स्नायुसंस्था भाग – ११

आज के लेख में हम स्केलेटल स्नायु के आकुंचन के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगें।

स्नायु की आकुंचन प्रक्रिया के बारे में जानने से पहले, एक बार फ़ीर से स्नायु की रचना के बारे में संक्षिप्त जानकारी प्राप्त करेंगे। प्रत्येक स्नायु, अनेक स्नायु तंतुओं से बना होता है। प्रत्येक स्नायुतंतु के ऊपर आवरण होता है। इसे सारकोलेमा कहते हैं। इस आवरण के अंदर सारकोप्लाझम अथवा मॅट्रिक्स होता है। इस मॅट्रिक्स में स्नायुप्रथिनों के सूक्ष्मतंतू होते हैं। एक स्नायुतंतु में अ‍ॅक्टीन के ३००० व मायोसिन के १५०० सूक्ष्मतंतू होते हैं। प्रत्येक स्नायुतंतु में अनेक बेडी तस्तरियाँ होती हैं। इन्हें डिक्स कहते हैं। अ‍ॅक्टीन के सूक्ष्म तंतु इन डिस्क से जुड़े होते हैं। दो डिस्कों के बीच के भाग को सारकोमिअर कहते हैं। सारकोप्लाझम में मारटोकॉन्ड्रीया व सारकोप्लाझमिक रेटिक्युलम नामक अन्य घटक होते हैं।

स्नायु की आकुंचन प्रक्रिया

स्केलेटल स्नायु के आकुंचन में सर्वसाधारण चरण निम्नलिखित हैं –

१) चेतातंतु में शुरु हुये अ‍ॅक्शन पोटेंशियल, स्नायु की मोटर (कार्य की आज्ञा का संदेश वहन करने वाली) नर्व्ह में से प्रत्येक स्नायुतंतू तक पहुँचनेवाला उसके सिरे तक फ़ैलता है।

२) प्रत्येक न्युरोमसक्युलर जंक्शन में चेतातंतु के सिरें से अ‍ॅसिटाईल कोलिन नामक रसायन स्त्रवित होता है। इसे न्युरोट्रान्समीटर कहते हैं।

३) यह अ‍ॅसिटाइलकोलिन स्नायुतंतु के आवरण की चैनल प्रथिने को खोलने की क्रिया शुरू करती है।

४) आवरण की इन खुली हुयी चॅनेल्स में से सोडिअम के अणू अत्यंत वेग से स्नायुतंतु में प्रवेश करते हैं। फ़लस्वरूप वहाँ पर अ‍ॅक्शन पोटेंशियल का निर्माण होता हैं।

५) यह अ‍ॅक्शन पोटेंशियल स्नायुतंतु की पूरी लम्बाई में फ़ैलता है।

६) अ‍ॅक्शन पोटेंशियल के फ़ैलने से संपूर्ण स्नायुतंतु का आवरण डिपोलराइझ होता है। इसी के साथ यह विद्युतप्रवाह स्नायुतंतु के अंदर सारकोप्लाझमिक रेटिक्युलम तक पहुँचता है। इसकी क्रिया के कारण रेटिक्युलम मेंसे कॅलसिअम के अणु निकालकर सारकोप्लाझम में ड़ाले जाते हैं।

७) कॅलसिअम के अणू अ‍ॅक्टीन व मायोसिन के फ़िलॅमेंटस को कार्यरत करते हैं। ये प्रथिन तंतु एक-दूसरे पर सरकते हैं।

८) क्षणार्धात कॅलसिअम के अणू कॅलसिअम पंप की सहायता से वापस सारकोप्लाझमिक रेटिक्युलम में वहन किये जाते हैं। इसके कारण आकुंचन रुक जाता है। नये अ‍ॅक्शन पोटेंशियल के आने पर यह प्रक्रिया पुन: दोहरायी जाती हैं। इस तरह स्नायु का आकुंचन होता रहता है।

