स्नायुसंस्था भाग – १६

हम देख रहे थे कि हृदय का पंपिंग का कार्य कैसे होता है। हृदय की एक धड़कन (heart beat)से लेकर दूसरी धड़कन के बीच के समय को हृदय का चक्र कहा जाता है। इस समय में हृदय में कई घटनायें घटती हैं।

हृदय के स्नायुओं की जानकारी प्राप्त करते समय हमने देखा कि हृदय की कुछ पेशियां स्वयं विद्युत्-लहरों की संवेदना तैयार करती हैं और ये लहरें आगे चलकर विशिष्ट तंतुओं में से पूरे हृदय के स्नायुओं में फ़ेले जाती हैं। जहाँ पर इस संवेदन की शुरुआत होती है। उस भाग को S.A.Node(सायनो-अ‍ॅट्रिअल नोड) कहते हैं। यह नोड़ दाहिनी एट्रिअल में ऊपरी हिस्से में होती है। यहाँ से निकलने वाली लहरें संपूर्ण अ‍ॅट्रिअल स्नायु में फ़ैल जाती हैं तथा एट्रिया एवं वेंट्रिकल्स के बीच के भाग में पहुँच जाती है। यहाँ से वे A.V. तंतुओं के मार्फ़त से ही वेंट्रिकल्स में पहुँचती हैं। यहाँ पर एट्रिआ की अपेक्षा वेंट्रिकल्स में ये लहरें पहुँचाने में १/१० सेकेंड़ का समय ज्यादा लगता है। यह कालावधि महत्त्वपूर्ण हैं। वेंट्रिकल्स का आकुंचन तेजी से शुरु होने के पहले ही एट्रिआ का आकुंचन पूरा हो जाता है। फ़लस्वरुप उस समय एट्रिया में उपलब्ध रक्त पूरी तरह वेंट्रिकल्स में पहुँच जाता है। इसीलिये एट्रिआ को प्राथमिक पंप कहा जाता हैं। वेंट्रिकल्स की पंपिंग क्रिया से रक्त हृदय के बाहर पहुँचाया जाता है।

हृदय का चक्र

प्रत्येक हृदयचक्र के (cardiac cycle) के दो प्रमुख भाग होते हैं। हृदय का relaxation अथवा प्रसरण को डायस्टोल (diastole) तथा contraction अथवा आकुंचन को सिस्टोल (systole) कहते हैं।

अ‍ॅट्रिअल प्राथमिक पंप : मुख्य नीलाओं (venis) में से रक्त लगातार एट्रिया में आता रहता है। इसमें से ७५% रक्त सीधे वेंट्रिकल्स में पहुँचता है। इसके लिये एट्रिआ के आकुंचन की आवश्यकता नहीं होती। शेष २५% रक्त ही एट्रिया के आकुंचन से वेट्रिकल्स में जाता है। यह २५% रक्त वेंट्रिकल्स में यदि नहीं आये तो भी शरीर की रेस्टींग स्थिति में शरीर पर इसका कुछ भी परिणाम नहीं होता। क्योंकि वेंट्रिकल्स रेस्टिंग स्थिति के शरीर की आवश्यकता की अपेक्षा ३०० से ४०० प्रतिशत रक्त बाहर पंप कर सकते हैं। यदि किन्हीं कारणों से एट्रिआ का कार्य बंद भी हो जाये तो अचल स्थिति में शरीर पर उसका कुछ भी परिणाम नहीं होता है। परन्तु ऐसी स्थिति में यदि चलकदमी की तो हार्ट फ़ेल्युअर के लक्षण आ सकते हैं।
वेंट्रिक्युलर पंप : इसके कुछ महत्त्वपूर्ण पडाव इस प्रकार हैं –
१) वेंट्रिकल्स के हिस्सों का रक्त से भर जाना : जब वेंट्रिकल्स आकुंचित होते हैं (systole) तब एट्रिआ और वेंट्रिकल्स के बीच के वाल्व बंद होते हैं। फ़लस्वरुप एट्रिआ में रक्त जमा हो जाता है। वेंट्रिकल्स का प्रसरण (diastole) शुरु होने के साथ ही A.V. वाल्व खुल जाते हैं और एट्रिआ का रक्त तेजी से वेंट्रिकल्स में आ जाता है। यह क्रिया वेंट्रिकल्स के प्रसरण की शुरुआत का सिर्फ़ १/३ भाग में ही होती हैं। बीच के १/३ समय में नीलाओं (veins) में आया हुआ रक्त वेंट्रिकल्स में आता रहता हैं। अंतिम १/३ समय में एट्रिआ आकुंचित होता है और शेष २५% रक्त वेंट्रिकल्स में आ जाता है।

२) आकुंचन के समय (systole) वेंट्रिकल्स के रक्त का बाहर निकलना : इसके पहले चरण में वेंट्रिकल्स का आकुंचन शुरु होते ही A.V. वाल्व बंड हो जाते हैं। वेंट्रिकल्स में दबाव बढ़ता जाता है। इस दबाव के एक निश्‍चित सीमा तक पहुँचने के बाद बांयी वेंट्रिकल्स एवं मुख्य रोहिणी के बीच का वाल्व व बांयी वेंट्रिकल्स तथा फ़ेफ़ड़ों की रोहिणी के बीच का वाल्व, इस रक्तवाहिनी के दबाव के विरोध में खुल जाते हैं तथा रक्त इन रक्तवाहनियों में पंप किया जाता है। वेंट्रिकल्स का आकुंचन शुरु होने के बाद से ०.०२ से ०.०३ सेकेंड़ों के बाद ये वाल्व खुलते हैं। इस बीच के समय में वेंट्रिकल्स में दबाव बढ़ता जाता है परन्तु स्नायु की लम्बाई नहीं रहती है। इसी लिये इसे आयसोमेट्रिक (isometric) अथवा आयसोवोलिमिक (isovolumic) आकुंचन कहा जाता है।

इसके दूसरे चरण में वेंट्रिकल्स का रक्त इन वाहिनियों मे पहुँचता हैं। बांयी वेंट्रिकल्स का दबाव ८० mm.Hg और दाहिनी ओर का दबाव ८ mm.Hg से ज्यादा हो जाने कहे बाद ही रक्तवाहनियों के वाल्व खुलते हैं। वाल्व खुलने के साथ ही वेंट्रिकल का ७०% रक्त प्रथम १/३ समय में बाहर आता है तथा शेष रक्त २/३ समय में बाहर आता है।

इसका तीसरा चरण वेंट्रिकल्स के आकुंचन पूरा हो जाने के बाद आता है। वेंट्रिकल्स के relaxation अथवा प्रसरण अचानक शुरु होता है। फ़लस्वरुप वेंट्रिकल्स में दाब तेजी से कम हो जाता है। रक्तवाहिनियों के दबाव की अपेक्षा इस दाब के कम होने के साथ-साथ ही रक्तवाहिनियों के वाल्व बंद हो जाते हैं। इसके बाद भी ०.०३ से ०.०६ सेकेंड तक वेंट्रिकल्स का प्रसरण शुरु ही रहता है। परन्तु उसकी घनता में कोई फ़र्क नहीं होता। इसी लिये इसे आयसोवोलिमिक प्रसरण कहते हैं। इस समाय में वेंट्रिकल्स में दाब कम होता रहता है और अ.त. वाल्व फ़िर खुल जाते है और हृदय का अगला चक्र शुरु हो जाता है।

आज हम यहीं पर रुकते हैं। हृदय के कार्य का अध्ययन अगले लेख में भी हम करते रहेंगें।

(क्रमश:)

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