रक्त एवं रक्तघटक- ४९

हम पांडुरोग यानी अ‍ॅनिमिया नामक रोग की जानकारी प्राप्त कर रहे हैं। पिछले लेख में लोह की कमी से होनेवाले अ‍ॅनिमिया की जानकारी ली। इसे Iron Deficiency anaemia कहते हैं। आहार में लोह की कमी होने के कारण यह अकसर हो जाता है। इसीलिये इसे न्यूट्रिशनल अ‍ॅनिमिया (आहार से संबंधित) भी कहा जाता है।

अ‍ॅनिमिया के अनेक कारण और अनेक प्रकार हैं। इनमें से कुछ महत्त्वपूर्ण प्रकारों की जानकारी हम प्राप्त करनेवाले हैं –

१) रक्तस्राव के कारण होनेवाला अ‍ॅनिमिया – यदि शरीर से रक्त बहता ही रहे तो शरीर में हिमोग्लोबिन और लाल पेशियां दोनों भी कम हो जाती हैं – रक्तस्राव दो प्रकार का होता है –

अ)बडी ही तेज़ी से होनेवाला रक्तस्राव : जख्म के कारण, दुर्घटना के समय, प्रसूति के दौरान होनेवाला रक्तस्राव तेज़ी से होता है। यानी कम समय में ज्यादा रक्त बह जाता है। ऐसे रक्तस्राव के बाद तीन दिनों में ही रक्त में द्राव की मात्रा पूरी हो जाती है। परंतु लाल रक्तपेशियों की मात्रा कम ही रहती है। यदि एक बार रक्तस्राव रुक जाता है और पुन: शुरु नहीं होता है, वहीं अगले तीन से छ: सप्ताहों में लाल पेशियों की मात्रा भी पूर्ववत हो जाती है।

ब) धीमी गति से परन्तु लगातार एवं अनेक दिनों तक होनेवाला रक्तस्राव : इसे chronic रक्तस्राव कहा जाता है। इस प्रकार के रक्तस्राव में प्रतिदिन अथवा मासिकधर्म के समय हर महीने में थोड़ा-थोड़ा रक्त बाहर निकलता रहता है। बवासीर, पेट का अल्सर, मसूढों से होनेवाला रक्तस्राव ये इसके कुछ उदाहरण हैं। इसमें जितना लोह प्रतिदिन रक्त से बाहर निकल जाता है, उतना लोह सप्ताह भर में भी शोषित नहीं किया जाता है। फ़लस्वरूप लोह का असंतुलन हो जाता है। लोह की कमी होने के कारण लाल रक्त पेशियों का आकार छोटा होता है। इसे Microcytosis कहते हैं। साथ ही साथ इन पेशियों में हिमोग्लोबिन की मात्रा भी कम होती हैं। इस स्थिति को Hypochronia कहते हैं। इस अ‍ॅनिमिया को मायक्रोसायटिक हैपोक्रोमिक अ‍ॅनिमिआ कहते हैं।

२) अप्लास्टिक (Aplastic) अ‍ॅनिमिआ – जब अस्थिमज्जा के कार्य पूरी तरह रुक जाते हैं तो उस से यह अ‍ॅनिमिया होता है। क्ष किरणों (एक्स रे), कुछ रसायनों या औषधियों का अस्थिमज्जा पर घातक परिणाम होता है और अस्थिमज्जा के कार्य पूरी तरह थम जाते हैं। अणुबम के विस्फ़ोट के बाद उत्सर्जित होनेवाली गॅमा किरणों के कारण अस्थिमज्जा का अप्लासिआ बन जाता है। इस प्रकार की अ‍ॅनिमिआ में अस्थिमज्जा के कार्य पूरी तरह रुक जाने के कारण लाल रक्त पेशियों का निर्माण ही नहीं होता।

३) मेगॅलोब्लास्टिक अ‍ॅनिमिआ – पिछले लेखों में हमने देखा कि लाल रक्त पेशियों की मॅच्युरिटी के लिए इ १२ और फ़ॉलिक अ‍ॅसिड इन जीवनसत्त्वों की आवश्यकता होती है। इन दोनों जीवनसत्वों का शोषण छोटी आँतो में होता है। परन्तु इसके लिए जठर का इंट्रिझिक फ़ॅक्टर नामक पदार्थ सहायता करता है। आहार के इन दोनों जीवनसत्वों के साथ यह फ़ॅक्टर जठर में मिल जाता है। जीवनसत्व और इंट्रिझिक फ़ॅक्टर एकत्रित आने पर ही जीवनसत्त्वों को छोटी आँत में शोषित किया जाता है। इसीलिए इन जीवनसत्वों की कमी के साथ ही इंट्रिझिक फ़ॅक्टर की कमी भी मेगॅलोब्लास्टिक अ‍ॅनिमिआ निर्माण करती है। कुछ व्यक्तियों में जठर का आंतरिक आवरण नष्ट हो जाता है। इंट्रिझिक फ़ॅक्टर इसी आवरण में होता है। अत: वह भी नष्ट हो जाता है। ऐसे व्यक्ति में यह अ‍ॅनिमिआ होता है। कुछ व्यक्तियों में जठर की बीमारी के कारण पूरा जठर ही निकाल देना पड़ता हैं। ऐसे व्यक्तियों में भी मेगॅलोब्लास्टिक अ‍ॅनिमिआ होता है।

