२६. अधिकांश कॅनान प्रान्त पर ज्यूधर्मियों का कब्ज़ा; पहले जज्जेस

जोशुआ ने कॅनान प्रान्त का इस्रायल की १२ मूल ज्ञातियों में केवल औपचारिक रूप में बँटवारा करके दिया था। लेकिन वह पूरा का पूरा प्रान्त ज्यूधर्मियों के कब्ज़े में आया था ऐसा नहीं है। इस कारण इनमें से अधिकांश ज्ञातियाँ, उस प्रान्त में पहले से ही रहनेवाले स्थानीय लोगों के साथ लड़ाइयों में उलझीं हुईं थीं।

पराक्रमी वीर होनेवाली ज्युडा की ज्ञाति इस संघर्ष का नेतृत्व कर रही थी और उनके पड़ोस का ही प्रदेश बहाल की गयी शिमॉन की ज्ञाति उनकी सहायता कर रही थी।

कॅनान की ही बेझेक नगरी का राजा बहुत ही ख़ूख़्वार था। उसने अपने आसपास के ७० राज्यों के राजाओं को युद्ध में हराकर उन्हें अपना ग़ुलाम बनाकर रखा था। मुख्य बात यानी ये राजा फिर से अपने खिलाफ़ हाथ में शस्त्र न उठायें, इसलिए उसने क्रूरतापूर्वक उन ७० राजाओं के हाथ पैरों के अँगूठें काट दिये थे। ज्युडा एवं शिमॉन की फ़ौज़ों ने बेझेक पर धावा बोल दिया। बेझेक के राजा की उनके आगे एक न चली। ज्यूधर्मियों की फ़ौज़ों ने उसे परास्त कर बंदीवान बना दिया और ‘जैसी करनी वैसी भरनी’ इस तत्त्व के अनुसार बेझेक के राजा के हाथपैरों के अँगूठें काट दिये और उसे बंदी बनाकर रखा। बेझेक के राजा को उसके अंतिम दिनों में पछतावा हुआ था, ऐसा उल्लेख कई जगहों पर पाया जाता है। ‘मैंने ७० राजाओं के हाथपैरों के अँगूठें काट दिये थे। इस कारण ईश्‍वर ने मुझे यह सज़ा दी’ ऐसे वचन उसने कहे होने के उल्लेख कई ग्रन्थों में पाये जाते हैं।

बेझेक के साथ ही बेथेल, नेगेव, सफात, गाज़ा, अ‍ॅस्कलॉन, अ‍ॅक्रॉन, हिब्रॉन, जेरुसलेम ऐसे अनेक महत्त्वपूर्ण राज्यों पर भी ज्यूधर्मियों ने कब्ज़ा कर लिया। लेकिन जेरुसलेम में पहले से निवास कर रहे ‘जेबुसी’ (जेबुसाईट्स) लोगों के ज्यूधर्मीय वहाँ से हटा न सके। आगे चलकर अपनी ताकत बढ़ने पर ज्यूधर्मियों ने उन्हें अपना ग़ुलाम बना दिया।

दरअसल ईश्‍वर ने ज्यूधर्मियों को कॅनान प्रान्त पर कब्ज़ा करने के लिए कहते हुए – ‘कॅनान प्रान्त के हित्ती (हिटाईट्स), गिर्गाशी (गिर्गाशाईट्स), अ‍ॅमोरी (अ‍ॅमोराईट्स), कॅनानी (कॅनानाईट्स), पेरिझी (पेरिझाईट्स), हिवी (हिवाईट्स) और जेबुसी (जेबुसाईट्स) इन सात राष्ट्रों का (ज़मातियों का) – संख्या में और ताकत में तुमसे कई गुना ज़्यादा होनेवाले राष्ट्रों का – पूरी तरह विनाश कर दो’ ऐसी आज्ञा दी थी, ऐसा वर्णन इस कथा में आता है। लेकिन इस आज्ञा का ज्यूधर्मियों द्वारा पालन नहीं किया गया। कॅनान प्रान्त के कई राज्य उन्होंने जीत लिये। लेकिन वहाँ के मूल निवासियों को वे संपूर्ण रूप से वहाँ से निकाल बाहर न कर सके। ये कॅनानप्रान्त के मूल निवासी फिर ज्यूधर्मियों को परेशान करते ही रहे।

