का उल्लेख हेरोडॉटस, नर्चस, मॅगेस्थेनीस, टोलेमी व प्लिनी इस इतिहासकारों ने किया है।

ये हुए लद्दाख़ के अस्तित्व के एकदम शुरुआती समय के चिह्न, लेकिन इस लेह शहर का अस्तित्व कब से है?

पुराने जमाने से लेकर भारत का मध्य आशियाई देशों के साथ बहुत लम्बे समय तक व्यापार चलता था। गत कईं सदियों तक ये व्यापारी लद्दाख़ से प्रवास करके भारत से बाहर चीन, अफगाणिस्तान, तिबेट, रशिया आदि देशों में जाते और उन देशों के व्यापारी भी अपना माल लेकर भारत आते। उस जमाने में प्रवास मुख्य रूप से घोड़ा या उन स्थानों में उपलब्ध स्थानीय प्राणियों की सहायता से होता था, लेकिन इस पूरे व्यापार दौरे के लिए बहुत लम्बा समय लग जाता था और फिर इस यात्रा के दौरान व्यापारी लेह में रुकते और विश्राम करते। इस प्रकार लेह पूर्वापार व्यापारियों के विश्राम का स्थान था। इस सफर में भारतीय प्रवासी भारत से मसालें, ऊन, रंग और रूई (कपास) लेकर चीन में काशगर और यारकंद तक जाते और लोटते समय वहाँ से चाय, रेशमी गालिचें आदि ले आते। वहीं तिब्बत के व्यापारी सूखामेवा और शाल तैयार करने के लिए उपयोग में लायी जानेवाली पश्म नाम की ऊन आदि लेकर आते और लौटते समय चाय, तमाखू, अनाज, शक्कर आदि साथ ले जाते। इस प्रकार व्यापारियों का ताँता सालभर लगा रहता था और उनके विश्राम की व्यवस्था उस समय लेह शहर करता था। इसका अर्थ है कि उस जमाने में इस शहर में काफी भीड़-भाड होगी और इन व्यापारियों के विश्राम की व्यवस्था कर यहाँ के लोग अपना निर्वाह करते होंगे। लेकिन आगे चलकर चीन ने लद्दाख़-तिब्बत सीमा को बन्द कर दिया और इस रास्ते होनेवाला व्यापार पूरी तरह बन्द हो गया।

आज लेह-लद्दाख़ में बसनेवाले लोग पूर्व वर्णित मोन, दर्द इन वंशों के मिश्रण से बने हुए हैं।

भारत और मध्य आशिया के बीच रहनेवाला व्यापारी मार्ग बन्द हो जाने पर इस शहर का व्यापारी महत्त्व कम हो गया।

१७ वी सदी में लद्दाख़ पर सेंगे नामग्याल नामक राजा का शासन था। इस राजा के शासन में लद्दाख़ की काफी प्रगति और उन्नति हुई।इसी राजा ने लेह में एक राजमहल का निर्माण किया, जो ‘लेह पॅलेस’ के नाम से जाना जाता है। राजमहल का निर्माण करनेवाले इस राजा ने लेह शहर को राजधानी का दर्जा दिया और इस शहर का विकास होने लगा। इसी राजमहल में राजा का निवास था, लेकिन १९ वी सदी के मध्य में यहाँ का राजा राजपरिवारसमेत स्तोक नामक स्थान पर बनाये गये राजमहल में निवास करने लगा अर्थात् इसका कारण था लेह पर हुआ आक्रमण और राजा द्वारा राजमहल छोड़ देने के बाद उस महल की दुर्दशा हुई।

लेह यह लद्दाख़ प्रान्त का अविभाज्य हिस्सा होने के कारण लेह और लद्दाख़ का इतिहास आपस में जुड़ा हुआ है। इसीलिए लद्दाख़ का भी इतिहास जान लेना जरूरी है, उसे हम अगले भाग में देखेंगे।

One Response to "लेह-लद्दाख़ भाग-१"

  1. onkar wadekar   July 11, 2016 at 8:03 am

    लेह-लद्दाख, यह विश्व के बाइक राइडर्स के लिए मानिए काशी-विश्वेश्वर स्वरूप माना जाता हैI जिसने रॉयल एनफील्ड खरीदी और वह लेह- लद्दाख नहीं हो आया तो मानिए उसका जन्म व्यर्थ हुआ, ऐसे मजाकिये चुटकुले भी सुनने में आते हैI इस क्षेत्र के बारे में जानने के लिए ज्यादातर संकेत स्थल पे स्थायीरूप रूप से पर्यटनसंबधित ही जानकारी उपलब्ध हैI हालाकि यह आज के दौर की जरुरत भी हैI पर्यटन से विकसित सारे विश्व मे प्रख्यात इस प्रांत का इतिहास बहुतही मन लुभावन हैI इस महत्त्वपूर्ण संकेतस्थलके माध्यम से दी गयी जानकारी सही मायनेसे लेह प्रांत के बारे मे केवल पर्यटनसे सीमित अपना नजरिया बदलने मे कामयाब रही है इस मे कोई संदेह नहीI

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