श्रीनगर भाग-३

दल सरोवर के जल पर जब उगते हुए सूरज की स्वर्णिम किरनें अपनी प्रभा बिखेर देती हैं, तब धीरे धीरे दल के साथ साथ श्रीनगर भी जागने लगता है। दल सरोवर की हाऊसबोट में रुके सैलानियों के लिए इस नज़ारे को देखना यह एक अविस्मरणीय बात होती है।

संपूर्ण श्रीनगर की सैर करने के लिए दल सरोवर की ही किसी हाऊसबोट में रुकने का फैसला तो हम पिछले ह़फ़्ते ही कर चुके हैं। तो अब दल सरोवर की जानकारी प्राप्त करते हुए ही पुन: अपनी सैर की शुरुआत करते हैं।

दल सरोवर! कहा जाये तो वह श्रीनगर की पहचान भी है और ख़ासियत भी। दुनिया के कई शहरों में, छोटे-बड़े गाँवों में छोटी-बड़ी झीलें रहती हैं; तो फिर दल की इतनी तारीफ़ क्यों? इसका उत्तर हमें दल की सैर करते हुए अपने आप ही मिल जायेगा।

श्रीनगर का कोई भी चित्र हो अथवा वर्णन हो, वह दल सरोवर के उल्लेख के बिना अधूरा ही है। इस दल सरोवर का विस्तार अंदाज़न् कुछ इस तरह है – इसकी लंबाई ४ मील है, चौड़ाई २.५ मील और क्षेत्रफल लगभग ८-१० वर्गमील (स्क्वेअर माईल्स) है। लेकिन दल सरोवर के विस्तार को महसूस करना हो, तो हारी पहाड़ी अथवा शंकराचार्य पहाड़ी पर से उसे देखना चाहिए।

दल सरोवर के साथ आपका परिचय हो ही गया है; तो अब इसे स़िर्फ ‘दल’ ही कहेंगे।

इस विशाल दल के कुल चार विभाग माने जाते हैं। दल के इस विभाजन की वजह है, उसपर बनाया गया ‘कॉजवे’। किसी समुद्र, झील अथवा खाड़ी पर बनाये गये पुल को कॉजवे कहते हैं। जिन्होंने मुंबई का माहीम कॉजवे देखा होगा, वे इस बात को समझ सकते हैं। ‘गग्रीबल’, ‘लोकुत दल’, ‘बोड दल’ और ‘नगीन लेक’ इन नामों से दल के ये चार विभाग जाने जाते हैं। इनमें से ‘नगीन लेक’ यानि कि नगीन नाम की झील को दल का ही एक हिस्सा माना जाता है; तो कभी उसकी एक स्वतंत्र झील के रूप में गणना भी की जाती है।

इनमें से लोकुत दल और बोड दल इन विभागों में मध्यवर्ती द्वीप हैं और उन्हें क्रमश: ‘रूप लंक’ (चार चिनार) और ‘सोन लंक’ कहा जाता है।
इस दल के समूचे किनारे की लंबाई लगभग १५-१६ कि.मी. है। साथ ही दल की गहराई भी प्रत्येक विभाग के अनुसार अलग अलग है। कहीं पर गहराई काफ़ी अधिक है, तो कहीं पर बहुत ही कम। श्रीनगर की कड़ाके की ठंड में कभी कभी यह झील पूरी तरह जम भी जाती है।

दल की उत्पत्ति कैसे हुई, इस संदर्भ में कुछ निष्कर्ष प्रस्तुत किये जा चुके हैं। उनमें से एक निष्कर्ष के अनुसार किसी पहाड़ी पर जमी हुई बरफ़ के पिघलने से इस झील का निर्माण हुआ है; वहीं दूसरे निष्कर्ष के अनुसार झेलम नदी इस झील के जन्म की वजह है।

दल के किनारों पर से यदि एक नज़र फेर दी जाये, तब भी लंबी क़तार में खड़ी हाऊसबोट्स् और पानी में आवाजाही करनेवाले शिकारें हमें दिखायी देते हैं। अब भी बहुत सारी बातें देखना बाक़ी है। लेकिन सबसे पहले आइए झाँकते हैं, हाऊसबोट के भीतर।

