मानवी शरीरशास्त्र का परिचय

Anterior view of the heart and lungs within a male x-ray body.

आज से हम अपने ही शरीर का नये सिरे से पहचान करनेवाले हैं | इस लेखमाला का विषय है ‘‘मानव शरीर रचना व कार्य’’ (ह्यूमन ऍनाटॉमी एंड ​फिजिओलॉजी) | घ़बराओ नहीं, यहॉं पर वैसा अभ्यासक्रम नहीं सिखना है जैसाकि वैद्यकीय विद्यार्थियों को सिखाया जाता है | बल्कि सर्वसामान्य व्यक्तियों को समझ में आनेवाले शब्दों में हम अपने जीवित शरीर की जानकारी प्राप्त करनेवाले हैं |

परमेश्वर ने निसर्ग की सर्वोत्तम कलाकृति के रुप में मानव का निर्माण किया| यह सुंदर देह हमें प्राप्त हुआ| अतः इसकी थोड़ी जानकारी तो हमें होनी चाहिए| मेरी पॉंच ज्ञानेंद्रियों तथा पॉंच कर्मेंद्रियों, अन्य अवयवों व अवयवों संस्थाओं के नाम मुझे ज्ञात होते हैं | त्वचा, नाक, कान, आँखे व जीभ आदि मेरी ज्ञानेंद्रियॉं हैं | दो हाथ, पैर, व विसर्जन करनेवाले अवयव मेरी कर्मेंद्रियॉं हैं| मस्तिष्क फफडे, हृदय, पित्ताशय, आँते, गर्भाशय, किड़नी इत्यादि के बारे में मुझे थोडी बहुत जानकारी होती हैं | ये जीवित अवयव कैसे और कौन से कार्य करते हैं इसकी जानकारी यदि मुझे हो जाये तो मुझे ही मेरे शरीर की पहचान एक नये तरीके से हो जायेगी, है ना ! मेरी सॉंसे, मेरे हृदय के स्पंदन सतत शुरु रहते हैं | यह कैसे होते रहता है ? उनका नियंत्रण कौन करता है ? इनमें कौन-कौन सी खराबियां आ सकती हैं ? ये खराबियॉं क्यों होती हैं ? इन सबकी जानकारी हम प्राप्त करनेवाले हैं |

हम सर्वप्रथम यह देखेंगे कि ‘शरीर रचनाशास्त्र’ अर्थात ऍनॉटॉमी का क्या अर्थ है | सरल भाषा में अपने शरीर की बाह्य व आंतरिक रचना की जानकारी प्रदान करनेवाला शास्त्र यानी ‘‘शरीर रचना शास्त्र’’ | परंतु ऍनाटॉमी सिर्फ इतना ही नहीं करता | यह एक ऐसा सर्वसमावेशक शास्त्र है कि जो अपने शरीर की सारी क्रियाओं, सभी अवयवों, उनके कार्यों तथा एक-दूसरे के साथ उनकी सुसुत्रता (लिंक) का ज्ञान अपने को प्रदान करता है |

हम संक्षेप में इसके इतिहास का अध्ययन करेंगे| शरीररचना शास्त्र का प्रथम विद्यालय ऍलॅक्सीडीटी में इ.पू. ३०० से इ.पू. २०० वर्ष तक कार्यरत था| ‘‘हिरो​फिलिस’’ व ‘‘इंरासिस्टेट’’ जैसे इस शास्त्र के विशेषज्ञ शिक्षक उस समय मृत मानव के शरीर का अध्ययन करके, उसका ज्ञान विद्यार्थियों को देते थे| शास्त्रज्ञ गॅलेन (इ.स. १३० से इ.पू. २००) ‘‘शरीर रचना शास्त्र’’ के ‘जनक’ माने जाते थे| परंतु इस विषय पर पहली पाठ्यपुस्तक इ.स. १५४३ में प्रकाशित हुई| उसके लेखक २९ वर्ष आयु के आंद्रे वॅसिली थे| उस समय सारा अध्ययन मृत मानव के शरीर पर किया गया| धीरे-धीरे शास्त्रज्ञों को उसमें खामियां नजर आने लगी| जीवित चलते-फिरते मनुष्य की देह रचना, उसके कार्यों को समझने की जिज्ञाशा बढने लगी| उसके फलस्वरुप ही आज के विकासित शास्त्र का निर्माण हुआ|  वैद्यकीय क्षेत्र की अन्य सभी शाखाओं की तरह ही यह शास्त्र भी नित्यनूतन व प्रगतिशील होता जा रहा है|

