परमहंस – ५०

भैरवी के मार्गदर्शन में रामकृष्णजी का अगला आध्यात्मिक प्रवास शुरू हुआ। रामकृष्णजी के रूप में ईश्‍वर ही अवतरित हुए हैं, इस भैरवी की धारणा को अधिक से अधिक मज़बूत बनानेवालीं कई बातें रामकृष्णजी के सन्दर्भ में घटित हो रही थीं। एक बार बातें करते करते रामकृष्णजी ने उसे कहा कि ‘एक बार उन्हें सपना आया। सपने में उन्होंने देखा कि अपने देह में से दो बच्चें बाहर निकल रहे हैं।’ सारी बात सुनकर भैरवी ने – रामकृष्णजी को दिखायी दिये वे दो बच्चें यानी श्रेष्ठ वैष्णवसंत गौरांग चैतन्य महाप्रभु और उनका परमसखा नित्यानंद (निताई) थे, यह निष्कर्ष ज़ाहिर किया।

तब तक रामकृष्णजी ने अपनीं साधनाओं में किसी भी प्रकार की शास्त्रशुद्ध विधि, कर्मकांड आदि का पालन नहीं किया था। केवल ‘ईश्‍वरदर्शन की तीव्र इच्छा’ यही उनकी सारी साधनाओं के पीछे रहनेवाला प्रेरणास्रोत था। लेकिन अब भैरवी ने उनकी इन्हीं साधनाओं को शास्त्रशुद्ध पद्धतियों के संपुट में बिठाया। अचरज की बात यह थी कि उसके बाद रामकृष्णजी को, पहले साधना करते समय जो शारीरिक पीड़ा (बदन का दाह, सीने में जलन आदि) होती थी, वह लगभग बन्द ही हो गयी।

इसी प्रकार, समय समय पर रामकृष्णजी को विभिन्न उपासनाएँ करते समय जो शारीरिक पीड़ाएँ हुई, उनका हल भैरवी शास्त्राधार को ढूँढ़कर या फिर तत्सम किसी साधक के पूर्वानुभव पर आधारित साहित्य में से ढूँढ़कर बताती थी।

आध्यात्मिक प्रवास

मथुरबाबू इन सारीं गतिविधियों पर ज़रासी साशंकतापूर्वक ही नज़र रखे हुए थे। भैरवी के साथ उनकी कई बार चर्चाएँ भी होती थीं। चर्चा का विषय प्रायः ‘रामकृष्ण’ यही रहता था। इस गूढ़ प्रतीत होनेवाली स्त्री के प्रति वहाँ के सभी को ही उत्सुकता थी। लेकिन मथुरबाबू के मन में सर्वोच्च आदर की भावना रहनेवाले रामकृष्णजी को भी मार्गदर्शन कर सकनेवाली यह स्त्री आख़िर है कौन, इस बारे में मथुरबाबू के मन में थोड़ासा सन्देह ही था। अहम बात यह थी कि रामकृष्णजी के प्रति उनके मन में हालाँकि अत्युच्च आदर की भावना थी, लेकिन रामकृष्णजी को ‘भगवान’ वगैरा मानने के लिए अभी तक उनका मन तैयार नहीं था। अतः यह स्त्री रामकृष्णजी को ‘ईश्‍वरीय अवतार’ मानती है, यह सुनकर उन्हें बहुत बड़ा धक्का लगा था।

वह हुआ यूँ – एक बार वे और हृदय रामकृष्णजी के साथ गपशप करते बैठे थे, तब – ‘दक्षिणेश्‍वर कालीमंदिर में पधारी हुई साधिका स्त्री भैरवी मुझे ईश्‍वरीय अवतार मानती है’ ऐसा रामकृष्णजी ने मज़ाकिया अन्दाज़ में मथुरबाबू से कहा। मथुरबाबू को धक्का ही लगा था – ‘ऐसा कैसे हो सकता है? आप कालीमाता के कृपाप्राप्त हैं, इसमें तो कोई दोराय नहीं है। लेकिन ईश्‍वरीय अवतार….? शास्त्रों-पुराणों में तो महाविष्णु के केवल दस अवतारों का ही उल्लेख है’ ऐसा उन्होंने असमंजसता में पड़कर पूछा।

उनकी ये बातें चल रही थीं कि उतने में भैरवी का ही वहाँ पर आगमन हो गया। वह रामकृष्णजी के लिए कोई मिष्टान बनाकर ले आयी थी।

रामकृष्णजी ने फिर उसे ही, थोड़ी देर पहले मथुरबाबू से कही बात का स्पष्टीकरण पूछा। मथुरबाबू ने उनके मन में पैदा हुआ सन्देह भी उसे बताया। उसपर भैरवी ने शान्तिपूर्वक उनका आक्षेप (ऑब्ज़ेक्शन), शास्त्रार्थों का एवं सन्दर्भों का आधार लेते हुए ख़ारिज़ करके, अपना मत ग्राह्य होने का दावा किया। ‘विभिन्न आध्यात्मिक ग्रंथों में उल्लेख किये गये, ईश्‍वरीय अवतार के लक्षणों में से कई लक्षण मुझे रामकृष्णजी में दिखायी दिये’ ऐसा स्पष्ट प्रतिपादन भैरवी ने किया। इतना ही नहीं, बल्कि ‘कोई शास्त्रार्थों का गहरा व्यासंग होनेवाला प्रकांडपंडित ही इसका निर्णय कर सकता है? और मैं किसी भी शास्त्रीपंडित के सामने मेरा दावा प्रस्तुत करने के लिए तैयार हूँ’ ऐसा उसने दृढ़तापूर्वक कहा।

भैरवी के इस दृढ़तापूर्वक किये दावे से मथुरबाबू के मन में तू़फान उठा था। रामकृष्णजी में कुछ ईश्‍वरीय शक्तियाँ होने का अनुभव उन्होंने स्वयं भी कई बार किया था और इसी कारण उनके मन में रामकृष्णजी के प्रति श्रद्धा उत्पन्न हुई थी, मग़र फिर भी रामकृष्णजी को ठेंठ ईश्‍वरीय अवतार मानने के लिए उनका साशंकित मन तैयार नहीं हो रहा था।
भैरवी द्वारा किये गये इस दावे की ख़बर पलभर में ही दक्षिणेश्‍वर में फैल गयी और लोग तो चकरा ही गये – ‘कल तक जिसे हम पागल क़रार दे रहे थे, वह ईश्‍वरीय अवतार….? ऐसा थोड़े ही होता है! यह कैसे संभव है?’

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