२८. बारहवाँ जज्ज – ‘सॅमसन’

इस प्रकार ज्यूधर्मियों की चौथीं ‘जज्ज’ ने – डेबोरा ने ज्यूधर्मियों को कॅनानप्रांतीय राजा जाबिन तथा उसका क्रूरकर्मा सेनापति सिसेरा के पंजे से छुड़ाया था। यहाँ पर एक अहम बात ध्यान में आती है कि ईश्‍वर के पास किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं है – ना तो अमीर-गरीब, ना ही पुरुष-स्त्री। इतने लाखों ज्यूधर्मियों की संकट से मुक्तता ईश्‍वर ने एक स्त्री के माध्यम से की। वैसे ही, ज़ुल्मी सिसेरा को मार देनेवाली भी एक स्त्री (जाएल) ही थी। यहाँ पर ईश्‍वर को – ‘इतने कठिन, मुश्किल काम के लिए पुरुष ही चाहिए’ आदि धारणाओं से कुछ भी फ़र्क़ नहीं पड़ा; क्योंकि आख़िरकार वे सब माध्यम हैं….असली कार्य तो ईश्‍वर ही करनेवाले थे।, फिर चाहे वह किसी के भी माध्यम से हों। ख़ैर!

इसके पश्‍चात् के लगभग १२० वर्षों में – ७ जज्जेस् ने इसी प्रकार के छोटे बड़े संकटों में – अधिकांश बार विदेशी आक्रमणों में ज्यूधर्मियों का नेतृत्व किया। किसी का कार्यकाल छः-आठ साल, किसी का बाईस-तेईस साल, तो किसी का चालीस साल तक चला।

डेबोरा के बाद आये गिडिऑन इस पाँचवें ‘जज्ज’ का कार्यकाल लगभग चालीस साल का था और उसने चन्द ३०० सैनिकों को साथ लेकर तक़रीबन सव्वा लाख से भी अधिक मिडियनप्रांतीय आक्रमकों से ज्यूधर्मियों की रक्षा की, ऐसा उल्लेख कथा में आता है। इसका यह कृत्य इतना बड़ा था कि सार्थक हो चुके ज्यूधर्मियों ने उसे राजमुकुट प्रदान किया। ज्यूधर्मियों के इतिहास में ऐसा पहली ही बार घटित हो रहा था। इतना ही नहीं, बल्कि उसके बाद उसके वंशजों के पास ही वंशपरंपरा से ज्यूधर्मियों का नेतृत्व बरक़रार रहेगा, ऐसा प्रस्ताव पारित किया गया। लेकिन गिडिऑन ने नम्रतापूर्वक इस बात से इन्कार किया होने के कारण यह प्रस्ताव ख़ारिज हो गया। उसीके साथ, गिडिऑन के सत्तर बच्चें होने की जानकारी प्राप्त होती है।

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जब अबिमेलेच सेना के साथ एक ऊँचे मीनार के पास से गुज़र रहा था, तब मीनार से एक वज़नदार पत्थर बराबर निशाना लगाते हुए उसके सिर पर फेंककर उसकी हत्या की।

गिडिऑन के बाद आये शासक को – अबिमेलेच को क्या ‘जज्ज’ माना जा सकता है, इस बात को लेकर संशोधनकर्ताओं में दोराय है। ‘जज्ज’ यह ईश्‍वर ने ज्यूधर्मियों को किसी न किसी संकट से, आपत्ति से मुक्त करने के लिए नियत किया हुआ नेता था। लेकिन इस शासक के – अबिमेलेच के मामले में ऐसा कुछ भी घटित नहीं हुआ था। उल्टा गिडिऑन की मृत्यु के बाद, उसके ७० बच्चों में से एक होनेवाले अबिमेलेच ने, कपटपूर्वक अपने सभी भाइयों को मारकर सत्ता हासिल की। केवल एक ही भाई – जोथाम अपनी जान बचाकर भाग जाने में क़ामयाब हुआ। अबिमेलेच यह बहुत ही खूंखार था। उसने इस्रायली लोगों की किसी आक्रमकों से रक्षा करना तो दूर की ही बात, उल्टा उनपर ही कहर ढाकर उनका शोषण किया। जल्द ही उसके खिलाफ़ इस्रायली जनता में असंतोष फैलने लगा, जिसे जोथाम ने सुयोग्य दिशा प्रदान की। चन्द तीन सालों में ही एक ज्यूधर्मीय स्त्री ने, जब वह सेना के साथ एक ऊँचे मीनार के पास से गुज़र रहा था, तब मीनार से एक वज़नदार पत्थर बराबर निशाना लगाते हुए उसके सिर पर फेंककर उसकी हत्या की।

