११. मोझेस को ईश्‍वर का दृष्टान्त; ईश्‍वर के नाम का पहली बार उच्चारण

अब मोझेस ४० वर्ष का हो चुका था। अपने अंगभूत सद्गुणों के कारण तथा अपने ज्यूबांधवों के प्रति उसके मन में होनेवाली अनुकंपा के कारण इजिप्त स्थित ज्यूधर्मियों का मानो नायक ही बने मोझेस का मन, अपने ज्यूबांधवों पर तत्कालीन इजिप्शियन लोगों से ढ़ाये जानेवाले कहर के बारे में गंभीरतापूर्वक सोचने लगा था। अपने बांधवों को इस ज़्यादती से कैसे छुड़ायें, इसी के बारे में वह हमेशा सोचता रहता था। लेकिन इन ग़ुलाम बनाये गये ज्यूधर्मियों पर फ़ारोह की तथा कुल मिलाकर तत्कालीन इजिप्शियन समाजव्यवस्था की ही पकड़ इतनी मज़बूत थी की उसे उनकी रिहाई का मार्ग ही नहीं दिखायी दे रहा था। ऐसे में उसे केवल – बचपन से उसे माँ की सीख में से तथा ज्यूधर्मियों के पारंपरिक ज्ञान में से जिस ईश्‍वर की जानकारी प्राप्त हुई थी, उसी का केवल सहारा दिखायी दे रहा था।

इसी दौरान एक अलग ही घटना घटित हुई। एक दिन मोझेस हररोज़ की तरह गोशेन प्रांत में गया था। उसके ज्यूबांधव रोज़मर्रा की तरह ही ग़ुलामी में स़ख्त मेहनत कर रहे ही थे। ऐसे दस-बीस ज्यूधर्मीय लोगों पर एक इजिप्शियन मुकादम रहता था। दिया हुआ काम उनसे करवा लेने की ज़िम्मेदारी उस मुकादम पर रहती थी और उसे वह चाबूक के ख़ौ़फ़ से ही उनसे करवा लेता था।

उस दिन भी सभी जगह यही चल रहा था। लेकिन एक जगह एक मुकादम, दिया हुआ काम एक थकेमाँदे ज्यूधर्मिय से नहीं हो रहा था, उस कारण उसे बहुत ही क्रूरता से चाबूक से कोड़े मार रहा था। मोझेस के ग़ुस्से का पारा चढ़ता ही जा रहा था। रात को सभी लोग अपने अपने घर सोने चले जाने के बाद मोझेस ने उस इजिप्शियन मुकादम के एक निर्जन रास्ते पर पकड़ लिया और बहुत ही पीटा; इतना कि उसमें उस मुकादम की मृत्यु हो गयी। मोझेस ने हालाँकि उसे समुद्री क़िनारे पर गहरा गड्ढा खोदकर उसमें द़फ़ना दिया, लेकिन यह ख़बर जैसे तैसे फ़ारोह तक पहुँच ही गयी। फ़ारोह ने ग़ुस्सा होकर मोझेस को मौत की सज़ा सुनायी। लेकिन फ़ारोह द्वारा ऐसी सज़ा सुनायी जा सकने की संभावना को मद्देनज़र करते हुए मोझेस ने वहाँ से पहले ही पलायन किया था। (कुछ स्थानों पर ऐसा भी उल्लेख पाया जाता है कि मोझेस को दी गयी मृत्युदंड की सज़ा पर अमल करनेवाले की कुल्हाड़ी मोझेस की गर्दन पर चलने के बावजूद भी उसकी गर्दन उड़ा न सकी, क्योंकि उसके रक्षणकर्ता ईश्‍वर ने उसकी गर्दन को पत्थर जैसा कठिन बनाया था। उसके बाद फ़ैले असमंजसता के माहौल का फ़ायदा उठाकर मोझेस इजिप्त से फ़रार हो गया।)

