स्नायुसंस्था -२०

हम हृदय के स्नायुओं की जानकारी प्राप्त कर रहे हैं। उनके कार्य ही हृदय के कार्य हैं, इसीलिये हृदय से संबंधित कुछ बातों की जानकारी हम उनके कार्यों के साथ-साथ ही प्राप्त करते जा रहे हैं।

E.C.G.

हम सभी के द्वारा सुना हुआ हृदय से संबंधित एक शब्द है- E.C.G. । किसी के सीने में दर्द होने पर अथवा चालीस साल की उम्र पार करने के बाद डॉक्टर हमें ई.सी.जी. अथवा कार्डियोग्राम निकालने की सलाह देते हैं। ई.सी.जी. देखकर हमें यह बताते हैं कि हमें क्या हुआ है। ‘ई.सी.जी. नार्मल है’, ‘हृदय ठीक-ठाक है’, ‘चिंता करने जैसी कोई बात नहीं है’, ‘थोड़ा ख़याल रखो’, ‘हृदय के कुछ हिस्सों में रक्त की आपूर्ति (सप्लाई) कम हो गयी है’ अथवा कभी-कभी कहते हैं कि ‘तुम्हारे रिश्तेदार को हार्ट-अटॅक हुआ है, तुरंत I.C.U में अ‍ॅडमिट करो।’ देखो, कितनी सारी बातों की जानकारी इस ई.सी.जी. को देखने से मिलती है। ये सब तो कुछ उदाहरण थे। अन्य बहुत सारी बातें भी डॉक्टर को ई.सी.जी. देखकर पता चलती है। परन्तु हमारे लिये उतनी विस्तृत जानकारी होना आवश्यक नहीं है।

ई.सी.जी. – इस नाम से ही हमें पता चलता है कि यह इलेक्ट्रो कार्डिओग्राफ है यानी पेशियों की विद्युत्-लहरों के उतार-चढ़ाव का आलेख है। चूँकि यह आलेख है इसलिये इसमें ग्राङ्ग पेपर अथवा आलेख कागज़ के जैसा कागज ही उपयोग में लाया जाता है। जैसा कि हमने भूमिति में पढ़ा है, इसमें X और Y Axis में खड़ी एवं आड़ी समांतर रेखायें होती हैं। आड़ी रेखायें विद्युत्-दबाव की माप दर्शाती हैं, वहीं खड़ी रेखायें समय के नाप को दर्शाती हैं। दस आड़ी रेखाओं के बीच का अंतर १ mv का विद्युत्-दबाव दर्शाता है। यानी प्रत्येक दो आड़ी रेखायें ०.१ mv का विद्युत्-दबाव दर्शाती हैं।

खड़ी रेखायें समय का माप दर्शाती हैं। पाँच खड़ी रेखायें यानी ०.२ सेकेंड़ का समय। यानी दो खड़ी रेखाओं के बीच की कालावधि ०.४ सेकेंड़ होती है।

ऐसे इस आलेख पेपर पर हृदय की विद्युत्-लहरों का आलेखन-त्वचा पर रखे गये इलेक्ट्रोड्स के माध्यम से किया जाता है। यह आलेखन करते समय डॉक्टर हमारी दोनों कलाईयों एवं दोनों ऐड़ियों के पास पट्टे बांधते हैं। इन प्रत्येक पट्टों से एक एक इलेक्ट्रोड जुड़ा होता है। वैद्याकीय भाषा में इन्हें लिंब लीडस् (limb leads) कहा जाता है। इसी तरह हमारी छाती पर दाहिनी ओर से बांयी ओर की तरफ कम से कम ६ स्थानों पर इलेक्ट्रोड रखकर वहाँ का मापन किया जाता है। इन्हें चेस्ट लीडस् (chest leads) कहते हैं।

आलेखन पूरा हो जाने के बाद यदि आलेख पट्टी देखें तो हमें पता चलता है कि उसपर बीच में एक बेड़ी रेखा है। उसके ऊपर-नीचे कुछ रेखायें (वक्ररेखायें) उससे जुड़ी हुई दिखायी देती हैं।

इस बीच की बेड़ी रेखा को रेफरन्स रेखा अथवा शून्य रेखा विद्युत्-दबाव दर्शाने वाली रेखा कहते हैं। इस रेखा के ऊपर का विद्युत्-दबाव धनभारित (पॉझिटिव्ह) होता है तथा नीचे का ऋणभारित (निगेटिव्ह) होता है। इस रेखा से जुड़ी हुयी जो वक्ररेखायें होती हैं, उन्हें क्रमश: P,Q,R,S और T waves कहते हैं। Q,R और S इन तीन वेव्हज् को QRS कॉम्प्लेक्स कहते हैं। परन्तु बिल्कुल नॉर्मल स्थिति में भी यें तीनों वेव्हज् प्रत्येक आलेख में दिखायी ही देंगी, ऐसा नहीं है।

P वेव्ह :- सायनस नोड़ में से इंपल्स के बाहर आने के समय यह वेव्ह शुरू होती है और वेव्ह की संपूर्ण कालावधि, एट्रिआ के आकुंचित होने से पहले डिपोलराइज होने के बराबर होती हैं। इसीलिये इस वेव्ह को अ‍ॅट्रिया की डीपोलरायझेशन वेव्ह कहते हैं।

