नैनीताल भाग -२

देवी सति के नैनों का कारण जिसका नाम नैनीताल हो गया, वह नैनी नाम का विशाल सरोवर नैनीताल में पहुँचते ही दिखायी देता है। नैनीताल इस हिल स्टेशन की आबादी इस ताल के आसपास ही बढ़ने लगी। अंग्रे़जों के जमाने में निर्माण की गयी वास्तुओं को आज भी हम यहाँ देख सकते हैं। इस सरोवर के दक्षिणी हिस्से को ‘तल्लीताल’ और उत्तरी हिस्से को ‘मल्लीताल’ कहा जाता है। नैनीताल में प्रवेश करनेवालों को साधारणतः मल्लीताल अथवा तल्लीताल इन स्थानों से ही इस विशाल सरोवर का प्रथम दर्शन होता है।

‘सरोवरों का जिला’

नैनीताल आने के लिए ‘काठगोदाम’ यह अन्तिम रेल्वे स्टेशन है और यहाँ से फ़ीर सड़क से यानि कि बस-टॅक्सी जैसे वाहन से नैनीताल आना पड़ता है।

नैनीताल इस हिल स्टेशन का मध्यवर्ती नैनी नामक सरोवर इतना बड़ा है कि उसमें बोटिंग की व्यवस्था की गयी है, जिससे कि आप इस सरोवर की विशालता का अनुमान कर सकते हैं।

नैनीताल को ‘सरोवरों का जिला’ इसलिए माना जाता है क्योंकि यहाँ पर, इतनी ऊँचाईवाले प्रदेश में बड़े बड़े सरोवर विद्यमान हैं। नैनीताल में नैनी इस ताल के साथ ही, आसपास के प्रदेश में ‘सात ताल’, ‘खुरपा ताल’, ‘नौकुचिया ताल’ तथा ‘भीम ताल’ ये सरोवर हैं।

‘सात ताल’ इस नाम के अनुसार ही यहाँ पर सात सरोवर हैं। सात सरोवरों के समूह में से हर एक सरोवर का अपना एक नाम है। गरुड ताल, नल-दमयंती ताल, पूर्ण ताल, सीता ताल, राम ताल, लक्ष्मण ताल तथा सुखा ताल या खुरदरिया ताल ये इन सात सरोवरों के नाम हैं। सात तालों के इस प्रदेश में विभिन्न प्रकार के प्राणि पाये जाते हैं।

‘खुरपा ताल’ यह नाम खुरपा इस घास काटने-छिलने के खेती के औ़जार के आकार का होने के कारण इस ताल को मिला है, वहीं ‘नौकुचिया’ यह नाम नौ कोनों का होने के कारण नौकुचिया ताल को मिला है।

जिन देवी सति के नैनों से यह गाँव बसा है, उन्हें भला यह गाँव कैसे भूल सकता है? उस महाशक्ति की यहाँ पर ‘नैना देवी’ के रूप में उपासना की जाती है। नैनी सरोवर के तट पर स्थित इस मन्दिर का निर्माण १५वी सदी में किया गया, ऐसा कहा जाता है। १९वी सदी के अन्त में इसका पुनर्निर्माण किया गया। यहाँ का मुख्य दैवत है नैना देवी, जो यहाँ पर दो आँखों (दो नैनों) के रूप में विराजमान हैं।

अंग्रे़जों के नैनीताल आने के कारण यहाँ पर अंग्रे़ज वास्तुशैली की इमारतों का निर्माण होने लगा। इनमें से एक उल्लेखनीय वास्तु है, ‘गव्हर्नर्स हाऊस’ या जिसे ‘राजभवन’ भी कहा जाता है। व्हिक्टोरियन गोथिक वास्तुशैली की इस वास्तु का निर्माण १९वीं सदी के अन्त में किया गया। नॉर्थ वेस्ट प्रोव्हिन्स के गव्हर्नर के गर्मीकालीन निवास के लिए इसका निर्माण किया गया था। आगे चलकर इसका उपयोग युनायटेड प्रोव्हिन्स के लेफ्टनंट गव्हर्नर द्वारा गर्मियों में किया जाने लगा। ‘राजभवन’ नाम से जानी जानेवाली यह वास्तु आज शासकीय बन चुकी है।

भारत में अंग्रे़ज जहाँ जहाँ गये, वहाँ लगभग हर गाँव/शहर में उन्होंने अंग्रे़जी माध्यम के स्कूलों की स्थापना तो की ही और इसके लिए नैनीताल भी अपवाद नहीं है। स्कूलों की स्थापना करने में अंग्रे़जों ने स्वयं के ही हित के बारे में ज्यादा सोचा था, यह बात हालाँकि सच है, मग़र फ़ीर भी उनकी इस कृति से भारतीय समाज आधुनिक शिक्षा के साथ परिचित हो गया, इस बात को भी ऩजरअन्दाज नहीं किया जा सकता।

