समय की करवट (भाग ६६) – सुएझ : परदे के पीछे की गतिविधियाँ

‘समय की करवट’ बदलने पर क्या स्थित्यंतर होते हैं, इसका अध्ययन करते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं।

इसमें फिलहाल हम, १९९० के दशक के, पूर्व एवं पश्चिम जर्मनियों के एकत्रीकरण के बाद, बुज़ुर्ग अमरिकी राजनयिक हेन्री किसिंजर ने जो यह निम्नलिखित वक्तव्य किया था, उसके आधार पर दुनिया की गतिविधियों का अध्ययन कर रहे हैं।
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‘यह दोनों जर्मनियों का पुनः एक हो जाना, यह युरोपीय महासंघ के माध्यम से युरोप एक होने से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है। सोव्हिएत युनियन के टुकड़े होना यह जर्मनी के एकत्रीकरण से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है; वहीं, भारत तथा चीन का, महासत्ता बनने की दिशा में मार्गक्रमण यह सोव्हिएत युनियन के टुकड़ें होने से भी अधिक महत्त्वपूर्ण है।’
– हेन्री किसिंजर
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इसमें फिलहाल हम पूर्व एवं पश्चिम ऐसी दोनों जर्मनियों के विभाजन का तथा एकत्रीकरण का अध्ययन कर रहे हैं।

यह अध्ययन करते करते ही सोव्हिएत युनियन के विघटन का अध्ययन भी शुरू हो चुका है। क्योंकि सोव्हिएत युनियन के विघटन की प्रक्रिया में ही जर्मनी के एकीकरण के बीज छिपे हुए हैं, अतः उन दोनों का अलग से अध्ययन नहीं किया जा सकता।

सोविएत युनियन का उदयास्त-२६

नासर यक़ीनन ही जानता था कि सुएझ नहर के राष्ट्रीयीकरण द्वारा वह दुनिया के ग़ुस्से का केन्द्र बनेगा। लेकिन उसने सारासार विचार करके ही यह कदम उठाया था। सुएझ नहर की मालिकियत होनेवाले सभी स्टेकहोल्डर्स को वह उसके बदले मुआवजा देनेवाला होने के कारण, क़ानूनन उसमें ख़ामियाँ निकालने के लिए जगह ही नहीं थी। लेकिन इस नहर में सारी दुनिया के ही इन्टरेस्ट्स उलझे होने के कारण सारी दुनिया ही इस घटना में कुछ न कुछ नुक्स ज़रूर निकालेगी, यह नासर जानता था और उस दृष्टि से वह पहले से ही तैयारी कर रहा था।

लेकिन यदि संघर्ष अटल हुआ, तो अपनी सेना उसकी हाल की क्षमता के अनुसार कहाँ तक उसका सामना कर सकेगी, उस बारे में नासर शंकित था; क्योंकि युद्ध का किसी भी प्रकार का पूर्व-अनुभव न होनेवाली अपनी सेना की दुर्बलता का उसे पता था ही। इसी कारण उसने, सुएझ मसला निर्माण होने से पहले ही सर्वप्रथम सेना का आधुनिकीकरण करने की दृष्टि से ब्रिटन और अमरीका के पास अत्याधुनिक हथियारों की माँग की थी। लेकिन उनसे यह सहायता मिलना नामुमक़िन है, यह जान जाते ही नासर ने सोव्हिएत रशिया की ओर अपना रूख किया था।

सोव्हिएत ने भी नासर की इस माँग की ओर ‘कम्युनिझमविस्तार का स्वर्णिम अवसर’ इस दृष्टि से देखकर नासर को तुरन्त ही आधुनिक हथियार दे दिये थे।

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इस्रायली जहाज़ों को सुएझ नहर का इस्तेमाल करने पर पाबंदी लगायी जाने के कारण ग़ुस्सा हुए इस्रायल ने २९ अक्तूबर १९५६ को इजिप्त पर हमला किया।

