एआई २१वीं सदी का विकास एवं विनाश करने की क्षमता रखता है – प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

नई दिल्ली – आर्टिफिशल इंटेलिजन्स यानी ‘एआई’ यह २१वीं सदी में विकास का सबसे बड़ा साधन बन सकता है। साथ ही २१ वीं सदी का विनाश करने की क्षमता भी ‘एआई’ प्रौद्योगिकी रखता है। यह प्रौद्योगिकी गलत हाथों जाती है या आतंकवादियों ने इसका इस्तेमाल किया तो पूरे विश्व में हाहाकार मचेगा। इसी कारण से ‘जी २०’ परिषद के दौरान भारत ने ‘एआई’ के इस्तेमाल करने के लिए अंतरराष्ट्रीय ढ़ांचा सुनिश्चित करने की पहल की थी। इसके लिए अब समय की अधिक बरबादी करना सही नहीं होगा, ऐसा इशारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिया है। राजधानी नई दिल्ली में आयोजित ‘ग्लोबल पार्टनरशिप ऑन एआई समिट’ को संबोधित करते प्रधानमंत्री ने यह इशारा दिया।

एआई २१वीं सदी का विकास एवं विनाश करने की क्षमता रखता है - प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीसाइबर गुनाहगार, डाटा की चोरी करने वाले एवं आतंकवादियों के हाथ एआई’ की प्रौद्योगिकी लगती हैं तो पूरे विश्व में हालात बिगड़ सकते हैं। यह विश्व की सुरक्षा के लिए मौजूदा समय की सबसे बड़ी चुनौती साबित हो सकती है। एआई का ऐसे नकारात्मक इस्तेमाल होने से बचने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एकजूट करके पुख्ता ढ़ांचा तैयार करना होगा। ‘एआई’ के ज़रिये प्राप्त होने वाली जानकारी की विश्वासार्हता जांचने के लिए और इसकी समीक्षा करने के लिए क्या हम अलग सॉफ्टवेअर विकसित कर पाएंगे, इस मुद्दे का वर्णित क्षेत्र के विशेषज्ञ ज़रूर विचार करें। ‘एआई’ के ज़रिये प्राप्त होने वाली जानकारी प्रमाणित नहीं है, यह दर्शाने के लिए क्या किसी वॉटरमार्क का इस्तेमाल हो सकता है, इस पर विशेषज्ञों ने विचार करना आवश्यक है। ऐसा हुआ तो इसकी विश्वासार्हता बढ़ेगी और इसका इस्तेमाल करने पर इसकी मर्यादा भी स्पष्ट होगी, ऐसा सुझाव प्रधानमंत्री ने इस दौरान दिया।

एआई का उचित इस्तेमाल हो, इसी मंशा से भारत ने ‘जी २०’ परिषद के दौरान एआई का ‘ग्लोबल फ्रेमवर्क’ यानी अंतरराष्ट्रीय स्तर का ढ़ांचा बनाने की मांग उठायी थी, इसकी याद भी प्रधानमंत्री ने इस दौरान ताज़ा की। एआई सीर्फ प्रौद्योगिकी नहीं रहा है, अब वह वैश्विक आंदोलन बना है। यह प्रौद्योगिकी विश्व को विकसित करके सभी को समान अवसर उपलब्ध कराने की क्षमता रखती है, इसका अहसास भी प्रधानमंत्री ने कराया।

भारत ‘एआई’ से संबंधित प्रतिभा और नई संकल्पनाओं का अहम देश बन रहा है। भारतीय युवा एआई प्रौद्योगिकी में अनुसंधान करने की पहल कर रहे हैं। वैदिक गणित के क्षेत्र में एआई का इस्तेमाल करके इसके लुप्त हो रही जानकारी की खोज करना मुमकिन हो सकता है। साथ ही लुप्त हुई भाषाओं का इस प्रौद्योगिकी के ज़रिये विकास किया जा सकता है, ऐसा प्रधानमंत्री ने कहा। संस्कृत भाषा में बड़ा विशाल ज्ञान है और एआई के माध्यम से इस ज्ञान का विकास कैसे कर सकते हैं, इसपर भी विशेषज्ञ ज़रूर ध्यान दे, ऐसा आवाहन प्रधानमंत्री ने किया।

‘एआई’ के विकास के साथ हम सभी नए युग में प्रवेश कर रहे हैं। इस वजह से आगे के समय में इस तकनीक का इस्तेमाल भविष्य बनाने के लिए किया जा सकता है। भारत में सैकड़ों भाषा और बोली कही जाती है। एआई के इस्तेमाल से इन भाषाओं को ज़रिया बनाकर स्थानिय लोगों को जानकारी और सुविधा प्रदान करना मुमकिन हो सकता है। देश के केंद्र और राज्य सरकारें इश प्रौद्योगिकी का शासकीय कामकाज में प्रभावी इस्तेमाल करने की पहल करें। जनता को जोड़ने की अद्भूत क्षमता यह प्रौद्योगिकी रखती है, यह विश्वास भी प्रधानमंत्री ने व्यक्त किया।

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