भारत को ‘हार्पून जेसीटीएस’ की बिक्री का अमरीका ने किया ऐलान

नई दिल्ली – अमरीका ने पनडुब्बीविरोधी युद्ध में काफी अहम साबित होनेवाले ‘हार्पून’ मिसाइलों के लिए आवश्‍यक पुर्जों के साथ इसके रखरखाव तक की सभी सहायता भारत को प्रदान करने का अहम निर्णय किया है। अमरीका के रक्षा मुख्यालय ‘पेंटॅगॉन’ की ‘डिफेन्स सिक्युरिटी को-ऑपरेशन एजन्सी’ (डीसीसीए) ने भारत को ‘हार्पून जॉर्इंट कॉमन टेस्ट सेटस्‌’ (जेसीटीएस) की ब्रिकी की जाएगी, ऐसा अमरिकी संसद के सामने कहा। इस वजह से इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अमरीका का प्रमुख भागीदार देश भारत के साथ रणनीतिक सहयोग अधिक मज़बूत होगा, यह विश्‍वास पेंटॅगॉन ने व्यक्त किया है।

harpoon-jctsबीते वर्ष अमरीका के भूतपूर्व ट्रम्प प्रशासन ने भारत को ‘एजीएम ८४-एल हार्पून ब्लॉक-२ एअर लौंच’ नामक हार्पून मिसाइल प्रदान करने का निर्णय किया था। पनडुब्बीविरोधी युद्ध में बड़े अहम साबित होनेवाले मिसाइल भारतीय नौसेना के बेड़े में शामिल की गई हैं। भारत ने इससे पहले भी अमरीका से हार्पून मिसाइल खरीदीं थी। यह मिसाइल फिलहाल नौसेना के बेड़े में शामिल ‘पी८आय’ विमानों पर तैनात किए गए हैं। साथ ही शिशुमार वर्ग की अपनी चार पनडुब्बीयों पर भी इन मिसाइलों की तैनाती करने की भारत की योजना है। भारत अगले कुछ दिनों में अमरीका से ‘हार्पून’ मिसाइल खरीद सकता है, यह संकेत भी प्राप्त हो रहे हैं।

लेकिन, फिलहाल भारतीय रक्षा बलों के बेड़े में मौजूद हार्पून मिसाइलों का रखरखाव, इसके पूर्जे और अन्य तकनीकी बातों के लिए मुश्‍किल हो रहा था। इसलिए भारत ने अमरीका से ‘हार्पून जॉर्इंट कॉमन टेस्ट सेटस्‌’ (जीसीटीएस) की माँग की थी। इसके तहत हार्पून के रखरखाव के लिए हार्पून इंटरमिडिएट लेवल मेंटेनन्स स्टेशन, विभिन्न पूर्जे और उनकी मरम्मत समेत अन्य सहायता और परीक्षण के उपकरण, प्रशिक्षण देने के लिए अमरीका भारत को सहायता प्रदान करेगी।

‘हार्पून जेसीटीएस’ की बिक्री का समझौता कुल ८.२ करोड़ डॉलर्स यानी करीबन छह अरब रुपयों का है। इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में और दक्षिण एशिया की राजनीतिक स्थिरता, शांति और आर्थिक प्रगति के लिए भारत के साथ भागीदारी काफी अहमियत रखती है। इस सहयोग की वजह से भारत और अमरीका का रणनीतिक सहयोग अधिक मज़बूत होगा, ऐसा बयान पेंटॅगॉन की ‘डिफेन्स सिक्युरिटी को-ऑपरेशन एजन्सी’ ने कहा है।

वर्ष २०१६ में अमरीका ने भारत को ‘प्रमुख रक्षा भागीदार’ देश का दर्ज़ा प्रदान किया था। इस वजह से संवेदनशील और अतिप्रगत तकनीक भारत को प्रदान करने की राह अमरीका के लिए उपलब्ध हुई थी। इसके बाद अमरीका और भारत रक्षा सामान के संयुक्त विकास और निर्माण पर काम कर रहे हैं। भारत को हार्पून जेसीटीएस बेचने का अमरीका का यह निर्णय दोनों देशों का सहयोग मज़बूत होने की बात दर्शाता है, ऐसा पेंटॅगॉन का कहना है।

साथ ही जेसीटीएस की बिक्री की वजह से इस क्षेत्र का लष्करी संतुलन नहीं बिगड़ेगा, यह बात भी पेंटॅगॉन ने अमरिकी सांसद के सामने स्पष्ट की। बोर्इंग कंपनी इसके लिए ऑफसेट कान्ट्रैक्ट करेगी, यह जानकारी भी पेंटॅगॉन ने साझा की। हार्पून मिसाइल विश्‍व के सबसे कामयाब जहाज़ और पनडुब्बी विरोधी मिसाईल माने जाते हैं। फिलहाल यह मिसाइल भारत समेत विश्‍व के ३० देशों के लष्करी बेड़े में मौजूद हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published.