३४. इस्रायल के लिए नया राजा चुनने की तैयारी

सौल ने सॅम्युएल की भविष्यवाणी सुनी ही थी और शान्त मन से उसका स्वीकार भी किया था। लेकिन ‘वह’ दिन आने तक उसपर सौंपा गया काम वह निष्ठापूर्वक करेगा, ऐसा उसने तय किया था।

इस कारण फिलिस्तिनियों पर विजय पाकर उन्हें कॅनान प्रान्त से निकाल बाहर कर देने के बाद सौल की नज़र अब कॅनान प्रान्त में डेरा जमाकर बैठीं और ज्यूधर्मियों को निरन्तर परेशान कर उनकी शान्ति हरण करनेवालीं आमलेकी, मोआबी, एडोमी आदि अन्य शत्रुटोलियों पर पड़ी।

सर्वप्रथम आमलेकी टोली को नेस्तनाबूद कर देने का ‘ईश्‍वरी आदेश’ उसे प्राप्त हुआ। ये वही आमलेकी टोलीवाले थे, जिन्होंने ज्यूधर्मियों की रेगिस्तान में हो रही मार्गक्रमणा के दौरान उनपर विनावजह हमला किया था। इजिप्शियनों की ग़ुलामी में से छूटने के बाद की ज्यूधर्मियों की वह पहली ही लड़ाई थी।

इसी कारण ‘आमलेकी टोलीवालों को, बेरहमी से, उनकी सारी संपत्ति के साथ और मवेशियों के झुँड़ों के साथ नष्ट करें; क्योंकि इनमें से कोई भी ज़िन्दा रहा, ते भविष्य में, कॅनानप्रान्त में बस चुके ज्यूधर्मियों को निरन्तर परेशान करते हुए, ज्यूधर्मियों के लिए हमेशा सिरदर्द बन जायेंगे’ ऐसा सुस्पष्ट आदेश ईश्‍वर ने दिया होने का वर्णन इस कथा में आता है।

सौल ने लगभग दो लाख से भी ज़्यादा सेना को अपने साथ ले लिया और घमासान युद्ध कर ईश्‍वर के आदेश के अनुसार आमलेकी टोलीवालों के सभी छोटेबड़े सदस्यों का क़त्लेआम कर दिया।

लेकिन सौल चाहे कितना भी पराक्रमी क्यों न हों, वह था आखिर मानव ही। अतः उसमें कई मानवीय दोष भी थे। एक तो उसका स्वभाव अति शक्की था। अपने खिलाफ़ साज़िशें चल रही हैं, ऐसा शक़ हमेशा उसके मन में होता था। दूसरी बाद यानी वह हमेशा – ‘लोग क्या कहेंगे’ इसी के बारे में सोचता रहता था और कई बार अकारण अतिसौजन्यपूर्वक पेश आता था।

इसी अकारण अतिसौजन्य के कारण, आमलेकी टोलीवालों का प्रमुख अगाग उसके हाथ लगा होने के बावजूद भी, उसे मार देने के बदले, उसके गिड़गिड़ाने के कारण उसे जिन्दा क़ैद में रखा था। साथ ही, आमलेकी टोलीवालों के सब के सब मवेशियों को भी मार देने के बजाय, उसने लोगों के कहने पर उनमें से कई बेहतरीन जानवर ज्यूधर्मियों के लिए अपने कब्ज़े में ले लिये….‘खूँखार आमलेकी टोलीवालों को उनकी सारी की सारी संपत्ति के साथ नष्ट कर दें’ ऐसा ईश्‍वर का सुस्पष्ट आदेश होने के बावजूद भी।

स्वाभाविक रूप में, ईश्‍वर को यह आज्ञाभंग पसन्द नहीं आया और उसने वैसा सॅम्युएल को बताया। सॅम्युएल ग़ुस्सा होकर सौल के पास आया और ईश्‍वर का सन्देश बताकर उसने सौल से स्पष्टीकरण की मॉंग की। तब ‘ये बेहतरीन जानवर मैंने ईश्‍वर के सामने बली चढ़ाने के लिए बचाकर रखे थे’ ऐसा बहाना सौल ने बनाया। उसपर – ‘ईश्‍वर की आज्ञा ज़्यादा अहमियत रखती है या यह बलि चढ़ाना’ ऐसी खरी खरी सॅम्युएल ने उसे सुनायी।

लेकिन एक और सवाल बाक़ी ही था – सौल ने न मारते हुए ज़िन्दा ही पकड़े आमलेकी टोलीप्रमुख अगाग का। सॅम्युएल ने उसे अपने सामने ले आने के लिए सौल से कहा और उसे सॅम्युएल के समक्ष लाये जाते ही सॅम्युएल ने उसे मार दिया।

अब अपनी ग़लती का एहसास सौल को हो चुका था और उसने ईश्‍वर के पास अपनी तरफ़दारी करने की याचना सॅम्युएल के पास की। लेकिन सॅम्युएल ने दिल पर पत्थर रखकर उससे मुँह फेर दिया और वे दोनों विरुद्ध दिशा में चले गये….फिर कभी भी न मिलने के लिए। एक आम इन्सान से इस्रायल का पहला राजा होने तक का सौल का प्रवास आँखों के सामने ही हुए सॅम्युएल को भी सौल के पतन का दुख था ही।

