हृदय व रक्ताभिसरण संस्था- २६

हमारे शरीर का रक्तदाब अनजाने में ही किस प्रकार नॉर्मल रखा जाता है, हम इसकी जानकारी प्राप्त कर रहे हैं। चेतासंस्था के द्वारा यह नियंत्रण रखा जाता है। यानी शरीर की सभी पेशियों को हमेशा उचित वातावरण का लाभ मिलता रहे, इसकी उपाययोजना परमेश्‍वर ने हमारे शरीर में ही बना रखी हैं। यह उपाययोजना कैसी है, आओ इसकी जानकारी प्राप्त करें-

आरटरीज में बॅरोरिसेप्टर द्वारा नियंत्रण –

चेतासंस्था द्वारा रक्तदाब पर नियंत्रण रखनेवाली सभी रिफ्लेक्सेस में यह सर्वोत्तम रिफ्लेक्स मेकॅनिझम है। हमारे शरीर की सभी महत्त्वपूर्ण व बड़ी आरटरीज में ये बॅरोरिसेप्टर्स (संवेदना स्वीकारनेवाली पेशी) होती है। इन्हें ‘स्ट्रेच’ रिसेपर्ट्स भी कहा जाता है, क्योंकि किसी भी कारण से जब इनमें तनाव आता है, तभी इसमें संवेदना जागृत होती है। शरीर का रक्तदाब बढ़ते ही इन बॅरोरिसेप्टर्स भी ताने जाते हैं व इनके माध्यम से मुख्य चेतासंस्था को संदेश भेजा जाता है। चेतासंस्था से उचित फिड बॅक संदेश शरीर में पहुंचते हैं तथा शरीर का रक्तदाब सामान्य स्तर पर लाया जाता है।

रक्तदाबबॅरोरिसेप्टर्स कुछ विशिष्ट चेतातंतुओं के सिरे होते हैं। बड़ी आरटरीज की दीवारों में ये सिरे फैले होते हैं। छाती व गर्दन की प्रत्येक रक्तवाहिनी की दीवारों में ये चेतातंतु होते हैं। मुख्य एओर्टा की कमानी का भाग व मष्तिष्क को रक्त की आपूर्ति करनेवाले दोनों इंटरनल कॅरोटिड आरटरीज में इन बॅरोरिसेप्टर्स बड़ी मात्रा में होती है, उस भाग को ‘कॅरोटिड सायनस’ कहते हैं।

रक्तदाब में बदल व बॅरोरिसेप्टर्स की प्रतिक्रिया :

जब रक्तदाब एक निश्‍चित स्तर पर स्थिर रहता है तो उस पर बेरोरिसेप्टर्स कोई भी प्रतिक्रिया नहीं देते। परन्तु यदि रक्तदाब में बदलाव होता गया तो बेरोरिसेप्टर्स फौरन इसका संदेश चेतासंस्था को भेज देते हैं। उदा. जब हमारा रक्तदाब १३० mmHg पर स्थिर रहता है, तब कोई भी संदेश नहीं भेजा जाता। (वास्तव में देखा जाये तो शरीर की कोई भी पेशी कार्यहीन नहीं रहती। इसके कारण इन बेरोटिसेप्टर्स द्वारा चेतातंतुओं के माध्यम से लगातार ऑटोनोमिक चेतासंस्था के पास संदेश जाते रहते हैं। जब रक्तदाब एक विशिष्ट स्तर पर स्थिर रहता है अर्थात नॉर्मल स्तर पर रहता है तब कुछ विशिष्ट फ्रिक्वेन्सी से यह संदेश वहन शुरु रहता है। इन संदेशों को हम ‘सब ऑल वेल’ ऐसा संदेश रहता है।) जब रक्तदाब १३० mmHg के ऊपर जाने लगता है तब संदेशों की फ्रिक्वेन्सी बढ़ जाती है और जब रक्तदाब कम होने लगता है तो इनकी फ्रिक्वेन्सी कम होने लगती है। यदि रक्तदाब के नॉर्मल स्तर में थोड़ा सा भी फर्क हुआ तो फौरन उसके अनुसार संदेश चेतासंस्था के पास भेज दिये जाते हैं कुछ सेकेंड़ों में ही रक्तदाब नॉर्मल स्तर पर ले आया जाता है। बॅरोरिस्पेटर्स में से चेतासंस्था के पास संदेश पहुँचने के बाद आगे क्या होता है, अब हम इसका अध्ययन करेंगे। रक्तदाब बढ़ने पर बॅरोरिसेप्टर्स से आने वाले संदेश बढ़ जाते हैं। ये संदेश वासोमोटर केंद्र पर दो प्रकार से कार्य करते हैं –

१) वासोकन्सिट्रक्टर भाग के कार्यों पर नकारात्मक परिणाम होता है। फलस्वरूप शरीर की आरटरीज व वेन्स डायलेट हो जाती हैं।

२) वासोडायलेटर भाग के और पर्याय से ‘वेगस’ नर्व्ह के कार्य बढ़ जाते हैं। फलस्वरूप हृदय के स्पंदनों की गति कम हो जाती है व हृदय के स्नायुओं के आकुंचनों का जोर कम हो जाता है। इन सबके कारण रक्तदाब कम हो जाता है।

जब हम लेटी हुई अवस्था से उ़ठकर खड़े होते हैं तो शरीर का ऊपरी भाग व सिर में रक्तदाब कम हो जाता है। इस प्रकार अचानक कम हुये रक्तदाब के कारण हम बेहोश हो सकते हैं। परन्तु बॅरारिसेप्टर्स के कारण ऐसा नहीं होता। रक्तदाब कम होते ही बॅरोरिसेप्टर्स से आनेवाले संदेशों के कारण वासोमीटर केन्द्र कार्यरत होते हैं। सिंपथेटिक चेतातंतु अ‍ॅक्टीवेट हो जाते है व शरीर की रक्तवाहनियों का आकुंचन होता है व हृदय की पंपिंग बढ़ जाती है। फलस्वरूप तुरंत रक्तदाब बढ़ जाता है। ये सब घटनायें इतने कम समय में घटित होती हैं कि हमें हमारे दैनंदिन जीवन में रक्तदाब में होनेवाले इस फर्क का पता ही नहीं चलता।

रक्तदाब में अचानक होनेवाला परिवर्तन (कम या ज्यादा) बॅरोरिसेप्टर्स द्वारा नियंत्रित किया जाता है। परन्तु यह रिफ्लेक्स मेकेनिझम रक्तदाब पर हमेशा नियंत्रण नहीं रख सकता है। कायमस्वरूपी नियंत्रण का कार्य यह अपने मूत्रपिंड और बाकी सब संप्रेरक करते हैं। यह सब हम आगे देखेनेवाले हैं।

(क्रमश:)

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