मिनिकॉय भाग – १

पवन के तेज़ झोंकों के साथ कश्ती आगे बढ़ रही है। जहाँ देखें वहाँ सिर्फ़ पानी ही पानी दिखायी दे रहा है। नीला नीला पानी और वह भी इतना साफ़ कि जिसमें से समुद्र की तह दिखायी देती है। शायद आपके मन में यह सवाल उठा होगा कि इतने गहरे नीले, साफ़ एवं विशाल समुद्र में से हम भला जा कहाँ रहे हैं? और आज कल समुद्र का इतना साफ़ पानी भला दिखायी भी कहाँ देता है?

शायद आपने ‘मिनीकॉय’ यह नाम सुना होगा? स्कूल में भूगोल विषय में लगभग हर कोई इस नाम को पढ़ ही चुका होगा। चलिए, फिर इसी पहचान के साथ ही शुरू करते हैं, मिनिकॉय का सफर।

लेकिन मिनिकॉय में पैर रखने से पहले मिनिकॉय के भौगोलिक स्थान के बारे में जान लेते हैं। आज हम जहाँ सफर करने निकले हैं, वह मिनिकॉय एक छोटा सा द्वीप (टापू) है, जो ‘लक्षद्वीप’ के कई द्वीपों में से एक है। यह लक्षद्वीप नाम शायद आपको कुछ जाना पहचाना सा लगता होगा, है ना!

विशाल समुद्र

हमारे भारत की मुख्य भूमि से कुछ ही दूरी पर बसे हुए कई द्वीपों का एक समूह है, ‘लक्षद्वीप’। विस्तार की दृष्टि से यह हमारे भारत का सबसे छोटा केंद्रशासित प्रदेश (युनियन टेरीटरी) है। लक्षद्वीप द्वीपों की भूमि का विस्तार कुल मिलाकर ११ चौरस मील इतना है।

केरल के तट से लगभग २००-३०० कि.मी. की दूरी पर लखदीव सागर में लक्षद्वीप के ये सभी द्वीप फैले हुए हैं। लक्षद्वीप शब्द के ‘लक्ष’ इस शब्द का अर्थ है, लाख और द्वीप यानि कि टापू; तो लक्षद्वीप यानि कि लाख टापू। लेकिन आज इस लक्षद्वीप के द्वीपों की शृंखला में ऊपर वर्णन किये अनुसार लाख टापू मौजूद नहीं हैं। लक्षद्वीप के इस द्वीपसमूह में आज १९ से २० द्वीप ही मौजूद हैं और उनमें से केवल १० द्वीपों पर ही लोग बसते हैं। आज लक्षद्वीप में विद्यमान द्वीपों की संख्या को यदि देखा जाये, तो इसका नामकरण लक्षद्वीप क्यों किया गया होगा अथवा किस कारण हुआ होगा, इस बारे में ताज्जुब लगता है।

शुरुआत में जिस नीले और निर्मल समुद्र का ज़िक्र किया था, उस प्रकार का समुद्र हम लक्षद्वीप के सफ़र के दौरान चारों ओर देख सकते हैं।

किसी नीले रंग की मख़मल पर मानों किसी ने पन्ना नाम का रत्न रख दिया हो, इस प्रकार यह मिनिकॉय द्वीप दिखायी देता है। इस द्वीप पर पहुँचने के लिए नीले समुद्र को पार करना पड़ता है और जैसे ही हम यहाँ की जमीन पर कदम रखते है, वहाँ के हरे भरे नारियल के बन में मानों खो जाते हैं; इसीलिए आकाश से यानि की ऊँचाई से देखने पर मिनिकॉय यह नीले मख़मल पर रखा पन्ना ही प्रतीत होता है।

लक्षद्वीप के इस द्वीप समूह में दक्षिणी ओर बसा है, मिनिकॉय और उत्तर में है, ‘चेलित्तालू’ नामक टापू। लक्षद्वीप के जिन दस टापुओं पर लोग बसते है, उनके नाम कुछ इस प्रकार हैं- मिनिकॉय, कल्पेनी, अगत्ति/आकत्ती, अंत्रोत्रू, कवरत्ती, अमिनि/अम्लेनी, किल्तान, कडुमम/कडमत, बित्तिरी/बिट्रा, चेत्तिलात्तू और बंगरम नामक टापू पर भी लोग बसने लगे हैं। इन द्वीपों के बीच का फा़सला २० मील से लेकर ११४ मील तक है और ये सारे द्वीप यानि कि जिन पर लोग रहते हैं वे द्वीप और जो वीरान हैं वे द्वीप, मिनिकॉय और चेलित्तालू इन द्वीपों के बीच बसे हुए हैं। विस्तार की दृष्टि से देखा जाये तो ये द्वीप इतने छोटे हैं कि इनमें से कोई भी द्वीप ९ मील से ज्यादा लंबा नहीं है। साथ ही समुद्र में बसे होने के कारण इनकी समुद्री सतह से ऊँचाई १० से लेकर १५ फिट तक ही है और ताज्जुब की बात यह है कि इस हर एक द्वीप का आकार आधे चाँद जैसा ही है।