उसके बाद आनेवाले छठें और सातवें ‘जज्जेस्’ ने – ‘टोला’ एवं ‘जैर’ ने क्रमानुसार २३ और २२ साल शासन किया। इससे अधिक इन दोनों की कुछ ख़ास जानकारी उपलब्ध नहीं है। लेकिन इस कालखंड में ज्यूधर्मीय बहुत ही बारिक़ी से ज्यू धर्मतत्त्वों का और अपने धर्मकर्तव्यों का पालन कर रहे थे, ऐसा उल्लेख कथा में पाया जाता है।

लेकिन हमेशा की तरह जैर की मृत्यु के बाद ज्यूधर्मियों को धीरे धीरे वहीं पुरानीं समस्याएँ सताने लगीं। जिसके परिणामस्वरूप ज्यूधर्मीय दुर्बल बन गये और फिर उनपर पहले पुनः फिलिस्तिनी लोगों ने और उनके बाद अमोनी प्रान्त के लोगों ने आक्रमण किया और उन्हें अपने ग़ुलाम बनाकर, उनका अनन्वित शोषण किया। उसके पश्‍चात् के पूरे अठारह साल ज्यूधर्मीय अपरंपार दिक्कतें सहते रहे, उनसे छुटकारा पाने के लिए अपने ईश्‍वर को तिलमिलाकर गुहारें लगाते रहें।

आख़िरकार ईश्‍वर को उनपर दया आयी और उसने ‘जेफ्था’ नामक एक शूरवीर ज्यूधर्मीय योद्धा को, ज्यूधर्मियों को संकट से छुड़ाने के लिए खड़ा किया। यही था आठवाँ ‘जज्ज’!

जेफ्था यह हालाँकि वीर था, मग़र फिर भी स्वच्छंदी जीवन जीनेवाला था और आवारा, बेक़ार लोगों में ही वह व़क्त गुज़ारा करता था, ऐसा कहा जाता है। ज्यूधर्मियों में से वरिष्ठों ने जेफ्ता को विनती करने के बाद उसने उनके नेतृत्व का स्वीकार करने की बात मान ली। उसके बाद जेफ्था ने प्रचंड पराक्रम दिखाकर ज्यूधर्मियों को अमोनी आक्रमकों से छुटकारा दिया। जेफ्था ने सात साल ज्यूधर्मियों का नेतृत्व किया।

जेफ्था के बाद आये इब्झान, एलॉन, अ‍ॅबडॉन इन (९-१०-११वें) जज्जेस् ने क्रमानुसार सात, दस और आठ साल ज्यूधर्मियों का नेतृत्व किया। लेकिन उनकी कुछ ख़ास जानकारी उपलब्ध नहीं है।

इनमें से इब्झान यह बेथलेहम से था और उसने ‘रुथ’ नामक मूलतः मोआबी वंश की, लेकिन बाद में ज्यूधर्म का स्वीकार की हुई विधवा स्त्री के साथ शादी की। इन दोनों के वंश में ही आगे चलकर कुछ पीढ़ियों के बाद इस्रायल के पराक्रमी राजा ‘डेव्हिड’ (‘किंग डेव्हिड’) का जन्म होनेवाला था।

अ‍ॅबडॉन की मृत्यु के बाद पुनः ज्यूधर्मियों की गाड़ी पटरी पर से उतरने लगी। इस समय, पिछली बार उनके हाथों परास्त हुए फिलिस्तिनी लोगों ने अधिक ताकत के साथ पुनः उनपर आक्रमण किया और उन्हें अपना ग़ुलाम बनाकर उनका शोषण किया। अगले चालीस साल ज्यूधर्मीय फिलिस्तिनियों के ज़ुल्म का शिकार बन चुके थे और ईश्‍वर के पास पुनः प्रार्थना कर रहे थे।

इस बार ईश्‍वर ने ज्यूधर्मियों के लिए जो बारहवाँ महत्त्वपूर्ण ‘जज्ज’ नियत किया था, वह था – ‘सॅमसन’!