इसी दौरान सॅम्युएल को ईश्‍वर का दृष्टान्त हुआ। लगातार ईश्‍वर का आज्ञाभंग करनेवाले सौल को अब ‘राजा’ के पद पर रखना ठीक नहीं होगा, ऐसा ईश्‍वर नेे उसे बताया। उसी के साथ, ईश्‍वर ने उसे बेथलेहेम नगरीस्थित ज्युडाह की ज्ञाति में से ‘जेसी’ नामक ज्यूधर्मीय के पास जाने के लिए कहा। उसके आठ बेटों में से एक ज्यूधर्मियों का अगला राजा होगा, ऐसा भविष्यवाणी का उच्चारण ईश्‍वर ने किया।

सॅम्युएल कुछ धार्मिक विधियॉं करने के बहाने बेथलेहेम में जेसी के घर पहुँचा। खुद सॅम्युएल को अपने घर आया देखकर जेसी को चिन्ता होने लगी कि ‘कहीं अपने हाथों कोई गुनाह तो नहीं हुआ?’ लेकिन ‘मैं केवल ईश्‍वर को नैवेद्य अर्पण करना आदि कुछ धार्मिक विधियॉं करने यहॉं आया हूँ’ ऐसा झूठमूठ ही कहकर सॅम्युएल ने उसे आश्‍वस्त किया और उसके परिवार को वहॉं पर इकट्ठा ले आने के लिए उसे कहा।

सॅम्युएल ने सुगंधित तेल आदि पूजनद्रव्यों से, बतौर ‘इस्रायल का नियत राजा’ डेव्हिड़ का अभिषेक किया।

एक एक करके जेसी के सात पुत्र सॅम्युएल के सामने आये, लेकिन हर बार ‘यह ‘वो’ नहीं है’ ऐसा दैवी एहसास सॅम्युएल को होता रहा। उतने में उसेयाद आया कि जेसी के आठ पुत्र हैं और फिर उसने आठवें के बारे में जेसी से पूछा। वह जेसी का सबसे छोटा बेटा ‘डेव्हिड’ मवेशियों को चराने लेकर गया था। उसे जब सॅम्युएल के सामने लाया गया, तब उसे देखने पर ‘यही है वह’ ऐसा दैवी संकेत सॅम्युएल को मिला और उसने एकान्त में जेसी को आश्‍वस्त कर उसे ईश्‍वरी योजना के बारे में बताया और सुगंधित तेल आदि पूजनद्रव्यों से ‘इस्रायल का नियत राजा’ के तौर पर डेव्हिड का अभिषेक किया। लेकिन इस बदलाव को सौल किस तरह प्रतिसाद देगा यह मालूम न होने के कारण, फिलहाल तो इस ख़बर को गुप्त रखने के लिए सॅम्युएल ने जेसी से कहा।

डेव्हिड़ ने निराश हुए सौल को हार्पसंगीत सुनाया।

जिस पल यहॉं डेव्हिड को ‘इस्रायल का नियत राजा’ के रूप में अभिषेक किया गया, उसी पल सौल के शरीर में संचार करनेवाली दैवी शक्ति उसे छोड़कर चली गयी और उसका संचार डेव्हिड के देह में होने लगा और सौल को एक बुरी शक्ति परेशान करने लगी, ऐसा यह कथा बताती है।

यह घटित होने पर अचानक सौल को प्रचंड निराशा ने एवं विफलता ने घेर लिया। उसमें से उसे बाहर निकाल ने के सभी उपाय नाक़ाम हुए। उसके दरबारी अधिकारी भी चिन्ता में पड़ गये। आख़िरकार किसी ने सुझाव दिया की इसपर ‘अच्छा दैवी संगीत’ यह उपाय साबित हो सकता है। दरबार के कुछ लोग बेथलेहेम के एक ऐसे युवा के बारे में जानते थे, जो ईश्‍वर पर अच्छी कविताएँ भी करता था और उसके बेहतरीन संगीत के लिए भी मशहूर था। यह ईश्‍वरी योजना का ही भाग था, क्योंकि इन दरबारी लोगों को ज्ञात होनेवाला वह युवा यानी ‘डेव्हिड’ ही था! (डेव्हिड द्वारा लिखे गये कई काव्यों का आगे चलकर बायबल में भी समावेश किया गया। ‘लॉर्ड इज माय शेफर्ड….’ यह बायबलस्थित सुविख्यात प्रार्थना डेव्हिड द्वारा ही लिखी गयी है।)

इस प्रकार डेव्हिड का राजमहल में प्रवेश हो गया। लेकिन सौल यह बिलकुल भी नहीं जानता था कि उसके सामने इस्रायल का नियत राजा खड़ा है। लेकिन बहुत ही शान्त, विचारी, निर-अहंकारी और ईश्‍वरभक्त होनेवाले डेव्हिड के दिल में सौलके बारे में किसी भी प्रकार की द्वेष की, मत्सर की भावना नहीं थी और जिस काम के लिए उसे बुलाया था, वह काम यानी राजा सौल को निराशा में से बाहर ले आने के लिए संगीत सुनाना, उसे वह प्रामाणिकता से कर रहा था। डेव्हिड ‘हार्प’ नामक तंतुवाद्य बेहतरीन रूप से बजाता था। उसने अपने हार्पवादन से सौल पर मानो जादू ही किया। थोड़े ही समय में सौल की निराशा दूर भाग गयी और डेव्हिड मानो सौल की आँखों का तारा ही बन गया।(क्रमश:)

– शुलमिथ पेणकर-निगरेकर

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