३५ . डेव्हिड और गोलाएथ

सौल ने हालाँकि ईश्‍वर के आशीर्वाद से फिलिस्तिनी लोगों को कॅनान प्रान्त के बाहर खदेड़ दिया था, मग़र वे चुपचाप नहीं बैठे थे। इस्रायली लोगों से बदला लेने का मौका ही वे ढूँढ़ रहे थे और उसके लिए वे सेना इकट्ठा कर रहे थे। पर्याप्त सैन्यबल इकट्ठा होने के बाद उन्होंने प्रथम ज्युडाह की ज्ञाति पर हमला करने के उद्देश्य से कदम उठाया। ज्युडाह के प्रान्त से सटे शोचोह एवं अ‍ॅझेका इन स्थानों के बीच की एक उँची पहाड़ी पर फिलिस्तिनी सेना ने अपना डेरा जमाया।

सौल को इस बात की भनक लगते ही उसने भी अपनी सेना उन्हीं के सामने की एक पहाड़ी पर लाकर खड़ी कर दी। अब उन दो सेनाओं के बीच, उन दो पहाड़ियों के बीच की खाई थी। डेव्हिड के सभी भाई भी सेना में सहभागी हुए थे।

इस बार फिलिस्तिनियों ने एक अलग ही तरक़ीब सोची थी। कुछ समय तक एक-दूसरे को आज़माने के बाद, अचानक फिलिस्तिनियों के शिविर में से एक बहुत ही ऊँचाईवाला योद्धा उनकी पहाड़ी उतरते हुए बीच की खाई की तरफ़ आने लगा। उस महाकाय योद्धा की ऊँचाई असाधारण, यानी लगभग ८ फीट से भी अधिक थी और वह सिर से लेकर पाँव तक कवच पहना हुआ था। साथ ही, विभिन्न हथियार भी उसके पास थे।

यह हमारी ओर क्यों आ रहा है, इसका अँदाज़ा सौल की सेना बाँध ही रही थी कि तभी उस योद्धा ने, पहाड़ी की तलहटी तक आने के बाद इस्रायली सेना की ओर तुच्छतापूर्वक देखते हुए उन्हें खुलेआम चुनौती दी – ‘तुम में से कोई भी एक योद्धा आगे बढ़कर मेरे साथ लड़ाई करें। यदि वह जीत गया, तो हम तुम्हारे ग़ुलाम बन जायेंगे; लेकिन यदि वह हार गया, तो तुम लोगों को हमारा ग़ुलाम बनना पड़ेगा।’

‘गोलाएथ’ नामक उस योद्धा को दूर से देखकर ही सौल के सैनिकों के तोते उड़ गये थे, फिर उसकी चुनौती का स्वीकार कर उसके साथ युद्ध करना तो दूर ही रहा!

इस कारण, वह हररोज़ सुबह-शाम ऐसा दो बार यह चुनौती देता होने के बावजूद भी ज्यूधर्मियों द्वारा उस चुनौती का स्वीकार नहीं किया जा रहा था।इस्रायल के राजा सौल ने तो – ‘उस योद्धा को हरानेवाले के साथ मैं अपनी बेटी की शादी कराऊँगा और उसके घर को कर (टॅक्स) चुकाने से हमेशा के लिए मुक्ति मिलेगी’ ऐसा घोषित किया था।

लेकिन फिर भी एक भी ज्यूधर्मीय गोलाएथ की चुनौती का स्वीकार करने आगे नहीं आ रहा था। यह ‘हररोज़ चुनौती देने का’ सिलसिला चालीस दिन चला।

इसी दौरान डेव्हिड, इस्रायली राजा सौल की सेना में भर्ती हुए अपने भाइयों की ख़बरबात पूछने और उनतक खाना पहुँचाने वहाँ आया था, तभी गोलाएथ ने उस दिन की चुनौती दी।

