४१. ‘किंगडम ऑफ ज्युडाह’ का पराजय

इस असिरियन आक्रमण के साथ ज्यूधर्मियों का, उनकी मूल भूमि इस्रायल से देशनिकाला होकर दुनियाभर में बिखेरा जाना (‘ज्यू डायस्पोरा’) शुरू हुआ, ऐसा माना जाता है।

‘किंगडम ऑफ इस्रायल’ में चल रहा यह घटनाक्रम दक्षिणी भाग के – ‘किंगडम ऑफ ज्युडाह’ के शासक बेचैन होकर देख रहे थे। फिलहाल हालाँकि हम बच गये हैं, लेकिन एक ना एक दिन हमारी भी बारी आने ही वाली है, इस बात का एहसास उन्हें हो चुका था। (हाँ, लेकिन यह ‘हमारी बारी’ लगभग पूरे सव्वासौ सालों के बाद आयी। ख़ैर!) लेकिन यह बात जितनी हो सके उतनी दूर धकेलने के लिए ज्युडाह साम्राज्य के शासक, असिरियन राजाओं की मर्ज़ी सँभालने के लिए उन्हें सालाना खंडनी भी दिया करते थे।

अब ईसापूर्व आठवीं सदी ख़त्म होकर ईसापूर्व सातवीं सदी शुरू हुई थी। असिरियन साम्राज्य ने हालाँकि अब ‘किंगडम ऑफ इस्रायल’ को निगलकर वहाँ अपने पैर कसकर जमा दिये थे, मग़र उनके पूरे साम्राज्य में अन्यत्र सबकुछ आलबेल यक़ीनन ही नहीं था। उनके द्वारा एक के बाद एक निगलीं हुईं राजसत्ताओं में समावेश होनेवाले बॅबिलोनियनों से अब असिरियनों की क्रूर सत्ता को विरोध शुरू हुआ था।

वैसे देखा जाये, तो बॅबिलोनिया पर असिरियनों का अमल स्थापित होकर अब दो सौ से भी अधिक साल बीत चुके थे। उससे पहले के लगभग ड़ेढ़ हज़ार साल, टायग्रिस और युफ्रेटिस इन (हाल के इराक में होनेवालीं) नदियों के बीच खिली हुई मेसोपोटेमिया सभ्यता का केंद्रस्थान ही बॅबिलोनिया को माना जाता था और उस कालखंड में वह संपन्नता की सर्वाधिक ऊँचाई को छू रहा था।
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ऐसे इन बॅबिलोनियन्स में असिरियनों के खिलाफ़ तीव्र असंतोष उबलने लगा था। लेकिन इस निओ-असिरियन राजसत्ता का आख़िरी ताकतवर राजा अश्शूरबानीपल के सत्ता में होने तक बॅबिलोनियनों की एक न चल सकी। लेकिन ईसापूर्व ६२७ में अश्शूरबानीपल की मौत हो जाने के बाद राजगद्दी पर बैठनेवाले असिरियन राजा दुर्बल थे और उनके कार्यकाल भी अत्यल्प साबित हुए। उनके दौर में अंतर्गत सत्ताकलह जड़ें फैलाने लगा, साथ ही, राज्यांतर्गत असंतोष ने भी असिरियन राजसत्ता को घेर लिया।

यही मौका जानकर बॅबिलोनियनों ने असिरियनों के खिलाफ़ बग़ावत की। ‘नाबोपोलासर’ नामक सेनानी के नेतृत्व में जगह जगह पर असिरियनों के खिलाफ़ लड़ाइयाँ लड़ीं गयीं। प्रदीर्घ घमासान युद्ध के बाद बॅबिलोनियनों की जीत होकर असिरियन साम्राज्य का अधिकांश प्रदेश पुनः बॅबिलोनियनों के कब्ज़े में आया और आख़िरकार असिरियन्स की राजधानी ‘निनेवे’ (हाल के इराक स्थित मोसूल शहर के आसपास का भाग) ध्वस्त होकर असिरियन्स की हार पर मानो मुहर ही लग गयी। यह ईसापूर्व ६१२ की घटना मानी जाती है।

असिरियनों पर जीत हासिल करने, उनके कब्ज़े में होनेवाला ‘किंगडम ऑफ इस्रायल’ का प्रदेश अपने आप ही बॅबिलोनियनों (निओ-बॅबिलोनियन) के साम्राज्य में समाविष्ट हुआ था। इससे उस सारे प्रान्त का सम्राट बन चुके नाबोपोलासर की नज़र अब, मूल अखंडित इस्रायल के शेष बचे हुए दूसरे भाग पर – ‘किंगडम ऑफ ज्युडाह’ पर पड़ी।
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लेकिन ज्युडाह के साम्राज्य पर आक्रमण करने से पहले ही नाबोपोलासर का ईसापूर्व ६०५ में निधन हुआ और उसके बेटे नेबुकादनेसर (द्वितीय) ने ‘राजा’ के रूप में बागड़ोर सँभाली। राजा बनने के पहले ही साल उसने ज्युडाह साम्राज्य पर आक्रमण किया। लेकिन ज्युडाह साम्राज्य के शासक अब तक असिरियनों को अनाक्रमण हेतु हर साल खंडनी देते ही आये थे, वही खंडनी अब बॅबिलोनियनों को देने का उन्होंने क़बूल किया। इससे कम से कम उस समय के लिए तो ज्युडाह साम्राज्य की रक्षा हुई।

