‘ब्रिक्स’ का विस्तार होने के बाद अमरिकी डॉलर की अहमियत घटेगी – वेनेजुएला के विदेश मंत्री युवान गिल पिंटो

कैराकास – ब्राज़ील, रशिया, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका के ‘ब्रिक्स’ संगठन का विस्तार हो रहा हैं। भारत और चीन जैसे सबसे अधिक मात्रा में ईंधन की आयात कर रहे देश पहले से इस संगठन का हिस्सा हैं। ऐसे में अब ईरान, सौदी अरब जैसे प्रमुख ईंधन उत्पादक देश भी जल्द ही इस संगठन का हिस्सा होंगे। इसके कारण ईंधन का सबसे ज्यादा आदान प्रदान ब्रिक्स देशों के बीच ही होगा। ऐसा होने पर वैश्विक व्यापार में अमरिकी डॉलर की निर्भरता कम हो जाएगी, ऐसा दावा वेनेजुएला के विदेश मंत्री युवान गिल पिंटो ने किया है। 

गिल पिंटोपिछले महीने दक्षिण अफ्रीका में आयोजित ‘ब्रिक्स’ की बैठक के दौरान इस संगठन के विस्तार पर मुहर लगी। इसके अनुसार सौदी अरब, ईरान के साथ यूएई, अर्जेंटीना, इजिप्ट और इथियोपिया यह छह देश अगले साल से ब्रिक्स के सदस्य होंगे। इनें से सौदी और ईरान ईंधन के बड़े उत्पादक देश हैं। ईंधन उत्पादक देशों की ‘ओपेक’ और ‘ओपेक प्लस’ संगठन पर सौदी एवं रशिया का प्रभाव हैं। वहीं, यूएई में व्यापारी यातायात के लिए बड़े आधुनिक बंदरगाह हैं। रशिया और यूरोप से जोड़ने वाला व्यापारी मार्ग इजिप्ट के सुएन नहर से ही गुजरता हैं। इस वजह से ब्रिक्स संगठन आगे के समय में विश्व की सबसे अहम और प्रभावी संगठन साबित होगी। 

इस ब्रिक्स संगठन की सदस्यता हासिल करने के लिए दुनियाभर के देश कोशिश कर रहे हैं। वेनेजुएला भी इनमें से एक हैं। वेनेजुएला के विदेश मंत्री युवान गिल पिंटो ने रशियन वृत्तसंस्था से बातचीत करते समय ब्रिक्स की सदस्यता को लेकर अपने देश की भूमिका रखी। साथ ही यह संगठन आगे के दिनों में अमरिकी डॉलर की अहमियत कम कर सकता है, यह दावा भी पिंटो ने किया। इसके आगे ईंधन का सबसे बड़े उत्पादक और सबसे बड़े ग्राहक देश ‘ब्रिक्स’ इस एक ही संगठन का हिस्सा रहेंगे। इस वजह से दुनियाभर में लगभग ८० प्रतिशत ईंधन का कारोबार ब्रिक्स देशों के बीच ही होंगे, इसपर पिंटो ने ध्यान आकर्षित किया है।

ऐसा हुआ तो ब्रिक्स देश स्थानिय मुद्रा के ज़रिये कारोबार करेंगे और ईंधन के कारोबार से डॉलर बाहर होगा, ऐसा दावा पिंटो ने किया। इस गुट में वेनेजुएला का समावेश हुआ तो डॉलर की निर्भरता पुरी तरह से कम हो जाएगी ऐसा भी पिंटो ने कहा। ब्रिक्स संगठन विश्व में संतुलन बनाए रखेगा, ऐसा पिंटो ने कहा।

इसी बीच, डॉलर की अहमियत कम करने के लिए ‘ब्रिक्स’ अपनी खुद की मुद्रा कारोबार में उतारें, ऐसी मांग हुई थी। कुछ नेताओं ने ऐसे संकेत भी दिए थे। लेकिन, ब्रिक्स ने अभी ऐसा कोई भी ऐलान नहीं किया है।

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