स्नायुसंस्था भाग – १०

हम स्नायुतंतु व चेतातंतु में होनेवाली संदेश वहन की प्रक्रिया का अध्ययन कर रहे हैं। इसके लिये हम कुछ बेसिक बातों की जानकारी हासिल करने वाले हैं।

हमारे शरीर की प्रत्येक पेशी के आवरण के दोनों ओर विद्युतभार होता है। आवरण के दोनों ओर का विद्युतभार एक-दूसरे के विरुद्ध होता है। यानी पेशी-आवरण के बाहर विद्युत धनभार तथा पेशी के अंदर विद्युत ऋणभार होता है। इस असमानता के कारण आवरण के अंदर व बाहर का विद्युतभार (विद्युत दाब) अथव इलेक्ट्रिकल पोटेन्शियल (electrical potential) तैयार होता है। यह विद्युतदाब प्रत्येक पेशी आवरण पर होता है। इसके अलावा स्नायुपेशी व चेतापेशी एक्सायटेबल (excitable) होती हैं। अर्थात ये पेशी अत्यंत वेग के साथ बदलते विद्युतरसायनिक उत्तेजक शक्ती का निर्माण स्वत: कर सकती हैं। यह गुणधर्म प्राय: अन्य पेशियों में नहीं पाया जाता है।

depolarization-repolarization

आवरण पर विद्युतदाब मुख्यत: सोडियम व पोटॅशिअम अणू के पेशी के अन्दर-बाहर होनेवाले आवागमन के कारण बदलता रहता है। हम चेतातंतु का उदाहरण देखेगें। जब चेतातंतु कोई भी कार्य नहीं कर रहे होते हैं तब इनके अंदर का विद्युतभार मायनस नाइन्टी वोल्ट (-९० mv) होता है। इसे रेस्टींग मेंब्रेन पोटेंशियल कहते हैं। सोडियम के अणू विद्युत धनभारयुक्त होते हैं। इन अणुओं के ज्यादा मात्रा में पेशी से बाहर निकलने के कारण पेशी के अंदर ऋणविद्युतभार तैयार हो जाता है। हमने देखा है कि चेतातंतू एक्सायटेबल (excitable) होते हैं। इनका विद्युतभार / दाब अत्यंत वेग से बदलता रहता है। अत्यंत वेग यानी कितना वेग, इसकी जानकारी प्राप्त करें तो आश्‍चर्य होगा। इस (-९० mv) विद्युतदाब का रूपांतर (+३५ mv) में करने के लिये इन पेशीयों को सिर्फ़ एक सेकेंन्ड का दस हजारवाँ भाग भी पर्याप्त होता हैं। (१/ १०००० seconds)

अ‍ॅक्शन पोटेशियम :- आवरण पर विद्युत दाब में अत्यंत वेग के साथ होनेवाला बदलाव संपूर्ण चेतातंतु अथवा स्नायुतंतु के ऊपरी आवरण पर फ़ैल जाता है। इसे उस तंतु का अ‍ॅक्शन पोटेंशियल कहते हैं। अ‍ॅक्शन पोटेंशियल के कारण उत्तेजक शक्ती अथवा कार्यशक्ती कानिर्माण होता है। अब हम यह देखेंगे कि आखिर यह सब कैसे होता है।

जब चेतातंतु कार्य नहीं कर रहे होते हैं, यानि रेस्टिंग स्थिती में रहते है, तब आवरण पर विद्युत दाब (-९० mv) होता है। सर्वप्रथम यह दाब अत्यंत बेग के साथ बदलकर (+३५ mv) हो जाता है। इस क्रिया को डिपोलरायझेशन (depolarization) कहते हैं। पुन: उतने ही बेग से यह विद्युतदाब पहले के स्तर यानी (-९० mv) पर आ जाता है। इस क्रिया को रिपोलरायझेशन (repolarization) कहते हैं। यानी रेस्टींग स्तर, डिपोलरायझेशन स्तर व रिपोलरायझेशन स्तर, ऐसे तीन स्तरों से मिलकर अ‍ॅक्शन पोटेंशियल बनता है।

