निर्वासितों की समस्या सुलझाने के लिए तुर्की को युरोपीय महासंघ की सदस्यता दीजिए

ब्रिटनस्थित तुर्की के उपराजदूत की माँग

sem_izic

गत कई वर्षों से युरोपीय महासंघ, इराक़ तथा सिरिया जैसे देशों की समस्याओं को न झेलना पडें इसलिए तुर्की को महासंघ का सदस्य बनने से दूर रख रहा है। लेकिन यह फ़ैसला कितना ग़लत साबित हुआ है, यह वर्तमान हालातों से महासंघ की समझ में आ ही गया होगा, ऐसा सुनाकर तुर्की ने फिर एक बार महासंघ के सामने अपनी सदस्यता की माँग रखी है। तुर्की को यदि महासंघ का सदस्य बनाया गया, तो निर्वासितों की समस्या आसानी से हल हो सकती है, ऐसा दावा तुर्की के ब्रिटनस्थित उपराजदूत सेम इझिक ने किया है। सोमवार को निर्वासितों के मुद्दे पर तुर्की तथा महासंघ के बीच बैठक की शुरुआत हो चुकी होकर, तुर्की ने अपने इरादें स्पष्ट कर दिए हैं, ऐसा माना जा रहा है।

‘तुर्की का युरोपीय महासंघ में सहभागी होना, यह रवैयात्मक लक्ष्यों का भाग है। इसके लिए लगभग एक दशक से गतिविधियाँ शुरू है। गत कई वर्षों से, युरोपीय महासंघ तुर्की का ‘सदस्य देश’ के रूप में स्वीकार करने से लगातार मुक़र रहा है। इराक़ तथा सिरिया जैसे देशों से निगडित समस्याएँ अपनी सीमाओं तक न आयें इसलिए यह सारी मशक्कत की जा रही थी। यह नीति कितने संकुचित क़िस्म की थी, इसका एहसास अब युरोप को हो रहा होगा’ ऐसे तीख़े शब्दों में उपराजदूत सेम इझिक ने युरोपीय महासंघ पर निशाना साधा।

‘युरोप की सीमाओं पर फिलहाल सिरियन निर्वासितों के समस्या ने गंभीर रूप धारण किया है। तुर्की का यदि महासंघ के सदस्य के रूप में स्वीकार किया जाता है, तो इस समस्या का हल निकल सकता है। तुर्की को महासंघ का सदस्य बनने से रोकने के कारण ही निर्वासितों की समस्या ने गंभीर रूप धारण किया है’ ऐसा दावा भी तुर्की के राजनयिक अधिकारी ने किया।

युरोपीय महासंघ का सदस्य बनने के लिए तुर्की युरोप को ‘ब्लॅकमेल’ कर रहा होने का आरोप भी उपराजदूत सेम इझिक ने स्पष्ट रूप में ख़ारिज़ कर दिया। उलटे पिछले वर्ष निर्वासितों की समस्या भड़क उठने के बाद ही युरोप को तुर्की की याद आयी, यह दुर्भाग्य की बात है, इन शब्दों में उन्होंने महासंघ की भूमिका पर स्पष्टतापूर्वक नाराज़गी ज़ाहिर की।

सन १९९९ से तुर्की युरोपीय महासंघ की सदस्यता पाने की कोशिश कर रहा है। सन २००५ में, तुर्की एवं युरोपीय महासंघ के बीच सदस्यता के मुद्दे पर अधिकृत रूप में बातचीत की शुरुआत हुई थी। लेकिन उसके एक दशक बाद भी ये चर्चा सुयोग्य गति से आगे नहीं बढ़ी है। महासंघ के सदस्य देशों ने तुर्की से संबंधित कई बातों पर सख़्त ऐतराज़ जताये हैं।

turkey-eu-accession

युरोपीय महासंघ का सदस्य रहनेवाले ‘सायप्रस’ को अधिकृत रूप में मान्यता न देना, ग्रीस के साथ सीमाओं को लेकर रहनेवाले विवाद, जर्मनी का विरोध, लष्कर का प्रभाव और प्रसारमाध्यमों पर अपनाया जा रहा दमनतंत्र इन जैसे मुद्दें तुर्की को मुश्किल में ड़ालनेवाले साबित हो रहे हैं। तुर्की के राष्ट्राध्यक्ष रेसेप एर्दोगन ने, महासंघ के साथ निर्वासितों के मुद्दे पर हुई चर्चा के दौरान सदस्यता देने की ज़ाहिर रूप में माँग की थी। महासंघ यदि हमारी माँगें पूरी नहीं करता है, तो तुर्की निर्वासितों के लिए युरोप का मार्ग खुला कर देगा, ऐसी धमकी भी दी गयी है।

इसपर महासंघ में से तीव्र प्रतिक्रियाएँ भी उठी थीं। लेकिन तुर्की के उपराजदूत ने, निर्वासितों की समस्या पर हो रही चर्चा के दौरान ही, पुन: सदस्यता की माँग की होने के कारण, तुर्की इस मुद्दे को छोड़नेवाला नहीं है, यह स्पष्ट हो चुका है।

इसी दौरान, झेक रिपब्लिक के राष्ट्राध्यक्ष मिलोस झेमान ने यह सुझाव दिया है कि ग्रीस, निर्वासितों के लिए छावनियों का निर्माण कर अपने सिर पर रहनेवाला कर्ज़े का बोझ हल्का करें।

निर्वासितों के मुद्दे को लेकर तुर्की तथा युरोपीय महासंघ मे चल रही चर्चा के दौरान ही, सिरिया तथा अन्य देशों से तुर्की में दाख़िल हुए निर्वासितों को, सागरी मार्ग से अवैध रूप में तुर्की से आगे आने न देने के लिए चल रहीं  कोशिशों में अब ब्रिटन भी सहभागी हो गया है। फिलहाल तुर्की तथा ग्रीस के बीच के ‘एजियन सी’ में चल रही नाटो की इस मुहिम में ग्रीस, तुर्की, जर्मनी एवं कॅनड़ा की युद्धनौकाएँ शामिल हैं । अब ब्रिटन भी अपनी युद्धनौकाएँ एजियन सी में तैनात करेगा, ऐसी जानकारी ब्रिटन ने दी है ।

Leave a Reply

Your email address will not be published.