उपरोक्त सारी प्रक्रिया के लिये ATP के अणू, ऊर्जा की आपूर्ति करते हैं। इससे पहले हमने देखा है कि ATP के अणू का विघटन होकर उनका रूपांतर ATP अणू में होते समय बड़ी मात्रा में ऊर्जा विसर्जित होती है। इस क्रिया में जो बनता है वो है अ‍ॅडिनोसिन ट्रायफॉसफेट (ATP TRI यानी तीन)जिसमें फॉसफेट के तीन अणू हैं। विघटन से ADP यानी अ‍ॅडिनोसिन डायफॉसफेट बनता है (डाय यानी दो)। फॉसफेट का एक अणू प्रयोग मे लाया जाता है। अब प्रश्‍न यह उ़ठता है कि जब प्रत्येक आकुंचन के बाद स्नायुतंतुके ATP कम होते जाते हैं व ADP के अणू बढ़ते जाते हैं तो एक समय ऐसा आयेगा कि ATP के सभी अणू समाप्त हो जायेंगे तो इस क्रिया को ऊर्जा कहाँ से प्राप्त होगी? इस सबकी व्यवस्था यहाँ पर परमेश्‍वर ने करके रखी हैं। स्नायुतंतु के ATP अणू का पुनरुज्जीवन तीन प्रकार निम्नलिखित हैं –

१) फोस्फोक्रिटिनिन नामक एक जैविक रसायन स्नायुतंतु में होता है। यह अपना एक फॉसफेट का अणू ADP के एक अणू को देता है और ADP का रूपांतर फ़ीर से ATP में हो जाता है।

२) स्नायुतंतु में ग्लायकोजेन नामक जैविक पदार्थ का भांडार होता है। ग्लायकोजेन के विघटन के समय इससे ऊर्जा विसर्जित होती है। इस ऊर्जा का प्रयोग करके ADP का रूपांतर ATP में होता है। इस क्रिया की विशेषता यह है कि प्राणवायु के अभाव में भी यह क्रिया पूरी होती है। यदि एक मिनट से ज्यादा समय के लिये प्राणवायु की आपूर्ति रुक जाये तो यह प्रक्रिया भी रुक जाती है।

३) प्राणवायु की सहायता से होने वाले स्नायुपेशी के अन्य पदार्थों का विघटन इसमें स्निग्ध पदार्थ प्रथिने व शर्करा (carbohydrates) का समावेश होता है। इस प्रक्रिया में ATP के नवीन अणू तैयार होते हैं। स्नायु पेशी में ATP का भांडारण कायम रखने के लिये इस प्रक्रिया का सर्वाधिक महत्त्व है।

चेतातंतु (मायलिनेटेड) व स्नायुतंतु में अ‍ॅक्शन पोटेंशियल में समानता व अंतर इस प्रकार हैं-

१) आवरण के ऊपर रेस्टींग पोटेंशियल दोनों में -80 mv go -90 mv होता है।

२) स्नायुतंतु में एक अ‍ॅक्शन पोटेंशियल १ से ५ सेकेड़ तक टिकता है। वही चेतातंतु में लगभग १ सेकेंड़ टिकता है।

३) स्नायुतंतु में यह एक सेकेंड़ में ३ से ५ मीटर फ़ैलता है। वही चेतातंतु में यह वेग एक सेकेंड़ में १०० मीटर होता है। (संसार के सबसे वेगवान मनुष्य को भी सौ मीटर की दूरी दौड़ने में आज भी नौ सेकेंड़ लगते हैं।)

चेतातंतु में से अ‍ॅक्शन पोटेंशियल द्वारा आये संदेश का वहन स्नायुतंतु में न्युरोमसक्युलर जंक्शन पर होता है। इस स्थान से स्नायुतंतु में अ‍ॅक्शन पोटेंशियल की शुरुवात होती है। न्युरोमसक्युलर जंक्शन में चेतातंतु का जो अंतिम सिरा होता है उसमें अ‍ॅसिटाइलकोलिन (Acetylcholine) नामक न्यूरोट्रान्समीटर का भंडारण होता है। चेतातंतु में से आने वाले प्रत्येक अ‍ॅक्शन पोटेंशियल के कारण इस जंक्शन में अ‍ॅसिटाइलकोलिन स्त्रवित होता है। यह अ‍ॅसिटाइलकोलिन स्नायुतंतू के आवरण में से सोडिअम के चैनल्स खोल देता है और इस कारण स्नायूतंतू में अ‍ॅक्शन पोटेंशिअल शुरु होता है, यह हमने इससे पहले समज लिया है। यह अ‍ॅसिटाइलकोलिन यदि जैसा का तैसा इस जंक्शन में रह जाये तो वो हमेशा स्नायुतंतु को (excite) करता रहेगा। इसके परिणाम स्वरूप स्नायुतंतु व इसके कारण संपूर्ण स्नायु हमेशा आकुंचित रहेगा। ऐसा होना निश्‍चित रूप से त्रासदायक है। ऐसा ना होने देने के लिये स्त्रवित हुये इस अ‍ॅसिटाइलकोलिन को दो तरीकों से दूर किया जाता है।