वहाँ से निकल पड़ा मोझेस पहुँचा, वह मिडियन प्रांत में। इस प्रान्त में रहनेवाले लोग यानी अब्राहम को अपनी तीसरी पत्नी केतुरा से जो बच्चें हुए, उनमें से ‘मिडियन’ नामक बेटे के वंशज होने के उल्लेख पाये जाते हैं।

वहाँ पहुँचकर उसने देखा कि एक जलस्रोत के पास ७ लड़कियाँ अपने भेड़बक़रियों के झुँड़ों को पानी पिलाने आयी थीं, लेकिन पहले पानी पिलाने के मुद्दे को लेकर वहाँ के अन्य स्थानीय गड़रियों (चरवाहों) के साथ उनका झगड़ा हुआ और उन गड़रियों ने इन लड़कियों को उनके झुँड़ों को पानी पिलाने नहीं दिया और वहाँ से जबरन् भगा दिया। मोझेस को यह नाइन्सा़फ़ी प्रतीत हुई और उसने उन लड़कियों को वापस बुलाकर, उन्हें प्रतिबंध करनेवालों को अपनी ताकत के बलबूते पर ख़ौ़फ़ जमाकर, उन लड़कियों को उनके झुँड़ों को पानी पिलाने दिया। वे वहाँ के ‘जेथरो’ नामक एक स्थानीय पुरोहित की बेटियाँ थीं। उन्होंने घर जाकर अपने पिता से सारी बात बयान करने के बाद जेथरो ने मोझेस को कृतज्ञतापूर्वक अपने घर बुलाया और वह बाहरगाँव से यहाँ आया है यह जानने के बाद उसे अपने घर में ही वास्तव्य करने का निमंत्रण दिया। इस सारे घटनाक्रम में जेथरो की एक बेटी को – झिपोरा को मोझेस से प्रथमदर्शन में ही प्यार हुआ था।

अब यहाँ मोझेस की नयी ज़िन्दगी शुरू हुई। राजा ने सुनायी सज़ा का ख़ौ़फ़ दिल में रहने के कारण उस समय तो वह इजिप्त लौट नहीं सकता था। इसलिए मिडियन प्रांत ही उसकी नयी कर्मभूमि बनी। कुछ समय बाद झिपोरा से उसकी शादी हो गयी और यथावकाश उनके दो बच्चें भी हुए। उनके नाम ‘गेरशॉम’ और ‘एलिझर’ ऐसे रखे गये।

ऐसे एक-दो नहीं, बल्कि पूरे चालीस साल तक मोझेस ने वहाँ वास्तव्य किया। वह अपनी उपजीविका के लिए जो काम करता था, उनमें अपने ससुराल के भेड़बक़रियों के झुँड़ों को हररोज़ चराने ले जाना यह मुख्य काम था।

इसी दौरान, मोझेस के लिए बनायी गयी ईश्‍वरीय योजना अपना मार्ग चल ही रही थी। केवल उचित क्षण की प्रतीक्षा कर रही थी…

…और ज्यूधर्मियों का नसीब पलटनेवाली ‘वह’ घटना घटित हुई!

वह हुआ यूँ – ऐसे ही एक दिन जब मोझेस भेड़बक़रियों को चराने जंगल में ले गया था, तब उनमें से एक मेमना (भेड़ का बच्चा) कहीं दिखायी नहीं दे रहा है यह उसकी समझ में आया और वह उस मेमने की खोज में यहाँवहाँ घूमने लगा। खोज करते करते उसे उसके मेमने की आवाज़ सुनायी देने लगी। आवाज़ की खोज करते करते वह वहाँ के ‘माऊंट हॉरेब’ पर्बत पर चढ़ा, तब वहाँ उसे वह खोया हुआ मेमना मिल गया। उसे लेकर वह लौटने ही वाला था कि तभी उसे एक बहुत ही चमत्कारिक दृश्य दिखायी दिया।

उसने देखा कि वहीं के एक छोटे पौधे से आग की ज्वालाएँ बाहर आ रहीं हैं (‘द बर्निंग बुश’)। लेकिन उन ज्वालाओं के कारण वह पौधा जलता हुआ दिखायी नहीं दे रहा था। यह विलक्षण घटना देखकर भयचकित हुआ मोझेस जगह पर ही स्तंभित होकर खड़ा रह गया। थोड़ी देर में उसे पौधे से एक आवाज़ सुनायी दी और वह आवाज़ उसे ही बुला रही थी – ‘‘मोझेस….मोझेस!’’