डिपोलरायझेशन में सोडियम अणू अत्यंत वेग के साथ पेशी के अंदर प्रवेश करते हैं तथा रिपोलरायझेशन में यह प्रवाह रुक जाता है व पोटॅसिअम के अणू जलद गती से पेशी के बाहर निकलते हैं।

सोडियम व पोटॅसिअम अणुओं के व्यतिरिक्त, पेशी के अंदर प्रथिने व अन्य विद्युत ऋणभार युक्त घटक, व कॅलशिअम के अणू भी इस प्रक्रिया में सहभागी होते हैं। शरीर की प्रत्येक पेशी में कॅलशिअम पंप भी होता है। स्नायुतंतु व चेतातंतु में कॅलशिअम का महत्त्व ज्यादा होता है।

इस अ‍ॅक्शन पोटेंशियल की शुरूआत (intiation) कैसे होती है, अब हम यह देखते हैं। यदि किन्हीं भी कारणों से चेतातंतु के अंदर विद्युतदाब बढ़ने लगे (यानी (-९० mv) का (-८० mv) अथवा ७० mv हो गया) तो आवरण के सोडिअम के आवागमन की कुछ चैनेल खुल जाती हैं। इसके कारण पेशी के अंदर सोडिअम अणु प्रवेश करने लगते हैं। जिससे पेशी के अंदर सोडिअम अणुओं की मात्रा बढ़ जाने से अंदर का विद्युतदाब और भी बढ़ जाता है। इसके कारण आवरण की और भी सोडिअम चैनल्स खुल जाती हैं। यह चक्र शुरू ही रहता है। इस दरम्यान आवरण का डिपोलरायझेशन होता रहता है। जब आवरण की सभी सोडियम चैनल्स खुल जाती हैं तो आवरण की पोटॅसिअम चैनल्स खुलने लगती हैं। इसके साथ ही सोडिअम की चैनल्स बंद होने लगती हैं। अब पोटॅसिअम के अणू पेशी के बाहर निकलने लगते हैं। इस दरम्यान रिपोलरायझेशन शुरू होता है। यह सारी प्रक्रिया शुरू होने के लिये विद्युतदाब कम से कम २५ mv से बढ़ाना पड़ता है। यानी -९० mv से -६५ mv तक लाना पड़ता हैं।

स्नायुतंतु अथवा चेतातंतु के आवरण पर किसी एक बिंदु पर जैसे ही यह अ‍ॅक्शन पोटेंशियल शुरू हो जाता है वैसे ही यह अत्यंत वेग से अगल-बगल के आवरण पर फ़ैल जाता है। इसे प्रपोगेशन कहते हैं। इस फ़ैलाव की कोई निश्‍चित दिशा नहीं होती। इस फ़ैलाव का एक गुणधर्म होता है जिसे ऑल ऑरनन प्रिन्सिपल कहते हैं। अ‍ॅक्शन पोटेंशियल के फ़ैलाव के दरम्यान यदि कहीं पर भी कोई बाधा आती है तो यह अ‍ॅक्शन पोटेंशियल पूरी तरह रूक जाता है। यह अन्य दिशाओं में भी नहीं फ़ैलता।

जब एक अ‍ॅक्शन पोटेंशियल शुरू रहता है तो दूसरा अ‍ॅक्शन पोटेंशियल उस चेतातंतु को फ़िर से एक्साइट (excite) नहीं कर सकता। इसे उस तंतु की रिफ़रॅक्टरी अवधि कहा जाता है। यह कालावधी मात्र १/२५०० सेकेन्ड की होती है। यानी एक सेकेन्ड का ढ़ाई हजारवाँ भाग। संक्षेप में कहें तो एक चेतातंतु में एक सेकेन्ड में ज्यादा से ज्यादा ढ़ाई हजार अ‍ॅक्शन पोटेंशियल फ़ैलते हैं।

आज हम यहीं पर ही रूकते हैं। अगले लेख में हम यह देखेंगे कि इस अ‍ॅक्शन पोटेंशियल के कारण स्नायु का आकुंचन कैसे होता है।

(क्रमश:)

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