स्नायुसंस्था -१९

हमने हमारे हृदय में स्वयं स्पंदन निर्माण करने वाले सायनस तंतुओं का अध्ययन किया। अब हमें देखना हैं कि इन तंतुओं से निर्माण होनेवाले स्पंदन हृदय के अन्य हिस्सों तक कैसे पहुँचते हैं।

सायनस नोड़ के तंतु सीधे एट्रिअल स्नायु तंतुओं से जुड़े होते हैं। इनमें निर्माण हुआ अ‍ॅक्शन पोटेंशिअल एट्रिआ के स्नायुओं में फ़ैलता है। एट्रिआ के स्नायुपेशी में इनकी गति ०.३ m/sec होती हैं। एट्रिअल स्नायुपेशी से ये स्पंदन A.V. नोड़ में आते हैं। परन्तु कुछ एट्रिअल स्नायुतंतुओं में इसकी गति १ m/sec (१ मीटर प्रति सेकंड) होती है। ऐसे तंतुओं के तीन बंडल्स एट्रिआ के स्नायोओं में होते हैं। इन बंडलों के तंतुओं में इन स्पंदनों का वहन तेज़ गति से होता है। इन्हें इंटर नोडल तंतु कहते हैं। सायनस नोड में शुरु हुये अ‍ॅक्शन पोटेंशिअल इन तंतुओं के माध्यम से सीधे A.V. नोड़ में पहुचँते हैं।

सायनस तंतुओं का अध्ययन

A.V. नोड़ :- यह नोड दाहिनी एट्रिआ के पीछे के हिस्से में होती है। सायनस नोड से आये हुये अ‍ॅक्शन पोटेंशिअल उसी गति वेंट्रिकल्स में पहुँचती हैं। A.V. नोड में इस गति को कम किया जाता है। इसीलिये एट्रिआ की अपेक्षा वेंट्रिकल्स थोड़ी देर से आकुंचित होता है। इसका फ़ायदा एट्रिआ को होता है। वेंट्रिकल्स के आकुंचित होने से पहले एट्रिआ में से ज्यादा से ज्यादा रक्त वेंट्रिकल्स में पहुँच जाता है। A.V. नोड से यह अ‍ॅक्शन पोंटेशिअल A.V. बंडल्स के द्वारा वेंट्रिकल्स में आता है। इस A.V. बंडल्स के दो भाग होते हैं। पहला भाग एट्रिआ और वेंट्रिकल्स को विभाजित करने वाले फ़ायबरस पट्टी में से प्रवास करता है। दूसरा भाग यानी वेंट्रिकल्स के बायें व दाहिनी परकिंजे तंतु। इन परकिंजे तंतुओं में से अ‍ॅक्शन पोटेंशिअल तीव्र गति से वेंट्रिकल्स में फ़ैलता है। इन सब क्रियाओं में भला कितना समय लगता है?

सायनस नोड से शुरु हुये अ‍ॅक्शन पोटेंशिअल ०.१६ सेकेंड़ के बाद वेंट्रिकल्स में पहुँचते हैं। इस प्रवास के चरण इस प्रकार हैं। –

सायनस नोड़ से ए. वि. नोड- ०.०३ सेकेंड़
ए. वि. नोड से ए. वि. बँडल्स- ०.०९ सेकेंड़
(ए. वि. नोड से होनेवाला यह विलंब ध्यान में आता है)
ए. वि. बंडल्स से परकिंजे तंतु- ०.०४ सेकेंड

परकिंजे तंतु :- वेंट्रिकल्स के स्नायुतंतुओं की अपेक्षा ये तंतु बड़े होते हैं। ये अत्यंत तीव्र गति से अ‍ॅक्शन पोटेंशिअल का वहन करते हैं। इन तंतुओं मे अ‍ॅक्शन पोटेंशिअल की गति प्रति सेकेंड़ १.५ मी. से ४ मी. तक होती है। जो वेंट्रिकल्स के स्नायुओं की गति की तुलना में छ: गुना है तथा ए. वि. नोड के तंतुओं की गति की तुलना में १५० गुना है। इस गति के फ़लस्वरुप अ‍ॅक्शन पोटेंशिअल बडी तेज़ी से पूरे वेंट्रिकल्स में फ़ैल जाता है। इस तंतु में प्रथिन के सूक्ष्मतंतु काफ़ी कम होने के कारण में आकुंचित नहीं होते।

हृदय का एक दिशा मार्ग :- ए. वि. नोड बंडल्स की विशेषता यह है कि इसमें से अ‍ॅक्शन पोटेंशिअल एक ही दिशा में प्रवास कर सकते हैं। यह दिशा होती है एट्रिआ से वेंट्रिकल्स। हृदय के कुछ विकारों को छोड़कर अ‍ॅक्शन पोंटेशिअल कभी भी उल्टा यानी वेंट्रिकल्स से एट्रिआ की ओर प्रवास नहीं करता।