इस अ‍ॅनिमिआ में लाल पेशियां जरूरत से ज्यादा बड़े आकार की होती हैं। इसीलिये इन्हें मेगॅलोब्लास्टिक कहते हैं। इस पेशी का आकार भिन्न होता है और पेशे आवरण नाजुक होता है। कुछ व्यक्तियों को छोटी आँतों में ‘स्प्रू’ नाम का रोग होता है। इस बीमारी में उपरोक्त जीवनसत्त्वों का पचन व्यवस्थित नहीं होता और ऐसी अ‍ॅनिमिआ का निर्माण होता है।

४) हिमोलिटिक अ‍ॅनिमिआ – यह विकार प्राय: अनुवांशिक होता है। इस विकार में लाल रक्तपेशियां अत्यंत नाजुक होती हैं। छोटी केशवाहिनीयां और प्लीहा इन में से प्रवास करते समय यह रक्तपेशियां अपने आप नष्ट हो जाती हैं। इस विकार में रक्तपेशियां तैयार होने का वेग नॉर्मल या थोड़ा ज्यादा ही होता है। परन्तु इन रक्तपेशियों की आयु कम होने के कारण इनके नष्ट होने का वेग भी ज्यादा होता है। निर्मिति की तुलना में नष्ट होने का वेग ज्यादा होने के कारण अ‍ॅनिमिआ होता है। इस प्रकार की अ‍ॅनिमिआ के दो मुख्य प्रकार हैं –

अ) अनुवंशिक स्फ़िरोसायटोसिस : इस विकार में लाल पेशियां गोलाकार बन जाती हैं। दोनों ओर से अंतर्गोल तश्तरी की तरह होने के बजाय गोलाकार की हो जाने के कारण इनका पेशी आवरण तन जाता है और ये पेशियां तुरंत फ़ट जाती हैं। फ़लस्वरूप प्लीहा में ये पेशियां आसानी से नष्ट की जाती है और शरीर में इनकी कमी हो जाने के कारण अ‍ॅनिमिआ होता है।

ब) सिकल सेल अ‍ॅनिमिआ : इस विकार में लाल रक्तपेशियों से हिमोग्लोबिन ही अलग हो जाती है। इनकी बीटा शृंखला में दोष होने के कारण यह हिमोग्लोबिन ही अलग बनता है। इसे हिमोग्लोबिन ड कहते हैं। इस विकार में पेशी में और रक्त में प्राणवायु की मात्रा कम होने पर इस हिमोग्लोबिन का रूपांतरण लंबे से आकार के स्फ़टिक में हो जाता है। ये लंबे से स्फ़टिक रक्तपेशियों को भी लंबे से बना देते हैं। ऐसे समय में लाल रक्त पेशी ‘सिकल शेप’ यानी खुरपी के आकार की दिखायी देती है। तनाव आने के कारण ये पेशियां तुरंत फ़ट जाती हैं।

रक्ताभिसरण पर अ‍ॅनिमिआ का होनेवाला परिणाम:
किसी भी प्रकार के अ‍ॅनिमिआ में रक्त की लाल पेशियों की संख्या कम हो जाती है। फ़लस्वरूप हमेशा की तुलना में रक्त पतला हो जाता है। रक्त पतला हो जाने के कारण इसके प्रवाह का रक्तवाहिनियों में होनेवाला विरोध कम हो जाता है, जिससे प्रवाह बढ़ जाता है। साथ ही प्राणवायु की मात्रा कम हो जाने के कारण रक्तवाहनियां डायलेट हो जाती हैं। इसका सार्वत्रिक परिणाम व्हिनस रिटर्न में वृद्धि होने में होता है। व्हिनस रिटर्न बढ़ने पर हृदय को ज्यादा रक्त पंप करना पड़ता है और हृदय पर कार्य का बोझ बढ़ जाता है। सामान्य परिस्थिति में हृदय यह बढ़ा हुआ बोझ उठा लेता है परन्तु यदि ऐसा अ‍ॅनिमिक व्यक्ति व्यायाम अथवा भाग-दौड़ का काम करता है तो यह बढ़ा हुआ तनाव हृदय सहन नहीं कर पाता। हृदय के कार्यों पर इसका विपरीत परिणाम होने के कारण व्यक्ति की हार्ट फ़ेल्युअर से मृत्यु होने की संभावना होती है।
आज तक हमने लाल रक्तपेशियों का अभ्यास किया। कल से हम सफ़ेद रक्तपेशियों के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे।
(क्रमश:-)

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