पूरी तरह लकड़ी द्वारा बनाया गया, पानी पर तैरता हुआ घर, जिसका आकार बोट की तरह होता है, उसे हाऊसबोट कहा जाता है। इन हाऊसबोट्स् में कईं सालों से लोग रह रहे हैं। जिस तरह हम ज़मीन पर घर बनाते हैं, उसी तरह यह पानी पर बनाया गया घर है।
इन हाऊसबोट्स् की संकल्पना श्रीनगर में कैसे साकर हुई, इसका जवाब ढूँढ़ने के लिए हमें अतीत में झाँकना होगा।

श्रीनगर की लाजवाब कुदरती खूबसूरती पर फिदा होकर यहाँ पर राज करनेवाले कई शासकों ने इसे राजधानी का दर्जा दिया। इसके लिए अँग्रेज़ भी अपवाद नहीं थे। लेकिन अँग्रेज़ जब यहाँ पर पहली बार आये, तो श्रीनगर के तत्कालीन महाराजा ने उन्हें यहाँ पर ज़मीन खरीदने तथा घर बनाने के लिए मंज़ूरी नहीं दी। अँग्रेज़ों ने फिर इसपर एक बढ़िया तरक़ीब सोच ली। उन्होंने लकड़ी की बोट में ही घर बनाकर उसमें रहना शुरू किया। कहा जाता है कि इस तरह इन हाऊसबोट्स् का जन्म हुआ।

हाऊसबोट यह एक आलीशान घर ही रहता है। बड़ा दीवानख़ाना, तरह तरह के कमरें, बाल्कनी इस तरह की रचना साधारणत: हाऊसबोट में होती है। साथ ही हर एक हाऊसबोट में वहाँ पर रहनेवालों की सुविधा के अनुसार उसकी भीतरी रचना में कुछ आवश्यक परिवर्तन भी किये जाते हैं। सभी कमरों में बिछाये गये कश्मीरी ग़ालीचें, कश्मीरी ऩक़्क़ाशीकाम किया गया फर्निचर और जगह जगह दिखायी देनेवाली कश्मीरी क़शिदाकारी हाऊसबोट की सुन्दरता को और भी बढ़ाते हैं। हाऊसबोट के कुछ हिस्से में उस हाऊसबोट के मालिक का आवास रहता है।

हाऊसबोट्स् हमेशा एक ही जगह खड़ी रहती हैं। इसलिए यहाँ तक आने के लिए अथवा यहाँ से दूसरी जगह जाने के लिए सबसे बढ़िया साधन है, ‘शिकारा’।

सड़कों पर से जितनी आसानी से बाइसिकल, स्कूटर इनजैसे वाहन चलते हैं, उतनी ही सहजता से दल के जल पर से इन शिकारों की आवाजाही होती रहती है।

‘शिकारा’ यह छोटे आकार की लकड़ी से बनी बोट होती है, जिसके बीच का हिस्सा छत से आच्छादित रहता है। इस शिकारे का आकार ऐसा होता है, जिससे कि उसे एक जगह से दूसरी जगह तक, किसी कोने तक आसानी से ले जाया जा सकता है। इन शिकारों में से केवल सैलानियों अथवा हाऊसबोट्स् में हमेशा के लिए रहनेवाले लोगों की ही आवाजाही नहीं होती; बल्कि इनमें से फल-फूल तथा अन्य जीवनावश्यक सामग्री का भी वहन किया जाता है। दल पर आनेजानेवाले ऐसे कई शिकारें इकट्ठा हो जाते हैं और फिर वहाँ का बाज़ार शुरू हो जाता है। यह बड़ा अनोखा नज़ारा होता है।

हाऊसबोट्स् कभी स्वतंत्र रूप में रहती हैं, तो कभी कभी ३-४ हाऊसबोट्स् एकसाथ रहती हैं और वे आपस में छोटे छोटे पुलों द्वारा जुड़ी हुई रहती हैं।

दल की एक और ख़ासियत है, ‘फ्लोटिंग गार्डन्स्’। लताएँ, वनस्पतियों के जाल और ज़मीन इनसे ये फ्लोटिंग गार्डन्स बनते हैं। दल के जल की मिट्टी और अन्य वनस्पतियों से इस तरह के भूभागों का निर्माण होता है, जिन्हें ‘फ्लोटिंग गार्डन्स्’ कहा जाता है। इन फ्लोटिंग गार्डन्स् को फिर झील में उचित स्थान पर ले जाया जाता है। कश्मीरी भाषा में इन फ्लोटिंग गार्डन्स को ‘राद’ कहते हैं। इनका निर्माण झील की मिट्टी और वनस्पतियों द्वारा होने के कारण ये बड़े उपजाऊ होते हैं। इन फ्लोटिंग गार्डन्स में खरबूज़ा, टमाटर, ककड़ी (खीरा) इनजैसी फसल उगायी जाती है।

