हरीश चंद्रा (१९२३-१९८३)

हरीश चंद्रा (१९२३-१९८३)

समय, कर्म और गति इनका हिसाब-किताब सभी के लिए अनिवार्य है। अनेकों के लिए क्लिष्ट, सिरदर्द लगनेवाला गणित का यह विषय। मातंग मुननि, बौद्धायन, कात्यायन, पाणिनि, आर्यभट, याज्ञवल्क्य, भास्कराचार्य, ब्रह्मगुप्त, वराहमिहिर, रामानुजन, ए. कृष्णास्वामी अय्यर, सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर, सत्येन्द्रनाथ बोस, श्रीराम अभ्यंकर, जयंत नारलीकर ……. इस तरह यह प्राचीन अथवा वैदिक काल से चली आ रही […]

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परमहंस-११५

परमहंस-११५

रामकृष्णजी की शिष्यों को सीख ईश्‍वरप्राप्ति के लिए श्रद्धावान को चाहिए कि वह शांत, दास्य, सख्य, वात्सल्य, मधुर आदि भावों से ईश्‍वर को देखना सीखें; इन भावों की उत्कटता को बढ़ाएँ। ‘शांत’ भाव – ईश्‍वरप्राप्ति के लिए तपस्या करनेवाले हमारे प्राचीन ऋषि ईश्‍वर के प्रति शांत, निष्काम भाव रखते थे। वे किसी भौतिक सुखोपभोगों के […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग- ५६

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग- ५६

‘मिल जायेगी उसे कोई भी नौकरी। करना है अब उसे मेरी चाकरी। इससे सांसारिक सुखों की प्राप्ती होगी॥ (‘मिळेल मेली तयासी नोकरी। करावी आतां माझी चाकरी। सुख संसारीं लाधेल॥ हेमाडपंत के नौकरी की इस कथा से एक बात मात्र सूर्यप्रकाश के समान ही स्वच्छ एवं स्पष्टरूप में दिखाई देती है कि बाबा का शब्द कभी […]

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परमहंस-१०४

परमहंस-१०४

रामकृष्णजी की शिष्यों को सीख एक बार रामकृष्णजी दोपहर के खाने के बाद, दक्षिणेश्‍वरस्थित अपने कमरे में इकट्ठा हुए भक्तगणों से बातें कर रहे थे। विषय था – ‘ईश्‍वरप्राप्ति’। उनसे मिलने विभिन्न स्तरों में से और पार्श्‍वभूमियों में से लोग चले आते थे। उस दिन बंगाल के सुविख्यात ‘बौल’ इस आध्यात्मिक लोकसंगीत के कुछ गायक-वादक […]

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परमहंस-१०१

परमहंस-१०१

रामकृष्णजी की शिष्यों को सीख एक बार ब्राह्मो समाज के एक साधक ने, ‘अपने षड्रिपुओं पर कैसे नियंत्रण पाया जाये’ ऐसा सवाल रामकृष्णजी से पूछा। उसपर रामकृष्णजी ने जवाब दिया – ‘षड्रिपुओं पर नियंत्रण पाने के प्रयास करने की अपेक्षा उन्हीं का ‘उपयोग’ किया जाये। षड्रिपुओं को उन ईश्‍वर की दिशा में मोड़ें। अर्थात ‘उन्हीं’ […]

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परमहंस-९८

परमहंस-९८

रामकृष्णजी की शिष्यों को सीख कोई माँ जिस तरह अपने बच्चों का हरसंभव खयाल रखती है, उनकी परवरिश की ज़िम्मेदारी प्यार से उठाती है, उन्हें लाड़-प्यार करने के साथ साथ उनमें अनुशासन भर देती है, उनकी रक्षा करती है; ठीक उसी तरह रामकृष्णजी अपने शिष्यों के साथ पेश आते थे। गुरु के पास आया हुआ […]

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तिरुचिरापल्ली भाग-४

तिरुचिरापल्ली भाग-४

‘श्रीरंगम्’ द्वीप पर ही बसने का तय कर चुके महाविष्णु यहाँ शेषशायी स्वरूप में विराजमान हुए और उसके बाद श्रीरंगनाथजी का मंदिर साकार हुआ और उसका विस्तार होता ही रहा। यहाँ के सात प्राकार (चहारदीवारी) और उनमें से सबसे भीतरी सातवें प्राकार में बसा यह श्रीरंगनाथजी का मंदिर, इन सब का निर्माण एक रात में […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग-४२

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ : भाग-४२

बाबा के शुद्ध यश का वर्णन। प्रेमपूर्वक उनका श्रवण। होगा इससे भक्त-कश्मल-दहन। सरल साधन परमार्थ का॥ ‘क्यों साईबाबा, क्यों किया आपने ऐसा मेरे साथ’ इस तरह के अविश्‍वास भरे उलटे सवाल साईबाबा से पूछते समय हमारी जीभ बिलकुल भी नहीं लड़खड़ाती। बाबा से अपनी इच्छापूर्ति की माँग करते समय हमारी जीभ बिलकुल सी भी नहीं […]

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तिरुचिरापल्ली भाग-३

तिरुचिरापल्ली भाग-३

‘रॉक फोर्ट’ के माथे पर से दूर दिखायी देनेवाले ‘श्रीरंगम्’ के गोपुर हमें बुला रहे हैं। आइए, तो चलते हैं ‘श्रीरंगम्’ और इस सफ़र में ही हम ‘श्रीरंगम्’ की जानकारी प्राप्त करेंगें। ‘श्रीरंगम्’ यह एक छोटा सा द्वीप है। आज के तिरुचिरापल्ली का वह एक हिस्सा बन गया है। त्रिचि शहर से यानि तिरुचिरापल्ली शहर […]

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श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ (भाग-४०)

श्रीसाईसच्चरित : अध्याय-३ (भाग-४०)

बाबा के शुद्ध यश का वर्णन। प्रेमपूर्वक उनका श्रवण। होगा इससे भक्त-कश्मल-दहन। सरल साधन परमार्थ का॥ हेमाडपंत की यह अप्रतिम पंक्ति हमें परमार्थ के आसान साधन का, सहज सुंदर मार्ग का उपदेश करती है। हर एक भक्त को जो कुछ भी चाहिए होता है, वही ये साईनाथ हमें यहाँ पर दे रहे रहे हैं। हमारे […]

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