२९. ‘सॅमसन’ का अन्त

सॅमसन एवं उसके मातापिता उसकी होनेवाली पत्नी के गाँव – तिमना पहुँच गये। सारा तफ़सील तय करके वे वापस लौट आये।

यथावकाश उनकी शादी भी हुई। इस शादी में उसकी पत्नी के जितने भी फिलिस्तिनी रिश्तेदार उपस्थित थे, उनके लिए उस समय की परिपाटि के अनुसार सॅमसन ने सात दिन का दावत समारोह आयोजित किया था। बाद में वह अपने परिजनों के साथ अपने गाँव लौट गया। मग़र उसकी पत्नी परिपाटि के अनुसार वहीं पर रह गयी। लेकिन पत्नी के बाप ने उसपर ख़ौंफ़ जमाते हुए उसकी शादी दूसरे ही आदमी से करा दी।

आगे चलकर फसल काँटने के मौसम में सॅमसन जब अपने ससुर के गाँव गया, तब उसे सारा वाक़या पता चला। उसने ग़ुस्से में आकर बदला लेने का तय किया। उसने तीनसौं सियारों को इकट्ठा किया और दो-दो की जोड़ियों में उनकी दुमों को एक-दूसरे के साथ बाँध दिया। बाद में उनकी दुमों को मशालें बाँधकर उन्हें फिलिस्तिनियों के खेतों में छोड़ दिया। थोड़ी ही देर में सबकीं फ़सलें, जो काटने के लिए तैयार हुईं थीं, वे जलकर खाक हो गयीं, ऐसा यह कथा बताती है। यह ऐसा सॅमसन ने क्यों किया, यह जान जाते ही फिलिस्तिनियों ने, इस बात की वजह बने, सॅमसन के ससुर को एवं सॅमसन की पत्नी को जलाकर मार दिया। यह जान जाते ही, बहुत बड़ी ताकतवाले सॅमसन ने अकेले ही सैंकड़ो फिलिस्तिनियों को मारकर बाकी के फिलिस्तिनियों को खदेड़ दिया और पर्वत पर की एक गुफा में जाकर वह रहा।

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सॅमसन ने ज़ोर लगाने पर, उसे कसकर बाँधे हुए सारे रस्से झट से टूटकर नीचे गिर गये। उसके बाद सॅमसन ने एक मृत गधे के जबड़े की हड्डी की सहायता से अकेले ने ही हज़ारों फिलिस्तिनियों को मार डाला।

सॅमसन यह हालाँकि ज्यूधर्मियों का जज्ज था, मग़र फिर भी उस समय ज्यूधर्मियों पर फिलिस्तिनियोें का ही शासन था। अतः उन्होंने पास ही वास्तव्य रहनेवाली ज्युडाह ज्ञाति के लोगों पर दबाव डालकर, सॅमसन को पकड़कर अपने हवाले करने का हु़क्म दिया। इससे दबकर जब ज्युडाह-ज्ञातीय लोग जब सॅमसन के पास आये, तब उसने उनपर ग़ुस्सा न करते हुए, ‘तुम लोग मुझे जान से नहीं मारोगे, बल्कि स़िर्फ पकड़कर फिलिस्तिनियों के हवाले करोगे’ यह अभिवचन उनसे लिया और उनके हवाले हो गया। उन्होंने दो नये रस्सों से सॅमसन को बाँध दिया और वे उसे फिलिस्तिनियों के पास ले जाने लगे। फिलिस्तिनियों ने देखा कि सॅमसन को रस्सों से बाँधकर अपने पास लाया जा रहा है, तब वे अत्यधिक क्रोध से बेभान होकर उसे मारने के लिए दौड़ पड़े।

वे लोग पास आते ही सॅमसन में दैवी शक्ति का संचार हुआ और उसने ज़ोर लगाने पर, उसे कसकर बाँधे हुए सारे रस्से टूटकर नीचे गिर पड़े। उसके बाद सॅमसन ने ईर्दगिर्द देखा, तो उसे एक मृत गधे का पंजर दिखायी दिया। उस गधे के जबड़े की हड्डी उसने निकाल ली और उसके बल पर अकेले ने हज़ारों फिलिस्तिनियों को मार डाला, ऐसा वर्णन इस कथा मे आता है।

