गर्भाशय का महत्त्व

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‘‘तुका म्हणे गर्भवासी सुखे घालावे आम्हासी’’ अर्थात संत तुकाराम परमेश्वर से प्रार्थना करते हैं कि,‘‘हे प्रभो, हमें मॉं का गर्भ प्रदान करें |’’  उनकी यह प्रार्थना मॉं के गर्भाशय  महत्त्व को उजागर करती है | मॉं के गर्भाशय में पलनेवाला एकपेशीय गर्भ, नौ महीने नौ दिीनों के बाद अथवा (२२०-१४) दिनों के बाद जब इस बाह्य जगत में आता है तब तक उसकी बाढ़ हजारों गुना हो चुकी होती है | इस गति से बाढ़ बाद में संपूर्ण जीवन में कभी भी नहीं होती| यह सब कैसे होता है ? दस दिनों का, एक महीने का, तीन महीनों का गर्भ आखिर होता कैसे है? उसमें कैसे व कौन कौन से बदलाव होते हैं ? इन सभी अद्भुत बातों की जानकारी अब हम प्राप्त करनेवाले हैं |

स्त्री व  पुरुष के मिलन से नया जीव बनता है | सभी सजीव में यह एक समानसूत्र है | स्त्री व पुरुष बीजाडों का मिलन कराना ही पड़ता है | (क्लोनिंग  इसका अपवाद है ) | बीजांड एकपेशीय ही होते हैं | दो बीजांड पेशियों के मिलन से एक नये जीव की पहली पेशी बनती है | अनेकों से एक और एक से अनेक परमेश्वर का यह खेल निरंतर चलता ही रहता है |

स्त्री-पुरुष बीजांडों के मिलन से नये जीव का निर्माण होता है | प्राकृतिक रुप से यह क्रिया स्त्री के शरीर में घटित होती है | स्त्री के अंतर्गत जननेद्रियों में घटित होती है | इस नये जीव की भनक लगते ही सभी को भविष्य के प्रति कोतूहल होने लगता है कि यह लड़का है या लड़की ! इसका उत्तर पाने के लिये नौ महीनों तक, प्रसूति होने तक इंतजार करना ही पड़ता है | यह नया जीव लड़का है या लड़की, यह कौन तय करता है ? कैसे ? हमारे मन में यह प्रश्न उ़ठता है | इसी प्रश्न का उत्तर आज के लेख में मिलेगा |

गर्भ का लिंग कैसे निश्चित होता है, यह समझने के लिये हमें ङ्गिर पेशी तक जाना होगा | सजीवों की प्रत्येक पेशी में कुछ महत्त्वपूर्ण घटक होते हैं | उनमें से एक घटक होता है रंगसूत्र ! अब हम यह देखेंगे कि इस रंगसूत्र का गर्भ लिंग निश्चित करने में क्या योगदान है |

मानवी शरीर की प्रत्येक पेशी में कुल छियालिस (४६) रंगसूत्र होते हैं | यह पेअर्स अथवा जोड़ी में होते हैं | संक्षेप में कहें तो प्रत्येक मानवी पेशी में रंगसूत्रों की २३ जोडियां होती हैं | इनमें से पहली बावीस (२२) जोडियों को सोयटिक अथवा शारीरिक रंगसूत्र कहते हैं | ये २२ जोडियां अपने -अपने शरीर के गुणधर्म तय करते हैं जैसे रंग कौन-सा होगा, बालों का रंगब कौन-सा होगा , चमड़ी का रंग कैसा होगा, यहॉं तक कि आंखों की पुतलियों का रंग, भी तय करती हैं | अंतिम तेवीसवी (२३) जोड़ी महत्त्वपूर्ण होती है | इस जोड़ी को सेक्स रंगसूत्र या लिंगदर्शक रंगसूत्र कहते हैं | यहीं जोड़ी गर्भ का लिंग तय करती है |

लिंगदर्शक रंगसूत्र दो प्रकार के होते हैं और उन्हें शास्त्रज्ञों ने ‘एक्स’ व ‘वाय’ नाम दिया है  स्त्री के शरीर की पेशी में इस जोड़ी के दोनों रंगसूत्र ‘एक्स’ ही होते हैं | परंतु पुरुषों की पेशी में इस जोड़ी का एक रंगसूत्र ‘एक्स’ व दूसरा ‘वाय’ होता है | संक्षेप में एक्स-एक्स के मिलन से स्त्री व वाय-एक्स के मिलन से पुरुष होता है | वाय-वाय की जोड़ी नहीं होती है |

सामान्यतः शारीरिक पेशियों का विभाजन होते समय प्रत्येक नयी पेशी में ४६ रंगसूत्र होते हैं | परंतु शुक्रजंतु व डिंब की निर्मिती थोड़ी भिन्न होती है | प्रत्येक डिंब व शुक्रजंतु की पेशी में कुछ २३ रंगसूत्र ही होते हैं | वे निम्नप्रकार से होती हैं :-

१) डिंब में – २२ शारीरिक रंगसूत्र तथा एक्स तेवीसवां रंगसूत्र

२) शुक्रजंतु- २२ शारीरिक रंगसूत्र व एक्स अथवा वाय तेवीसवा रंगसूत्र

प्रत्येक डिंब में एक एक्स होता है परंतु प्रत्येक शुक्रजंतु में एक एक्स अथवा एक वाय होता है | अब आगे की बातें समझना आसान हो गयी | जब डिंब व शुक्रजंतु का मिलन होता है तब नयी पेशी (गर्भ) में ङ्गिर से २३+२३=४६ रंगसूत्र होते हैं | (स्त्री के २३ और पुरुष के २३) इनमें से पहली २२ जोडियां शारीरिक रंगसूत्र होते हैं तथा अंतिम जोड़ी लिंग दर्शक होती है | यहॉं पर प्रत्येक डिंब का एक एक्स रंगसूत्र होता है | उससे मिलनेवाले शुक्रजंतु में एक्स रंगसूत्र होने पर गर्भ में इसकी जोड़ी एक्स + एक्स हो जाती है और इसीलिये गर्भ का लिंग स्त्रीलिंग (लड़की) हो जाता है | वाय रंगसूत्र वाले शुक्रजंतु का डिंब से मिलन होने पर गर्भ में अंतिम जोड़ी एक्स+ वाय हो जाती है और इसीलिये गर्भ का लिंग पुरुष लिंग हो जाता है | (लड़का)

उपरोक्त घटनाक्रम के अनुसार गर्भ का लिंग उसके निर्माण के समय ही निश्चित हो जाता है | यदि बिना किसी आघात या अपघात के गर्भ बढ़ता रहा तो इसमें किसी भी प्रकार का बदलाव न होकर गर्भ शरीर से भी लड़का अथवा लड़की की तरह ही बढ़ता है | वो किस तरह बढ़ता है, कहॉं बढ़ता है, इसकी चर्चा हम अगले लेख में करेंगे |

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