लेकिन जोशुआ की मृत्यु के कुछ ही सालों में, मज़बूत नेतृत्व के तथा किसी भी प्रकार के धाक के अभाव से ज्यूधर्मीय पुनः कॅनानप्रांतियों की परिपाटियाँ, रूढ़ियाँ इनमें फँस गये। वे अपने संरक्षणकर्ता ईश्‍वर को भूल चुके थे, अपने धर्मतत्त्वों को भूल चुके थे, उनकी नीतिमत्ता भी ख़राब हो चुकी थी और वे ऐय्याशी में मश्गूल हुए थे। बआल, अ‍ॅस्टरोथ इन जैसे स्थानीय कॅनानप्रान्तियों के देवताओं का पूजन उन्होंने शुरू किया था। साथ ही, ज्यूधर्मियों के अलावा अन्य किसी स्थानिकों के साथ शादीब्याह के संबंध नहीं रखने हैं, इस ईश्‍वर की आज्ञा को भी ज्यूधर्मियों द्वारा नज़रअन्दाज़ किया गया।

अंजाम जो होना था वही हुआ।

एक बहुत ही ख़ूख़्वार एवं ताकतवर दुश्मन ने – पड़ोस के ही मेसोपोटेमिया (एडोम) प्रान्त के राजा कुशान ने कॅनान पर आक्रमण किया और उसने ज्यूधर्मियों को अपना ग़ुलाम बन दिया। अगले पूरे आठ साल तक वह ज्यूधर्मियों से विभिन्न प्रकारों से फिरौती वसूल करता रहा।

उसके ज़ुल्मोसितमों से तंग आ चुके ज्यूधर्मियों को आख़िरकार अपनी ग़लती का एहसास हो चुका था, लेकिन अब क्या फ़ायदा? अब उनके पास जोशुआ जैसा मज़बूत नेतृत्व भी नहीं था। आख़िर सहनशक्ति ख़त्म होने पर उन्हें अपना ईश्‍वर याद आया और उन्होंने उसे गुहारें लगाना शुरू किया।

अर्थात् ईश्‍वर को यह सब दिखायी दे ही रहा था। ज्यूधर्मियों की रिहाई की योजना और उस योजना पर अमल करनेवाला व्यक्ति कहीं पर तो सिद्ध हो ही रहा था।

आठ साल ज्यूधर्मियों ने बेतहाशा उत्पीडन सहन करने के बाद, ज्युडाह की ज्ञाति में से कॅलेब का दामाद होनेवाला ओथनिल ज्यूधर्मियों की रक्षा के लिए आगे बढ़ा। यही था पहला ‘जज्ज’!

कॅनान प्रान्त, कब्ज़ा, मेसोपोटेमियन, एडोमाईट्स, ओथनिल, गोपनीय संदेश, जॉर्डन नदी, एग्लॉन
पहला जज्ज ओथनिल

ज्यूधर्मियों के इतिहास में ‘दंडनायकों का कालखंड’ शुरू हो चुका था।

बहुत ही पराक्रमी एवं नीडर होनेवाले ओथनिल ने ज्यूधर्मियों की सेना बनाकर इन मेसोपोटेमियन (एडोमाईट्स) लोगों के खिलाफ़ जंग छेड़ दी और घमासान लड़ाई के बाद उसने कुशान को मारकर इस्रायली लोगों को आज़ाद किया।

ओथनिल ने लगभग पैंतीस-चालीस साल ज्यूधर्मियों का नेतृत्व किया। इस दौर में कॅनान प्रान्त में कुल मिलाकर शांति थी। लेकिन उसकी मृत्यु के कुछ ही दिन बाद पुनः पुरानीं समस्याओं ने सिर ऊपर उठाना शुरू किया।