अपने ‘‘स्व’’ की पहचान, अहसास (अनुभूति), बाह्य जगत का परिचय तथा आनेवाले अनुभवों को पूरी तरह समझने का माध्यम अपना शरीर ही तो हैं | इस शरीर के कारण ही मानव का संबंध अन्य मानवों से स्थापित हो सका | अपना शरीर ही अनुभवों पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करता है | शरीर के बिना हम बाह्य जगत से संपर्क ही नहीं कर सकते | इसीलिये शरीर महत्त्वपूर्ण है | यह सब कुछ किस तरह घटित होता रहता है, इसका अध्ययन हम करनेवाले हैं |

सभी सजीवों की रचना व कार्यों की जड़ है पेशी| (सेल)सजीवों में एकपेशीय (एक पेशी से ही बना हुआ अमीबा, बॅक्टेरिया इ.) से लेकर अनेक पेशीय (एक की अपेक्षा अधिक पेशियों से बने हुये) सजीव हैं | मनुष्य बहुकोशीय सजीव हैं | इन अनेकों पेशियों से शरीर की रचना किस तरह होती हैं ? इसके विभिन्न स्तर अग्रलिखित हैं –

१) अनेक पेशियों से एक ‘ऊतक’ बनता है |

२) विभिन्न ऊतकों के एक साथ आने पर ‘अवयव’ बनता है |

३) कुछ अवयवों के एकत्र आने से अवयव समूह बनता है |

इसकी सविस्तर जानकारी हम विभिन्न स्तरों पर प्राप्त करनेवाले हैं | मानव शरीर की कुछ खास विशेषताएँ हैं | ये विशेषताएँ कौन-कौन सी हैं, हम उनकी जानकारी प्राप्त करके आज के लेख का समापन करेंगे|

१) दो पैरों पर सीधा खडा रहनेवाला शरीर हमें प्राप्त हुआ है| ङ्गलस्वरुप अन्य प्राणियों के अगले दो पैरों का स्थान हमारे हाथों ने ले लिया है |

२) हाथ और पैरों से पकड़ने की क्षमता| हमारे हाथों के अंगूठे इस मामले में अद्वितीय हैं| हमारा अंगूठा अनेक कोनों में घूमता हैं जिसके कारण अनेकों कृतियॉं सहजसिद्ध हो जाती हैं |

३) शरीर के सामने के भाग में रहनेवाली आँखें तथा दोनों आंखों का एकत्रित उपयोग करनेवाली दृष्टि| ङ्गलस्वरुप किसी भी वस्तु पर हम एक ही समय पर दोनों आँखों से लक्ष केंद्रित  कर सकते हैं |

४) मानव के पास अन्य प्राणियों की तुलना में काङ्गी बड़ा मस्तिष्क है| इतना बड़ा मस्तिष्क (१३०० से १४०० ग्राम वजनवाला) अन्य किसी भी प्राणी का नहीं होता|

उपरोक्त बातों का विचार करने पर पता चलता है कि वास्तव में, परमेश्वर ने ऐसी सुंदर विशेषताएं अन्य किसी भी सजीव को नहीं दी हैं|

मॉं के गर्भ में पलनेवाले एकपेशीय गर्भक से नौ महिनों में रक्त-मॉंस का शरीर कैसे बनता है, इसकी जानकारी अब हम प्राप्त करेंगें |

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