१३. ‘पासओव्हर’

ज्यूधर्मियों को ग़ुलामी से मुक्ति दिलाने से इन्कार करनेवाले इजिप्त के फ़ारोह पर तथा इजिप्तवासियों पर ईश्‍वर ने जो एक के बाद एक ऐसी नौं आपत्तियाँ भेजीं थीं, उससे फ़ारोह तथा इजिप्तवासी अत्यधिक परेशान हो चुके थे, यहाँ तक कि उनकी रात की नींद तक हराम हो गयी थी। लेकिन हर बार अगली आपत्ति आती ही रही, क्योंकि हर बार फारोह द्वारा किया गया विश्‍वासघात! हर बार उसने दिये हुए- ‘ज्यूधर्मियों को ग़ुलामी से आज़ाद करने के’ वचन का उसने कभी भी पालन नहीं किया।

अब ईश्‍वर ने सबसे दर्दनाक ऐसी दसवीं आपत्ति इजिप्तवासियों पर भेजने का निश्‍चित किया। इस आपत्ति में, ठेंठ फारोह से लेकर हर इजिप्तवासी की पहली संतान, यहाँ तक कि उनके जानवरों के बछड़ें भी – मर जानेवाले थे!

उसी के साथ इस आपत्ति के बारे में फारोह को पहले ही चेतावनी देने के लिए ईश्‍वर ने मोझेस से कहा था, जो काम मोझेस एवं आरॉन ने तुरन्त ही किया। लेकिन इतनी आपत्तियों में से गुज़रकर भी अभी तक अड़ियल रवैया ही अपना रहे फारोह ने, इसके बावजूद भी ज्यूधर्मियों को ग़ुलामी से रिहा करने से इन्कार कर दिया। अब ईश्‍वर की योजना के अनुसार फारोह के पापों का पैमाना छलक पड़ने की कगार पर था।

उसी दिन शुरू हो चुके हिब्रू कॅलेंडर के ‘निस्सान’ महीने के पहले दिन ईश्‍वर ने मोझेस को कुछ सूचनाएँ दीं। उनमें ईश्‍वर ने, पूर्वतैयारी के रूप में ज्यूधर्मियों को जो करना था, उसके बारे में मोझेस को बताया।

इनमें – ‘इस महीने के दसवें दिन, हर एक ज्यूधर्मीय अपने घर में एक मेमने को बाँधकर रखें और चार दिन बाद (महीने के चौदहवें दिन) उसकी बलि ईश्‍वर को अर्पण करें और उस दिन पूरा घर उसकी दावत मनायें और मुख्य बात यानी, इस दावत में आधीकच्ची पावरोटी (‘अनलीव्हन्ड ब्रेड’) का भी सभी लोग समावेश करें’ ऐसी सूचना थी। साथ ही, यह सारा खाना उसी दिन ख़त्म करना है और यदि कुछ बचा, तो उसे दूसरे दिन के लिए न रखते हुए रात को ही आग में फेंक देना है, ऐसा ईश्‍वर का आदेश था।

उसके बाद, उस मध्यरात्रि से पहले हर एक ज्यूधर्मीय अपने घर के दरवाज़े पर एक विशिष्ट चिह्न बतौर संकेत अंकित करें, ऐसा ईश्‍वर ने कहा था। ‘चौदहवे दिन की मध्यरात्रि को यानी पंद्रहवे दिन की शुरुआत होते समय, जब आपत्ति का फेरा पूरे इजिप्त पर कहर ढायेगा, तब जिनके घर पर यह विशेष चिह्न होगा (अर्थात् ज्यूधर्मियों के), उन्हें इससे कुछ ख़तरा नहीं होगा, उन घरों को टालकर (‘पासओव्हर’ – ‘पासिंग विदाऊट टचिंग’) यह आपत्ति आगे चली जायेगी। लेकिन जिनके घरों पर यह चिह्न नहीं होगा, उनके घर में जन्मी हुई पहली सन्तान, फिर चाहे वह कितनी भी छोटी या बड़ी क्यों न हों, वह पहले दी गयी चेतावनी के अनुसार मर जायेगी’ ऐसा ईश्‍वर ने स्पष्ट रूप से कहा था।

साथ ही, ‘यह ‘निस्सान’ महीना इसके आगे ज्यूधर्मियों का सर्वोच्च महत्त्वपूर्ण महीना माना जायेगा और तुम ज्यूधर्मीय अगली सभी पीढ़ियों में हर साल निस्सान महीने की १५ तारीख़ से ७ दिन, इस घटना की स्मृति के रूप में यह ‘पासओव्हर’ उत्सव मनाओगे’ ऐसी भी आज्ञा ईश्‍वर ने की।

ज़ाहिर है, भगवान के बतायेनुसार ही घटित हुआ और पंद्रहवे दिन पूरे इजिप्त में, यहाँ तक कि फारोह के राजमहल में भी हाहाकार मच गया। सर्वत्र मातम का वातावरण फैल गया और सभी ओर से केवल दुख से रोने की आवाज़ें सुनायीं देने लगी थीं। सुखशांति में थे, केवल ज्यूधर्मीय, जो ईश्‍वर की इस लीला के लिए पुनः पुनः कृतज्ञताभाव प्रकट कर रहे थे।

