श्रीनगर भाग-२

हर साल हमारे देश में वसंतपंचमी का त्योहार मनाया जाता है। वसंत ऋतु के आगमन के साथ साथ श्रीनगर में शुरू हो जाता है, अनोखे रंगों और गन्धों का एक महोत्सव! बढ़ते हुए तपमान के साथ साथ पर्वतों की चोटियों पर जमी बरफ़ पिघलने लगेगी, कोहरा भी घटता जायेगा और श्रीनगर की बरफ़ की चादर ओढ़कर सोयी हुई सृष्टी फिर से जाग उठेगी और उसकी खूबसूरती निखर जायेगी।

जिसने भी इस कश्मीर को ‘नंदनवन’ की उपमा दी है, उसकी सुन्दरता की परख करनेवाली दृष्टि को सचमुच ही दाद देनी पड़ेगी। श्रीनगर की इस भूमि में जल काफ़ी अधिक मात्रा में है और इसी वजह से सर्दी के मौसम को छोड़कर बाक़ी महिनों में यहाँ पर हरियाली छायी रहती है। जल का बहुत बड़ा स्रोत रहनेवाली ‘झेलम’ यह नदी श्रीनगर के बीच में से ही बहती है। झेलम, अतिविशाल ‘दल’ सरोवर (लेक) और पर्वतों में से उद्गमित होनेवालें कईं छोटे-बड़े झरनें इन सब ने इस शहर को सुन्दरता प्रदान की है।

चलिए! अब झेलम के साथ ही हम आज के इस सफ़र की शुरुआत करते हैं।

कश्मीर के कईं लोकगीतों में झेलम से हमारी मुलाक़ात होती है; लेकिन उसके साक्षात् दर्शन हम श्रीनगर में कर सकते हैं।

आज का श्रीनगर बसा है, झेलम के दोनों किनारों पर और एक किनारे से दूसरे किनारे तक जाने के लिए पुराने समय में ही झेलम पर कुल नौ पुल (ब्रिज) बनाये गये। हर पुल का अपना एक नाम भी है। नया कदल, सफ़र कदल, अमीर कदल इत्यादि नामों से ये पुल जाने जाते हैं। ‘कदल’ का अर्थ है ‘पुल’।

ॠग्वेद में गंगा, सिंधु आदि नदियों के साथ झेलम का भी उल्लेख प्राप्त होता है। लेकिन वेदों में उसका नाम ‘वितस्ता’ है। इससे आप यह समझ ही गये होंगे कि वितस्ता यानि कि झेलम यह कितनी प्राचीन नदी है। ग्रीक नागरिक भी उसे ‘हिदास्पेस’ इस नाम से जानते थे। कश्मीर में इसी झेलम को ‘व्यथ’ इस नाम से भी संबोधित किया जाता है।

पीरपंजाल पर्वत की तलहटी में बसे ‘वेरीनाग’ नामक गाँव में एक झरने के रूप में झेलम उद्गमित होती है। वहाँ पर एक अष्टकोनीय तालाब का निर्माण किया गया है। यहाँ से झेलम कई अन्य प्रवाहों को स्वयं में समेटते हुए एक नदी के रूप में आगे बढ़ती है और श्रीनगर के आगे के सफ़र में वह ‘वूलर झील’ में जा मिलती है। लेकिन यहाँ पर उसका सफ़र ख़त्म नहीं होता, वह इसके बाद भी अपनी राह पर अपनी ही धुन में आगे बढ़ती रहती है।

तो ऐसी यह झेलम! श्रीनगर की खूबसूरती का एक महत्त्वपूर्ण पहलू!