लक्षद्वीप के किसी भी द्वीप पर जाने से पहले वहाँ के प्रशासन की इज़ाजत लेना ज़रूरी है। इन द्वीपों तक पहुँचने के लिए समुद्री मार्ग उपलब्ध है। कोचीन/कोची से लक्षद्वीप जानेवाली नाव से वहाँ तक जा सकते है। आजकल यहाँ पर हवाई जहाज़ द्वारा भी हम पहॅुँच सकते हैं; लेकिन समुद्र में बसे इन छोटे छोटे द्वीपों में से केवल अगत्ति नामक एक ही द्वीप पर एयरपोर्ट है। इसीलिए कोची से अगत्ति तक हवाई जहाज़ द्वारा हम जा सकते हैं। अगत्ति से कवरत्ती तथा बंगरम इन द्वीपों पर हेलिकॉप्टर द्वारा पहुँचा जा सकता है। लेकिन मिनिकॉय जाने के लिऐ नाव का ही सहारा लेना पड़ता है। जो ज़मीन से दूर जाकर पानी में तैरना चाहते हैं या फिर दो पल के लिए ज़मीन पर बैठना चाहते हैं, मग़र फिर भी पानी साथ छोड़ना नहीं चाहते, ऐसे लोग मिनिकॉय जाकर अपनी इस इच्छा को पूरा कर सकते हैं और इसी कारण हमारे रोजमर्रा के रूटीन से यह लक्षद्वीप-मिनिकॉय का सफ़र ज़रा सा हटके है।

चाहे लक्षद्वीप हो या मिनिकॉय, इन दोनों के लिए भारत की मुख्य भूमि पर स्थित सबसे नजदीकी स्थल है, कोचीन या कोची। केरल से नजदीक होने के कारण मिनिकॉय को छोड़कर लक्षद्वीप के अन्य द्वीपों में मल्याळम् बोली बोली जाती है और मिनिकॉय में ‘माहल्’ बोली बोली जाती है।

दर असल हम निकल पड़े हैं, मिनिकॉय की सफ़र करने; लेकिन वहाँ पहुँचने तक हम लक्षद्वीप और उसमें विद्यमान द्वीपों की थोड़ी बहुत जानकारी प्राप्त करते हुए आगे बढ़ते हैं; ताकि मिनिकॉय तक पहुँचने तक हमारा समय भी अच्छी तरह कट जायेगा।

अंग्रेज़ों के जमाने में यह लक्षद्वीप उनके द्वारा किये गये नाम के बदलाव के कारण ‘लखदीव’ नाम से जाना जाता था। आपको सुनकर आश्‍चर्य होगा की अंग्रज़ भारत के साथ साथ भारत का एक अंग रहनेवाले इन टापुओं पर भी अपनी हुकूमत स्थापित कर चुके थे।

दर असल लक्षद्वीप का प्राचीन काल का इतिहास प्राप्त नहीं होता। संगम साहित्य से यह जानकारी प्राप्त होती है कि इन द्वीपों पर चेर राजाओं का अधिकार था। उनके बाद ७ वीं सदी के पल्लव काल के शिलालेखों में इन द्वीपों का उल्लेख ‘द्वीपलक्षम्’ नाम से प्राप्त होता है तथा इन द्वीपों पर पल्लव राजाओं का शासन होने का उल्लेख प्राप्त होता है। कहा जाता है कि बरसों पहले लक्षद्वीप के अमिनी, अंत्रोत्रू/अँड्राट, कवस्ती और अगत्रि इन्हीं द्वीपों पर मानवसमाज बस रहा था और ११ वीं सदी में इन द्वीपों पर चोळ राजाओं का शासन था।

कुछ अन्य मतों के अनुसार कई सदियों पहले केरल से आये हुए लोग इन द्वीपों पर बस गये और यहीं से इन द्वीपों पर मनुष्यों का बसना शुरू हुआ।

