श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग- ६७

रोहिले की कथा से बोध लेकर हमें कैसा आचरन करना चाहिए, इस बात पर गौर करते समय हमने सर्वप्रथम रोहिले की क्रिया का अर्थात शिरडी में आनेवाली क्रिया से संबंधित अध्ययन किया। उत्कटतारूपी प्रथम कदम श्रीसाईनाथ की, शिरडी में अर्थात भगवान की भक्ति में हमें रखना चाहिए यह हमने देखा।

शिरडी में आया एक रोहिला। वह भी बाबा के गुणों से मोहित हो उठा।
वही पर वह काफी दिनों तक रहा। प्यार लुटाया बाबा पर॥
(शिरडीसी आला एक रोहिला। तोही बाबांचे गुणांसी मोहिला। तेथेंचि बहुत दिन राहिला। प्रेमें वाहिला बाबांसी॥)

१) रोहिले का शिरडी में प्रवेश
२) बाबा के गुणों से मोहित होना
३) द्वारकामाई में कई दिनों तक रहना
४) बाबा के प्रेमवश स्वयं को बाबा के चरणों में अर्पण कर देना

इन चारों क्रियाओं में से प्रथम क्रिया अर्थात बाबा से मिलने की उत्कटता से शिरडी में आना। हमें भी बाबा से मिलने की उत्कटता रखकर ही शिरडी में आना चाहिए। केवल प्रथम मुलाकात में ही नहीं बल्कि हर एक मुलाकात में ही यह उत्कटता बढ़ती रहनी चाहिए। शिरडी में आया, बाबा का दर्शन लिया, घर वापस लौट आया और ङ्गिर बाबा की याद कभी आयी ही नहीं, ऐसा मनुष्य मिलना मुश्किल है (असा मनुष्य विरळाच)। और यदि कोई होता भी है तो उससे बड़ा बदकिस्मत और कौन हो सकता है। साईनाथ से प्रत्यक्ष मुलाकात करने पर भी जिसके मन में प्रेम के बीज अंकुरित न हुए हो ऐसे मनुष्य का उद्धार भला कौन कर सकता है? इसके साथ ही यदि कोई साईनाथ की शरण में आ गया पर बाबा की भक्ति करने के बजाय अन्य गलत बातों में समय व्यर्थ करता है तो शिरडी में आकर भी क्या लाभ? परन्तु जो सच्चा भक्त है वह शिरडी में एक बार यदि आ गया कि बारंबार वह आता ही रहता है और हर बार वह अधिकाधिक उत्कटता से प्रेम का अनुभव लेते रहता है, श्रीसाईनाथ पर प्रेम करता ही रहता है। साथ ही वह साईनाथ के बच्चों की सेवा भी करता रहता है। शिरडी में आनेवाले लोगों में हर प्रकार के लोग होते हैं, परन्तु मैं शिरडी मैं किस उद्देश्य से आया हूँ इस बात का ध्यान तो रखना ही चाहिए।

दूसरी क्रिया यही बात स्पष्ट करके हमें बताती है।

२) वह भी बाबा के गुणों से मोहित हो उठा।

रोहिला शिरडी में आया तो केवल श्रीसाईनाथ के गुणों से मोहित होकर ही। इस साईनाथ के प्रेम,दया, करुणा, बिनालाभ प्रीति, शांति, अचिंत्यदान देनेवाले, क्षमा एवं क्षेमकर्ता इस प्रकार के अनेक उत्तमोत्तम गुणों से मोहित होकर ही यह रोहिला शिरडी में आया। ‘बाबा के गुणों से मोहित होना’ यह भक्ति की सर्वश्रेष्ठ स्थिति रोहिले में हमें दिखायी देती है।

साईबाबा, श्रीसाईसच्चरित, सद्गुरु, साईनाथ, हेमाडपंत, शिर्डी, द्वारकामाईशिरडी में आने का उसका प्रयोजन सुस्पष्टरूप में इस पंक्ति के माध्यम से प्रकट होता है। बाबा के गुणों से मोहित होकर बाबा का गुणसंकीर्तन करते-करते उन सद्गुणोम के बीज स्वयं ही अंकुरित एवं विकसित करके स्वयं का समग्र जीवनविकास साध्य करने के उद्देश्य से ही, स्वाभाविक है इसी शुद्धहेतु से ही वह शिरडी में आया था।

