हे गुरुवर

हे  गुरुवर

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ – भाग १३ संघकार्य के प्रति अपने आपको समर्पित करने का निर्णय माधव सदाशिव गोळवळकर ने लिया। इससे पूज्य डॉक्टरसाहब बहुत ही आनंदित हो गये। संघ को मिला हुआ यह ईश्‍वरीय वरदान है, ऐसा डॉक्टरसाहब को लग रहा था। अब भविष्य में संघ का कार्य और भी व्यापक होगा और संघ का […]

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काशी भाग-६

काशी  भाग-६

काशीविश्‍वनाथजी की यह नगरी ज्ञान का वैभव, इतिहास की परंपरा, घाटों की सुंदरता, गंगाजी का साथ और मुक्ति के वलय इन सब बातों से संपन्न है। इस नगरी में आज तक कई ज्ञानी पुरुषों, सन्त-महात्माओं, साहित्यकारों एवं कलाकारों का जन्म हुआ और उन्होंने अपने कर्तृत्व से इस नगरी की महिमा बढ़ाई। वहीं कई मशहूर हस्तियों […]

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काशी भाग- ४

काशी भाग- ४

काशी के अधिकतम चित्रों में गंगाकिनारे के घाट और उन घाटों पर रहनेवाली विशेषतापूर्ण छत्रियाँ दिखायी देती हैं। दरअसल वाराणसी-काशी में गंगाजी के तट पर घाटों का निर्माण किया गया, वह मनुष्यों की सहूलियत के लिए; क्योंकि काशी आनेवालें और काशी में बसनेवालें पवित्र गंगाजी में स्नान तो अवश्य करेंगे ही। १२वी सदी के गाहडवाल […]

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श्रीसाईसच्चरित अध्याय १ (भाग १७)

श्रीसाईसच्चरित अध्याय १ (भाग १७)

परमात्मा जब किसी भी कार्य का आरंभ करते हैं, तब यह स्वाभाविक है कि वह कार्य उन्होंने मनुष्य के लिए ही आरंभ किया होता है; परन्तु इस बात का पता चलने के लिए मनुष्य को समय लगता है | हमने इससे पहले ही यह देखा कि परमात्मा के कार्य का अवलोकन करने को मिलना यह […]

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त्वचा – रचना एवं कार्य भाग ५

त्वचा – रचना एवं कार्य भाग ५

त्वचा हमारे शरीर का एक अविभाज्य अंग है। शरीर की विभिन्न कोशिकासमूह, अवयव सभी पर एक समान आवरण देनेवाली होती है त्वचा। यह त्वचा हमारे शरीर को एक निश्चित आकार देती है| यह त्वचा हमारे शरीर को एक प्रकार की सुन्दरता प्रदान करती है। यह त्वचा हमें एक व्यक्तित्व प्रदान करती है। हमारी त्वचा ही […]

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देहरादून

देहरादून

सैन्य या कोई व्यक्ति यदि किसी एक ही स्थान पर लम्बे समय तक वास्तव्य करता है, तब ‘उसने डेरा जमा लिया है’ ऐसे हम कहते हैं। इसी ‘डेरा’ शब्द से ‘डेहराडून’ (देहरादून) यह शहर जाना जाता है। डेहराडून (देहरादून) इस शहर का नाम ही ‘डेरा (डेहरा)’ और ‘डून’ इन दो शब्दों से बना हुआ है। […]

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श्रीसाईसच्चरित अध्याय १ (भाग ७)

श्रीसाईसच्चरित अध्याय १ (भाग ७)

भक्ति के ऐसे अनेक लक्षण। एक से बढ़कर एक विलक्षण । हम सिर्फ गुरुकथानुस्मरण कर (का अनुसरण कर) । सुखे पैरों(कदमों/चरणों) ही भवसागर तर जायें॥(तर जाये भवसागर) (श्रीसाईसच्चरित १/१०१) ‘गुरुकथानुस्मरण’ यही है वह भक्ति की आसान पगदंडी, जो हेमाडपंत हमें दिखा रहे हैं। इस भवसागर को सूखे कदमों से तर जाने के लिए यही पगदंडी […]

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श्रीसाईसच्चरित अध्याय १ (भाग ६) – फलाशा का पूर्णविराम

श्रीसाईसच्चरित अध्याय १ (भाग ६) – फलाशा का पूर्णविराम

फलाशेचा पूर्ण विराम । काम्य त्यागाचें हेंची वर्म। करणे नित्य नैमित्तिक कर्म ।‘शुद्धस्वधर्म’ या नांव॥’ श्रीसाईसच्चरित (१/१००) (फलाशा का पूर्णविराम । काम्यत्याग का यही वर्म। करना नित्यनैमित्तिक कर्म ।‘शुद्ध स्वधर्म’ इसी नाम॥) फलाशा का पूर्ण विराम यही काम्यत्याग का वर्म है अर्थात कर्म का त्याग न करते हुए फलाशा नष्ट करके पूरी दक्षता के साथ […]

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निष्काम कर्मयोग

निष्काम कर्मयोग

फलाशेचा पूर्ण विराम । काम्य त्यागाचें हेंची वर्म। करणे नित्य नैमित्तिक कर्म ।‘शुद्धस्वधर्म’ या नांव॥’ – श्रीसाईसच्चरित (१/१००) (फलाशा का पूर्णविराम । काम्यत्याग का यही वर्म। करना नित्यनैमित्तिक कर्म ।‘शुद्ध स्वधर्म’ इसी नाम॥) फलाशा का पूर्ण विराम यही काम्यत्याग का वर्म है अर्थात कर्म का त्याग न करते हुए फलाशा नष्ट करके पूरी दक्षता के […]

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श्रीसाईसच्चरित – सद्गुरुवन्दना

श्रीसाईसच्चरित – सद्गुरुवन्दना

श्रीसाईसच्चरित के पिछले लेख में हमने देखा ‘ये साई ही गजानन गणपती’ ‘ये साई ही भगवती सरस्वती’ हैं यह कहकर (इसी प्रकार) (यही मानकर) मंगलाचरण में हर एक रूप के साईनाथ को ही हेमाडपंत वंदन करते हैं। ‘अनन्यता’ यह एक सच्चे भक्त का सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण गुणधर्म(विशेषता) का अनुभव हेमाडपंत के पास (प्रति) हम अनुभव […]

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