३७ . डेव्हिड इस्रायल का नया राजा; डेव्हिड की राजधानी जेरुसलेम

३७ . डेव्हिड इस्रायल का नया राजा;  डेव्हिड की राजधानी जेरुसलेम

गाथ प्रान्त की झिकलॅग नगरी में पनाह प्राप्त करने के बाद, डेव्हिड ने वहॉं से आमलेकी जैसे, इस्रायल के अन्य शत्रुओं से लड़ाइयॉं शुरू कीं| थोड़े ही समय में उसने गाथ के फिलिस्तिनी राजा एकिथ का भरोसा संपादन किया| लेकिन कुछ ही समय में फिलिस्तिनियों के सभी प्रान्तों के राजाओं ने एक होकर पुनः इस्रायलियों […]

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३६. डेव्हिड का वनवास

३६. डेव्हिड का वनवास

इस प्रकार उस महाकाय, महाताकतवर एवं शस्त्रसुसज्ज गोलाएथ को डेव्हिड ने केवल गोफन एवं पत्थर जैसे नाममात्र शस्त्र की सहायता से, ख़ासकर ईश्‍वर पर का अटूट विश्‍वास ज़रा भी न टूटने देते हुए उसे मार दिया था। लेकिन उसीने गोलाएथ का सिर काटकर ले जाने की जो प्रतिज्ञा गोलाएथ के सामने ही की थी, उसे […]

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३५ . डेव्हिड और गोलाएथ

३५ . डेव्हिड और गोलाएथ

सौल ने हालाँकि ईश्‍वर के आशीर्वाद से फिलिस्तिनी लोगों को कॅनान प्रान्त के बाहर खदेड़ दिया था, मग़र वे चुपचाप नहीं बैठे थे। इस्रायली लोगों से बदला लेने का मौका ही वे ढूँढ़ रहे थे और उसके लिए वे सेना इकट्ठा कर रहे थे। पर्याप्त सैन्यबल इकट्ठा होने के बाद उन्होंने प्रथम ज्युडाह की ज्ञाति […]

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३४. इस्रायल के लिए नया राजा चुनने की तैयारी

३४. इस्रायल के लिए नया राजा चुनने की तैयारी

सौल ने सॅम्युएल की भविष्यवाणी सुनी ही थी और शान्त मन से उसका स्वीकार भी किया था। लेकिन ‘वह’ दिन आने तक उसपर सौंपा गया काम वह निष्ठापूर्वक करेगा, ऐसा उसने तय किया था। इस कारण फिलिस्तिनियों पर विजय पाकर उन्हें कॅनान प्रान्त से निकाल बाहर कर देने के बाद सौल की नज़र अब कॅनान […]

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३३. ‘राजा’ की परीक्षा

३३. ‘राजा’ की परीक्षा

इस्रायल यह एकसंध देश बनने की दिशा में अब ज्यूधर्मियों का बहुत ही महत्त्वपूर्ण कदम पड़ा था – उन्हें जो अत्यधिक जरूरी लग रहा था, वह उनका केंद्रीय मध्यवर्ती नेतृत्व, यानी उनका ‘पहला राजा’ अस्तित्व में आया था| जल्द ही सॅम्युएल की देख़रेख़ में नये राजा का प्रशिक्षण शुरू हुआ| राजा का आचरण कैसा होना […]

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३२. इस्रायल का ‘पहला राजा’

३२. इस्रायल का ‘पहला राजा’

लगातार चल रहीं लड़ाइयों एवं आक्रमणों से ऊब चुके ज्यूधर्मियों को समर्थ केंद्रीय नेतृत्व की ज़रूरत महसूस होने के कारण, ‘राजा को चुनना चाहिए’ यह अब तय हो चुका था और उसके लिए अनुकूल ऐसा संकेत भी ईश्‍वर ने दिया था| लेकिन यह राजा होगा कौन, इसके बारे में कुछ भी जानकारी नहीं थी| इसी […]

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३१. समर्थ केंद्रीय नेतृत्व की आवश्यकता

३१. समर्थ केंद्रीय नेतृत्व की आवश्यकता

इसी दौरान ज्यूधर्मियों से फ़िलिस्तिनियों ने हस्तगत किया ज्यूधर्मियों का श्रद्धास्थान – ‘आर्क ऑफ़ कॉव्हेनन्ट’, फ़िलिस्तिनियों ने समारोहपूर्वक ले जाकर अपने सर्वोच्च दैवत के मुख्य मंदिर में रखा था। लेकिन सुबह उठकर जब देखा, तो उस देवता की मूर्ति उस ‘आर्क ऑफ़ कॉव्हेनन्ट’ के सामने इस तरह झुकी थी कि मानो उसकी शरण में चली […]

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३०. सॅमसनपश्‍चात् ज्यूधर्मियों के नेता – ‘एली द कोहेन’ और ‘सॅम्युएल’

३०. सॅमसनपश्‍चात् ज्यूधर्मियों के नेता –  ‘एली द कोहेन’ और ‘सॅम्युएल’

सॅमसन की मृत्यु से ज्यूधर्मियों ने बड़ा ही रक्षाकर्ता खो दिया था। क्योंकि जब तक सॅमसन था, तब तक ज्यूधर्मियों के दुश्मनों को उसका अच्छाख़ासा ख़ौ़फ़ था और केवल छलकपट से ही फिलिस्तिनी सॅमसन को बंदी बनाने में क़ामयाब हुए थे। सॅमसन की विशेषता यह मानी जाती है कि अब तक के सभी जज्जेस ने […]

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२९. ‘सॅमसन’ का अन्त

२९. ‘सॅमसन’ का अन्त

सॅमसन एवं उसके मातापिता उसकी होनेवाली पत्नी के गाँव – तिमना पहुँच गये। सारा तफ़सील तय करके वे वापस लौट आये। यथावकाश उनकी शादी भी हुई। इस शादी में उसकी पत्नी के जितने भी फिलिस्तिनी रिश्तेदार उपस्थित थे, उनके लिए उस समय की परिपाटि के अनुसार सॅमसन ने सात दिन का दावत समारोह आयोजित किया […]

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२८. बारहवाँ जज्ज – ‘सॅमसन’

२८. बारहवाँ जज्ज – ‘सॅमसन’

इस प्रकार ज्यूधर्मियों की चौथीं ‘जज्ज’ ने – डेबोरा ने ज्यूधर्मियों को कॅनानप्रांतीय राजा जाबिन तथा उसका क्रूरकर्मा सेनापति सिसेरा के पंजे से छुड़ाया था। यहाँ पर एक अहम बात ध्यान में आती है कि ईश्‍वर के पास किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं है – ना तो अमीर-गरीब, ना ही पुरुष-स्त्री। इतने लाखों ज्यूधर्मियों […]

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