हृदय एवं रक्ताभिसरण संस्था – ३३

पिछले लेख में हमनें कार्डिआक आऊटपुट का महत्त्व देखा। हमने देखा कि वेनस रिटर्न के आधार पर कार्डिआक आऊटपुट तय होता है। पेशियों के अवयवों की आवश्यकता के अनुसार कार्डिआक आऊटपुट बढ़ जाता है, ऐसी जानकारी हमनें प्राप्त की। उदा. यदि कोई व्यक्ति व्यायाम कर रहा हो तो स्नायुओं की बढ़ी हुयी आवश्यकतानुसार कार्डिआक आऊटपुट बढ़ जाता है। इस वृद्धि के लिये वेनस रिटर्न का बढ़ना अनिवार्य हो जाता है। शरीर के वेनस रिटर्न को बढ़ाने के लिये शरीर की आरटरीज व वेन्स डायलेट हो जाती है। ऐसी परिस्थिती में शरीर का रक्तदाब कम हो जाता है। रक्तदाब के हानिकारक स्तर से भी कम हो जाने की संभावना हो जाती है। ऐसा होने पर जान को भी खतरा हो जाता है। परन्तु ऐसा होता नहीं हैं। भला, ऐसा क्यों नहीं होता? इन सभी घटनाक्रमों पर अंतिम नियंत्रण चेतासंस्था का होता है। रक्तदाब के कम हो जाने पर वासोमीटर सेंटर जागृत हो जाता है। यहाँ से सिंपथेटिक संस्था कार्यरत की जाती है। फ़लस्वरूप रक्तवाहनियाँ आकुंचित होती है, स्पंदन की रेट बढ़ जाती है, हृदय की पंपिंग बढ़ जाती है। इन सभी घटनाक्रमों के फ़लस्वरूप रक्तदाब में वृद्धि हो जाती हैं जिससे जान का खतरा टल जाता है।

हमने देखा कि नॉर्मल परिस्थिती में शरीर की आवश्यकतानुसार कार्डिआक आऊटपुट कम-ज्यादा हो सकता है। कार्डिआक आऊटपुट की एक विशेषता है। प्रत्येक निरोगी प्रौढ़ व्यक्ति में कार्डिआक आऊटपुट समान होता है। शरीर के कुछ विकारों के कारण इसमें बदलाव होता है। कुछ विकारों में इसकी मात्रा बढ़ जाती है तथा कुछ विकारों में कम हो जाती हैं। अब हम देखेंगे कि ऐसे विकार या विकृतियाँ कौन-कौन सी हैं।

सर्वप्रथम हम देखेंगे कि कौन-कौन से विकारों में कार्डिआक आऊटपुट बढ़ जाता है। इन सभी विकारों में एक समान लक्षण होता है। वह है कि छोटी रक्तवाहिनियों में रक्तप्रवाह को होनेवाला विरोध (Peripheral Resistance) कम हो जाता है। इन विकारों में हृदय के कार्यों में वृद्धि नहीं होती।

* बेरीबेरी – थायमिन ‘ब’ जीवनसत्त्वों के समूह का एक जीवनसत्त्व है। इसकी कमी के कारण यह विकार पैदा होता है। इस विकार के कारण शरीर की पेशियां उन्हें मिलनेवाले अन्न घटकों का समुचित उपयोग नहीं कर सकती। फ़लस्वरूप पेशियों को अन्नघटकों की कमी महसूस होती रहती है। अन्न की आपूर्ति बढ़ाने के लिये छोटी रक्तवाहनियां डायलूट होती हैं व उनके द्वारा रक्तप्रवाह को होनेवाला विरोध कम हो जाता है।

* आरिटिरिओ : वेनस शंट अथवा फ़िस्च्युल (A.V. Shunt)
जब कोई बड़ी आरटरी व बड़ी वेन आपस में सीधे जोड़ी जाती है तो उसे (A.V. Shunt) कहते हैं। इससे रक्त सीधे वेन में पहुँचता है और वेनस रिटर्न बढ़ा देता है। साथ ही साथ रक्तप्रवाह का होनेवाला विरोध भी कम करता है।

* हैपरथायरॉ़इडिझम – थायरॉईड़ ग्रंथी के विकार में ग्रंथी के कार्यों में वृद्धि होती है। फ़लस्वरूप पेशियों की चयापचय व प्राणवायु का इस्तेमाल बढ़ जाता है। इस बढ़ी हुयी मांग के कारण रक्तवाहनियाँ डायलेट होती हैं।

* पंडुरोग अथवा Anaemia
इसमें दो कारणों से वासोडायलटेशन होता है। रक्त में हिमोग्लोबिन की मात्रा कम होने के कारण पेशियों में प्राणवायु की आपूर्ति कम हो जाती है व रक्त में लाल पेशियों के कम हो जाने के कारण रक्त की घनता या Viscosity कम हो जाती है।

– अब हम कार्डिआक आऊटपुट के कम होने के कारण देखेंगें –
दो कारणों से कार्डिआक आऊटपुट कम होता है।

१) ऐसे विकार जिनसे हृदय की पंपिंग कम होती है।
२) ऐसे विकार जिनसे वेनस रिटर्न कम होता है।

१) जब हृदय के स्नायु कमजोर हो जाते हैं अथवा Damaged हो जाते हैं तब हृदय की पंपिंग क्षीण होती हैं। मायोकार्डायटिस इनफ़ार्कशन (जिसे हम हार्ट अटॅक कहते हैं), मायोकार्डायटिस, हृदय के वाल्वों के विकार व कार्डिआक टँपोनेड (यानी हृदय के चारों ओर के) प्रेशर का बढ़ना। इसका जो दाब हृदय पर पड़ता है उसके कारण हृदय के स्नायु कार्य नहीं कर पाते। उदा. पेरिकार्डिअम में द्राव अथवा रक्त का जमा होना इत्यादि।

२) वेनस रिटर्न कम करनेवाले विकार –
अ) रक्त की मात्रा कम होती है। उदा. ज्यादा रक्तस्त्राव
ब) अचानक वेन्स का डायलेट होना। कभी-कभी सिंपथेटिक चेतासंस्था अचानक निष्क्रिय हो जाती है। इसके कारण रक्तवाहनियों में ‘सिंपथेटिक टोन’ (हमने पहले भी इसकी जानकारी ली है) नष्ट हो जाता है, ऐसी स्थिती में रक्तदाब कम हो जाता है। व्यक्ति बेहोश हो जाता है। रक्त वेन्स में जमा हो जाता है।

क) बड़ी वेन्स में रक्तप्रवाह को बाधा पहुँचना। किसी भी कारण से प्रवाह में रुकावट आने पर वेन्स में से हृदय की ओर आनेवाले रक्त की मात्रा घट जाती है।

पेशियों को उचित मात्रा में प्राणवायु व अन्नघटक पहुँचाने के लिए कार्डिआक आऊटपुट का एक निश्‍चित स्तर बनाये रखना आवश्यक होता है। जब कार्डिआक आऊटपुट इस स्तर से नीचे गिरता है तो उस स्थिती को सर्क्युलेटरी (Circulatory) शॉक कहते हैं। यह गंभीर परिस्थिती होती है जो प्राणघातक होती है। इसका तात्काल इलाज आवश्यक होता है। इसकी विस्तृत जानकारी हम आगे लेनेवाले हैं।

(क्रमश:-..)

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