हृदय एवं रक्ताभिसरण संस्था – १३

हम रक्ताभिसरण संस्था में रक्त प्रवाह के विभिन्न पहलुओं की जानकारी प्राप्त कर रहे हैं। रक्त की गतिशीलता अथवा प्रवाह के बारे में समझ रहे हैं। प्रवाह ‘चल’ स्थिति में होने के कारण उसकी स्थिति को भौतिकशास्त्र में डायनॅमिक्स (Dynamics) कहते हैं। रक्त से संबंधित बातों को वैद्यकीय भाषा में हिमो (Haemo) यह विशेषण लगाया जाता है। इसीलिये इन सब चीजों को Haemo dynamics कहते हैं और यह सब वैद्यकीय भौतिकशास्त्र (Medical Physics) है।

भौतिकशास्त्र की सतही जानकारी हमें स्कूल में प्राप्त होती है। उस दौरान विद्युत्-प्रवाह का अध्ययन करते समय हम ओहम्स लॉ (Ohm’s Law) सीखते हैं। किसी तार के टुकड़े से विद्युत्-प्रवाह किस प्रकार प्रवाहित होता है, यह बतानेवाला यह लॉ है। तार के दोनों सिरों पर रहने वाले विद्युत दाब में अंतर व विद्युत् का तार के द्वारा किया जाने वाला विरोध ये दोनों चीजें तार में से आनेवाले विद्युत्-वहन को नियंत्रित करती हैं। यह समीकरण इस प्रकार Q = p/R

यहाँ
Q = विद्युतप्रवाह
Δp = दोनों सिरों के विद्युत दाब में अंतर
R = तार के द्वारा इस प्रकार को किया जानेवाला विरोध अथवा रेझिझस्टन्स।

भौतिकशास्त्रउपरोक्त समीकरण पूरा का पूरा रक्तप्रवाह पर लागू होता है। किसी रक्तवाहिनी से रक्तप्रवाह प्रवाहित होगा या नहीं, यह सूत्र के आधार पर तय होता है।

यहाँ
Q = रक्तप्रवाह
Δp = रक्तवाहिनी के दोनों सिरों के रक्तदाब में अंतर
R = रक्तवाहिनी के द्वारा किया जाने वाला विरोध।

इस सूत्र से एक महत्त्वपूर्ण बात समझ में आती हैं कि यदि ये रक्तवाहिनी में दोनों सिरों पर रक्तदाब समान होगा तो उस रक्तवाहिनी में रक्त का प्रवाह रुक जायेगा, क्योंकि Q=Δp/R में Δp(शून्य) हो जाने से रक्तप्रवाह शून्य यानी रुक जायेगा। ऐसा ना हो, इसीलिये रक्तवाहिनियों में प्रत्येक चरण पर रक्तदाब भिन्न-भिन्न होता है।

रक्तप्रवाह मिलीलीटर्स/प्रति मिनट अथवा मिली/प्रति सेकंड अथवा प्रति लीटर्स/प्रति मिनट दर्शाया जाता है। रक्त के प्रवाह को मापने के लिये दो प्रकार के अत्याधुनिक उपकरण उपलब्ध हैं।
१) इलेक्ट्रोमगनेटिक फ्लोमीटर
२) अल्ट्रासोनिक ड्रापलर फ्लोमीटर

इन दोनों उपकरणों का शरीर के बाहर ही उपयोग करके रक्तप्रवाह मापा जा सकता है। इसीलिये इन्हें नॉन-इनवेजिव उपकरण कहते हैं।

रक्तवाहिनियों में होनेवाला रक्तप्रवाह, स्ट्रीमलाइन्ड अथवा लॅमिनर होता है। अर्थात रक्त के घटक रक्तवाहिनियों के जिस भाग में प्रवेश करते हैं उसी भाग से आगे बहते जाते हैं। यह जवानों की ‘परेड’ की तरह हैं। परेड करते समय पहली कतार का जवान हमेशा पहली कतार में ही चलता रहता है। बीच की कतार का जवान बीच की कतार में और अंतिम कतार का जवान अंतिम कतार में ही रहत है। वे अपना स्थान नहीं बदलते। इसीतरह रक्तवाहिनियों की दीवार के पास से ही आगे सरकता रहता है। वह भी बिल्कुल सरल रेखा में ही सरकता रहता है। रक्तवाहिनियों के मध्य से घुसा हुआ घटक हमेशा रक्तवाहिनी के मध्य में ही बहता रहता है। इसे लेमिनर फ्लो कहते हैं। रक्तवाहिनी में रक्त का प्रवाह दोनों किनारों पर कम गति से बहता है तथा बीच में उसका वेग सबसे ज्यादा होता है।

रक्तदाब अथवा ब्लडप्रेशर से क्या तात्पर्य है? रक्तवाहिनी की दीवार में एक चौरस मिलिमीटर अथवा एक चौरस सेंटिमीटर क्षेत्रफल पर पड़ने वाला रक्त का बल अथवा फोर्स। रक्त का दबाव mm of Hg (मिलिमीटर्स ऑफ मरक्युरी) ऐसा दिखाया जाता है। यह mm of Hg  ऐसा ही क्यों दिखाया जाता है? तो उसका उत्तर है कि बाबा आदम के जमाने से ये ऐसा ही दर्शाया जाता है इसीलिये! जब हम कहते हैं कि रक्तदाब 40 mm of Hg है, तो उसका एक तात्पर्य है, खड़े स्तंभ में गुरुत्वाकर्षण शक्ती के विरोध में पारे को  40 मिमी. ऊपर चढ़ने के लिये जितना बल अथवा फोर्स लगता है उतना बल रक्त का है।

रक्तवाहिनी के व्यास व उसमें बहनेवाले रक्तप्रवाह का सीधा संबंध होता है। व्यास जितना कम उतना प्रवाह कम होता है। परंतु यह संबंध उतना सरल नहीं है। व्यास में होने वाले थोड़े से बदलाव के कारण रक्तप्रवाह कई गुना बढ़ जाता है अथवा कम हो जाता है। रक्तवाहिनी का व्यास जितना होगा उसका चार गुना उसमें होनेवाला प्रवाह बढ़ जाता है। उदा.- व्यास एक मिमी. होगा तो रक्त का प्रवाह ४ मिलीलीटर/ मिनिट होता है। यदि व्यास दो मिमी है तो रक्त का प्रवाह ८ मिलीलीटर/प्रतिमिनट होता है और यदि व्यास ४ मिमी होगा तो रक्त का प्रवाह १६ मिलीलीटर/ मिनट होता है। इससे एक बात हमारी समझ में आती हैं कि आरटिरिओल्स उनके व्यास में थोड़ा सा बदलाव करके पेशियों में होनेवाली रक्त की आपूर्ति में कई गुना वृद्धि कैसे कर सकते हैं अथवा आवश्यकतानुसार कम कर सकते हैं।

रक्तप्रवाह सिर्फ रक्तवाहिनियों के व्यास पर ही निर्भर नहीं रहता बल्कि यह रक्त की घनता (viscosity) पर भी निर्भर होता है। रक्त की घनता रक्त में उपस्थित लाल के, शिकाओं की संख्या पर आधारित होता है। जितनी पेशियों की संख्या ज्यादा उतनी घनता ज्यादा। घनता प्रवाह की गति कम कर देती हैं। रक्तवाहिनियों के अन्य गुणधर्म हम अगले लेख में देखेंगे।

(क्रमश:)

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