हृदय व रक्ताभिसरण संस्था- १०

हम हमारे शरीर में रक्ताभिसरण का अध्ययन कर रहे हैं। रक्त के प्रवास के तीन अलग-अलग चरण हैं। वे इस प्रकार हैं- फ़ेफ़ड़ों में प्रवास अथवा छोटा वर्तुल, शरीर में प्रवास अथवा बड़ा वर्तुल और पोर्टल सरक्युलेशन। हमारे दोनों फ़ेफ़ड़ों में रक्त को प्राणवायु की आपूर्ति की जाती है। फ़ेफ़ड़ों में प्रवास के दौरान डीऑक्सिजनेटेड रक्त का रूपांतर ऑक्सिजनेटेड रक्त में होता है। हमने अब तक रक्त के प्रवास का जो अध्ययन किया है वो हमारे जनम के बाद होनेवाला रक्त का प्रवास था। माता के गर्भ में रहते समय उस बच्चे के शरीर में होनेवाला रक्त का प्रवास अलग होता है। इस रक्ताभिसरण को फ़ीटल सरक्युलेशन (Fetal Circulation) कहते हैं। अनेक बातों में इसकी भिन्नता दिखायी देती है। गर्भावस्था में रक्त-प्रवास किस प्रकार होता है, इसकी संक्षेप में जानकारी प्राप्त करते हैं।

गर्भावस्था में बच्चे के फ़ेफ़ड़े लगभग अकार्यक्षम होते हैं। बच्चे के रक्त को प्राणवायु की आपूर्ति करने और रक्त के ज़हरीले एवं नुकसानदेह घटकों को अलग करके रक्त को शुद्ध करने के ये दोनों काम नाल (Placenta) करती है। बच्चे का रक्त अंबिलिकल आरटरीज द्वारा नाल में पहुँचता है। बच्चे के शरीर में दो अंबिलिकल आरटरीज् होती हैं। अंबिलिकल वेन द्वारा रक्त नाल से बच्चे के पास आता है। गर्भावस्था के प्रारंभिक समय में दो अंबिलिकल वेन्स होती हैं, दायी और बायी। कालांतर में दाहिनी वेन समाप्त हो जाती है। बायी अंबिलिकल वेन बच्चे की तोंदी से बच्चे के शरीर में प्रवेश करती है और बच्चे के यकृत (लिव्हर) तक जाती है। वहाँ पर वो पोर्टल वेन्स से जुडती है। अंबिलिकल वेन्स के ज़रिये यकृत में आया हुआ रक्त तीन अलग-अलग मार्गों से इनफ़िरिअर वेनाकॅवा में आता है और आगे चलकर दायी एट्रिअम में प्रवेश करता है। इसके पहले के लेख में हमने देखा है कि गर्भावस्था में दोनो एट्रिओं के बीच स्थित परदे में एक छेद होता है, जिसे ओवल फ़ोरॅमेन कहते हैं। इस फ़ोरॅमेन में से रक्त बायी एट्रिअम में आता है। यहाँ पर यह रक्त फ़ेफ़ड़ों से आये हुये रक्त में मिलता है और आगे बायी वेंट्रिकल में जाता है।

इनफ़िरिअर वेनाकॅवा में से आया हुआ थोड़ा रक्त सुपिरिअर वेनाकॅवा से आये हुये रक्त में मिलता है और यह रक्त दाहिनी वेंट्रिकल में प्रवेश करता है।

बांयी वेंट्रिकल में आया हुआ रक्त काफ़ी हद तक ऑक्सिजनेटेड होता है। यह रक्त एओर्टा के माध्यम से हृदय, सिर व दोनों हाथों में फ़ैलता है। इसमें में काफ़ी थोड़ा रक्त बच्चे के पेंट व पैरों में जाता है।

सिर, गर्दन, हाथ आदि से वापस आया हुआ रक्त सुपिरिअर वेनाकॅवा के माध्यम से सीधे दांयी वेंट्रिकल में आता है। मार्ग में दायी एट्रिअम में इनफ़िरिअर वेनॉकवा के माध्यम से आया हुआ ऑक्सिजनेटेड रक्त थोड़ी मात्रा में इस रक्त में मिलता है। दांयी वेंट्रिकल में से यह पलमनरी आरटरी में आता है। इसमें से काफ़ी कम रक्त फ़ेफ़ड़ों में जाता है। शेष रक्त पेट की ओर जानेवाली एओर्टा के भाग में प्रवेश करता है। इसके लिये गर्भावस्था में एओर्टा व पलमनरी आरटरी को जोड़ने वाली छोटी सी नलिका होती है। इस नलिका को डक्ट्स आरटिरिओसस कहते हैं। वहाँ से यह रक्त बच्चे के पेट के अवयवों व पैरों में जाता है तथा अंबिलिकल आरटरीज के द्वारा नाल में वापस आता है।

