रक्त एवं रक्तघटक – ५२

हमारे शरीर की रक्तवाहिनियों को चोट लगने से जो रक्तस्राव होता है, वह किस तरह रुकता है, इसकी जानकारी हम प्राप्त कर रहें हैं। अब तक हमने देखा कि इस क्रिया को हिमोस्टेसिस कहते हैं। हमने हिमास्टेसिस का पहला पड़ाव पार कर लिया। अब हम अगली क्रियाओं की जानकारी प्राप्त करेंगें।

२) प्लेटलेट पेशी की गु़ठली का बनना : प्लेटलेट रक्त में रहनेवाली एक पेशी हैं। इन्हें थ्रोंबोसाइट पेशी भी कहते हैं। इन पेशियों में अनेकों गुण होते हैं, जो रक्तस्त्राव रोकने में सहायता करते हैं। इनके बाहरी आवरण पर ग्लायकोप्रोटिन्स होती हैं। रक्तवाहनियों के नॉर्मल- स्मूथ अंदरूनी भाग पर इन पेशियों को एकत्रित आकार गु़ठली बनने से यह ग्लायकोप्रोटिन रोकता है, परन्तु रक्तवाहिनी के फ़ट जाने पर अथवा उसे चोट लगने पर यहीं ग्लायकोप्रोटीन इन पेशियों को गु़ठली बनने में सहायता करता है।

रक्तवाहिनी के क्षतिग्रस्त हो जाने पर उसकी दीवार पर स्थित कोलॅजेन तंतु मुक्त हो जाते हैं। प्लेटलेट पेशियां इन तंतुओं की ओर आकृष्ट होती हैं और वहीं पर चिपक जाती हैं। जब इस प्रकार एक पेशी चिपक जाती है तो वह दूसरी पेशी को आकृष्ट करती हैं और इस प्रकार उस स्थान पर प्लॅटलेट पेशियों की संख्या बढ़ती जाती है और उसकी गु़ठली बन जाती है। यह गु़ठली रक्तवाहिनी पर हुए घाव को भरने का कार्य करती है। फ़लस्वरूप वहाँ से होनेवाला रक्तस्त्राव रुक जाता है। इसे ‘प्लेटलेट प्लग’ कहा जाता है। ये प्लॅटलेट पेशियां आ़ठ से बारह दिनों तक रक्त में रहती हैं। इसके बाद रक्त की व प्लीहा की मॅक्रोफ़ाज पेशी उन्हें नष्ट करती हैं।

प्लॅटलेट प्लग का महत्त्व : यदि रक्तवाहिनी पर हुयी चोट छोटी होती है तो उससे होनेवाला रक्तस्त्राव स़िर्फ़ उस प्लॅटलेट की गु़ठली से ही रुक जाता है। परन्तु यदि रक्तवाहिनी पर हुयी चोट बड़ी है तो यह प्लेटलेट की गु़ठली कम वहाँ पड़ जाती हैं। ऐसी परिस्थिति में प्लेटलेट की गु़ठली और रक्त के जमने की क्रिया दोनों मिलकर रक्तस्त्राव रोकते हैं। यह सब शरीर पर होनेवाले बाह्य आघात के बारे में है। परन्तु हमारे शरीर की छोटी-छोटी रक्तवाहनियों को हमारे दैनंदिन जीवन में प्रतिदिन छोटी-छोटी चोटें लगती ही रहती हैं। इस प्रकार के अंदरुनी आघात होते ही रहते है। यहाँ पर प्लॅटलेट पेशी इस प्रकार के छोटे-छोटे घावों को भरने का काम करती ही रहती हैं। हमें इसका कभी आभास तक नहीं होता। परन्तु जब किसी व्यक्ति में किन्हीं कारणों से प्लॅटलेट की संख्या कम हो जाती हैं तो यह बात पता चलती है। ऐसे व्यक्ति की त्वचा के नीचे छोटे-छोटे रक्तस्त्राव होने लगते हैं और उसके काले-नीले निशान त्वचा पर दिखायी देते हैं। इसे वैद्यकीय भाषा में Purpura(परप्युरा) कहते हैं। कुछ व्यक्तियों में हुई इस बीमारी को हम देखते हैं।

३) रक्त का जमना या रक्त की गु़ठली तैयार होना : इसे clot formation कहते हैं। यदि रक्तवाहिनी पर हुआ घाव छोटा होता हैं तो चोट लगने के एक या दो मिनिट की अवधि में ही रक्त जमने की क्रिया शुरु हो जाती है। यदि यह घाव बड़ा होता है तो यह क्रिया मात्र पंद्रह से बीस सेकेंड़ो में ही शुरु हो जाती है।

रक्तवाहिनी में चोट लगने के बाद सर्वप्रथम प्लॅटलेट प्लग तैयार होता है। उसके बगल में रक्त का जमना शुरु हो जाता है। यदि रक्तवाहिनी का घाव छोटा होता हैं तो तीन से छ: मिनटों में क्लॉट पूरा हो जाता है और रक्तवाहिनी पर हुआ घाव बंद हो जाता है। अगले बीस मिनटों तक यह क्लॉट वैसा ही रहता है। उसके बाद क्लॉट रिटरॅक्ट हो जाता है यानी संकुचित हो जाता है और अपने साथ-साथ रक्तवाहिनी पर हुए घाव को भी छोटा कर देता है। रक्तस्राव रोकने में इसकी का़ङ्गी सहायता होती है।

रक्त जमने की क्रिया करवाने वाले लगभग पंद्रह ङ्गॅक्टर्स अथवा चीजें हमारे शरीर में होती है। ये सभी पंद्रह चीजें महत्त्वपूर्ण हैं। परन्तु उनकी सविस्तर जानकारी हमारे लिए अनावश्यक है। रक्त में क्लॉट तैयार हो जाने पर भला आगे क्या होता है? आगे चलकर क्लॉट दो प्रकार से नष्ट होता है।

