हृदय एवं रक्ताभिसरण संस्था – २१

हम रक्ताभिसरण का अध्ययन कर रहे हैं। पेशियों के कार्यों में मायक्रो-सरक्युलेशन के महत्त्व को हमने जान लिया। इस दौरान हमने देखा कि प्रत्येक अवयव अथवा पेशी संस्था स्वत: की रक्त आपूर्ति स्वयं ही नियंत्रित करती है। प्रत्येक अवयव अपनी आवश्यकता के अनुसार स्वयं ही रक्तप्रवाह नियंत्रित करता है। अवयवों अथवा पेशियों की सर्वसाधारण आवश्यकताएँ भला क्या हो सकती हैं? पेशी समूह की प्राथमिक आवश्यकताएँ इस प्रकार हैं-

१) प्रत्येक पेशीसंस्था को प्राणवायु की आपूर्ति
२) ग्लुकोज, अमिनो अ‍ॅसिड्स, स्निग्ध आम्ल इ. अन्न घटकों की आपूर्ति
३) पेशी में से कार्बन डाय ऑक्साईड को उत्सर्जित करना
४) पेशियों के हायड्रोजन अणुओं को बाहर प्रवाहित करना
५) पेशियों के अन्य अणुओं की मात्राओं में योग्य संतुलन बनायें रखना
६) संप्रेरकों तथा अन्य घटकों को विभिन्न पेशियों में प्रवाहित करना

रक्तप्रवाहये सभी आवश्यकताएँ रक्त के द्वारा पूरी की जाती है। इसके अलावा शरीर के कुछ भागों की विशेष आवश्यकताएँ होती हैं। उदा.- त्वचा की ओर होनेवाले रक्तप्रवाह के माध्यम से शरीर की उष्णता को बाहर निकालना, शरीर के तापमान का संतुलन बनाये रखना। मूत्रपिंड को बड़ी मात्रा में रक्त आपूर्ति होती है, जिसके माध्यम से रक्त से विषैले एवं त्याज्य पदार्थ बाहर निकालने में मदत होती है।

अब हम यह देखेंगे कि प्रत्येक अवयव तथा पेशीसमूह में रक्तप्रवाह किस प्रकार अलग अलग होता है। जिस अवयव में मेटॅबॉलिझम ज़्यादा, उस अवयव की रक्तापूर्ति ज्यादा, यह सर्वसाधारण नियम है। शरीर की ग्रंथियों में रक्त आपूर्ति उनके आकार के अनुसार ज्यादा होती है। थायरॉइड, अ‍ॅड्रिनल इत्यादि ग्रंथियों में रक्त आपूर्ति प्रति मिनट १०० ग्राम वजन के लिये कुछ ‘सौं’ मिली लीटर होती है। वहीं रक्तप्रवाह यकृत में सिर्फ ९५ मिली/ मिनट/१०० ग्राम होता है। मूत्रपिंड रक्त को स्वच्छ करते हैं अत: वहाँ पर यह रक्तापूर्ति ११०० मिली / मिनट होती हैं।

हमारे शरीर के स्नायु जब कार्यरत नहीं होते हैं तब उन्हें रक्त आपूर्ति सिर्फ ४ मिली / मिनट / १०० ग्राम होती हैं। यही रक्त आपूर्ति व्यायाम करते समय २०गुना बढ़ जाती है। इस प्रकार से रक्त आपूर्ति का नियमन क्यों किया जाता है? उसका क्या महत्त्व है?

मान लो कि आवश्यकता अनुसार रक्त आपूर्ति को कम-ज्यादा ना करके निश्‍चित मात्रा में रक्त आपूर्ति हमेशा सभी अवयवों में करना हो तो क्या होगा? यदि ऐसा हुआ तो प्रति मिनट हृदय जितना ज्यादा से ज्यादा रक्त बाहर पंप कर सकता है, उससे कई गुना ज्यादा रक्त की आवश्यकता होगी व इस आवश्यकता को पूरा करना हृदय की क्षमता के बाहर की बात है। इसीलिये प्रत्येक पेशीसमूह को होनेवाली रक्त आपूर्ति उसकी कम से कम आवश्यकता के आस-पास नियमित की जाती है। आवश्यकता होने पर उसे बढ़ाया  जाता है। उदाहरणार्थ समझो कि किसी पेशीसमूह को सिर्फ प्राणवायु की आवश्यकता है तो उस पेशी में प्राणवायु की मात्रा १००% रखने के लिये आवश्यक रक्तापूर्ति की अपेक्षा थोड़ी ज्यादा रक्तापूर्ति उन पेशियों होती है। इससे दो फायदे होते हैं। पहला यह कि पेशी की आवश्यकता उचित मात्रा में पूरी की जाती है और दूसरा यह कि इसके लिये हृदय पर किसी प्रकार का ज्यादा भार नहीं पडता।

अब हम यह देखेंगे कि पेशीसमूह की रक्त आपूर्ति किस प्रकार नियमित की जाती है। इस नियमन के मुख्य दो भाग होते हैं –

१) आपातकालीन नियमन अथवा Acute Control और
2) लम्बे समय के लिये किया गया नियमन अथवा Long term Control

आपातकालीन नियमन : आरटिरिओल्स, मेटा आरटिरिओल्स और प्री कपिलरी स्फिंक्टर्स का शीघ्रता से होने वाला आकुंचन अथवा प्रसरण, इस नियमन को घटित करता है। यह क्रिया कुछ सेकंड अथवा मिनट में होती है।

लम्बे समय के लिये होनेवाला नियमन :- यह कुछ मिनटों, घंटों, दिनों अथवा महीनों तक भी चलता है। वास्तव में इस प्रकार की रक्त आपूर्ति व नियमन ज्यादा अच्छी तरह से होता है। इस नियमन में पेशी को रक्त आपूर्ति करनेवाली रक्तवाहिनी का आकार और रक्तवाहिनियों की कुल संख्या का ज्यादा महत्व होता है।

यह नियमन किन-किन बातों पर निर्भर होता है, यह हम अगले लेख में देखेंगे।

(क्रमश:)

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