झेलम से तो हम मिल चुके; आइए, अब आगे बढ़ते हैं।

पर्वतों की पार्श्‍वभूमि पर विकसित हुआ श्रीनगर शहर! जगह जगह पर पाये जानेवालें चिनार, विलो आदि पेड़, दल लेक में हाऊसबोट्स् की लंबी क़तारें! इसी दल लेक के जल में, कुछ तेज़ी से तो कुछ धीमे से चलनेवालें शिकारें, इन शिकारों में भरे हुए फल, फूल तथा अन्य जीवनावश्यक सामग्री; इन सबकी दल के जल में ही चल रही खरीद – फ़रोख़्त (लेवा-बेची) और इसी दौरान बीच बीच में दिखायी देनेवालें, सेबकी तरह लाल लाल रंग के होठों वालें और गोरेचिट्टें गालों वालें छोटे छोटे बच्चें। अब इस नज़ारे को मन की आँखों से देखते देखते आप धीरे से श्रीनगर के अंतरंग में प्रवेश कर ही चुके होते हैं।

दल, हाऊसबोट्स्, शिकारें, सेब, चिनार, विलो इत्यादि बातें तो श्रीनगर का अविभाज्य अंग ही है। शिकारें, हाऊसबोट्स्, दल ये सभी श्रीनगर की विशेषताएँ हैं; वहीं सेब, चिनार, विलो कश्मीर में सभी जगह दिखायी देते हैं। सेब से तो हम सभी भली भाँति परिचित रहते ही हैं; लेकिन चिनार और विलो इनके बारे में कुछ ख़ास जानकारी हमें नहीं रहती।

चिनार और विलो ये कश्मीर में पाये जानेवालें दो प्रमुख वृक्ष हैं। इनके अलावा अन्य पेड़पौधें भी कश्मीर में पाये जाते हैं; लेकिन चिनार और विलो ये कश्मीर की ख़ासियत हैं। उनमें से भी चिनार यह तो कश्मीर की कला का प्रतीक ही है। कश्मीर में की जानेवाली हर एक कारीगरी में चिनार के वृक्ष का पत्ता तो अवश्य पाया जाता है। इतना अटूट रिश्ता है, कश्मीर और चिनार इनका।

‘प्लॅटॅनस ओरिएन्टालिस’ यह चिनार का बॉटनिकल नाम है और यह प्राय: जल के पास ऊँचाईवाले स्थान पर पाया जाता है। इसकी ख़ासियत यह है कि वह एक दीर्घायु (कईं सालों तक जीवित रहनेवाला) वृक्ष है और इसकी छाया भी घनी और सुखद रहती है।

कश्मीर के बडगाम ज़िले के छतरगाम इस गाँव में स्थित एक चिनार का वृक्ष लगभग ६२५ वर्ष पुराना है, ऐसा माना जाता है। चिनार की दीर्घायुता को स्पष्ट करने के लिए यह एक उदाहरण काफ़ी है।

दल लेक के एक छोटे से द्वीप पर चिनार के चार वृक्ष कई वर्षों से खड़े हैं और वह स्थल ‘चार चिनार’ इस नाम से मशहूर है।

चिनार वृक्ष का उपयोग दवाइयों में तथा अन्य कामों में भी किया जाता है। वहीं ‘विलो’ इस वृक्ष की लकड़ी से क्रिकेट की बॅट्स् का निर्माण किया जाता है।

चिनार और विलो के पेड़ों में से निकल कर आइए, एक नज़र डालते हैं, श्रीनगर की पार्श्‍वभूमि के रूप में दिखायी देनेवाले पर्वतों की ओर।
दर असल इन पर्वतों की चोटियों पर से पूरे के पूरे श्रीनगर का बहुत ही लुभावना नज़ारा देखने मिलता है। लेकिन उसके लिए हमें उन पर्वतों की चोटियों तक जाना पड़ेगा।

इन दो पर्वतों में से जो छोटा पर्वत है, उसकी चोटी पर आइए चलते हैं।

इस छोटे से पर्वत का नाम है ‘हारी पर्वत’। इस पर्वत की चोटी पर एक क़िले का निर्माण भी किया गया है और वहाँ पर कुछ प्रार्थनास्थल भी हैं।
इस पर्वत के ‘हारी पर्वत’ इस नाम के विषय में एक लोककथा प्रचलित है। पुराने समय में यहाँ पर एक बहुत बड़ी झील थी। उसमें एक राक्षस अपने साथियों के साथ रहता था। उसने यहाँ के निवासियों की नाक में दम कर रखा था। फिर इस राक्षस का वध करने के लिए देवीमाता ने मैना (मैना नामक पंछी) का रूप धारण किया। उसने अपनी चोंच में एक पत्थर उठाकर उस मग़रूर राक्षस पर उसे फेंका। राक्षस पर गिरे उस पत्थर का आकार धीरे धीरे बढ़ने लगा और अन्त में वह इतना बढ़ गया कि वह पत्थर एक पर्वत के रूप में रूपान्तरित हो गया। उस पत्थर के यानि कि पर्वत के नीचे दबकर वह राक्षस मर गया।