१) क्लॉट में फ़ायब्रोब्लास्ट पेशियां घुस जाती हैं और क्लॉट का रूपांतर फ़ायबर्स कोलॅजेन टिश्यू में हो जाता है।
२) क्लॉट पूरी तरह पिघल जाता है।

छोटे-छोटे रक्तस्त्रावों में पहले प्रकार से क्लॉट नष्ट होते हैं तथा जब शरीर के अंदर बड़ी मात्रा में रक्तस्त्राव होता हैं और रक्तवाहिनी के बाहर पेशीसमूह में क्लॉट बनता है तो ऐसा क्लॉट दूसरे प्रकार से नष्ट किया जाता है। उदा. यदि मस्तिष्क में रक्त की गांढ़ बनती है तो धीरे-धीरे वह पिघल जाती है।

रक्त जमने की मूलप्रक्रिया : रक्त का जमने अथवा ना जमने की प्रक्रिया रक्त के लगभग पचास घटकों पर अवलंबित होती है। इन घटकों को दो विभागों में बांटा जा सकता है। पहले समूह के घटक रक्त जमाने की क्रिया करते हैं। इन्हें Procoagulants कहते हैं। दूसरे समूह के घटक रक्त को पतला बनाये रखने का काम करते हैं। इन्हें Anticoagulatnts कहते हैं। रक्त जम जायेगा या पतला रह जायेगा यह इन दोनों समूहों के घटकों के संतुलन पर निर्भर करता है। नॉर्मल रक्तवाहनी में रक्त का अ‍ॅँटिको आग्युलंटस् का पलड़ा भारी होता है। फ़लस्वरूप रक्त उचित मात्रा में पतला रहता है और इसीलिये प्रवाही रहता है। रक्तवाहिनी को चोट लगने पर प्रोकोआग्युलंटस् कार्यरत हो जाते हैं और रक्त के जमने की प्रक्रिया शुरु हो जाती है।

हमारे रक्त को प्लाझ्मा में प्रोथ्रोंबिन और फ़ाइब्रोनोजेन नामक दो प्रथिन होते हैं। रक्त के जमने में इनका विशेष योगदान होता है। इनमें से प्रोथ्रोंबिन की निर्मिती यकृत में होती है। इसकी निर्मिती के लिये ‘k’ व्हिटामिन्स की आवश्यकता होती है। इसलिए शरीर में व्हिटॅमिन ‘k’ की कमी हो जाने पर रक्त में प्रोथ्रोंबिन की मात्रा कम हो जाती है। ऐसी परिस्थिति में अंतर्गत तथा बाह्य रक्तस्त्राव होने की संभावना होती है।

रक्त को जमाने में इनका सहभाग कैसा होता है, अब इसका अध्ययन करेंगे। रक्त जमने की क्रिया तीन चरणों में पूरी होती है। रक्तवाहिनी में चोट लगने के बाद ये चरण कार्यरत होते हैं। ये चरण इस प्रकार होते हैं –

१) रक्तवाहिनी में चोट लगने के बाद रक्त में उपस्थित रक्त को जमानेवाले बाहर प्रकार के विभिन्न घटक कार्यरत हो जाते हैं। उनमें अनेकों रासायनिक प्रकियों के होने के कारण प्रोथ्रोंबिन अ‍ॅक्टीवेटर नामक घटक तैयार होता है।
२) प्रोथ्रोंबिन अ‍ॅक्टिवेटर प्रोथ्रोंबिन का रूपांतर थ्रोंबिन में करता है।
३) थ्रोंबिन अब एक एन्झायम का काम करता है और फ़ाइब्रोनोजेन का रूपांतर फ़ाइब्रिन तंतु में कर देता है। ये फ़ाईब्रिन के तंतु प्लॅटलेट, प्लग, रक्तपेशी इत्यादि सभी को एकत्र बाँधकर रक्त का कलाट तैयार करते हैं।

रक्त का जो क्लॉट तैयार होता है उसमें फ़ाईब्रिन तंतूओं के जाल में प्लॅटलेट पेशी, अन्य रक्तपेशी और प्लाझ्मा एकत्रित रहते हैं।

क्लॉट रिटरॅक्शन : क्लॉट तैयार हो जाने के बाद कुछ मिनटों में ही कॉट सिकुड़ना शुरु हो जाता है। क्लॉट में फ़ंसा हुआ द्राव्य उसमें से बाहर निकलता है। इसे सिरम कहते हैं। इसमें रक्त को जमानेवाले घटक बिलकुल नहीं होता। इसीलिए सिरम कभी भी नहीं जमता क्लॉट के संकुचित की क्रिया बीस से साठ मिनटों में पूर्ण हो जाती है। क्लॉट के साथ-साथ रक्तवाहिनी का चोट लगा हुआ भाग भी संकुचित होते रहता है। फ़लस्वरूप उनमें से रक्तस्त्राव होने की संभावना कम होती हैं।

रक्तवाहिनी के चोट लगे हुए भाग में रक्त के जमा हो जाने के बाद यह जमा हुआ रक्त यानी क्लॉट, रक्तवाहिनी के अन्य घटकों के साथ रक्त जमा करने की शुरुआत करता हैं। रक्तवाहनियों का यह क्लॉट फ़ैलते जाता है। यह प्रक्रिया इसी तरह शुरु रहें तो रक्तवाहिनी का संपूर्ण रक्त ही जम जाता है। परन्तु ऐसा होता नहीं है।

(क्रमश:-)

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