इस ‘ग़ुलामी से मुक्ति’ के घटनाक्रम के स्मरण हेतु ज्यूधर्मीय आज भी, उनके ‘निस्सान’ इस सबसे महत्त्वपूर्ण महीने के पंद्रहवें दिन से सात दिन ‘पासओव्हर’ उत्सव मनाते हैं। इस उत्सवकाल की एक प्रमुख परिपाटि – ‘खाने में ऐसी कच्ची ही पावरोटी (अनलीव्हन्ड ब्रेड) होना’ यह होती है।

ईश्‍वर के बतायेनुसार ही, इस दसवीं आपत्ति का आघात होने के बाद फारोह के होश ठिकाने आ गये और फारोह उसी दिन घुटने टेककर मोझेस की शरण में आया। उसने मोझेस को बुलाया और ‘ज्यूधर्मियों को इजिप्शियन लोगों की ग़ुलामी से अभी, इसी व़क्त रिहा किया जा रहा है और तुम लोग बिना किसी शर्त के, जहाँ जाना चाहते हो वहाँ, अपनी जो चाहें वे चीज़वस्तुएँ ले जाने के लिए आज़ाद हो’ ऐसी आज्ञा जारी की और ‘….लेकिन अब अधिक आपत्तियाँ मत भेजो’ ऐसी विनती करते हुए, ‘अपने ईश्‍वर को मुझपर करुणा करने के लिए कहो’ ऐसी मोझेस की मिन्नतें कीं।

आख़िर….
….इतनी सदियों की प्रतीक्षा के बाद ‘वह’ घड़ी आ गयी थी….ज्यूधर्मियों की इजिप्त की ग़ुलामी में से मुक्तता हुई थी!

ज्यूधर्मियों पर खुशी का माहौल छा गया था, लेकिन यह खुशी यथेच्छ रूप में मनाने के लिए उन्हें उस समय तो फुरसद नहीं थी।

क्योंकि ईश्‍वर ने मोझेस को यह भी बताया था कि ‘जिस दिन ग़ुलामी से छुटकारा मिलेगा, उसके बाद एक दिन भी ज़ाया न करते हुए, उसी दिन ज्यूधर्मीय इजिप्त में से बाहर निकलने की शुरुआत करेंगे।’

इस कारण ज्यूधर्मियों ने गत पंद्रह दिनों में अपनी सारी चीज़वस्तुएँ बाँधकर रखीं ही थीं। अपने मवेशियों के झुँड़ भी सुसज्जित रखे थे। ‘ज्यूधर्मियों को इजिप्तवासियों की ग़ुलामी से रिहा करने की’ फारोह की आज्ञा घोषित की जाते ही, ज्यूधर्मीय शीघ्रतापूर्वक अपनी चीज़वस्तुएँ एवं जानवरों के झुँड़ लेकर, पहले निर्देशित किये स्थान पर इकट्ठा होने लगे। उसीके साथ, इन आपत्तियों के कारण डरे हुए इजिप्तवासियों ने भी उन्हें बिदा करते हुए सोनाचाँदी, गहने, कपड़ालत्ता ऐसीं कई मूल्यवान् चीज़ें उन्हें उपहारस्वरूप दे दीं थीं। उन्हें भी ज्यूधर्मियों ने अपने साथ लिया था। अब वे ग़रीब नहीं रहे थे।

बायबल में लिखित वर्णन के अनुसार, लगभग ६ लाख ज्यूधर्मीय पुरुष अपने बिवीबच्चों तथा परिजनों के साथ वहाँ पर इकट्ठा हुए थे। मुख्य बात यह थी कि इस सारे घटनाक्रम के कारण, ज्यूधर्मियों के उज्ज्वल भविष्य का अँदाज़ा होनेवाले कुछ इजिप्शियन लोग भी उनमें शामिल हुए थे।

फ़ौरन ही इन सबको सुव्यवस्थित एवं सुनियंत्रित रूप में इजिप्त से बाहर ले जाने का काम, मोझेस की देखरेख में शुरू भी हुआ।

इस अगले प्रवास में ईश्‍वर ने ही उन्हें मार्ग दिखाया, ऐसा भी वर्णन इस कथा में आता है। इतनी बहुत बड़ी संख्या में चल रहे ज्यूधर्मीय रास्ता न भटकें, इसलिए ईश्‍वर दिन में एक बादलों के स्तंभ के रूप में और रात को एक अग्निस्तंभ के रूप में इस समूह के आगे चल रहे थे, ऐसा यह कथा बताती है।

ज्यूधर्मियों के इतिहास की इस सबसे महत्त्वपूर्ण घटनाक्रम की – जिसका नामाभिधान बायबल में ‘एक्झोडस्’ (ज्यूधर्मियों का इजिप्त में से आज़ाद होकर बाहर निकलना) ऐसा किया गया है – उसकी शुरुआत हो चुकी थी! (क्रमश:)

– शुलमिथ पेणकर-निगरेकर

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