१७ वीं सदी में कन्नूर के शासकों को ये द्वीप उपहार-स्वरूप दिये गये। फिर पुर्तगालियों ने यहाँ आकर अपनी हुकूमत स्थापित करने की कोशिशें कीं और यहाँ के स्थानीय निवासियों पर अनगिनत ज़ुल्म भी ढाये। आख़िर इन द्वीपों के स्थानीय निवासियों ने ही पुर्तगालियों को यहाँ से खदेड़ दिया।

१८ वी सदीं में इनमें से कुछ द्वीपों पर टिपू सुलतान का शासन था और बाकी के द्वीप कन्ननोर के अरक्कल वंश के पास थें। दक्षिणी भारत पर कब्जा कर लेते ही चालाक़ अंग्रेज़ों ने इन द्वीपों पर भी अधिकार जमा लिया और इस भूमि पर भी अपनी सत्ता स्थापित कर दी।

भारत के आज़ाद हो जाते ही यहाँ की अंग्रेज़ी हुकूमत ख़त्म हो गयी और १९५६ में यह द्वीपसमूह भारत का एक केंद्रशासित प्रदेश बन गया।

‘कवरत्ती’ यह लक्षद्वीप की राजधानी है। कवरत्ती द्वीप को १९६४ में लक्षद्वीप की राजधानी का दर्जा दिया गया। इसी कारण इस द्वीप का विकास राजधानी की योग्यता के अनुसार किया गया है। यहाँ के लगभग हर एक द्वीप पर आपको ‘लगून’ दिखायी देंगे। ‘लगून’ यानि कि समुद्र के पानी से ज़मीन पर बना हुआ तालाब। इस हर एक द्वीप पर वॉटर स्पोर्टस् यानि कि स्नॉर्केलिंग, स्कुबा डायव्हींग, याच सेलिंग, कयाक या पेडल नाव से समुद्र की सफ़र और शीशें से बनी नीचली सतह रहनेवाली नाव में से समुद्र की रंगबिरंगी मछलियों और अन्य समुद्री जीवों को देखने का आनंद हम उठा सकते हैं।

कडमत द्वीप यह एक सुंदर स्कुबा डायव्हींग सेंटर के रूप में मशहूर है। कल्पेनी द्वीप को एक प्रगत द्वीप कहा जा सकता है; क्योंकि यहाँ के किसी भी द्वीप पर जब स्त्री शिक्षा की संकल्पना का जन्म तक नहीं हुआ था, तब इस द्वीप पर लड़कियों की शिक्षा शुरू हो चुकी थी। अगत्ति भी एक छोटासा द्वीप है; लेकिन यहाँ के एयरपोर्ट को समुद्र पर विज्ञान द्वारा बनाया गया चमत्कार कहा जा सकता है। समुद्री सतह पर दिखायी देनेवाले हवाई जहाज़ के रन-वे को देखकर आप इस अद्भुत बात का अंदाज़ा लगा सकते हैं।

यहाँ का हर एक द्वीप समुद्र के ही साथ ज़ुडा हुआ होने के कारण यहाँ आने पर देखना है केवल सागर को, महसूस कीजिए उसी की गॅूंज को और अनुभूत कीजिए उसी सागर की नीलिमा, गहराई और निर्मलता को। कभी कबार दिखायी देनेवाला नीला पानी और समुद्र में रहनेवाले कई समुद्री जीव इन्हें देखिए। इन समुद्री जीवों को हम ऊपर वर्णित स्नॉर्केलिंग, स्कुबा डायव्हिंग आदि की सहायता से समुद्र में जाकर क़रीब से देख सकते हैं।

पहले इन द्वीपों पर विदेशी सैलानियों को जाने की इजाज़त नहीं थी, लेकिन अब बंगरम नामक द्वीप पर विदेशी सैलानी जा सकते हैं और उस दृष्टि से इस द्वीप को विकसित किया गया है।

दर असल लक्षद्वीप के सभी द्वीप- कोरल आयलंडस् यानि की मूँगे से निर्मित पत्थर से बने हुए द्वीप हैं।

देखिए, बातों ही बातों में वक़्त कैसे गुजर गया, उसका पता भी नहीं चला। वहाँ दूर एक ऊँचा टॉवर दिखायी देने लगा है। वह क्या है, यह जानने के लिए हमें थोड़ा सा इंतज़ार करना होगा। जी हाँ, बातें करते करते हम मिनिकॉय के काफी़ क़रीब पहुँच चुके हैं, यह बात तो सच है।

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