ए. वि. बंडल में इस एक दिशा मार्ग के अलावा एट्रिआ और वेंट्रिकल्स के बीच का फ़ायबरस पट्टा भी इन्शुलेटर (insulator) का काम करता है। फ़लस्वरुप वेंट्रिकल्स के स्नायु से अ‍ॅक्शन पोटेंशिअल सीधे एट्रिआ के स्नायु में नहीं पहुँचना। इन दोनों कारणों से हृदय से स्पंदन निश्‍चित वेग पर शुरु रहते हैं। इसमें खराबी आ जाने पर ये स्पंदन अनियमित हो जाते हैं।

हृदय का पेसमेकर :- इससे पहले हमनें देखा है कि सायनस नोड को हृदय का पेसमेकर कहा जाता है। पेसमेकर यानी जो हृदय के स्पंदनों का वेग निश्‍चित करता है। सायनस नोड़ के तंतु self exitatory होते हैं। यह हमनें देखा है। उसी तरह A.V. नोड के तंतु व परकिंजे तंतू दोनों भी self exitatory होते हैं। ऐसा होने के बावजूद भी सिर्फ़ सायनस नोड ही किस तरह पेसमेकर का काम करता है, अब हमें यह देखना हैं। उपरोक्त तीनों स्थानों के तंतु किसी भी बाह्य संवेदना के बिना स्वत: अ‍ॅक्शन पोटेंशिअल का निर्माण करते हैं। परन्तु इनकी भी स्पंदन निर्मिति का वेग अथवा प्रत्येक मिनट की रेट भिन्न-भिन्न होती है। सायनस नोड़ प्रतिमिनट ७० से ८० स्पंदनों का निर्माण करती है। ए.वि. नोड ४०-६० स्पंदनों का निर्माण करती है तथा परकिंजे तंतो १५-४० स्पंदनों का प्रति मिनट निर्माण करती है। इससे यह बात हमारी समझ में आती है कि सायनस नोड का स्पंदन निर्माण का वेग सबसे ज्यादा है।

सायनस नोड में अ‍ॅक्शन पोटेंशिअल निर्मिति का वेग ज्यादा होने के कारण इसका अ‍ॅक्शन पोटेंशिअल ए.वि. नोड और परकिंजे तंतुओं में फ़ैलता है और उसके आवरणों को डिपोलराइज करता है। अ‍ॅक्शन पोटेंशिअल के समाप्त होते ही इन तीनों तंतुओं के आवरण एक ही समय में रिपोलराइझ हो जाते हैं। फ़िर सायनस नोड की डिपोलारायझेशन की लहर इस तंतु के स्वत: डिपोलरायझेशन होने के पहले उसके आवरण पर फ़ैल जाती है व अपनी गति से उसे डिपोलराइज करती है। यह चक्र लगातार इसी तरह शुरु रहता है। फ़लस्वरुप ए.वि. नोड और परकिंजे तंतुओं को स्वयं अपने आवरण को डिपोलाराइज करने का अवसर ही नहीं मिलता। इस प्रकार सायनस नोड़ अपने अंदर के तीव्र गति से निर्मित हुए अ‍ॅक्शन पोटेंशिाल के द्वारा हृदय के स्पंदनों के वेग को नियमित करता है। इसीलिये इसे हृदय का पेसमेकर कहते हैं?

कुछ हृदय की बीमारियों को छोड़कर सायनस नोड की जगह ए.वि. नोड परकिंजे तंतु अथवा हृदय की कोई भी स्नायुपेशी पेसमेकर बन सकती हैं। सायनस नोड़ से बाहर निकलने वाली लहरों में बाधा निर्माण हो जाने पर एट्रिआ हमेशा के सायनस के वेग पर आंकुचित होता है। परन्तु वेंट्रिकल्स का आकुंचन महज़ ५ से २० सेकेड़ों में ही रुक जाता है। इसके बाद परकिंजे तंतु स्वत: वेंट्रिकल्स के पेसमेकर बन जाते हैं और वेंट्रिकल्स १५ से ४० बार आकुंचित होता है। बीच के इस ५ से २० सेकंड़ के समय में मस्तिष्क में रक्त आपूर्ति के रुक जाने के कारण व्यक्ति बेहोश हो जाता है। इस समय के ज्यादा हो जाने पर मृत्यु की भी संभावना हो जाती है।

सिंपथेटिक और पॅरासिंपथेटिक चेतातंतुओं का हृदय के स्पंदनों पर होने वाले परिणामों को हमने इससे पहले देखा है। सिंपथेटिक तंतु हृदय के स्पंदनों का वेग, वेंट्रिकल्स के आकुंचन का फ़ोर्स बढ़ाते हैं। इसके विपरीत पॅरासिंपथेटिक चेतातंतु, स्पंदन का वेग, उनका हृदय में प्रसार दोनों कम करते हैं।

(क्रमश:)

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