इससे गर्भावस्था में बच्चे के रक्ताभिसरण की विशेषता दिखायी देती है। यहाँ पर शुद्ध एवं अशुद्ध रक्त एक-दूसरे में मिलता है। परन्तु इस स्थिति में भी महत्त्वपूर्ण अवयवों का पूरा खयाल रखा जाता है। नाल से आने वाला शुद्ध रक्त, ऑक्सिजनेटेड़ रक्त, ज्यादा से ज्यादा मात्रा में बांयी वेंट्रिकल में पहुँचता है। यहाँ से मुख्य एओर्टा के माध्यम से गर्दन, मष्तिष्क, सिर व हृदय आदि भागों में इस रक्त के काफ़ी हिस्से की आपूर्ति की जाती है। इसमें से थोड़ा रक्त बच्चे के पैरों की ओर जाता है। बच्चे के पेट के विभिन्न अवयव, इस अवस्था में ज्यादा कार्यक्षम नहीं होते हैं। जिसके कारण इन अवयवों को प्राणवायु की आवश्यकता कम होती हैं। वहीं पर बच्चों के मष्तिष्क, हृदय को प्राणवायु की ज्यादा आवश्यकता होती है। उसी तरह रक्त की आपूर्ति बच्चे के अवयवों को होती है। बच्चे के जन्म के समय इस रक्ताभिसरण में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन होते हैं। अब हम देखेंगे कि ये परिवर्तन कौन-कौन से हैं।

बच्चे का जन्म होने के साथ ही बच्चा अपनी पहली साँस लेता है। इसी के साथ बच्चे के फ़ेफ़ड़े फ़ैल जाते हैं। पलमनरी आरटरीज़ में बहने वाले रक्त की मात्रा बढ़ जाती है। रक्त की यह बढ़ी हुई मात्रा पलमनरी वेन्स के द्वारा बायी एट्रिअम में आती है। इस समय बांयी एट्रिअम में रक्त का दबाव बढ़ने लगता है और वो धीरे-धीरे दायी एट्रिअम में रक्त के दाब के बराबर हो जाता है। इसके फ़लस्वरूप एट्रिओं के बीच के परदे में स्थित छिद्र से होने वाला रक्त का प्रवाह रुक जाता है। क्योंकि इस छिद्र पर परदे का शेष भाग, बांयी एट्रिअम में रक्त के दबाव के कारण, इस छिद्र पर काफ़ी दबाव आ जाता है। अगले दो-तीन सप्ताहों में यह छिद्र पूरी तरह बंद हो जाता है।

बच्चे के जन्म के तुरंत बाद तोंदी के पास नाल में गाँठ मार दी जाती है। इसके फ़लस्वरूप नाल से होनेवाला रक्त प्रवाह बंद हो जाता है। दायी एट्रिअम में रक्त दबाव कम होने के पीछे यह भी एक कारण होता है। अंबिलिकल वेन व आरटरीज में से होनेवाला रक्त प्रवाह रुक जाता है।
धीरे-धीरे इन रक्तवाहिनियों का रूपांतरण लिगामेंट्स में हो जाता है।

जन्म के बाद तुरंत डक्टस आरटिरिओसस भी आकुंचित हो जाता है। इसमें से होने वाला रक्त-प्रवाह पूरी तरह रुक जाता है अथवा कुछ सप्ताहों तक बीच-बीच में शुरू रहता है।

बच्चे के जन्म के बाद शुद्ध एवं अशुद्ध रक्त का एक-दूसरे से मिलना पूरी तरह रुक जाता है। फ़ेफ़ड़ों में होनेवाला रक्ताभिसरण और शरीर में होनेवाला रक्ताभिसरण पूरी तरह अलग-अलग होने लगता है। बच्चे के नाखून, चमड़ी, होंठ, जीभ, पुतलियाँ इत्यादि जगहों की रक्तवाहिनियों में ज़्यादा मात्रा में ऑक्सिजनेटेड रक्त फ़ैलता है। इसके फ़लस्वरूप बच्चे की जीभ, होंठ, नाखून आदि गुलाबी दिखायी देते हैं। परन्तु कभी-कभी कोई बच्चा नीला दिखायी देता है यानी उसकी जीभ, होंठ, नाखून आदि सब नीले दिखायी देते हैं। ऐसा क्यों ओर कैसे होता है, यह हम अगले लेख में देखेंगें।

(क्रमश:)

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