हृदय व रक्ताभिसरण संस्था – ०७

पिछले लेख में हमने हृदय के आवरण के बारे में जानकारी प्राप्त की। आज से हम हृदय के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त करेंगे।

हृदयहमारा हृदय पिरॅमिड के आकार का है। यह स्नायुपेशी एवं फायबरस पेशियों से बना होता है। इसलिये इसे फायब्रोमसक्युलर अवयव कहते हैं। हमारा हृदय अंदर से खाली होता है। पिरॅमिड के आकार का होने के कारण इसका एक आधार, एक सिरा अथवा अपेक्स व अनेक बाजुएँ होती हैं। यह छाती के मध्य मिडिआस्टाइनम में होता है। इस पर पेरिकार्डीअम का आवरण होता हैं। इसके दोनों ओर फेफड़ें व फेफड़ों के आवरण, जिन्हें ‘प्लुरा’ कहते हैं, होते हैं। स्टरनम अस्थि के शरीर का जो मुख्य भाग होता है, उससे थोड़ा पीछे, तिरछा हमारा हृदय होता है। शरीर के मध्य से दाहिनी ओर हृदय का १/३ भाग होता है और शेष २/३ भाग बांयी ओर होता है। कभी-कभी गर्भावस्था में जब हृदय का विकास होता रहता है, तभी हृदय की नलिका बांयी ओर की बजाय दाहिनी ओर मुड़ जाती है। ऐसी स्थिती में बच्चे का हृदय छाती में बांयी ओर होता है। इस स्थिति को डेक्स्ट्रोकार्डिया (Destrocardia) कहते हैं।

अब हम देखेंगे की पूर्ण विकसित व्यक्ति के हृदय का आकार और उसका नाप कैसा होता है। हृदय के आधार (base) से लेकर ऊपरी सिरे तक (apex) की लम्बाई १२ सें.मी होती है। इसकी ज्यादा से ज्यादा चौडाई ८ से ९ सें.मी. होती है व नीचे यानी सामने से पीछे की ओर ६ सें.मी. होती है।

हृदय का पिरॅमिड आकार यह अनियमित पिरॅमिड होता है। इसका आधार (base) पीछे की ओर व दाहिनी ओर मुड़ा हुआ होता है तथा अ‍ॅपेक्स बांयी ओर व सामने की ओर होता है। साथ ही साथ बेस, अ‍ॅपेक्स की तुलना में ऊपरी स्तर पर होता है। यानी यह पिरॅमिड उलटा होता है। इसकी कुछ बाज़ुएँ समान तथा शेष बर्हिगोल होती हैं। इसका कड़ा अनियमित होता है।

पुरूषों में हृदय का वजन २८० से ३४० ग्रॅम्स (साधारणत: ३०० ग्रॅम्स) तक होता है। स्त्रियों में इसका वजन २३० से २८० ग्रॅम्स (साधारणत: २५० ग्रॅम्स) तक होता है। शरीर के वजन के अनुसार हृदय के वजन का अंदाजा लगाया जा सकता है। पुरुषों में हृदय का वजन शरीर के वजन का ०.४५ टक्का तथा स्त्रियों में ०.४० टक्का होता है। उम्र के १७ से २० वे वर्ष तक हृदय अपना आकार पूरी तरह धारण कर लेता है।

हृदय की सर्वसाधारण रचना देखें तो पता चलता है कि वह चार भागों में विभाजित है। यह हमने पहले ही समझ लिया है। इसके दाहिनी ओर के दो भाग और बांयी ओर के दो भाग एकत्रित कार्य करते हैं। इसीलिये हृदय में दायाँ और बायाँ दो पम्प होते हैं। दाहिनी वेंट्रिकल में से रक्त फेफडों में पलमनरी आरटरी द्वारा जाता है। फेफड़ों में रक्ताभिसरण का रक्तदाब काफी कम होता हैं। इसके कारण दाहिनी वेंट्रिकल को ज़्यादा जोर नहीं लगाना पडता। इसीलिये इस भाग के स्नायु व फायबरस पेशियों से बनी हृदय की दीवार की मोटाई कम होती हैं। इसके विपरीत बांयी वेंट्रिकल में से रक्त अ‍ॅओर्टा नामक मुख्य धमनी से होता हुआ पूरे शरीर में फैलता है। इस बड़े वर्तुल में रक्तदाब उच्च होता है। इस दाब के विरुद्ध बांयी वेंट्रिकल को कार्य करना पड़ता है। इसीलिये इसकी स्नायु व फायबरस पेशी ज़्यादा मोटी होती हैं और उसका प्रमाण भी ज्यादा होता है। इसके अलावा संपूर्ण शरीर की पेशियोंके लिये आवश्यक अन्न की आपूर्ति व प्राणवायु की आपूर्ति की जबाबदारी बांयी वेंट्रिकल पर होती है। हृदय के प्रत्येक स्पंदन में दोनों वेंट्रिकल्स में से समान मात्रा में रक्त बाहर निकाला जाता है। दाहिनी वेंट्रिकल्स को रक्त बाहर फेंकने में जितना समय लगता है वो बांयी वेंट्रिकल को लगने वाले समय से ज़्यादा होता है।

अब तक हमने हृदय की रचना की सर्वसाधारण जानकारी प्राप्त की। इसके आगे हम हृदय के प्रत्येक भाग का विस्तार में अध्ययन करनेवाले हैं। उन भागों के कार्यों की जानकारी प्राप्त करने वाले हैं। हृदय का आकुंचन प्रसरण कैसे होता है और ‘पेसमेकर’ क्या होता है, यह हम पहले ही जान चुके हैं। कल से हम दाहिनी एट्रिअम की रचना का अध्ययन करेंगे।

(क्रमश:)

 

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