इस तरह देवी ने मैना का रूप धारण कर फेंके हुए पत्थर से बने इस पर्वत को ‘हारी पर्वत’ कहा जाने लगा। ‘हार’ इस शब्द का अर्थ है ‘मैना’ और इसीलिए इस पर्वत का नाम ‘हारी पर्वत’हो गया। यहाँ पर देवीमाता का मंदिर भी है।

अक़बर द्वारा बनाया गया एक क़िला भी यहाँ पर है।

श्रीनगर शहर की पार्श्‍वभूमि बने दूसरे पर्वत की ऊँचाई हारी पर्वत से अधिक है। इसकी ऊँचाई लगभग एक हजार फीट है। यह पर्वत आद्य शंकराचार्यजी के नाम से जाना जाता है। कश्मीर पर काफ़ी लंबे अरसे तक मुग़लों की हुकूमत रही है और इसी वजह से यहाँ के कईं स्थल उनके उस समय के नाम से भी पहचाने जाते हैं।

आद्य शंकराचार्यजी के नाम से जाना जानेवाला यह पर्वत ‘तख्त-ए-सुलेमान’ इस नाम से भी जाना जाता है। आद्य शंकराचार्यजी यहाँ पर पधारे थे और इसी वजह से इस स्थान को उनका नाम दिया गया है। इस पर्वत पर एक शिवमंदिर भी है। इस मंदिर का चबूतरा तो का़ङ्गी ऊँचा है, लेकिन इसका गर्भगृह छोटा है। यहाँ पर एक शिवलिंग भी है।

‘परीमहल’ नाम की एक वास्तु भी श्रीनगर में है, जिसका निर्माण शहाजहान के दारा शुकोह नामक बेटे ने किया था, ऐसा कहा जाता है। तत्त्वज्ञानविषयक चिंतन करने के लिए उसने इस वास्तु का निर्माण किया था, ऐसा भी कहा जाता है।

श्रीनगर में कईं धर्मों के प्रार्थनास्थल दिखायी देते हैं। साथ ही आज का श्रीनगर यह कई सुखसुविधाओं से परिपूर्ण ऐसा एक शहर है।
किसी भी शहर की जब सैर करने जाते है, तब कम से कम एकाद दिन तो हमें वहाँ पर रुकना पड़ता है; क्योंकि उसे क़रीब से देखने के लिए वहाँ पर रहना भी ज़रूरी होता है। तो फिर श्रीनगर के मन में झाँकने के लिए हमें यहाँ पर ठहरना ही होगा।

किसीभी शहर में सैलानियों के निवास आदि के लिए ‘हॉटेल्स्’ तो उपलब्ध रहते ही हैं। श्रीनगर में भी हॉटेल्स् तो हैं; लेकिन श्रीनगर में इन सबसे ‘हटकर’ ऐसा एक निवास का विकल्प (ऑप्शन) उपलब्ध है। जी हाँ, आपने सही पहचाना। मैं हाऊसबोट की ही बात कर रही हूँ।
‘हाऊसबोट’ इस नाम से ही उसके स्वरूप के बारे में आप थोड़ाबहुत तो जान ही गये होंगे। हाऊसबोट यानि कि बोट में स्थित घर, घर की सारी सुखसुविधाएँ जहाँ पर उपलब्ध हैं, ऐसा बोट के भीतर बनाया गया घर। इतना ही नहीं, बल्कि सैलानियों की ज़रूरतों के अनुसार उन्हें इन हाऊसबोट्स् में सुखसुविधाएँ मुहैया करा दी जाती हैं।

चलिए, तो फिर दल लेक के शांत जल पर तैरती हुई किसी हाऊसबोट में डेरा जमा लिया जाये और फिर हम जारी रखेंगे, श्रीनगर का हमारा यह सफ़र।

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