वह आश्‍चर्य से दंग रह गया और यह माजरा क्या है, यह वह नज़दीक जाकर देखने ही वाला था कि तभी उस आवाज़ ने अपना परिचय दिया। वह ‘वही’ अब्राहम का-आयझॅक का-जेकब का, ज्यूधर्मियों का ईश्‍वर था। जिस भूमि पर मोझेस खड़ा था, वह पवित्र भूमि है, ऐसा कहकर ईश्‍वर ने उसे अपने जूतें उतारकर पास आने के लिए कहा। मोझेस को पहले विश्‍वास ही नहीं हो रहा था। बचपन से जिसके बारे में अपनी माँ से केवल सुना था, ज्यूधर्मियों के पारंपरिक ज्ञान में से जिसका परिचय हुआ था, वह ईश्‍वर उसके साथ बात कर रहा था!

उसके बाद ईश्‍वर ने मोझेस से यह कहा कि ‘अपनी इस्रायली संतानों के कष्ट वह देख रहा है और वे ख़त्म होने की घड़ी अब नज़दीक आयी है और यह कार्य मोझेस के हाथों ही होनेवाला है।’ मोझेस को अब यहाँ से पुनः इजिप्त लौटना है और फ़ारोह से मिलकर ‘मैं ज्यू बांधवों को लेकर इजिप्त में से निकलनेवाला हूँ’ ऐसा कहकर, उन्हें ग़ुलामी में से आज़ाद करने के लिए फ़ारोह से कहना है, ऐसा ईश्‍वर ने मोझेस को बताया।

इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी क्या वह अपने कंधों पर उठा सकेगा, इस बात को लेकर मोझेस के मन में थोड़ासा सन्देह ही था। इतना ताकतवर फ़ारोह मेरे जैसे आदमी का कहा थोड़े ही सुननेवाला है, यही विचार उसके मन में आया। साथ ही, फ़ारोह ने उसे सुनायी हुई मृत्युदंड की सज़ा का ख़ौ़फ़ उसके मन में था ही। इस कारण मोझेस ने कई बहानें बनाये, जिन्हें ईश्‍वर ने शांति से समर्पक उत्तर देकर उन बहानों को ख़ारिज कर दिया। मोझेस के उच्चारण में उस समय कुछ उच्चारणदोष भी था, वह भी कारण उसने बताया कि ‘ऐसा होते हुए वह भला कैसे फ़ारोह से बात करेगा?’ उसपर ईश्‍वर ने – ‘तुम्हारा भाई आरॉन तुम्हारी ओर से बात करने का काम करेगा’ ऐसा उपाय बताया और आख़िर में – ‘ज्यूधर्मियों को इजिप्त की ग़ुलामी में से रिहा कराने का काम तुम्हारे ही हाथों होनेवाला है’ ऐसा स्पष्ट रूप से मोझेस से कहा।

अब मोझेस ने आख़िरी प्रश्‍न पूछा, ‘‘मैं जब कहूँगा कि ‘मुझे ईश्‍वर मिला था’ तब मेरे बांधव मुझपर कैसे यक़ीन करेंगे? कम से कम हे ईश्‍वर, तुम्हारा नाम तो क्या बताऊँगा?’’

उसपर – अब्राहम से लेकर उसकी अगली पीढ़ियों के वंशजों को दृष्टान्तों के ज़रिये मिले ईश्‍वर ने पहली ही बार अपना नाम घोषित किया, ‘‘येहवा!’’ (‘वायएचडब्ल्यूएच’); जिस शब्द का हिब्रू भाषा में ‘सर्वोच्च ईश्‍वर’ ऐसा अर्थ होता है। (क्रमश:)

– शुलमिथ पेणकर-निगरेकर

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