श्रीसाईसच्चरित में अनेक भक्तों की कथा हम पढ़ते हैं और इसी के आधार पर हमें पता चलता है कि शिरडी में आने का किस का क्या प्रयोजन था। सबसे अधिक प्रमाण है, उन सकाम भक्तों का, कोई तकलीफ है, कुछ संकट है, किसी चीज की जरूरत है। इसीलिए बाबा के पास आनेवाले अनेकों भक्त हैं। सच में देखा जाए तो इस तरह आनेवाले भक्त अच्छे ही थे। ‘परंतु एक बार यदि काम हो गया कि कौन साईबाबा’ ऐसी वृत्ति रखनेवाले मात्र अत्यन्त अनुचित व्यवहार करते हैं। हम किसी मुसीबत में फँस जाते हैं अथवा हमें कुछ माँगना है तो हम बाबा के पास दौड पड़ते हैं। इसमें अनुचित कुछ भी नहीं। परन्तु एक बार बाबा हमेम मिल जाते हैं तो हमें उनके चरणमात्र कभी भी नहीं छोड़ना चाहिए। किसी अन्य के पास जाकर हाथ फैलाने की बजाय श्रीसाईनाथ की शरण लेना ही अधिक उचित है क्योंकि मेरे लिए क्या उचित है, क्या अनुचित है यह बात केवल साईनाथ ही जानते हैं। इसीलिए सकाम भक्ति से भी यदि हम आरंभ करते हैं कोई बात नहीं। आगे भी जब-जब ज़रूरत होगी बाबा के पास माँगने में कोई बात नहीं। आगे चलकर हमें कभी भी बाबा को भूलाना नहीं है। बाबा के अलावा मुझे और कुछ भी नहीं चाहिए। यही हमारी दृढ़ इच्छा होनी चाहिए।

इसीतरह शिरडी में आनेवाले कुछ लोग अन्य उद्देश्य एवं अन्य कारणों से भी आते हैं। यह भी हम साईसच्चरित में पढ़ते हैं। बाबा पैसे बाँटते हैं, इसीलिए पैसे के लोभ में आनेवाले जैसे कुछ लोग हैं वैसे ही बाबा दक्षिणा क्यों माँगते हैं, यह प्रश्‍न मन में रखकर आनेवाले भी कुछ लोग हैं, कुछ लोग जिज्ञासा के कारण आते हैं तो कुछ लोग बाबा की परीक्षा लेने का विचार मन में रखकर भी आते हैं। बाबा ने द्वारकामाई में निशानी लगा रखी है यह देख, बाबा के भक्त बाबा की आरती करते हैं। यह देखकर, बाबा की चावडी की यात्रा देखकर बाबा के प्रति विकल्प रखनेवाले भी कुछ लोग हैं वहीं मन ही मन में बाबा की निंदा करनेवाले कुछ लोग भी थे। किसी साईभक्त से बाबा के बारे में कुछ जानकारी मिलने पर भी यह कहकर कि ‘चलो एक बार चलकर देखते हैं कि क्या है वहाँ पर’ यह भावना रखकर आनेवाले भी कुछ लोग हैं। अनेक हेतु एवं अनेक कारण मन में रखकर आनेवाले अनेक लोगों को हम देखते हैं। और आनेवाले अनेकों में कोई न कोई आधी-व्याधि, बाधाएँ आदि को दूर करने की इच्छा लेकर आनेवालों का काफ़ी बड़ा वर्ग है। वैसे ही एक और भी बड़ा वर्ग है जो बाबा के चमत्कार के प्रति सुनकर आते हैं।

बाबा बिलकुल संकरी फल्ली पर कैसे चढ़ते हैं, कैसे उस पर से उतरते हैं यह देखने के लिए लोग घंटो भीड़-भाड़ किए रहते हैं। काका महाजनी के सेठ ठक्कर धरमसी जेठाभाई आते ही जब द्वारकामाई में जाते हैं, उस वक्त बाबासाहेब तर्खड को स्पष्टरूप में वे पुछते हैं कि ‘यहाँ पर चमत्कार होते हैं ऐसा मैंने सुना हैं’ इस पर तर्खड कहते हैं कि ‘मैं तो केवल बाबा के दर्शन हेतु ही यहाँ आता हूँ। जिसके मन में जैसी उत्कंठा होती है, वैसा ही अनुभव वे पाते हैं।’ ‘चमत्कार को नमस्कार’ ऐसी मानसिक वृत्तिवाले अनेकों लोग शिरडी में आते हैं।

परन्तु हम मात्र आरंभ में भले ही सकाम भक्ति से अथवा चमत्कार के आकर्षण से श्रीसाईनाथ के पास आये हो फिर एक बार बाबा से मिल लेने पर सब कुछ छोड़कर बाबा की भक्ति एवं उनका गुणसंकीर्तन करते रहना चाहिए।

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