लेकिन कुछ ही सालों में, इजिप्त के फारोह ने दोस्ती का हाथ आगे बढ़ाकर फुसलाने के कारण, ज्युडाह के शासकों ने बॅबिलोनियनों को यह खंडनी देना बन्द कर दिया। अतः ईसापूर्व ५९७ से ईसापूर्व ५८२ इस कालावधी में नेबुकादनेसर ने ज्युडाह साम्राज्य पर कई आक्रमण किये। इनमें से पहले आक्रमण के समय, ज्युडाह के साम्राज्य के तत्कालीन राजा जेहुयाकिम की मौत हो गयी और उसका बेटा जेकोनियाह उम्र के अठारहवें साल में राजा बना।
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लगभग तीन महीने की घेराबंदी के बाद नेबुकादनेसर की सेना जेरुसलेम में घुस गयी और उन्होंने पूरी नगरी में लूटमार शुरू की। ‘होली टेंपल’ में से भी, कई अमूल्य वस्तुएँ उन्होंने लूट लीं। इतना ही नहीं, बल्कि राजा जेकोनियाह और उसके दरबारी, तथा नगरी के उच्चभ्रू वर्ग के कई अमीर एवं बुद्धिमान् लोगों को गिरफ़्तार करके बॅबिलॉन (हाल के इराक स्थित प्रदेश) ले जाया गया। जाते समय नेबुकादनेसर ने जेकोनियाह के काका झेडेकिया (जेहुयाकिम के भाई) को बतौर ज्युडाह का राजा नियुक्त किया। लेकिन गिरफ़्तार करके बॅबिलॉन ले जाये गये इन ज्यूधर्मियों ने और आगे चलकर उनके वंशजों ने भी झेडेकिया को कभी भी अपना राजा नहीं माना; उनके लिए जेकोनियाह ही आख़िर तक राजा रहा।

इन १५-१६ सालों में हुए कुछ आक्रमणों का हालाँकि ज्युडाह की सेना ने मुक़ाबला किया, मग़र फिर भी धीरे धीरे उनके प्रदेश का एक एक हिस्सा बॅबिलोनियनों के कब्ज़े में जाता रहा।

ज्युडाह राज्य के दरबार में भी अब दो पक्ष पड़ चुके थे। एक पक्ष, ‘अब इसके आगे बॅबिलोनियनों को खंडनी न दें’ इस मत का था; वहीं, दूसरा गुट, ‘अपनी ताकत बॅबिलोनियनों से लड़ने जितनी होने तक खंडनी देते रहें और बेवजह मौत को न्योता न दें’ इस मत का था। राजा झेडेकिया धीरे धीरे पहले मत के लोगों के प्रभाव में आने लगा था।

यहाँ पर इजिप्शियन्स बॅबिलोनियनों से बदला लेने का मौक़ा ढूँढ़ ही रहे थे। उन्होंने अब झेडेकिया को फुसलाने की शुरुआत की। आख़िरकार झेडेकिया ने इजिप्शियनों के साथ मित्रता का समझौता करके बॅबिलोनियनों को खंडनी देना बंद कर दिया।

इससे ग़ुस्सा होकर नाबुकादनेसर ने ईसापूर्व ५८९ में ज्युडाह पर पुनः आक्रमण कर दिया। उसने पहले इजिप्शियनों को नेस्तनाबूद किया और फिर अपना रूख जेरुसलेम की ओर किया।
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लगभग अठारह महीनों की घेराबंदी के बाद, ईसापूर्व ५८७ में ‘किंगडम ऑफ ज्युडाह’ की राजधानी जेरुसलेम पूरी तरह से परास्त हो गयी। बॅबिलोनियनों ने जेरुसलेम की मज़बूत चहारदीवारी को तोड़ दी और नगरी में घुसकर आगें लगाना और लूटमार शुरू की। इस समय बॅबिलोनियनों ने कुल मिलाकर नौं लाख से भी अधिक ज्यूधर्मियों को मार डाला, ऐसा कहा जाता है। राजा झेडेकिया ने अठारह मील लंबाई के एक गुप्त सुरंगी मार्ग द्वारा भागने की कोशिश की, लेकिन वह नेबुकादनेसर के सैनिकों के हाथ लग गया। बाद में उसे राजा के सामने लाये जाने के बाद उसने अपने बेटे आदि क़रिबी परिजनों को मौत के घाट उतार दिये जाते हुए देखा। उसके पश्‍चात् उसकी भी आँखें निकाल दी गयीं और उसे बंदी बनाकर बॅबिलॉन ले जाया गया।

लेकिन इससे भी अधिक भयंकर कुछ घटित होनेवाला था….(क्रमश:)

– शुलमिथ पेणकर-निगरेकर

 

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