डेव्हिड का ईश्‍वर पर पूरा भरोसा होने के कारण उसके मन में अंशमात्र भी भय पैदा नहीं हुआ। उसने इस चुनौती का स्वीकार करने का तय किया। डेव्हिड के भाइयों ने उसे इससे परावृत्त करने की लाख कोशिशें कीं। लेकिन व्यर्थ! ‘ईश्‍वर की सेना को भला कोई चुनौती दे ही कैसे सकता है’ ऐसा युक्तिवाद डेव्हिड ने किया।

ज्युडाह
चराने ले गये भेड़बक़रियों के झुँड़ पर हमला किये सिंह का जबड़ा फ़ाड़कर डेव्हिड ने अपने भेड़ के बछड़े को छुड़ाया।

‘मुझे उस महाकाय योद्धा से लड़ने भेजा जाये’ ऐसी उसने सौल से विनति की। कम उम्र के डेव्हिड को, उस मानो राक्षस ही प्रतीत होनेवाले क्रूर योद्धा से लड़ने जाने देने के लिए सौल का मन कतरा रहा था। लेकिन – ‘आप चिन्ता न करें। यह ईश्‍वर की लड़ाई है, उसे वे ही हमसे कराके लेनेवाले हैं। मैं केवल निमित्तमात्र हूँ’ ऐसा डेव्हिड ने सौल को समझाया। डेव्हिड जब भेड़बक़रियों के झुँड़ों को चराने ले जाता था, तब एक बार एक रीस ने और एक बार तो एक सिंह ने उस झुँड़ में से भेड़ के छोटे बच्चे को उठा ले जाने की कोशिश की थी। तब डेव्हिड ने उन प्राणियों के जबड़े से उन बछड़ों को छुड़ाया था और उन प्राणियों के जबड़े फाड़कर उन्हें मार दिया था। यह बात भी डेव्हिड ने, वह सौल से जो अनुमति माँग रहा था उसके समर्थन में सौल को बतायी।

आख़िरकार निरुपायित होकर सौल ने डेव्हिड को अनुमति दे दी। लेकिन डेव्हिड उसका (सौल का) कवच एवं शिरस्त्राण पहनकर जायें, साथ ही उसकी तलवार लेकर जायें, ऐसा सुझाव उसने डेव्हिड को दिया। उसपर, ‘उसकी कोई ज़रूरत नहीं है’ ऐसा डेव्हिड ने उससे कहा।

उसके बजाय डेव्हिड ने क्या लिया, तो अपनी गोफन और पाँच मध्यम आकार के गोल चिकने, लेकिन कड़क पत्थर! उसने कवच आदि संरक्षक साधन भी नहीं पहने थे।

ये ‘शस्त्र’ लेकर डेव्हिड गोलाएथ को चुनौती देने निकला। दोनों ओर के सैनिक यह सारा वाक़या हैरानी से देख रहे थे। एक एक कदम आत्मविश्‍वासपूर्वक उठाते हुए डेव्हिड गोलाएथ की ओर जा रहा था। उसके एक एक कदम उठाने पर इस्रायली सैनिकों के सीने की धड़कन ही रुक जाती थी।

डेव्हिड को ‘ऐसे’ आते देखकर गोलाएथ पूरी तरह चकरा गया था। ‘एक तो यह कम उम्रवाला युवा, उसमें उसके पास तलवार-भाला आदि कोई भी शस्त्र नहीं है, उसने कवच भी नहीं पहना है। इसके पास केवल गोफन दिखायी दे रही है। क्या यह गोफन से लड़ाई करेगा मेरे साथ? अरे, क्या यह सब मज़ाक लग रहा है इसको? कौन समझता है यह अपने आप को और मुझे? इसका विचार क्या है? क्या मुझे इसके साथ ल़ड़ना पड़ेगा?’ गोलाएथ का मन तुच्छता से भर रहा था।

उसने चिल्लाचिल्लाकर, ताने मारकर डेव्हिड का धीरज तोड़ना चाहा। ‘मैं तुम्हारा माँस आकाश में उड़नेवाले पंछियों को तथा जंगल के प्राणियों को खिलाऊँगा’ ऐसी धमकी देकर डेव्हिड को डराने की कोशिश करने की शुरुआत की।