सॅमसन की अपार शक्ति का वर्णन करनेवालीं कई कथाएँ बतायी जाती हैं। एक बार जब वह गझा गया था, तब उसे घेरकर मारने की योजना फिलिस्तिनी लोगों ने बनायी। लेकिन उसने सीधे उनके शहर की चहारदीवारी का बुलंद दरवाज़ा उसके स्तंभों के साथ ही उखाड़कर और उसी को बतौर शस्त्र इस्तेमाल करते हुए, उसपर धावा बोले फिलिस्तिनी लोगों को मार दिया।

दूसरी बार भी उसे एक ‘डिलायला’ नामक फिलिस्तिनी लड़की ही पसन्द आयी। लेकिन उससे शादी करने के बाद, फिलिस्तिनी लोगों ने उसे हज़ारों रौप्यमुद्राओं (‘शेकेल’) का लालच दिखाकर, ‘सॅमसन की इतनी अतिप्रचंड शक्ति का राज़ क्या है’ इसका पता लगाने के लिए कहा।

चालाक़ डिलाईला ने सॅमसन के साथ प्यार का नाटक करते हुए उससे इस रहस्य को जान लेने की कोशिश की। तब उसने झूठमूट के कुछ कारण बताये, जिनकी जानकारी डिलाईला ने फिलिस्तिनियों को दी। लेकिन उस झूठी जानकारी के आधार पर कृति करते हुए जब फिलिस्तिनियों ने जब सॅमसन पर धावा बोल दिया, तब सॅमसन उनपर हावी होकर वे दूम दबाकर भाग गये।

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अपनी ताकत अपने बालों में ही है, ऐसा सॅमसन ने अपनी पत्नी डिलाईला को बताने के बाद उसने कपटपूर्वक, सॅमसन गहरी नींद सो जाने के बाद फिलिस्तिनी लोगों को बुलाकर उसके बाल कटवा दिये।

तीनचार बार जब ऐसा घटित हुआ, तो डिलाईला ने गुस्से में आकर सॅमसन को भावनिक दृष्टि से अपने जाल में खींचने की कोशिश की। उसकी लगातार की गयी खिटपिट से आख़िरकार सॅमसन का संयम एवं सावधानता ख़त्म हो गयी और ‘मैं अपनी माँ के पेट में था, तबसे ईश्‍वर को समर्पित होने के कारण मुझमें दैवी ताकत है और मेरे बालों में ही यह ताकत होने के कारण, मेरे बालों पर कभी भी शस्त्र न चलाने की सूचना देवदूत ने मेरे मातापिता को की थी’ ऐसा सॅमसन ने उसे बता ही दिया।

अब डिलाईला का काम हो चुका था। उसने तुरन्त ही यह जानकारी फिलिस्तिनी लोगों तक पहुँचायी और साज़िश करते हुए, सॅमसन जब थकामाँदा गहरी नींद सो रहा था, तब उसके बाल कटवा दिये। अब सॅमसन की ताकत उसे छोड़कर चली गयी थी, ऐसा यह कथा बताती है।

उसके बाद डिलाईला ने घर में ही छिपे हुए फिलिस्तिनी लोगों को, सॅमसन पर हमला करने का संकेत दिया और डरने का नाटक करते हुए, ‘ये देखो, फिलिस्तिनी लोग तुम्हें मारने के लिए आये हैं’ ऐसा सॅमसन को बताया। सॅमसन को भी यह पहले की तरह ही लगा। लेकिन उसकी शक्ति अब उसमें नहीं रही, इस बात का अंदेसा उसे नहीं था।

वह पहले की तरह ही वीरता से पेश आने लगा, लेकिन जल्द ही उसे पता चला कि उसकी दैवी ताकत उसे छोड़ गयी है। लेकिन अब पछताने से क्या फ़ायदा था? फिलिस्तिनियों ने जल्द ही उसे बंदीवान बनाया, उसकी आँखें फोड़ दीं और मज़बूत लोहे की बेड़ियों में उसे जकड़कर उसे वे गाझा लेकर गये और वहाँ पर उसे कैदेबामशक्कत सुनायी गयी।