अ) थोड़ा अ‍ॅसिटाइलकोलिन न्युरोमसक्युलर जंक्शन के बाहर डिफ्युज होता है।

ब) इस जंक्शन में acetycholine sterase नामक एन्झाइम होता है। यह एन्झाइम अ‍ॅसिटाइलकोलिन का विघटन करवाता है।

बिग बी – यानी अमिताभ बच्चन, यह हम सब जानते ही हैं। बिग बी को लगभग बीस वर्ष पहले एक असाध्य रोग ने ग्रसित कर लिया था। यह बात भी ज्यादातर लोगों को विदित ही होगी। इस बीमारी का नाम है ‘मायेस्थेनिया ग्रेविस’। साधारणत: प्रत्येक वीस हजार लोगों में से एक व्यक्ति को यह बीमारी होती है। इस बीमारी में शरीर के स्नायु पक्षाघात की तरह शिथिल हो जाते हैं (paralysed)। इस बीमारी में चेतातंतु से आने वाले संदेश न्युरोमसक्युलर जंक्शन से स्नायुतंतु तक पहुँचते ही नहीं है। इसका कारण यह है कि रक्त के प्रतिजैविके अथवा अ‍ॅन्टीबॉडीज स्नायुतंतु पर सोडियम अणू का आवागमन करनेवाली चैनेल प्रथिनों को नष्ट करती है। इसके कारण सान्युतंतु पर अ‍ॅक्शन पोटेंशियल शुरु नहीं होता। प्रतिजैविके यानी हमारी प्रतिकार शक्ती अथवा immunity (इम्युनिटी)। स्नायुतंतु के ये सोडिअम चैनेल प्रथिनों के विरुद्ध प्रतिकार शक्ती अथवा इम्युनिटी तैयार होती है। यहाँ पर अपने ही शरीर की प्रथिनों के विरोध में अपने ही शरीर में प्रतिकार शक्ती तैयार होती है। इससे निर्माण होनेवाली बीमारीयों को ऑटो इम्युन बीमारी अथवा disease कहते हैं। इसी लिये मायस्थेनिया ग्रेविस बीमारी आटोइम्युन बीमारी है।

आज के लेख का उपसंहार करते समय दो चीजों का ऊपरी तौर पर उल्लेख करेंगें। अ‍ॅसिटाइल कोलिन के कार्यों में बाधा ड़ालने वाली दो चीजों की जानकारी प्राप्त करेंगें।

१)क्युरारे (curare) :- नामक औषधि यदि किसी व्यक्ति को दी जाये तो उस व्यक्ति के शरीर के स्नायु पॅरालाइझ हो जाते हैं। स्नायुतंतु के आवरण की चॅनेल प्रथिनोंतर अ‍ॅसिटाइल कोलिन के लिये एक ‘जगह’ होती है। चेतातंतु से आने वाले अ‍ॅसिटाइल कोलिन जब इस ‘जगह’ (site) पर पहुँचती है तो इन प्रथिनों के कार्य शुरु होते हैं। क्युरारे औषधि के अणू अ‍ॅसिटाइल कोलिन के लिये आरक्षित इस जगह पर स्वयं जाकर बैठ जाते हैं। जगह पर कब्जा कर लेते है। फ़लस्वरूप स्नायुतंतु पर अ‍ॅसिटाइल कोलिन के कार्य होते ही नहीं हैं। इस विष का प्रयोग पहले शत्रुओं को अथवा शत्रुसैनिकों को मारने के लिये व प्राणियों के शिकार के लिये किया जाता था। बाणों के सिरों को इस विषारी द्रव में डुबोकर उन बाणों को शत्रुओं पर अथवा प्राणियों पर छोड़ा जाता था। बाण के विष के कारण उस व्यक्ति के शरीर के सभी स्नायु पॅरालाइझ हो जाते थे और उसी से वो व्यक्ति मर जाता था।

२)बोट्युलिझम नामक बीमारी में जीवाणुओं द्वारा स्रवित किया गया विष न्युरोमसक्युलर अ‍ॅक्शन के चेतातंतु के सिरों पर कार्य करता है। इस विष के परिणामस्वरूप यहाँ पर अ‍ॅसिटाइल कोलिन का स्रवित होना ही रुक जाता है। इस बीमारी के जीवाणु क्लॉस्ट्रिडिअम बोट्यॅुलिनम नाम से जाने जाते हैं ((biological warfare का एक भाग)।

(क्रमश:)

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