अंग्रे़जों ने नैनीताल में ‘बोर्डिंग स्कूल्स’ की शुरुआत की। छात्र स्कूल के अहाते में होनेवाले निवासस्थानों में रहकर शिक्षा प्राप्त करते थे। इसी कारण बीच की कुछ कालावधि में भारत के अधिकांश हिल स्टेशन्स ‘बोर्डिंग स्कूल्स होनेवाले हिल स्टेशन्स’ इस रूप में मशहूर थे।
अंग्रे़जों के जमाने में स्थापित हो चुकी चार स्कूल्स आज भी नैनीताल में विद्यमान हैं।

‘शेरवूड कॉलेज’ इस नाम में यदि कॉलेज यह शब्द है, मग़र फ़ीर भी वह १८६९ में स्थापित किया गया बोर्डिंग स्कूल है। १८६९ में ही स्थापित किया गया ‘ऑल सेंट्स कॉलेज’, १८७८ में स्थापित किया गया ‘सेंट मेरीज् कॉन्व्हेंट हायस्कूल’ और १८८८ में स्थापित किया गया ‘सेंट जोसेफ़्स कॉलेज’ ये स्कूल्स अंग्रे़जों के समय से लेकर आज तक नैनीताल में विद्यमान हैं।

अंग्रे़जों के समय में और भारत के आ़जाद होने के बाद की बहुत बड़ी कालावधि तक अंग्रे़जों द्वारा स्थापित इन शिक्षासंस्थाओं को शिक्षा की दृष्टि से सर्वोच्च माना जाता था। यहाँ पर शिक्षा प्राप्त करना यह गर्व तथा गौरव की बात मानी जाती थी। अत एव भारत को आ़जादी मिलने से पहले और बाद में भी कईं भारतीयों ने इस तरह की शिक्षासंस्थाओं में शिक्षा प्राप्त की है और आज भी वे भारत के विभिन्न क्षेत्रों में प्रमुख या वरिष्ठ पद पर काम कर रहे हैं।

शिक्षा क्षेत्र का नैनीताल का इतिहास केवल अंग्रे़जों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि भारत को आ़जादी मिलने के बाद भी यहाँ पर कईं शिक्षा संस्थाओं की शुरुआत हुई और आगे चलकर १९७३ में ‘कुमाऊँ युनिव्हर्सिटी’ की स्थापना की गयी। कुमाऊँ युनिव्हर्सिटी का काम नैनीताल के साथ साथ ‘अल्मोरा’ से भी होता है।

कुमाऊँ का यह पहाड़ी इलाक़ा घने और दूर दूर तक फ़ैले हुए जंगलों से व्याप्त है, इसलिए यहाँ के प्रदेशों में कईं वन्य जानवरों का होना तो स्वाभाविक ही है। स्कूली पाठ्यपुस्तक में ‘मॅनइटर्स ऑफ़ कुमाऊँ’ नामक पाठ पढ़ा था। कुमाऊँ के पहाड़ी इला़के में केवल वन्य जानवर ही नहीं, बल्कि नरभक्षक ख़ूँख़ार जानवर भी थे। ‘जिम कॉर्बेट’ नामक शिकारी द्वारा लिखित ‘मॅनइटर्स ऑफ़ कुमाऊँ’ इसी पुस्तक का कुछ अंश स्कूली पाठ्यपुस्तक में उद्धृत किया गया था। जिम कॉर्बेट के लेखन से यह जानकारी मिलती है कि १९०७ से लेकर १९३८ तक की कालावधि में जिम कॉर्बेट ने कईं नरभक्षक बाघों और तेंदुओं का खात्मा कर दिया था।

जिम कॉर्बेट का जन्म १८७५ में नैनीताल में ही हुआ था। अंग्रे़ज पोस्टमास्टर के इस बेटे को बचपन से ही जंगल का का़फ़ी आकर्षण था। इसी कारण जिम कॉर्बेट आगे चलकर एक उत्तम शिकारी बन गये। अंग्रे़ज सरकार की नौकरी करनेवाले जिम कॉर्बेट के शिकारी होने का लाभ ह़जारों को हुआ और उनकी जानें बच गयीं। उस समय कुमाऊँ और आसपास के पहाड़ी इला़के में नरभक्षक बाघों ने लोगों का जीना हराम कर दिया था। मवेशियों के साथ साथ उन बाघों को इन्सान के खून का चसका भी लग चुका था। उस समय के दस्तावे़जों के अनुसार जिन नरभक्षक बाघों को जिम कॉर्बेट ने ढेर कर दिया था, उनमें से कुछ बाघों ने तो ४००-५०० लोगों को आराम से चट किया था।