इजिप्त द्वारा सोव्हिएत से की हुई सैंकड़ों की संख्या में टँक्स, तोपें, लड़ा़कू विमान, पनडुब्बियाँ ऐसी प्रचंड ख़रीदारी इस्रायल की आँखों में चुभ रही थी। अपना दुश्मन होनेवाला पड़ोसी दिनबदिन ताकतवर होते रहते इस्रायल शान्त कैसे बैठ सकता था? उसीमें इस्रायल को यह ‘ख़बर’ मिली थी कि जॉर्डन और सिरिया के साथ भी इजिप्त की सहयोग की गोपनीय चर्चा शुरू है। इस कारण इजिप्त को मात देने का मौका इस्रायल ढूँढ़ ही रहा था। वह उसे, ब्रिटन और फ्रान्स के साथ के त्रिपक्षीय गोपनीय समझौते द्वारा मिला। अमरीका के धाक के कारण इजिप्त के साथ ठेंठ सशस्त्र संघर्ष करने की हिम्मत न होनेवाले ब्रिटन ने इस्रायल को आगे किया। इस्रायली जहाज़ों को सुएझ नहर के साथ साथ तिरान जलडमरूमध्य (‘स्ट्रेट ऑफ तिरान’) और आकाब की खाड़ी (‘गल्फ ऑफ आकाब’) का इस्तेमाल करने पर पाबंदी लगायी जाने के कारण ग़ुस्सा हुए इस्रायल ने २९ अक्तूबर १९५६ को इजिप्त के सिनाई प्रान्त पर और गाज़ापट्टी पर कब्ज़ा कर लिया। उसके दो ही दिन बाद ब्रिटन और फ्रान्स के लड़ा़कू विमानों ने नहर के नज़दीक के इजिप्त के लड़ा़कू रनवेज़ पर तूफ़ानी बमबारी कर उन्हें तहसनहस कर दिया।

यह देखकर, नासर का पहले से ही सहकर्मी होनेवाले उसके सेनापति आमेर ने डरकर उसे सुलह करने की सलाह दी। उसे नासर ने ठुकरा दिया और पूरी सेना की बागड़ोर अपने हाथ में ले ली।

उसके बाद, अपनी सेना की उस समय की ताकत के बलबूते पर इस आक्रमण को रोकना नामुमक़िन है, यह जानकर नासर ने सौदी अरेबिया और सुदान के साथ चर्चा कर, अपने विमानों को बचाने के लिए उनके देशों में लँड करने की अनुमति प्राप्त कर ली और उसीके साथ इस संघर्ष में जॉर्डन और सिरिया से, इजिप्त के साथ रहने का अनुरोध किया और वह बड़े संघर्ष की तैयारी करने लगा।

इस समस्या का हल निकालने के लिए जागतिक स्तर पर परदे के पीछे की गतिविधियों ने बड़ी ही तेज़ रफ़्तार पकड़ ली थी।

पहले ही हंगेरी में क्रान्ति का माहौल भड़क गया था, उसमें सभी आंतर्राष्ट्रीय संकेतों को पैरों तले कुचलकर उन तीन देशों ने इजिप्त पर यह जो एकतरफ़ा सशस्त्र कार्रवाई करके इस क्षेत्र में जो नये मसले पैदा किये थे, उससे ख़ौल उठी अमरीका ने परदे के पीछे की गतिविधियाँ और तेज़ कर इस मसले को आंतर्राष्ट्रीय रूप देने की कोशिशें शुरू कीं। संयुक्त राष्ट्रसंघ में अमरीका ने यह प्रश्‍न उपस्थित किया और ‘जब तक विदेशी जहाज़ों को सुएझ नहर का सर्वकालिक इस्तेमाल करने की अनुमति अबाधित है, तब तक इजिप्त को सुएझ नहर का राष्ट्रीयीकरण करने का अधिकार है, ऐसा प्रस्ताव पारित करा लिया।

उसीके साथ इस मसले का शान्ति के मार्ग से राजनीतिक हल निकालने का, इन देशों ने घुसायी हुई सेना को वापस बुलाने का, सन १९४९ के समझौते की रेखा तक इस्रायली सेना को पीछे लेने का और संयुक्त राष्ट्रसंघ की आंतर्राष्ट्रीय आपत्कालीन सेना सिनाई प्रान्त में तैनात करने का प्रस्ताव भी युनो की सुरक्षापरिषद ने पारित कर दिया।