सॅमसन जैसा, अपने नाम से ही उनके दिलों में डर पैदा करनेवाला दुश्मन उनके कब्ज़े में आया देखकर फिलिस्तिनी लोग खुशी से फूले नहीं समा रहे थे और पूरे राज्यभर में आनंदोत्सव, दावतें मनायीं जा रही थीं। उनके देवताओं को बलि आदि चढ़ाने में लोग मश्गूल थे।

उनके देवता के एक बहुत बड़े मंदिर में इसी प्रकार के एक बड़े आनंदोत्सव का आयोजन किया गया था और वहाँ पर सॅमसन को लाया गया था, ताकि फिलिस्तिनियों को इस सबसे बड़े दुश्मन को – सॅमसन को लोग ऐसी हालत में लोग अपनी आँखों से देख सकें। दूर दूर के प्रांतों से हज़ारों की तादाद में आये लोग, सॅमसन को देखने के लिए उस मंदिर में खचाखच भीड़ करके खड़े थे। फिलिस्तिनी शासक भी उस समय वहाँ पर मंज़ूर थे।

लेकिन इतने दिन बंदीखाने में काटने के बाद स्वाभाविक रूप से सॅमसन के काटे हुए बाल अब पुनः बढ़ गये थे, जो बात इतने दिनों में किसी की भी समझ में नहीं आयी थी।

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सॅमसन उन दो स्तंभों को समेटकर खड़ा रहा और उसने मंदिर का आधार होनेवाले उन स्तंभों को अपनी पूरी ताकत लगाकर हिलाना शुरू किया। वह विशाल मंदिर भी उन स्तंभों के साथ हिलना शुरू हुआ और एक पल वह मंदिर, भीतर होनेवाले सभी लोगों की जानें लेते हुए ज़मीनदोस्त हो गया।

सॅमसन की आँखें नोच ली होने के कारण उसे कुछ भी दिखायी नहीं दे रहा था। अँदाज़न ही वह अपनी गतिविधियाँ कर रहा था। मन ही मन – ‘अपने इन शत्रुओं का बन्दोबस्त करने की’ उसने पहले खायी हुई सौगन्ध की ईश्‍वर को याद दिला रहा था। हज़ारों लोगों को समा लेनेवालें दो मंज़िला प्रेक्षागार होनेवाला वह मंदिर इन दो मुख्य स्तंभों के बलबूते पर ही खड़ा था।

सभी लोग अपने अपने उपचारों में व्यस्त थे, तभी सॅमसन ने, उसके साथ नियुक्त किये गये सेवक को उसे मुख्य मध्यवर्ती स्तंभों के पास ले जाने के लिए कहा, ‘ताकि वह उनके आधार से ठीक से खड़ा रह सकें’। उसके अनुसार उस सेवक ने सॅमसन को उस मध्यवर्ती स्तंभों के नज़दीक ले जाकर खड़ा किया।

सॅमसन उन दो स्तंभों को समेटकर खड़ा रहा और ईश्‍वर की प्रार्थना कर उसने उन दो स्तंभों को अपनी पूरी ताकत लगाकर हिलाना शुरू किया। उस समय उसे पता चला कि उसकी ताकत पुनः उसके पास लौट आयी है। तब अधिक ही प्रतिशोध की भावना से उसने उन दो स्तंभों को ज़ोर ज़ोर से हिलाना शुरू किया। अब हज़ारों लोगों से खचाखच भरे ऊपर के प्रेक्षागार होनेवाला वह विशाल मंदिर भी उन स्तंभों के साथ हिलना शुरू हुआ और एक पल को वह मंदिर, भीतर के सभी लोगों की जानें लेते हुए ज़मीनदोस्त हो गया।

ज़ाहिर है, सॅमसन की भी मृत्यु हो चुकी थी, लेकिन ऐसे संतोष के साथ कि मेरे साथ हमारे हज़ारों शत्रुओं की मौत भी हो चुकी है। इस प्रकार गत बीस वर्षों से ज्यूधर्मियों का ‘जज्ज’ रह चुके महाशक्तिमान् सॅमसन का आख़िरकार अन्त हो चुका था।(क्रमश:)

– शुलमिथ पेणकर-निगरेकर

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