दल के जल में कई तरह के जीव पाये जाते हैं। इनमें विभिन्न प्रकार की मछलियों से लेकर कई जलचरों का समावेश होता है।

जल की विपुल उपलब्धी होने के कारण यहाँ पर वनस्पतियों की भी कई प्रजातियाँ पायी जाती हैं। जललताओं से लेकर कई प्रकार के फूलों तक की वानस्पतिक विविधता यहाँ पर दिखायी देती है।

दल के रंग, रूप और सुन्दरता का परिचय करने के साथ साथ हमें दल से जुड़े एक पहलू पर भी ग़ौर करना चाहिए।

दल के तल में मौजूद जलस्त्रोतों द्वारा उसे पानी की आपूर्ति होती रहती है, लेकिन इस झील में विद्यमान कई बातों के कारण यहाँ पर कुछ समस्याएँ भी उत्पन्न हुई हैं। दल के पानी में रहनेवाली कई वनस्पतियाँ, इस पानी में निरंतर होनेवाला मनुष्यों का वास्तव्य, इस्तेमाल किये गये पानी का इसी सरोवर में किया जानेवाला उत्सर्ग और हर रोज़ निर्माण होनेवाला कूड़ा-करकट, इनजैसी कई बातों के कारण प्रदूषण की प्रमुख समस्या का सामना इस झील को करना पड़ रहा है। दल में जमा होनेवाला तलछट यह भी यहाँ की एक प्रमुख समस्या है। इन समस्याओं का समाधान खोज कर उन उपायों पर अमल किया जा रहा है और दल की सुंदरता को क़ायम रखने की कोशिशें भी की जा रही हैं। कुदरत तो मानो दल पर मेहरबान ही है। क्योंकि आज भी दल हज़ारों की तादाद में कमल खिलते हैं। दल के पानी में खिले हुए इन कमलों को जब हवा छेड़ती है, तब उस नज़ारे को देखनेवाला कुछ पलों के लिए ही सही, मग़र एक अलग ही दुनिया में खो जाता है।

अब फूलों की बात चली ही है, तो ऐसे ही एक खूबसूरत नज़ारे को देखने के लिए, आइए दल से थोड़ा सा दूर चलते हैं।

देखते ही आँखों को सुकून देनेवाले अनगिनत रंगों के ‘ट्युलिप’ के फूल खिलते हैं, इसी श्रीनगर में। ‘ट्युलिप्स’ कहते ही सिलसिला फिल्म का वह मशहूर गाना आपको याद आ ही गया होगा।

दूर दूर तक फैले हुए अनगिनत रंग, यही ट्युलिप्स के बाग़ानों की पहचान है। हॉलंड यह मूल स्थान रहनेवाले इन ट्युलिप्स की पिछले २-३ सालों से श्रीनगर में पैदावार की जा रही है और इसके लिए एक विशेष उद्यान का निर्माण भी किया गया है।

घुटने तक की ऊँचाईवाले, तीन पँखुड़ियों वाले और अनगिनत रंगों के ये ट्युलिप के फूल! इन फूलों के खिलने का मौसम महज़ कुछ दिनों तक का ही होता है। श्रीनगर के इस उद्यान में ६०-७० प्रजातियों के ट्युलिप्स लाखों की तादाद में खिलते हैं। इन फूलों के खिलने बाद का नज़ारा ऐसा होता है की मानो कुदरत में मौजूद हर रंग ज़मीन पर उतर आया हो। इन फूलों का खिलना जितना आँखों को सुकून देता है, उतना ही मन को भी छू लेता है। इसीलिए और कुछ भी कहने के बजाय स़िर्फ इतना ही कहा जाये तो वह वाजिब होगा कि इन फूलों का खिलना यह दिल से महसूस करने की बात है।

इन ट्युलिप्स को देखने के लिए हम दल से कुछ दूर चले आये हैं। अब कुछ ही देर में सूरज बस डूबने ही वाला है; तो क्यों न फिर हाऊसबोट की तरफ़ रूख किया जाये!

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