गर्भ की वृद्धि

कल के लेख में हमने देखा कि गर्भ का लिंग किस प्रकार निश्चित होता है। आज हम यह देखेंगे कि इस गर्भ की वृद्धि कैसे होती है। परंतु उससे पहले आइये देखते हैं कि यह गर्भ जहाँ बनता है, बढ़ता है उस माँ की भूमि-अर्थात उसकी अंतर्गत जननेंद्रिय की रचना व उसके कार्य –

garbhashay

माँ की अंतर्गत जननेंद्रिय के मुख्य तीन भाग हैं –

  1. डिंब ग्रंथी – अथवा स्त्री बीजांड कोष। इसमें प्रतिमाह एक डिंब तैयार होता है, बनता है।
  2. गर्भाशय नलिकायें अथवा फॅलोपियन ट्‍युब्ज – इनकी शुरुआत डिंब ग्रंथी के पास होती है तथा अंत गर्भाशय के ऊपर उभरे हुये भाग में गर्भथैली में होती है।
  3. गर्भाशय तथा गर्भथैली – जिसमें नौ महीनों तक गर्भ रहता है और बढ़ता है।

डिंब ग्रंथी : स्त्री के पेट में दोनों ओर कमर की हड्डी के पास एक -एक डिंबग्रंथी होती है। जिस तरह पुरुषों में वृषण ग्रंथी होती है उसी तरह स्त्रियों में डिंबग्रंथी होती है। स्त्री का मासिकधर्म शुरु होने से पहले ये मटमैली गुलाबी रंग की होती है। तदुपरांत जब प्रतिमाह डिंब तैयार होने लगता है तो ये बाहर से ऊबड़खाबड़ दिखायी देने लगती हैं। प्रत्येक ग्रंथी साधारणतः ३ सेमी लम्बी, डेढ़ सेमी चौड़ी तथा १ सेमी मोटी होती है। इसकी घनता उम्र के अनुसार बदलती रहती है। मासिकधर्म शुरु होने से पहले इसकी घनता ३ घन सेमी होती है। जननक्षम उम्र (१३ वर्ष से ४५ वर्ष) में इसकी घनता ११ सेमी तथा मेनोपॉज के बाद ६ घनसेमी होती है। गर्भावस्था में ये ग्रंथी अपने मूल स्थान से खिसक जाती हैं तथा फिर वापस कभी भी अपने मूलस्थान पर नहीं आती। गर्भ में व जन्म के बाद कुछ समय के लिये ये पेट के किडनियों के पास रहती है। धीरे धीरे वे नीचे खिसककर पेट के निचले भाग में स्थिर हो जाती है। गर्भाशय नलियां – गर्भाशय के दोनों ओर एक एक कुल दो गर्भनलियां होती हैं। इनकी लम्बाई साधारणतः १० सेमी होती है। ये नलियाँ गर्भाशय के ऊपरी हिस्से में खुलती हैं जिसे नली का गर्भाशय मुख कहते हैं। इस नली का दूसरा सिरा डिंब ग्रंथी के पास होता है। इस मुख को ऍबडॉमिनल मुख कहते हैं।

प्रत्येक नली की रचना के आधार पर उसके चार भाग किये गये हैं –

अ) डिंब ग्रंथी के पास का सिरा कुप्पी (फॅनल) के आकार का होता है। इसे फिब्रियल पार्ट अथवा भाग कहते हैं। यह डिंब ग्रंथी पर फैला हुआ रहता है तथा डिंब ग्रंथी से बाहर निकलने वाले डिंब को पकड़कर उसे गर्भाशय नली में डाल देता है।

ब) ऍम्पुला : डिंब ग्रंथी के पास के मुख से अंदर की ओर ५-६ सेमी लम्बे भाग को ऍम्पुला कहते हैं। यह नली का सबसे संकरा भाग होता है। इसकी चौड़ाई सिर्फ १ सेमी होती है। प्रायः इसी भाग में डिंब व शुक्रजंतु के मिलन से गर्भ धारण होता है।

क) इस्थमस : इसके आगे एक से डेढ़ सेमि लंबे अत्यंत संकरे भाग को इस्थमस कहते हैं। इसकी चौड़ाई ज्यादा से ज्यादा १/२ सेमी होती है।

ड) इंटाम्युरल : गर्भाशय की दीवार में रहनेवाली नली का यह हिस्सा १-२ सेमी लंबा होता है। इसके सिरे पर गर्भाशय मुख होता है जो गर्भ थैली में खुलता है।

गर्भाशय नली के कार्य निम्नलिखित हैं :-
– गर्भाशय में पहुंचने वाले शुक्रजंतु को डिंब तक पहुँचाना।
– डिंब व शुक्रजंतु का मिलन करवाना।
– गर्भधारण के दिन से लेकर ७ से १४ दिनों में इस गर्भ को सुखरुप गर्भाशय तक पहुँचाना।

गर्भाशय : इसका वर्णन हम इस प्रकार कर सकते हैं कि ऐसा अवयव जिसकी बाहरी दीवार मोटी तथा अंदरुनी हिस्सा खोकला मांशल होता है। गर्भाशय स्त्री के पेट के निचले हिस्से में होता है। इसके सामने मूत्राशय तथा पीछे बड़ी आँत का अंतिम हिस्सा होता है। गर्भाशय थैली आगे-पीछे सपाट होती हैं तथा इसका ऊपरी हिस्सा थोड़ा फूला हुआ होता है। इसकी विशेषता यह है कि गर्भ धारण होने के बाद से गर्भ की वृद्धि के अनुसार उचित प्रमाण में यह बढ़ती जाती है और बच्चे के जन्म के बाद पुनः लगभग पहले के आकार की हो जाती है।

गर्भाशय के प्रमुख दो भाग होते हैं। ऊपर के उभरे हुये २/३ हिस्से को गर्भाशय का शरीर कहते हैं तथा निचले नली के आकार के संकरे हिस्से को सरवीक्स कहते हैं। यह संकरा हिस्सा नीचे योनीमार्ग से जुड़ा होता है तथा योनीमार्ग में ही खुलता है। गर्भाशय की कुल लंबाई ६ सेमी होती है। गर्भाशय के उभरे भाग में दोनों ओर एक एक गर्भाशय नली जुड़ी होती है।

सरवीक्स मुख्य गर्भथैली व योनी मार्ग को जोड़ता है। इसकी लंबाई २ १/२ सेमी होती है तथा यह हिस्सा अत्यंत संकरा होता है।

बाल्यावस्था में लड़कियों में गर्भाशय के मुख्य अंग की तुलना में सरवीक्स लंबाई में ज्यादा होता है। जैसे-जैसे लड़की की उम्र बढ़ती है, गर्भाशय के मुख्य अंग बढ़ते जाते हैं। इस उम्र में गर्भाशय का वजन साधारणतः १४ से १७ ग्राम होता है। जननक्षम आयु में इसका वजन ५० ग्राम होता है। वहीं गर्भावस्था के नौ महीनों के अंत तक इसका वजन एक किलोग्राम से भी ज्यादा हो जाता है।

माँ के गर्भाशय में हजारों लाखों गुना बढने वाले गर्भ के लिये उसका गर्भाशय भी उसी उचित अनुपात में बढ़ता रहता है। क्यों? तो उस बच्चे को किसी भी प्रकार की तकलीफ न हों तथा उसे माँ की ममता मिलती रहें इसीलिये।

Leave a Reply

Your email address will not be published.