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झोराह प्रांत के ‘मनोआ’ नामक ज्यूधर्मीय को तथा उसकी पत्नी को देवदूत का दृष्टान्त हुआ और उनके घर ज्यूधर्मियों को संकट से बाहर निकालनेवाला पराक्रमी शूरवीर (सॅमसन) जन्म लेनेवाला है, ऐसा सूतोवाच देवदूत ने किया।

इसी दौरान झोराह प्रान्त में रहनेवाले, डॅन की ज्ञाति के ‘मनोआ’ नामक ज्यूधर्मीय तथा उसकी पत्नी को देवदूत का दृष्टान्त हुआ और उनके घर ज्यूधर्मियों की संकट से मुक्तता करनेवाला पराक्रमी शूरवीर जन्म लेनेवाला है, ऐसा उस देवदूत ने कहा। लेकिन यह बालक जब पेट में होगा, तभी से ईश्‍वर को समर्पित हुआ होने के कारण, मनोआ की पत्नी किसी भी प्रकार का मद्यसेवन एवं कुपथ्यभक्षण न करें, ऐसा उसे बताया गया था। साथ ही, इस बालक के जन्म के बाद, जीवनभर उसके बालों को शस्त्र (कैंची, उस्तरा आदि) लगाना नहीं है, अर्थात् उसके बाल कभी भी काटने नहीं है, ऐसा भी उस देवदूत ने इस दंपति से कहा।

यथावकाश उनके घर बालक का जन्म हुआ, जिसका नाम ‘सॅमसन’ (‘शिमशॉन’) रखा गया। इस बालक के बचपन से ही कई बार, उसमें होनेवाली दैवी, अमानवी प्रचंड ताकत की प्रचिती सभी को होने लगी। खुद में रहनेवाली अद्भुत ताकत का स्वयं सॅमसन को जब से एहसास हुआ, तब से वह अपने यानी ज्यूधर्मियों के शत्रु को नेस्तनाबूद करने का मौका ढूँढ़ने लगा।

एक बार वह फिलिस्तिनी प्रान्त के तिमना इस गाँव में गया था, तभी उसे फिलिस्तिनी स्त्रियों में से एक लड़की पसन्द आयी और उसने घर आकर – यही मेरे लिए बतौर पत्नी सुयोग्य है, ऐसा उसने अपने मातापिता से कहा। वह ज्यूधर्मीय न होने के कारण, स्वाभाविक रूप में मातापिता का इस शादी को विरोध था। लेकिन उसने ज्यूधर्म का स्वीकार करने के बाद ही मैं उससे शादी करनेवाला हूँ, ऐसा सॅमसन ने उनसे कहा। अब किसी मन में यह सवाल उठ सकता है कि इतना जन्म से पहले से ही, माँ के उदर में होने से लेकर ही ईश्‍वर को समर्पित रहनेवाले सॅमसन ने शादी के लिए ज्यूधर्मियों के दुश्मनों में से ही लड़की क्यों चुनी? तो ‘सॅमसन को समय समय पर ईश्‍वरीय संकेत प्राप्त होते रहते थे और उनके अनुसार ही वह जीवन में कदम उठाता था। इस कारण, सॅमसन की शादी, उस समय ज्यूधर्मियों पर कब्ज़ा कर बैठे फिलिस्तिनियों की लड़की से होना, यह ईश्‍वरी योजना का ही भाग था’ ऐसा वर्णन इस कथा में आता है।

जज्ज, संकट से मुक्तता, शासक, नेता, आक्रमण, इस्रायल, झोराह प्रान्त
सॅमसन अपनी होनेवाली पत्नी से मिलने जब निकला, तब बीच रास्ते में जंगल से गुज़रते समय अचानक कहीं से एक सिंह सॅमसन पर लपट पड़ा। उस समय सॅमसन ने हाथ में कुछ भी शस्त्र न होते हुए, उस सिंह के जबड़े को पकड़कर, पूरी ताकत लगाते हुए उसे फ़ाड़ दिया।

सॅमसन और उसके मातापिता उस लड़की से मिलने तिमना गाँव जाने निकले। सॅमसन आगे गया और मातापिता बाद में वहाँ पहुँचनेवाले थे। बीच राह में जब वह जंगल से गुज़र रहा था, तब अचानक कहीं से एक सिंह सॅमसन पर लपट पड़ा। उस समय सॅमसन में ईश्‍वरीय शक्ति का संचार हुआ और उसने हाथ में कुछ भी शस्त्र न होते हुए, उस सिंह के जबड़े को पकड़कर, पूरी ताकत लगाते हुए उसे फाड़ दिया, ऐसा यह कथा बताती है।

सॅमसन की जीवनकथा बताते हुए, यह सिंह को निःशस्त्र हाथों से फाड़ देने का प्रसंग हमेशा ही अनुरोधपूर्वक बयान किया जाता है।(क्रमश:)

– शुलमिथ पेणकर-निगरेकर

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