रक्त एवं रक्तघटक – ४४

आज तक हम ने रक्त की हीमल पेशी के बारे में जानकारी प्राप्त की। आज हम लिंफॉइड पेशी की सविस्तर जानकारी प्राप्त करेंगें।

हमारे शरीर की रक्षा व प्रतिकार शक्ती को रक्त के व शरीर के अनेक घटकों द्वारा नियंत्रित किया जाता है। शरीर में प्रवेश करनेवाले जीवाणुओं अथवा ‘अपरिचित’ पदार्थों पर मॅक्सेफाड पेशियां या तो सीधा आक्रमण करके उन्हें मार ड़ालती है अथवा ऐसा विषारी घटक स्रवित करती है जिस से कि ये जीवाणु मर जाते हैं। लिंफॉइड पेशी भी शरीर के बचाव व प्रतिकार का काम करती हैं। परन्तु इनकी कार्यपद्धति अलग होती है। शुरुआत में हमने देखा कि ‘बी’ और ‘टी’ दो प्रकार की लिंफॅटिक पेशियां हमारे रक्त में होती हैं। इनमें से B लिंफोसाइट्स मुख्यत: अँटिबॉडीज की निर्मिती करते हैं व इन अ‍ॅँटिबॉडीज को रक्त में छोड़ देते हैं। रक्त में अँटिबॉडीज जीवाणु व अन्य अपरिचित घटको को पहचान कर उन्हें निष्क्रिय करती हैं। साथ ही साथ ये पेशियां शरीर की अन्य पेशियों को जीवाणुओं के मारने हेतु तैयार करती हैं।

T लिंफोसाइट्स मुख्यत: विषाणु यानी viruses के विरूद्ध कार्य करके उन्हें मारती हैं। इसके अलावा शरीर की अन्य लिंफोसाइट्स व दूसरी पेशियों को भी शक्ती प्रदान करती हैं।

गर्भावस्था में लिंफॅटिक रक्तपेशी की निर्मिति प्रथमत: रक्तवाहनियों में होती हैं। अस्थिमज्जा के कार्यरत हो जाने के बाद इनकी निर्मिति अस्थिमज्जा में शुरु होती हैं। अस्थिमज्जा में तैयार हुयी लिंफॅटिक पेशी रक्त से अपना प्रवास शुरू करती हैं। रक्त व लिंफ में से प्रवास करते-करते ये पेशियां थायमस ग्रंथी में पहुँचती हैं। थायमस ग्रंथी में ये पेशियां स्थिर हो जाती हैं। यहाँ पर एक प्रकार की चयन प्रक्रिया होती है। थायमस में आयी हुयी पेशियां शरीर की प्रतिकार-शक्ती के लिए उपयुक्त हैं या नहीं, इसकी जाँच की जाती है। इस जाँच में पास होनेवाली पेशी की निर्मिति फिर थायमस ग्रंथी में शुरु होती है। यहाँ पर तैयार हुयी पेशियां आकार में छोटी होती हैं। इन पेशियों को थायमस से रक्त में छोड़ा जाता है। थायमस में तैयार होने व आकार में छोटी होने के कारण इन पेशियों को छोटी T लिंफोसाइट्स कहते हैं। आगे चलकर ये पेशियां लगातार शरीर भर में घुमती रहती हैं। इस प्रवास के दौरान यह पेशी यकृत, प्लीहा, लिंफनोड आदि सभी अवयवों में घूमती रहती है। इसीलिए रक्त की जाँच में इसी प्रकार की लिंफोसाईट्स ज्यादा मात्रा में पायी जाती हैं।

‘B’ लिंफोसाइट्स थायमस ग्रंथी में से प्रवास नहीं करती। इस पेशी की प्रथम जाँच अस्थिमज्जा में होती हैं। इस जाँच के बाद चुनी गयी पेशियां रक्त में प्रवेश करती हैं। अस्थिमज्जा यानी बोन मॅरो से आने के कारण इन्हें ‘B’ पेशी कहा जाता है। रक्त से ये पेशियां शरीर के लिंफनोड़ में जाती हैं। वहाँ पर उनकी दूसरी जाँच होती है। इसमें से चुनी गयी पेशी लिंफनोड़ में ही रहती है। इसका एक निर्मिति केन्द्र लिंफनोड़ में तैयार होता है। इस केन्द्र से विभिन्न प्रकार की अ‍ॅँटिबॉडीज बनकर पूरे शरीर में फैलती है।

अ‍ॅँटिबॉडीज भी एक प्रकार की प्रथिन (विटामिन) होती हैं। ग्लोब्युलिन जाति की ये प्रथिनें प्रतिकार शक्ती का काम करती हैं, इसीलिये इन्हें ‘इम्युनोग्लोब्युलिन्स’ कहते हैं। कुल पाँच प्रकार की इम्युनोग्लोब्युलिन्स हमारे रक्त में होती हैं –

१) इम्युनोग्लोब्युलिन G अथवा IgG : रक्त व लिंफ से शरीर में सतत घूमनेवाली अँटिबॉड़ीज में इसका प्रमाण सबसे ज्यादा होता है। इसके चार उपसमूह होते हैं।

२) इम्युनोग्लोब्युलिन्स M अथवा IgM : इन्हें प्रतिकार की पहली सीढ़ी के रूप में पहचाना जाता है।

३) इम्युनोग्लोब्युलिन्स A अथवा IgA : इसके दो उप-समूह होते हैं। शरीर के विभिन्न स्रावों में ये अँटिबॉडीज पायी जाती हैं। विशेषत: लार (लाळ) व आंतों के अन्य स्रावों में ये ज्यादा मात्रा में होती हैं।

४) इम्युनोग्लोब्युलिन्स E अथवा IgE : ये अ‍ॅँटिबॉड़ीज पेशियों के संपर्क में रहती हैं। रक्त की बेसोफिल पेशी व मास्ट पेशी के बाह्य आवरण पर ये अ‍ॅँटिबॉड़ीज पायी जाती हैं।

५) इम्युनोग्लोब्युलिन्स D अथवा IgD : इनके कार्यों के बारे में अभी भी संदिग्धता है। परन्तु खसच अ‍ॅँटिबॉडीज के कार्यों में ये सहायता करती हैं।

(क्रमश:)

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