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इस सुएज़ क्रायसिस का फ़ायदा नासर को ही हुआ। इजिप्शियन जनता का हीरो होने के साथ ही, अब अरब जगत् में भी नासर की लोकप्रियता और उसका स्थान बुलंदी पर पहुँच गया।

जागतिक स्तर पर हम अकेले पड़ते जा रहे हैं, यह ध्यान में लेते हुए ब्रिटन और फ्रान्स ने दो ही महीनों में यानी दिसम्बर के अन्त तक अपनी घुसायी हुई सेना को पीछे ले लिया। युनो के प्रस्ताव के बाद इस्रायल ने भी कुल मिलाकर माहौल देखते हुए ८ मार्च १९५७ तक अपनी सेना पीछे ले ली। उसके बाद महीने भर में ही सुएझ नहर पुनः जल परिवहन के लिए खुली कर दी गयी।

इस सारे घटनाक्रम से फ़ायदा नासर का ही हुआ। इजिप्शियन जनता का तो वह हीरो था ही; अब ब्रिटन, फ्रान्स और इस्रायल के इस असफल आक्रमण के कारण और नासर का त़ख्ता पलटने में उन्हें मिली नाक़ामयाबी के कारण अरब जगत् में नासर की लोकप्रियता और उसका स्थान बुलंदी पर पहुँच गया। इजिप्त में भी बतौर राष्ट्राध्यक्ष उसका स्थान बहुत ही मज़बूत हुआ।

इस प्रकार ‘कोल्ड वॉर’ का यह सुएझ क्रायसिस सुलझ तो गया, लेकिन भविष्यकालीन कुछ घटनाओं के बीज इसी कालखंड़ में बोये गये। नासर ने अपनी इस नयी लोकप्रियता का और अरब जगत् में उसे प्राप्त हुए सर्वोच्च स्थान का इस्तेमाल कर अरब राष्ट्रों को एकसाथ लाने के प्रयास शुरू किये। सबसे अहम बात, उसने प्रमुख तेलउत्पादक होनेवाले अरब देशों को, उनके द्वारा पश्‍चिमी राष्ट्रों को की जानेवाली तेल की सप्लाई में कटौती करने की सलाह दी और वैसी मुहिम ही चलायी। उसके प्रतिसादस्वरूप कई तेलउत्पादक अरब देशों ने पश्‍चिमी राष्ट्रों के लिए पेट्रोल के ‘रेशनिंग’ की पद्धति शुरू की।

इस कारण पश्‍चिमी देशों को नासर और उसका अरब जगत् पर होनेवाला प्रभाव आँखों में चुभने लगा। जनवरी १९५७ में अमरीका की आयसेनहॉवर सरकार ने, ये मध्यपूर्व के देश कम्युनिस्टों के प्रभाव में न जायें इसलिए बतौर उपाययोजना एक नयी कार्यप्रणाली का स्वीकार किया, जो ‘आयसेनहॉवर डॉक्ट्रिन’ के रूप में विख्यात हुई।

इजिप्त में हालाँकि कम्युनिस्ट शासनप्रणाली नहीं थी, लेकिन नासर का अरबी जगत् में बढ़ता प्रभाव अब सभी को चुभने लगा था। इस कारण उसका भी ‘विचार’ इस कार्यप्रणाली में किया गया। उसके दोस्तराष्ट्रों पर यानी सौदी अरेबिया, जॉर्डन, सिरिया आदि देशों पर होनेवाले उसके प्रभाव को कैसे कम कर सकते हैं, इस दृष्टि से कोशिशें की जाने लगीं।

इस प्रकार मध्यपूर्वी क्षेत्र का यह क्रायसिस फिलहाल सुलझने जैसा प्रतीत हुआ, लेकिन दुनिया के अन्य भागों में ‘कोल्ड वॉर’ के नये नये बीजों का अंकुरण हो ही रहा था!

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