QRS कॉम्पलेक्स :- वेंट्रिकल्स के आकुंचन से पहले वेंट्रिकल्स के स्नायु डीपोलराइज होते हैं। इन वेंट्रिकल्स के डीपोलरायझेशन की कालावधि QRS कॉम्पलेक्स दर्शाता है। तात्पर्य यह है कि उपरोक्त दोनों वेव्हज् डीपोलरायझेशन वेव्हज् हैं।

T वेव्हज् :- वेंट्रिकल्स आकुंचन के बाद रिपोलराइज होने लगते हैं। यह क्रिया ये T वेव्हज् को दर्शाती हैं। यानी ये वेंट्रिकल्स की रिपोलरायझेशन वेव्हज् हैं।

एट्रिया की रिपोलरायझेशन वेव्हज् QRS कॉम्पलेक्स के दौरान आती है। इसलिये उनका आलेखन नहीं होता है।

ई.सी.जी.आलेखन हृदय के प्रत्येक स्पंदन के दौरान होनेवाली क्रियाओं की कालावधि भी दिखाती है।

पिछले लेख में हमने देखा कि सायनस नोड से शुरू हुए अ‍ॅक्शन पोटेंशिअल के वेंट्रिकल के स्नायु में पहुँचने तक ०.१६ सेकेंड़ का समय लगता है। दूसरे शब्दों में कहें तो एट्रिया का डिपोलरायझेशन शुरु होने से लेकर वेंट्रिकल के डिपोलरायझेशन शुरु होने तक में लगा समय। ई.सी.जी. में यदि इस कालावधि के P-Q अथवा Q वेव्ह ना हो तो P-R इंटरवल अथवा कालावधि कहते हैं। तात्पर्य यह है कि P वेव्हज् की शुरुआत से लेकर Q अथवा R वेव्हज् की शुरुआत तक की कालावधि। यदि ई.सी.जी.आलेख में यह कालावधी बढ़ी हुयी दिखायी दें (नॉर्मली यह ०१६ सेकेंड़ होती हैं तो इससे यह पता चलता है कि A.V. नोड़ अथवा A.V. बंडल में अ‍ॅक्शन पोटेंशिअल के वहन से रुकावट निर्माण हो रही हैं।

ई.सी.जी. से पता चलने वाली दूसरी महत्त्वपूर्ण कालावधि हैं Q-T इंटरवल। Q वेव्हज् की शुरुआत से लेकर T वेव्हज् के अंत तक की कालावधि। यह साधारणत: ०.३५ सेकेंड़ होती है। यह वेंट्रिकल्स के आकुंचन की अवधि होती है।

ई.सी.जी. से हमें हमारे हृदय के स्पंदनों की रेट भी पता चलती है। एक मिनट में हृदय कितनी बार धड़क रहा है, यह बताया जा सकता है। बुनियादी अंकगणित का प्रयोग करके यह बताया जा सकता है। ई.सी.जी. पेपर पर दो खड़ी रेखाओं के बीच का अंतर ०.०४ सेकेंड़ कालावधि दिखाता है। लगातार आनेवाली दो समान वेव्हज् में अंतर, दो स्पंदनों के बीच की कालावधि दर्शाता है। उदा. दो लगातार R वेव्हज् में अंतर २० खड़ी रेखाओं का हो तो यह कालावधि होती है २० x ०.०४ = ०.८ सेकेंड़। यानी दो स्पंदनों के बीच का समय हुआ ०.८ सेकेंड़। यदि इसी माप से एक मिनट में कितने स्पंदन होंगे इसका पता लगाना हो तो ६० सेकेंड़ को ०.८ से भाग देने पर (६०/०.८) इसका उत्तर मिल जायेगा- ७५ स्पंदन प्रति मिनट। तात्पर्य यह है कि हम हमारे हृदय के स्पंदनों का वेग जान सकते हैं।

उपरोक्त बुनियादी जानकारी से हम समझ सकते हैं कि साधारण (नॉर्मल) आलेखन के व्यतिरिक्त अन्य कोई भी चीज ई.सी.जी. में यदि दिखायी देती हैं तो वह हृदयविकार की तरफ़ इशारा करती है।

आज तक हमने यह देखा कि हमारा हृदय पंप की तरह किस तरह काम करता है और उसके लिये कौन-कौन से घटक कारणीभूत साबित होते हैं। हृदय किस की पंपिंग करता है? तो रक्त की। यह रक्त शरीर के सभी अवयवों में घूमकर ङ्गिर से हृदय में आता है। इसे ही हम रक्ताभिसरण कहते हैं। इस रक्ताभिसरण की जानकारी हम अगले लेख में प्राप्त करेंगे। स्नायु संस्था की जानकारी को हम अब यहीं विराम देते हैं। हमारे शरीर में अनेकों स्केलेटल स्नायु होते हैं। सिर से लेकर पैरों तक प्रत्येक जगह पर उन्हें दिये गये कार्यों को वे करते रहते हैं। यदि प्रत्येक स्नायु के नाम देना चाहें तो भी उसकी फेहरिस्ट काफी लम्बी हो जायेगी।

(क्रमश:)

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