ज्युडाह
डेव्हिड ने लड़ाई के लिए आते समय अपने साथ लाया एक पत्थर गोफन को लगाया और ईश्‍वर का स्मरण करते हुए पूरी ताकत लगाकर उस पत्थर को गोलाएथ की दिशा में प्रक्षेपित किया।

लेकिन ईश्‍वर पर अटूट भरोसा होनेवाले डेव्हिड पर उसका कुछ भी असर नहीं हो रहा था। ‘मैं ईश्‍वर की लड़ाई लड़ रहा हूँ। वे मुझे इसमें जीताने ही वाले हैं। तुम तुम्हारे तलवार, भाला आदि सभी शस्त्रों से लड़ाई करो। लेकिन मैं केवल ईश्‍वर का नाम लेकर लड़ रहा हूँ। फिर भी मैं ही जीतूँगा और तुम्हारा सिर काटकर ले जाऊँगा; क्योंकि ईश्‍वर के सामने तुम्हारा कोई भी शस्त्र मामूली ही है और ईश्‍वर मामूली शस्त्रों से लड़ाई नहीं करते’ ऐसा प्रत्युत्तर गोलाएथ को देते हुए वह दृढ़निश्‍चय के साथ एक एक कदम उठाते हुए गोलाएथ की ओर आ ही रहा था।

इस प्रत्युत्तर से आगबबूला हो चुके गोलाएथ ने ज्यूधर्मियों के ईश्‍वर का मज़ाक उड़ाना शुरू किया। उसीके साथ, धीमी गति से गोलाएथ की ओर आ रहा डेव्हिड यकायक़ खौल गया और उसने अपनी गोफन उठाकर गोलाएथ की दिशा में दौड़ना शुरू किया। गोलाएथ भी – ‘एक बार यह युवा मेरे हाथ में आने तो दो, मैं उसे रौंद देता हूँ’ इस विचार से सुसज्जित हुआ। दोनों तरफ़ की सेना साँस थामकर आगे क्या होता है, उसका इन्तज़ार कर रही थी।

दौड़ते दौड़ते ही डेव्हिड ने, लड़ाई के लिए आते समय जो पाँच चिकने पत्थर अपने साथ लिये थे, उनमें से एक पत्थर गोफन में लगाया और ईश्‍वर का स्मरण करते हुए सारी ताकत लगाकर गोफन घुमाते हुए उस पत्थर को, बराबर निशाना लगाकर गोलाएथ की ओर फेंका। डेव्हिड ने इतनी अचूकता से अपना लक्ष्य साध लिया था कि वह भारी और कड़क पत्थर बहुत ही तेज़ रफ़्तार से, बराबर गोलाएथ की दोनों आँखों के बीच माथे पर – जहाँ कवच का या शिरस्त्राण का संरक्षण नहीं था, वहाँ जाकर टकराया। गोलाएथ की आँखों के सामने अँधेरा छाने लगा और थोड़े ही समय में गोलाएथ ज़मीन पर गिरकर गतप्राण हुआ!

पहले ही पत्थर ने अपना काम अचूकता से किया था। ईश्‍वर के प्रति विश्‍वास ओतप्रोत भरे हुए डेव्हिड का – ‘ईश्‍वर मुझे इस युद्ध में जिताने ही वाले हैं’ यह विश्‍वास उसके ईश्‍वर ने सार्थ साबित किया था।

पश्‍चात् समय में इस ‘डेव्हिड बनाम गोलाएथ’ लड़ाई का लाक्षणिक अर्थ – ‘अच्छाई की बुराई पर विजय’ अथवा ‘ताकत से बहुत ही ज़्यादा होनेवाले बुरे शत्रु पर, ईश्‍वर ने नियुक्त किये आम जनता के राजा की अपर्याप्त साधनों से विजय’ ऐसा भी विभिन्न अभ्यासकों द्वारा बताया जाने लगा। आगे के समय में समाजजीवन में भी – किसी की ताकत के बहुत ही बाहर होनेवाला कार्य उसके हाथों घटित होने पर इस शब्दप्रयोग का उस लाक्षणिक अर्थ से इस्तेमाल किया जाने लगा।(क्रमश:)

– शुलमिथ पेणकर-निगरेकर

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