इन दस्तावे़जों से यह भी पता चलता है कि जिम कॉर्बेट ने १९ नरभक्षक बाघों और १४ नरभक्षक तेंदुओं को मार गिराया था। जिम कॉर्बेट के इस काम के कारण भविष्य में कईं लोग इन नरभक्षकों का शिकार होने से बच गये, क्योंकि तब तक उन नरभक्षकों ने लगभग १५०० लोगों और कईं मवेशियों को मारकर खा लिया था।

जिम कॉर्बेट की ख़ासियत यह थी की उसने अपने शिकार करने के हुनर का उपयोग केवल इन्सानों और मवेशियों को मारनेवाले बाघों और तेंदुओं का शिकार करने के लिए ही किया। जिम कॉर्बेट ने अपने अनुभवों को विभिन्न पुस्तकों में लिखा है।

अनगिनत लोगों की बाघों से रक्षा करनेवाले इस शिकारी का नाम नैनीताल के पास ही के एक नॅशनल पार्क को दिया गया है।‘जिम कॉर्बेट नॅशनल पार्क’ यह नाम आपने सुना ही होगा।

१९३६ में स्थापित हो चुके इस नॅशनल पार्क का नाम उस समय ‘हेली नॅशनल पार्क’ था। आ़जादी के बाद उसका नाम ‘रामगंगा नॅशनल पार्क’ किया गया और अन्त में १९५५-५६ में जिम कॉर्बेट का नाम इसे दिया गया और वह ‘कॉर्बेट पार्क’ इस नाम से जाना जाने लगा।

समय के साथ साथ अधिक से अधिक क्षेत्र का समावेश इस नॅशनल पार्क में होता रहा और आज उसका विस्तार लगभग २०१ स्क्वेअर मील इतना है।

नॅशनल पार्क होने के कारण आप यहाँ पर केवल वन्य जीवों को ही देख सकते हैं, ऐसा मत सोचिए; वनस्पतियों की ४८८ प्रजातियाँ भी यहाँ पर पायी जाती हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि दूर दूर तक फ़ैले हुए इस पार्क में अलग अलग प्रदेशों की जमीन का समावेश होता है और इसी वजह से इतने विपुल प्रमाण में वनस्पतियों की प्रजातियाँ भी यहाँ पर पायी जाती हैं।

मग़र फ़ीर भी नॅशनल पार्क का मुख्य आकर्षण तो होता है, वहाँ के वन्य जीव। हिमालय के पहाड़ी इलाक़ों के वन्य जीवों के साथ साथ बाघ यह यहाँ का एक मुख्य आकर्षण है। बाघों को सुरक्षित रखना और उनकी संख्या बढ़ाना यह एक मुख्य उद्देश्य तो है ही, साथ ही अन्य वन्य जीवों की सुरक्षा यह भी एक उद्देश्य है। इस नॅशनल पार्क की विशेषता यह है कि यहाँ पर पर्यटक सरकार द्वारा मान्यताप्राप्त गेस्ट हाऊसों में, जो नॅशनल पार्क में ही विभिन्न स्थानों पर विद्यमान हैं, उनमें ही रात को ठहर सकते हैं, लेकिन इसके लिए आवश्यक औपचारिकताओं को पूरा करना अपरिहार्य है।

नैनीताल के इस पहाड़ी इला़के को प्रकृति का वरदान मिला है। मग़र आज मनुष्यों के अतिक्रमण के कारण वहाँ का प्राकृतिक जीवन खतरे में पड़ चुका है। नैनीताल में नागरी सुविधाओं को बढ़ाने के उद्देश्य से होनेवाले कईं निर्माणकार्य नैनी सरोवर और उसके आसपास के वन्य इला़के को बहुत बड़ा खतरा बन रहे हैं। प्रदूषण का बढ़ता हुआ स्तर और बेशुमार जंगलकटाई इन दो महत्त्वपूर्ण बातों को रोकना आवश्यक है। आज के नैनीताल की परिस्थिति का अनुमान करने के लिए यह निम्नलिखित एक ही उदाहरण पर्याप्त है। एक निरीक्षण में ऐसा कहा गया है कि नैनी सरोवर में प्रतिवर्ष सर्दियों में ह़जारों मरी हुई मछलियाँ पाई जाती हैं। इसका मुख्य कारण है, सरोवर में प्रदूषण का बढ़ता हुआ स्तर। यदि नैनीताल की सुन्दरता को हम बरक़रार रखना चाहते हैं, तो उचित समय पर ही उपाययोजनाओं को कार्यान्वित करना अत्यावश्यक है।

मनुष्य चाहे जैसा भी बर्ताव करे, प्रकृति तो उस मनुष्य के माता-पिता की तरह उसे निरन्तर सचेत करती रहती है। जितना और जहाँ तक वह दे सकती है, उतना सबकुछ तो वह मनुष्य को देती ही रहती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published.