अब पुनः दुर्बल होते जा रहे ज्यूधर्मियों पर कॅनान प्रान्त से सटे मोआबी लोगों ने आक्रमण किया। मोआबी लोगों के राजा एग्लॉन की सेना ने ज्यूधर्मियों को परास्त कर उन्हें अपना गुलाम बनाया। अगले लगभग अठारह साल ज्यूधर्मीय इस मोआबी लोगों की गुलामी में पीसते जा रहे थे। यह उत्पीडन असहनीय होकर आख़िर अपने ईश्‍वर से रहम की याचना कर रहे थे।

ईश्‍वर ने उनपर रहम खाने के बाद, बेंंजामिन की ज्ञाति में से ‘एहुद’ नामक एक साहसी एवं पराक्रमी, लेकिन उतना ही रणनीतिधुरंधर एवं चालाक़ वीर इस्रायली लोगों की रक्षा के लिए सिद्ध हुआ। यह था दूसरा ‘जज्ज’!

एहुद ने भी ज्यूधर्मियों की सेना का निर्माण किया और ईश्‍वर ने तय कियेनुसार अपनी योजना की कार्यवाही की शुरुवात की। एग्लॉन को अनेक बेशक़ीमती नज़राने अर्पण करने के लिए ज्यूधर्मियों का पथक भेजा गया, जिसकी अगुआई एहुद कर रहा था। निर्धारित योजना के अनुसार एहुद ने चोग़ा पहना था और उसमें उसने तक़रीबन डेढ़ हात (बीस इंच) लंबाई की दोधारी तलवार छिपायी थी। एग्लॉन को नज़राने नज़र करने के बाद – ‘मुझे ईश्‍वर का एक ख़ास गोपनीय संदेश एकान्त में राजा तक पहुँचाना है’ ऐसा एहुद ने सूचित किया। तब राजा ने अपने सभी सेवकों को एवं अंगरक्षकों को दालान के बाहर भेज दिया और दालान के दरवाज़े बन्द कर लिये। यह ख़ास संदेश सुनने के लिए जब वह एहुद के पास गया, तब वह सन्देश सुनाने का बहाना करके अपना मुँह उसके कान के पास ले जाते हुए एहुद ने झट से अपनी तलवार बाहर निकालकर उसे राजा के पेट में भोंक दिया। एग्लॉन निष्प्राण होकर ज़मीन पर गिर पड़ा। उस तलवार को वैसी ही रखते हुए, कुछ हुआ ही नहीं ऐसा दर्शाते हुए एहुद दालान के बाहर आया और राजा को परेशान न करें, ऐसा उसने बाहर खड़े सेवकों से कहा। वह राजमहल से जो बाहर निकला, वह ठेंठ एफ्रैम पर्वत पर आने के बाद ही रुका।

कॅनान प्रान्त, कब्ज़ा, मेसोपोटेमियन, एडोमाईट्स, ओथनिल, गोपनीय संदेश, जॉर्डन नदी, एग्लॉन
एकान्त में मौका मिलते ही राजा एग्लॉन पर, छिपाकर लायी तलवार का वार करने सिद्ध हुआ एहुद

वहाँ पर उसने पूर्वसंकेत की तुरही फूँककर ज्यूधर्मियों के प्रतिनिधियों को इकट्ठा करते हुए यह खुशख़बर दी और अपनी सेना को अहम स्थानों पर सुसज्जित रखा। यहाँ राजमहल में सारा वाक़या जान जाने के बाद राजा की सेना ने खौलकर एहुद का पीछा करना शुरू किया, लेकिन जॉर्डन नदी पार करने के मार्ग पर ही एहुद ने सेना को सुसज्जित रखने के कारण एक भी मोआबी सैनिक जॉर्डन नदी पार करके कॅनान प्रान्त में नहीं आ सका। एहुद की सेना ने बहुत प्रचंड पराक्रम कर उस एक दिन में दस हज़ार मोआबी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया, ऐसा उल्लेख इस कथा में मिलता है।

इस प्रकार एहुद ने – दूसरे जज्ज ने ज्यूधर्मियों को पुनः एक बार संकट की खाई में से बाहर निकालकर उनकी गाड़ी पटरी पर लायी थी। उसने अगले बासठ साल ज्यूधर्मियों का नेतृत्व किया।(क्रमश:)

– शुलमिथ पेणकर-निगरेकर

Leave a Reply

Your email address will not be published.